Chapter 121

Chapter 121

सुन मेरे हमसफ़र 114

Chapter

114




   


    एकदम से किसी ने कंधे पर हाथ रखा तो कुहू डर से उछल पड़ी। उसके पीछे देखा तो सुहानी खड़ी थी। कुहू को इस तरह घबराया हुए देख सुहानी ने पूछा "क्या हुआ दी? आप इतने घबराए हुए क्यों लग रहे हो? कुछ हुआ है क्या? तबीयत ठीक नहीं है आपकी?"


     कुहू अपने माथे पर पसीने को पोंछते हुए बोली "मैं ठीक हूं। कुछ नहीं हुआ मुझे। बस तूने ऐसे ही आकर एकदम से डरा दिया था।"


     सुहानी ने हैरान होकर पूछा "लेकिन आप ऐसा क्या कर रहे थे जो इतना ज्यादा डर गए? आई मीन कुछ सोच रहे थे आप?"


     कुहू ने कोई जवाब नहीं दिया तो सुहानी ने फिर पूछा "क्या हुआ दी? सब ठीक है ना! कोई प्रॉब्लम है बताइए मुझे।"


     कुहू ने सारे ख्यालों को एक तरफ झटका और बात बदलने की नियत से बोली "कुछ नहीं है मेरी जान! मैं तो यही थी, लेकिन तू कहां थी? मैं तो तुझे ही ढूंढ रही थी। सारे लोग तैयार हो चुके हैं, मेहमान आने शुरू हो गए हैं और तू अभी तक यह जींस और टीशर्ट में घूम रही है!"


     सुहानी ने अव्यांश के कमरे की तरफ इशारा किया और बोली "निशि को तैयार कर रही थी। उसी में टाइम लग गया। दादी से मैंने कहा था कि मैं निशी के लिए एक ब्यूटीशियन को ही अप्वाइंट कर दे रही हूं लेकिन नहीं दादी को तो आप जानते ही हो। अरे वह बेचारी अपनी फैमिली के साथ होलिका दहन मनाएगी या यहां आकर काम करेगी? इसलिए उन्होंने मुझे जबरदस्ती भेज दिया।"


   कुहू ने कुछ याद करते हुए कहा, "लेकिन बड़ी दादी की स्टाइलिस्ट तो उनके कमरे में ही है!"


   सुहानी हैरान होकर बोली, "लो कर लो बात! मुझसे काम लिया जा रहा है और खुद की स्टाइलिस्ट को छुट्टी नहीं दी। अब बोलो। इनका कुछ समझ में नहीं आता मुझे। खैर, अब मैं फ्री हूं तो..........."


     कुहू ने उसे कंधे से पकड़ा और उसके कमरे की तरफ ले जाते हुए बोली "अब जब तु फ्री हो गई है तो चल मैं तुझे तैयार कर देती हूं।"


    सुहानी ने चलते हुए एक नजर शिवि के कमरे की तरफ देखा और बोली "शिवि दी कहां है? उनको भी तो तैयार होना होगा।"


     कुहू उसे धक्का देकर कमरे में ले गई और बोली, "वो तो पहले ही तैयार हो गई और नीचे भी चली गई समर्थ भाई के साथ।" कहते हुए कुहू को शिवि और कुणाल का साथ याद आ गया। उन दोनों को इतना करीब देखना कुहू को अच्छा नहीं लगा था, फिर भी आखिरी शिवि थी तो उसकी बहन। और वह अपनी बहन के बारे में कुछ गलत नहीं सोचना चाहती थी। उसने आगे कहा "वो पहले ही सबको अटेंड करने चली गई है। तुम भी तैयार हो जाओ।


  सुहानी ने पलटकर कुहू से कहा "ठीक है मैं तैयार हो जाऊंगी लेकिन यह तो बताइए, कायू कहां है? आज सुबह से नहीं नजर आई मुझे। कॉल भी नहीं किया।"


    कुहू ने उसे उसकी ड्रेस पकड़ाई और चेंजिंग रूम की तरफ धक्का देते हुए कहा, "उसको मैंने ही किसी काम के लिए भेज रखा था। वह सीधे तैयार होकर पहुंचेगी। उसकी टेंशन छोड़ और तू तैयार हो जा।"



*****



    सिया तैयार होकर हॉल में आई और सब को आवाज देने लगी। एक एक कर सभी अपने कमरे से निकले। आज सभी ने कपल वाले मैचिंग आउटफिट पहन रखा था। सिया ने अपने पूरे परिवार को एक साथ देखा और मन ही मन उनकी बलाएं लेते हुए बोली 'हे ईश्वर! कभी किसी की नजर ना लगे हमारे परिवार को।"


    सिया ने नोटिस किया, सभी थे लेकिन सुहानी कुहू काया निशी और अंशु, यह लोग वहां कई मौजूद नहीं थे। उन्होंने सारांश को पूछा "बच्चे अभी तक तैयार नहीं हुए?"


   अब सारांश क्या ही कहते। उनके पास इस बात का जवाब कैसे हो सकता था! शिवि आगे आई और सिया की बांह पकड़कर बोली "दादी, सब तैयार है। कुहू दी अभी सुहानी के साथ है, मैंने खुद उन्हें देखा। निशि तैयार हो चुकी है और अंशु भी तैयार है। वो लोग बस आते ही होंगे। काया अभी घर नहीं पहुंची है। मैं उसे कॉल कर दे रही हूं, आप बस चल कर सारे मेहमानों का स्वागत कीजिए। सब आपका इंतजार कर रहे हैं। आफ्टरऑल, आज के स्टार तो आप ही हैं।" सिया ने शिवि के माथे पर हल्की सी चपत लगाई।




    काया अपने लिए ड्रेस सेलेक्ट कर रही थी। उसे बाकी सब से थोड़ा अलग डिजाइन चाहिए था इसलिए काव्या के मना करने के बावजूद भी काया उसकी बंद बुटीक में घुस गई। कोई कस्टमर नहीं था, सिवाय काया के। उसे एहसास ही नहीं हुआ कि वहां उसके अलावा भी वहां कोई मौजूद था। वो अपनी धुन में खोई हुई थी। इतने में किसी ने पीछे से आकर उसका मुंह दबा दिया। काया चिल्ला भी नही पाई।





अंशु निशि को लेकर कमरे से बाहर निकला तो देखा, सारे लोग हॉल में इकट्ठा थे और सभी की नजरें उन्हीं दोनों पर टिकी थी। सीढ़ियों पर से उतरते हुए अंशु ने निशी का हाथ पकड़ लिया।


    निशी उसकी इस हरकत पर पहले तो थोड़ा चौंक गई फिर सबकी तरफ उसका ध्यान गया। अंशु ने धीरे से कहा "डॉन्ट वरी! बस थोड़ी देर। और वैसे भी, मैं तुम्हारा हस्बैंड हूं, हक है मेरा ये सब करने का। लेकिन फिलहाल सब लोग हमें ही देख रहे हैं इसलिए अपने होठों पर बड़ी सी स्माइल चिपकाओ और चलो।"


     जाने की बात सुनकर निशी थोड़ा सा डरते हुए पूछा "कहां जाना है हमें?"


    अंशु मुस्कुराते हुए सामने देख कर बोला "बताया तो था, घरवाले चाहते हैं कि इस घर में नन्हे मुन्ने की किलकारियां सुनने को मिले। भाई की शादी तो अभी तय ही हुई है और हमारी हो चुकी है। जब हमारी शादी पहले हुई है तो फिर यह रिस्पांसिबिलिटी भी तो हमारी बनती है ना? इसीलिए मैंने सोचा, चलो आज रात हम इस रिस्पांसिबिलिटी को निभाते है।"


    निशी थोड़ा और घबरा गई और उसने अंशु की पकड़ से हाथ छुड़ाने की कोशिश की। लेकिन यह उसके बस का नहीं था। अंशु ने और भी कसकर उसका हाथ थाम लिया। इतने में सारांश ने आगे बढ़कर ताना मारा "तैयार होने में तुझे लड़कियों से भी ज्यादा टाइम लगने लगा है। तू खुद तैयार हो रहा था या साथ में निशी को भी तैयार कर रहा था?"


     अंशु अपने बालों में हाथ को घुमाते हुए बोला "डैड! आपको तो पता है, मुझे अपने बालों को सेट करने में कितना टाइम लगता है।"


     सारांश ने चिढ़कर कहा "किसी दिन तेरे पूरे बाल निकलवा दूंगा। ना रहेगा बाल ना बजेगी बांसुरी।" निशी, जो अभी तक घबराई हुई थी, उसकी छूट गई।


    अंशु नाराज होकर बोला "डैड, आप भी ना! मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं जो मेरा मुंडन करवाएंगे आप। मुझे मेरे बाल बहुत प्यारे हैं। खबरदार जो इन्हें नजर लगाया तो। मुझे अच्छे से पता है, मेरे बाल आपसे ज्यादा अच्छे हैं इसलिए आपको इन से जलन होती है। लगता है मुझे अपने बालों के लिए कोई टोटका करना पड़ेगा।" 


   अंशु ने जाकर अवनी को पीछे से हग कर लिया तो अवनी बोली "बिल्कुल! मेरे बच्चे के बाल सबसे ज्यादा अच्छे है। तू घबरा मत, मैं तेरे लिए नींबू मिर्ची की एक पूरी चोटी बना दूंगी। उन्हें अपने बालों में पीरो लेना।" वहां मौजूद सभी ठहाके मारकर हंस पड़े।