Chapter 10
Episode 10
Chapter
कुछ देर सोचने के बाद स्नेहा ने वह काला कपड़ा निकाला और उसका एक टुकड़ा जलाया। थोड़ी देर तक कोई आवाज नहीं आई तकरीबन 15 मिनट इंतजार करने के बाद स्नेहा ने उस काले कपड़े का एक और टुकड़ा जलाया। पर फिर आधा घंटा बीत गया और कोई भी आवाज नहीं आई। अब स्नेहा थोड़ा-थोड़ा टेंशन में आने लगी थी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि स्नेहा ने उस कपड़े को जलाया हो और कोई भी प्रत्युत्तर ना मिला हो।
स्नेहा की टेंशन बढ़ती जा रही थी। एक तरफ आत्मानंद का अनुष्ठान और दूसरी तरफ रहस्यमय आवाज वाला व्यक्ति कोई प्रतिउत्तर नहीं दे रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करें?
स्नेहा ने खुद ही रहस्यमय आवाज वाले व्यक्ति की साधना स्थली जाने का निश्चय किया। स्नेहा ने अपने कमरे को अंदर से बंद कर खुद खिड़की के रास्ते बाहर जाने का निश्चय किया।
रत्नमंजरी से कहा, "मैं मेरे उस शुभचिंतक रहस्यमय आवाज वाले व्यक्ति से मिलने जा रही हूं। वैसे तो यहां कोई आएगा नहीं, अगर फिर भी कोई आता है तो आप संभाल लीजिएगा।"
ऐसा कह कर स्नेहा फटाफट से उस रहस्यमय आवाज वाले व्यक्ति की साधना स्थली के लिए निकल गई। इस समय उसे आत्मानंद के अनुष्ठान के बारे में बताना जरूरी था।
स्नेहा जैसे-तैसे करके उस श्मशान तक तो पहुंच गई पर उससे आगे जाने में स्नेहा को डर लग रहा था। फिर भी स्नेहा ने अपना मन कड़ा करते हुए आगे जाने का निश्चय किया। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। माहौल डरावना और रहस्यमयी होता जा रहा था। जंगली जीव जंतुओं की आवाजें स्नेहा को डरा रही थी। जंगली कुत्ते और बिल्लियों के रोने की आवाज़ माहौल में भय पैदा कर रही थी। पर फिर भी स्नेहा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती जा रही थी। थोड़ी दूर जाने पर स्नेहा को नदी के बहने की ध्वनि सुनाई दी और स्नेहा ने अपने पैर तेजी से उस तरफ बढ़ा दिये।
शीघ्र ही स्नेहा नदी के सामने खड़ी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस बार नदी पार कैसे की जाए? स्नेहा ने जैसे ही अपना पैर आगे बढ़ाया नदी के जल ने उसे रास्ता दे दिया। नदी ने वही बहना बंद करके अपना जल दो भागों में बांट दिया। और बीच में स्नेहा के चलने के लिए जमीन बच गई थी। नदी भी जैसे चाहती थी कि स्नेहा जल्दी से उस तांत्रिक के पास पहुंच जाये बिना समय व्यर्थ किए। स्नेहा यह देख कर बहुत ही ज्यादा आश्चर्यचकित हो गई थी, पर फिर भी उसने ज्यादा समय नष्ट ना करते हुए जल्दी ही नदी पार करने का सोच कर अपने पैर आगे बढ़ा दिये।
नदी पार करते ही स्नेहा उसी स्थान पर पहुंच गई थी। जहां से कल उस रहस्यमय आवाज वाले व्यक्ति ने उसे वापस भेजा था। स्नेहा को समझ नहीं आ रहा था कि आगे किस तरफ से जाया जाए। स्नेहा सोच रही थी कि... उसके पास से एक तेज हवा का झोंका गुजरा। स्नेहा ने उसे जंगल में चलने वाली सामान्य हवा समझ कर अनदेखा कर दिया। पर थोड़ी देर बाद ऐसा दोबारा हुआ। फिर भी स्नेहा को कुछ भी समझ नहीं पाई थी।
स्नेहा वहीं खड़ी थी कि अबकी बार वह हवा का झोंका स्नेहा के चारों तरफ गोल-गोल चक्कर काटने लगा। उस हवा के बहाव में स्नेहा को ऐसा लगा कि कोई धक्का देकर उसे एक तरफ ले जाने का प्रयत्न कर रहा था।
स्नेहा ने सोचा, "शायद यह हवा का झोंका मुझे वही ले जाने का प्रयास कर रहा है जहां मुझे जाना है।"
अबकी बार स्नेहा उस हवा के बहाव के साथ ही आगे बढ़ने लगी। आस पास क्या हो रहा था... स्नेहा को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। कुछ दूरी पर आगे बढ़कर स्नेहा उस हवा के झोंके से मुक्त हो गई। चारों तरफ देखने का उसे केवल घने पेड़ ही पेड़ नजर आ रहे थे। माहौल बहुत ही डरावना बना हुआ था।
जब हवा के झोंके से स्नेहा मुक्त हुई, तो उसे ऐसे लगा कि जैसे किसी ने उसके कान में कुछ फुसफुसाया हो। स्नेहा ने फिर ध्यान लगाने की कोशिश की तो उसे हवा की आवाज के साथ एक और स्वर सुनाई दिया।
"स्नेहा ऽऽऽऽऽऽ…! स्नेहा ऽऽऽऽऽऽ…! स्नेहा ऽऽऽऽऽऽ…!!! यहां से सीधे दो सौ कदम चलने के बाद एक खाली मैदान जैसा दिखाई देगा। उस मैदान के बीचो-बीच खड़े होकर तुम्हें तीन बार काल भैरव का जाप करना होगा। तभी तुम्हें वह स्थान दिखाई देगा जहां तुम्हें जाना है।"
इतना कहकर हवा की आहट बंद हो गई। स्नेहा ने वैसा ही करने का निश्चय किया। क्योंकि इस तरह की रहस्यमय चीजों की अब आदत हो चली थी। स्नेहा ने दो सौ कदम चलने पर एक मैदान देखा।
वह मैदान उजाड़- रेगिस्तान जैसा दिखाई दे रहा था। बीचो बीच पहुंचकर स्नेहा ने काल भैरव के मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। जो वह हवा स्नेहा के कान में बोल रही थी और स्नेहा उसका अनुसरण कर रही थी।
"धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्।
द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।"
जाप पूरा होते ही आसपास के माहौल में एक तीव्र परिवर्तन शुरू हो गया। चारों तरफ हवा का वेग बहुत ही तीव्र था। बहुत तेजी से हवा चारों तरफ गोल-गोल घूम रही थी। लगभग दस मिनट बाद वह हवा शांत हुई।
स्नेहा ने देखा... वह जहां खड़ी थी वह एक श्मशान जैसा दिखाई दे रहा था। बहुत सी चिताऐं जल रही थी और चिताओं के बीच कोई बैठा हुआ दिखाई दे रहा था। चिताओं के आसपास मांस के जलने की तेज गंध आ रही थी। जो बिल्कुल भी सहन करने जैसी नहीं थी। इतना होने के बाद भी चिताओं के बीच बैठा आदमी बिना किसी परेशानी के लगातार वहीं बैठा हुआ था। तीन-चार काले कुत्ते वही बैठकर उस आदमी की रखवाली कर रहे थे। कुत्ते देखने में इतने बड़े और शक्तिशाली लग रहे थे के अगर बाघ भी सामने आ जाए तो उसे भी एक बार डर कर पीछे हटना पड़े। उन कुत्तों ने स्नेहा को देखा, उनके देखते ही स्नेहा के शरीर में कंपन शुरू हो गया और डर के कारण रोंगटे खड़े हो गए। पर जब कुत्तों ने स्नेहा को अनदेखा कर दिया तब स्नेहा के साँस में साँस आई और स्नेहा ने आगे बढ़ने की सोची।
स्नेहा जैसे ही आगे बढ़ने को हुई एक अग्नि चक्र प्रकट हो गया मानो उस बैठे व्यक्ति की सुरक्षा कर रहा हो। जैसे उसे स्नेहा कोई हानि पहुंचाना चाहती थी।
स्नेहा ने महाकाल भैरव का नाम लिया और आगे पैर बढ़ा दिया। अग्नि उसे ऐसे स्थान दे रही थी जैसे अब वह स्नेहा को जानने लगी थी। स्नेहा को आगे जहां जाना था, उसका भी मार्ग अग्नि दिखा रही थी।
स्नेहा के पैरों के दो पग आगे से अग्नि आगे-आगे चलकर से मार्ग दिखाने लगी। लगभग बीस-तीस कदम चलने पर अग्नि गायब हो गई।
अब स्नेहा ने अपना आगे पग बढ़ाया तो रहस्यमय आवाज फिर सुनाई पड़ी। आवाज कह रही थी, "सीधे आकर सामने जो आसन लगा है, वहां आकर बैठ जाओ।"
स्नेहा ने वहां देखा जहां वह आदमी बैठा था। वह आदमी वही था, जो कल उससे मिला था। स्नेहा ने जैसे ही उसकी तरफ चलना शुरू किया। वैसे ही स्नेहा को महसूस हुआ कि कुछ देर पहले जहां स्नेहा को मांस जलने की दुर्गंध आ रही थी, वहां अब रातरानी और मोगरे की महक बिखरी हुई थी। स्नेहा ने एक गहरी सांस भरकर उस महक को अपने अंदर समेटना शुरू कर दिया। एक गहरी सांस के बाद स्नेहा ने देखा जहां वह खड़ी थी, वहां विभिन्न रंगों से रंगोलियां और विभिन्न प्रकार के यंत्र बने हुए थे।
बहुत सी हवन सामग्रियां उन रंगोलियां के बीच रखी थी। उन हवन सामग्रियों के सामने एक हवन कुंड बना हुआ था। हवन कुंड के चारों तरफ कुछ आकृतियां बनी हुई थी, जैसे किसी देवता के यंत्र के मध्य में वह हवन कुंड स्थापित किया गया था। हवन कुंड में उठने वाली तेज ज्वालाएं इतनी विशाल थी कि विश्वास ही नहीं होता था कि वह ज्वाला हवन कुंड से उत्पन्न हवन की अग्नि थी।
बीच-बीच में वही तांत्रिक कुछ मंत्र जाप करते हुए आहुतियां हवन कुंड में डालते जा रहा था। स्नेहा जब उस स्थान से हिली नहीं तो उस तांत्रिक ने गंभीर आवाज में कहा, "तुम्हें बैठने के लिए संकेत किया था, परन्तु शायद तुम्हें अब अपने जीवन से मोह नहीं रहा। पर मुझे मेरे कार्य में व्यवधान पसंद नहीं है। तुम जल्दी से जल्दी सामने नीलकमल वाले स्थान पर जाकर बैठ जाओ और हां... आंखें भी बंद कर लेना। और जब तक मैं ना कहूं तब तक किसी भी परिस्थिति में आंखें नहीं खुलनी चाहिए।"
स्नेहा ने कहा,"परऽऽऽ…!"
तांत्रिक ने अपनी तेज आंखों से उसे चुप रहने का संकेत किया और वापस अपने मंत्र जाप में व्यस्त हो गया।
मंत्र जाप पूरा करने के बाद उस तांत्रिक ने महाकाल भैरव की स्तुति की।
ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे…
स्तुति पूरी होने के बाद तांत्रिक ने स्नेहा की तरफ देखा और कहा, "तुम क्या कहना चाहती हो अब कहो…?"
स्नेहा ने जल्दी ही डरते हुए बोलना शुरू किया "मैंने उस काले कपड़े को कितनी बार जलाया था? बताओ... पर आप मेरे उस कपड़े को जलाने का जवाब क्यों नहीं दे रहे थे?"
तांत्रिक ने कहा, "मैं उस समय अनुष्ठान में बैठा था और उस समय उस स्थिति में नहीं था कि तुम्हें उत्तर दे सकूं।"
स्नेहा ने कहा, "आपको पता है, आत्मानंद मेरी हत्या के लिए आज एक विशेष अनुष्ठान कर रहा है। इसीलिए मैं आपसे संपर्क करना चाहती थी। अगर इस बीच मुझे कुछ हो जाता तो... उसका तंत्र मेरे प्राण हर लेता तो…?"
इस पर तांत्रिक ने जोर का अट्टहास किया और कहने लगा, "जिस पूजा में... जिस विधि में... अभी तुमने भाग लिया था। वह तुम्हारी ही रक्षा के लिए की गई थी। मुझे पता चला कि आत्मानंद तुम्हारे ऊपर आज किसी मारण तंत्र का प्रयोग करने वाला है। पर... तुम्हें कैसे पता चला कि आत्मानंद आज तुम पर तंत्र प्रहार करने वाला है?"
स्नेहा ने उस तांत्रिक को रत्नमंजरी के बारे में सब कुछ बता दिया। यह भी बताया कि रत्नमंजरी की शक्तियों को प्राप्त करने के लिए दो महीने बाद एकादशी के दिन आत्मानंद एक विशेष पूजा करने वाला था। इस पूजा के बाद रत्नमंजरी की सभी शक्तियां आत्मानंद की होंगी।
तांत्रिक ने कहना शुरू किया, "देखो स्नेहा हम रत्नमंजरी की मदद कर सकते हैं और उसकी मुक्ति के लिए भी कोई अनुष्ठान कर सकते हैं। अगर तुम चाहो उसकी सहायता लेना तो तुम्हें केवल उसी की सहायता से अपना प्रतिशोध लेना होगा। इस काम में मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर पाऊंगा या यह कह लो कि मैं तुम्हारी सहायता नहीं करना चाहता। क्योंकि रत्नमंजरी एक अतृप्त आत्मा है, अगर हमने उसकी सहायता ली तो उसकी मुक्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा। यह नियम विरुद्ध होगा कि जिस आत्मा की मुक्ति के लिए हम पूजा पाठ कर रहे हैं, उसी आत्मा से लोगों की हत्या करवाएं। यह मेरा मानना है... तुम क्या चाहती हो? इस पर अभी तुम्हें और विचार करना होगा।"
स्नेहा ने कहा, "आपको जैसा उचित लगे... हम वैसा ही करेंगे। हम रत्नमंजरी की मुक्ति के लिए प्रार्थना करेंगे और जो भी उचित पूजा-पाठ होगी, वह भी करके जल्दी से जल्दी उसे मुक्त करवाने की कोशिश करेंगे। उसके बाद तो आप मुझे दीक्षा देगें ना…?"
तांत्रिक ने कहा, "मैं उचित मुहूर्त देखकर तुम्हें बता देता हूं कि किस दिन रत्नमंजरी की मुक्ति के लिए हम पूजा करेंगे और कौन सा दिन तुम्हारी साधना शुरू करने के लिए सबसे अच्छा रहेगा…?"
उसके बाद तांत्रिक ने कुछ देर ध्यान लगाया और कहा, "दो दिन बाद रत्नमंजरी की मुक्ति पूजा करने के लिए उत्तम दिन है। उस दिन मोक्षदायिनी एकादशी है, उसी दिन हम रत्नमंजरी की मुक्ति के लिए प्रार्थना करेंगे। उसके दो दिन बाद तुम्हारी साधना शुरू करने के लिए श्रेष्ठ दिन है तब तक तुम अपने जो भी काम है, उन्हें पूरा कर लो। साधना के बीच कोई भी विघ्न या तुम्हारे मन में कोई भी मोह या उच्चाटन नहीं आना चाहिए।"
"अब तुम वापस अपने घर जा सकती हो।"
स्नेहा ने कहा, "पर आत्मानंद दोबारा मेरे ऊपर कोई तंत्र प्रहर करने का प्रयास करेगा तो…?"
तब तांत्रिक ने कहा, "जो आज उसने किया था उसको तो हमने विफल कर दिया है। उसे कल तक ही इस बात का पता चलेगा कि उसका तंत्र विफल हो गया है। अगले प्रहार से बचने के लिए मैं तुम्हें एक सुरक्षा चक्र प्रदान कर देता हूं वह जब तक तुम अपने काम खत्म करके दीक्षा के लिए आओगी तब तक, वह सुरक्षा चक्र किसी भी प्रकार के तंत्र मंत्र प्रभाव से तुम्हारी रक्षा करेगा।"
"और यहां आने के बाद कोई भी तंत्र प्रभाव प्रभावी नहीं होगा... क्योंकि हम जहां साधना करते हैं उस स्थान का बंधन कर देते हैं। इसलिए तुम निश्चिंत होकर जाओ और जल्दी से ही अपने सारे कार्य समाप्त कर लो।" तांत्रिक ने आगे कहा।
स्नेहा ने तांत्रिक की बात मान ली और उन्हें प्रणाम करके वापस अपने घर आ गई। वहां पर रत्नमंजरी ने स्नेहा से पूछा, "स्नेहा अब तुम सुरक्षित हो... तुम्हारी बात हुई... अब तुम पर कोई संकट तो नहीं है…?"
स्नेहा ने उन्हें आश्वासन दिया और कहा, "अब मुझ पर कोई संकट नहीं है। मुझे मेरे शुभचिंतक ने एक सुरक्षा चक्र प्रदान किया है, जिससे कोई भी तंत्र मंत्र प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ेगा।"
रत्नमंजरी को भी यह महसूस होने लगा था। क्योंकि उसे इस स्नेहा के पास आने पर एक विशेष आभा और तेज अनुभव हो रहा था। रत्नमंजरी एक अतृप्त आत्मा होते हुए भी भली आत्मा थी।
स्नेहा ने कहा, "उन्होंने यह भी कहा है कि दो दिन बाद हम आपकी मुक्ति के लिए पूजा करेंगे।"
रत्नमंजरी ने प्रसन्न होते हुए पूछा, "सच में दो दिन बाद मैं मुक्त हो जाऊंगी…!!!"
फिर एक पल रुक कर रत्नमंजरी ने परेशान होते हुए कहा, "अगर दो दिन में में मुक्त हो जाऊंगी तो... मैं तुम्हारी सहायता कैसे कर पाऊंगी।"
स्नेहा ने कहा, "आप परेशान ना होइए... मैं स्वयं उनसे अपने परिवार की हत्या का बदला लूंगी। दो दिन बाद हम आपकी मुक्ति के लिए पूजा करेंगे। अब आप निश्चिंत हो जाइए।"
तब रत्नमंजरी कुछ सोचने लगी और सोचते-सोचते वहां से गायब हो गई।
स्नेहा ने इस बात का ज्यादा ध्यान नहीं दिया। तांत्रिक का दिया सुरक्षा चक्र, उसकी रक्षा करेगा यह विश्वास स्नेहा में निश्चिंतता भर रहा था। इसलिए स्नेहा निश्चिंत होकर सो गई।
सुबह स्नेहा जब अपने ऑफिस पहुंची तो उसने देखा पूरा ऑफिस अस्त व्यस्त था। सारे जरूरी कागज पूरे फ्लोर पर फैले हुए थे। कंप्यूटर की हार्ड डिस्क गायब थी। सब कुछ ऐसे अस्त-व्यस्त दिख रहा था, जैसे किसी ने जल्दबाजी में कुछ जरूरी चीजें चुराने की कोशिश की थी। पूरा ऑफिस स्टाफ टेंशन में वहीं खड़ा था। किसी की भी अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पुलिस को पहले ही खबर कर दी गई थी, और पुलिस वहां पहुंचने ही वाली थी। स्नेहा बाहर खड़ी यह सोच रही थी कि अब यह सब क्या हो गया अब इसे कैसे ठीक करेंगे…