Chapter 82
सुन मेरे हमसफ़र 75
Chapter
75
अव्यांश को थोड़ा तो डाउट हो गया था कि निर्वाण और कुणाल के बीच कुछ तो गड़बड़ है। निर्वाण कुणाल से मिलने के लिए इतना एक्साइटेड था, और उससे मिलने के बाद उस के चेहरे पर जो एक्सप्रेशन थे वो कहीं से भी मैच नहीं हो रहे थे।
निशी के मां पापा, घर के जेंट्स को इस तरह एप्रॉन पहने देख थोड़ा अजीब महसूस कर रहे थे। उससे भी ज्यादा उन्हें अजीब तब लगा जब सारे मिलकर उन लोगों को शर्व करना स्टार्ट किया। अखिल जी उन्हें देख हंसते हुए बोले "इसमें इतना सोचने वाली कोई बात नहीं है। यह इस घर का पुराना नियम है। हम तो बरसों से देखते आ रहे हैं। आज के दिन सुबह किचन की सारी जिम्मेदारी यह लोग उठा लेते हैं और पूरा परिवार एक साथ बैठकर नाश्ता करता है। अगले दिन जिसको जो मर्जी करना हो करें। सब की संडे छुट्टी, ऑफिस की भी और घर से भी।"
कार्तिक भी उनकी हां में हां मिला दिया और बोला "बिल्कुल! मिश्रा जी, अब तो आप इस सब की आदत डाल लीजिए। अब आप भी हमारे परिवार का हिस्सा है। हमारे अंशु जितना प्यारा दामाद तो ढूंढने से भी नहीं मिलता। उसके हाथ के पराठे तो ट्राई कीजिए।"
अपनी तारीफ सुनकर अव्यांश थोड़ा सा गुब्बारे की तरह फूल गया और गला खरास कर निशी की तरफ देखा। निशी ने भी नजर उठाकर अंशु की तरफ देखा तो अव्यांश ने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और एक बार फिर जता दिया कि वह नाराज है। निशी इतनी ही देर में परेशान हो चुकी थी।
सिद्धार्थ सारांश कार्तिक और बाकी सब भी अपना अपना एप्रिन उतार कर वही डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। शिवि की खाली कुर्सी देखकर सिद्धार्थ ने पूछा "शिवि कहां है? वो नहीं करेगी क्या नाश्ता? सुबह के 9:00 बज चुके हैं, अब और कितना सोएगी? हॉस्पिटल नही जाना क्या आज उसे?"
श्यामा ने अपनी कुर्सी पर से उठते हुए कहा "मैं जाकर देखती हूं उसे। कल की थकान के कारण नींद नहीं खुली होगी उसकी। आज हॉस्पिटल नही जायेगी तो कोई तूफान नही आ जायेगा।"
निर्वाण ने उन्हें रोकते हुए कहा "मामी! आप बैठो मैं उन्हें देख कर आता हूं।" निर्वाण तुरंत शिवि के कमरे की तरफ बढ़ गया।
कुणाल जो कुहू के बगल में ही बैठा हुआ था, उसने धीरे से पूछा "ये शिवि कौन है?"
कुहू को थोड़ा अजीब लगा। उसने पूछा "कल तुम शिवि से नहीं मिले क्या?"
कुणाल ने इनकार में सर हिला दिया तो कुहू बोली "क्या तुम भी! तुम और वो लफंगा, दोनो पार्टी से ऐसे गायब हो गए कि ढूंढने से भी नहीं मिले। अगली बार मिलेगा तो बताऊंगी उसे। हमारी शिवि कल ही सेमिनार से लौट कर आई है। मैंने बताया था ना तुम्हें, बड़े पापा की बेटी है। अरे, समर्थ भाई की छोटी बहन। डॉक्टर है वो।"
कुणाल को अब याद आया। जब वो सुहानी के बर्थडे पर आया था तब कुहू ने सबके बारे में उसे बताया था। बताया तो उसने निर्वाण और नेत्रा के बारे में भी था लेकिन उसे दोनों भाई बहन का नाम नहीं पता था। अगर पता होता तो कभी इस रिश्ते के लिए हां नहीं करता।
अव्यांश और शिवि उस टाइम वहां नहीं थे इसीलिए उनसे भी मिलना नही हो पाया था। कुणाल को सारी बातें समझ में आई लेकिन एक बार फिर उसकी नजर सिद्धार्थ के चेहरे पर जाकर अटक गई। पता नहीं क्यों लेकिन उसे सिद्धार्थ का चेहरा काफी जाना पहचाना लगता था, उसके नैन नक्श........ लेकिन चाह कर भी वह कभी कुछ पूछ नहीं पाया।
सिद्धार्थ ने उसके इस हाव भाव को नोटिस किया और पूछा "तुम कुछ कहना चाहते हो क्या?"
कुणाल ने नज़रे नीचे की और सर हिलाते हुए बोला "नहीं। वह एक्चुअली आपका चेहरा मुझे किसी की याद दिलाता है। बहुत अपना सा लगता है। अब यह मत पूछना कि कौन।" सिद्धार्थ मुस्कुराकर रह गया और कुछ नहीं पूछा।
निर्वाण थोड़ी ही देर में शिवि के कमरे से भागता हुआ आया। उसे देख सिद्धार्थ ने सवाल किया "क्या हुआ? शिवि कहां है? उठी नहीं क्या?"
निर्वाण परेशान होकर बोला "उठेगी तब, जब वो सोएंगी। उनका बेड देख कर लग रहा है कि वह सोई ही नहीं है।"
श्यामा ने परेशान होकर पूछा "सोई नहीं, मतलब? कर क्या रही है वो?"
निर्वाण बोला "पता नहीं मामी, लेकिन अपने कमरे में नहीं है।"
श्यामा घबरा गई "ऐसे कैसे अपने कमरे में नहीं है। हमारे साथ ही वापस आई थी। सोनू! शिवि तेरे साथ थी ना बेटा?"
श्यामा को ऐसे घबराते हुए देख सिया ने उसे समझाते हुए कहा "परेशान होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है हॉस्पिटल से कोई कॉल आया हो और चली गई हो। तुम शांत रहो, मैं हॉस्पिटल कॉल करके देखती हूं।"
सारांश ने जल्दी से अपना फोन निकाला और कहा "मैं कॉल करता हूं।"
सारांश ने जैसे ही हॉस्पिटल का नंबर डायल किया और फोन कान से लगाया, उसी वक्त एक मीठी सी आवाज आई "किसको ढूंढा जा रहा है? वह भी सुबह-सुबह!"
शिवि की आवाज सुनकर सभी ने पलट कर उसकी तरफ देखा। लेकिन जब कुणाल की नजर शिवि पर गई तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि जो वह देख रहा है वह सच है या कोई सपना।
शिवि अपने नॉर्मल कपड़ों में एक हाथ में अपने डॉक्टर वाला कोट और दूसरे हाथ में एक कोई पैकेट लिए मुस्कुराती हुई खड़ी थी। वह जल्दी से आगे आई और अपना कोट और पैकेट एक तरफ सोफे पर जल्दी से फेंक कर डाइनिंग टेबल पर बैठ गई। इससे पहले कि वह अपनी थाली में कुछ ले पाती, सब ने एक साथ अपने हाथ में पकड़ा चम्मच प्लेट पर पटक दिया।
शिवि के हाथ वहीं रुक गए। उसने मासूम बनते हुए कहा "प्लीज! हॉस्पिटल से हाथ धो कर आई हूं।"
सारांश ने पूछा "हॉस्पिटल से हाथ धो कर आई हो, तो ड्राइव किसने किया?"
शिवि सर झुका कर बोली "मैंने!"
सिद्धार्थ ने पूछा "गाड़ी का दरवाजा किसने खोला?"
शिवि सर झुकाए बोली "मैंने!"
समर्थ ने पूछा "तेरे केबिन का दरवाजा किसने खोला था?"
अब इससे ज्यादा शिवि नहीं सुन सकती थी। उसने अपने दोनों हाथ खड़े किए और बोली "ठीक है! बस थोड़ा सा तो खा ही सकती हूं। हाथ नही लगाऊंगी, चम्मच से ही खा लूंगी। बहुत भूख लग रही।"
सब ने एक बार फिर अपना चम्मच प्लेट पर पटका। शिवि के पास अब और कोई रास्ता नहीं था। सबके बीच उसे इंबैरेस नहीं होना था, क्योंकि इस वक्त घर में सिर्फ घर वाले मौजूद नहीं थे। वह चुपचाप उठी और अपने कमरे की तरफ भाग गई।
कुणाल जो अभी तक शिवि को ही देखे जा रहा था, उसके जाने के बाद कुहू से कान में पूछा "यह कौन है?"
कुहू इस बार अपने सर पर हाथ मारकर बोली "यही तो शिवि है! हम सब इसी का तो इंतजार कर रहे थे। बड़े पापा की बेटी।"
कुणाल को यकीन नहीं हुआ। जो कुछ भी उसकी आंखों के सामने था वो कोई सपना नहीं था। जिस लड़की को वह पिछले 1 साल से पागलों की तरह ढूंढ रहा था, वह यहां उसे इस घर में मिलेगी, ये उसने उम्मीद नहीं की थी, बिल्कुल भी नहीं। लेकिन अब उसके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल होने वाला था। एक तरफ वह कुहू से अपना रिश्ता तोड़ना चाहता था तो दूसरी तरफ निर्वाण उसके और नेत्रा के रिश्ते को लेकर घर में बवाल मचाने को तैयार था। इन दोनों में से कोई भी एक चीज उसे शिवि के करीब जाने नहीं देती। अब क्या करें? यह सोच कर कुणाल के पसीने छूट रहे थे।