Chapter 47
humsafar 47
Chapter
47
चित्रा गुस्से में पागल हुई जा रही थी जब निक्षय ने कहा की वो यहीं उसके साथ रहने वाला है। चित्रा जितना ही उससे पीछा छुड़ाने की कोशिश मे थी निक्षय उतना ही उसके करीब आने का कोई मौका नही छोड़ रहा था। उसी से बचने के लिए चित्रा बिना किसी को बताये कार्तिक की शादी के बहाने वहाँ से भाग आई थी लेकिन निक्षय ने यहाँ भी उसका पीछा नही छोड़। उसने बड़ी मासुमियत से कहा,"अगर तुम्हे पसंद नही तो मै अभी ही चला जाता हु लेकिन फिर बाद मे अपनी मॉम को तुम ही समझाना की मै यहाँ से क्यों गया। यहाँ रहने की पर्मिसन मैंने ही आंटी से मांगी थी तो जाहिर सी बात है की मै अपनी मर्ज़ी से तो यहाँ से जाने से रहा। अब उनके सामने क्या बहाना बनाना है ये तुम जानो। अब जल्दी से मेरी शर्ट उतारो ताकि मै जाऊ, वैसे सच कहु तो बहुत अच्छी लग रही हो इस ड्रेस मे। हमेशा ऐसे ही रहना लेकिन सिर्फ मेरे सामने, जब तक मै हु इस घर मे ।"
चित्रा ने घूर कर उसे देखा और अंदर चली गयी। निक ने कमरे के बाहर से आवाज लागयी "नाश्ता ठंडा हो जायेगा, जल्दी आओ। अपना गुस्सा बेचारे खाने पर नही निकालते।" निक ने बड़े प्यार से उसके लिए नाश्ता निकाला और उसके कमरे के बाहर खडा हो गया, तभी कमरे का दरवाजा खोल चित्रा ने उसकी शर्ट उसी के मुह पर मरते हुए नाश्ते का प्लेट लेकर डाइनिंग टेबल पर बैठ आराम से नाश्ता करने लगी। निक्षय भी कपड़े पहन उसके सामने वाली सीट पर बैठ गया और उसे यूँ खाते हुए देखने लगा।
उसे अपनी तरफ घूरता पाकर चित्रा ने सख्त लहजे मे कहा, "यहाँ रहना है तो मेरे कुछ रूल्स है जिन्हें तुम्हे फॉलो करने होंगे। अगर तुम्हे मंजूर हो तो ही तुम यहाँ रह सकते हो।" उसकी इस बात पर निक्षय को हँसी आ गयी। उसने कहा, "जी मैडम! आप जो कहेंगी मै करूँगा बस आप मुझे यहाँ से जाने को नही कहेंगी।"
"पहले सुन तो लो मेरे रूल्स....!" चित्रा ने कहा तो निक्षय ने भी ध्यान से सुनने की एक्टिंग करने लगा। चित्रा ने आगे बोलना शुरू किया, "सबसे पहले..... रूल नं वन,सुबह का नाश्ता तुम बनाओगे वो भी रोज। रूल नं टू, देर रात को घर नही आना वरना बाहर लॉन मे सो जाना मच्छरों के साथ रोमांस करते हुए। रूल नं थ्री, ऐसे नंगे हो कर घर मे कहीं भी नही घूमना। रूल नं फोर, ड्रिंक नही करना। रूल नं फाइव, नो गर्लफ्रेंड्स....!"
चित्रा की शर्त सुन निक्षय को हँसी आ गयी। उसने कहा, "मुझे सारी शर्त मंजूर है। तुम्हारे लिए सुबह का नाश्ता मेरी ड्यूटी होगी, शादी के बाद भी। अगर जल्दी घर आया तो क्या मच्छर की बजाय तुम्हारे साथ........ मेरा मतलब अगर देर रात आया तो तुम्हारे साथ रोमांस को टाइम कैसे मिलेगा! मै जल्दी आ जाऊंगा, फिर हम दोनो अच्छे से क्वालिटी टाइम स्पेंड करेंगे। तुम जब कहोगी मै तभी कपड़े उतरुंगा। ड्रिंक नही कर सकता लेकिन तुम्हे कंपनी तो दे ही सकता हु और रही बात गर्लफ्रेंड की तो तुम्हे तुम्हारे ही घर से जाने को कैसे बोलू?"
निक्षय की बात सुन चित्रा ने अपना ही सर पिट लिया। वह गुस्से मे उठी और बिना कुछ कहे अपने कमरे मे चली गयी। निक्षय वहीं बैठा अपनी प्लानिंग पर मुस्कुरा रहा था।
कोई हसीना जब रूठ जाती है तो
और भी हसीन हक जाती है
स्टेशन से गाड़ी जब छूट जाती है तो
एक दो तीन हो जाती है
उसने भी अपना नाश्ता खत्म किया और घडी देखते हुए खुश हो रहा था की तभी चित्रा ने धड़ाम से दरवाजा खोलकर चीखते हुए बाहर निकली, "आज मेरी फ्लाइट थी.......! एक घंटे पहले....!"
"पता है, इसीलिए तुम्हे जगाया नही क्योंकि कोई फायदा ही नही था। जब तक मै यहाँ हु तबतक तुम्हे मेरी मेहमाननवाज़ी करनी होगी। अगर नही तो अपनी मॉम को फोन कर बात दो की तुम वापस आ रही हो।" निक्षय ने आराम से वही पसरते हुए कहा तो चित्रा वहाँ से गुस्से मे पैर पटकती वापस कमरे मे चली गयी। निक्षय वही बैठा गुनगुना रहा था।
जैसा तेरा प्यार वैसा गुस्सा है तेरा
तौबा सनम तौबा सनम
अवनि कुछ देर यूँ ही खड़ी सारांश को देखती रही। उसे समझ नही आ रहा था की अपनी पिछली जिंदगी के बारे मे उसे कैसे बताये। एक ओर जहाँ उसे लक्ष्य का नाम भी सोचने से भी डर लग रहा था वही सारांश को देख एक अलग ही सुकून मिल रहा था। उसने धीरे से कहा, "वो कल रात जब आप श्रेया और मानव को कैब तक छोड़ने गए थे उस वक़्त चित्रा ने मुझे जबरदस्ती पिला दिया था।"
सारांश ने उसे देखा और मुस्कुरा दिया, "अगर तुम अभी नही बताना चाहती तो कोई बात नही, लेकिन इतना याद रखना तुम्हारी बात सुनने के लिए मै हमेशा तैयार हु। जब भी तुम्हे लगे तुम बेझिझक मुझसे कह सकती हो।" अवनि चाह कर भी सारांश से कुछ नही कह पा रही थी। उसने बस सारांश का हाथ पकड़ा और शिकायत करते हुए बोली, "तुम पहले क्यों नही आये मेरे पास? ऐसे छुप छुप कर प्यार जताना कहाँ की समझदारी है। अगर कोई और मुझे ले जाता तो?"
"ऐसा हो ही नही सकता था, जब तक तुम खुद नही चाहती तो। और मुझे पूरा यकीन था की तुम सिर्फ मेरी किस्मत हो।" सारांश के चेहरे पर मुस्कान और विश्वास दोनो था।
"और अगर मै कहु की मेरी लाइफ मे कोई था तो...!" अवनि ने डरते हुए कहा तो सारांश हँस दिया। उसकी हँसी से अवनि को कुछ समझ नही आया तो सारांश ने कहा, "कल जब निक्षय तुम्हे देख रहा रहा था तो तुम्हे कैसा लगा?"
"मेरा दिल किया की उसकी आँखे निकाल लू। बड़ी गंदी नज़र है उसकी। हमारी चित्रा के लिए बिलकुल भी सही नही है।" अवनि ने मुह बना कर कहा।
"ऐसा नही है। उसकी नज़र तुम्हारे इस पेरिडोट् पर थी क्योंकि उसे भी ये चाहिए था। तुमने गलत समझ लिया। अब ये बताओ क्या मेरे लिए भी सेम फीलिंग हुई है कभी....... आई मीन शादी से पहले मै तुम्हारे काफी करीब... यू नो व्हाट आई मीन!" सारांश ने पूछा।
"नही..! बिलकुल भी नही। आप कभी मुझे अजनबी नही लगे। ऐसा लगता था जैसे मै आपको हमेशा से जानती हु।" अवनि ने कहा तो सारांश बोला, "जानता हु...! मैंने कभी तुम्हारे दिल मे किसी और को महसूस नही किया। अगर कोई था भी तो सिर्फ तुम्हारी लाइफ मे हो सकता है तुम्हारे दिल मे नही, क्योंकि वहाँ मेरे अलावा ना कोई था और ना हीं कोई हो सकता है।"
सारांश की बातें सुन एक अजीब सी खुशी अवनि के दिल मे घर कर गयी। उसने सारांश के हाथ को और कसकर पकड़ लिया। सारांश ने पूछा, "तुमने अपना वो कार्ड लाया है न जो मैंने तुम्हारी सैलरी के लिए दिया था?"
अवनि ने हाँ मे सिर हिलाया तो सारांश ने कहा, "अच्छा है! आज मै अपना वॉलेट घर मे भूल आया हु और अब भूख लग रही है।" सारांश ने कहा तो अवनि सोच मे पड़ गयी। 'उस कार्ड का बैलेंस का तो पता नही, अब क्या करू?' अवनि ने सोचा लेकिन सारांश को कुछ कह पाती उससे पहले सारांश ने उसे गाड़ी मे बैठा कर स्टार्ट कर दिया और एक होटेल के सामने रुका। वहाँ पहुँचकर सारांश ने एक प्राइवेट केबिन बुक किया और ढेर सारी डिसेज ऑर्डर कर दी।
वहाँ की डिश देख अवनि के पसीने छुट गए। कुल पंद्रह हजार का बिल बना था। बिल देख अवनि ने धड़कते दिल से अपना कार्ड दे दिया। उसे अपनी नही लेकिन सारांश के इज़्ज़त की फिक्र सता रही थी। तभी वेटर ने उसको बिल के साथ कार्ड लाकर दिया और चला गया।
अवनि को कुछ समझ नही आया, उसने सारांश की ओर देखा जो आराम से बैठा फोन पर कुछ काम कर रहा था। "ऐसे क्या देख रही हो? अपना फोन चेक करो!" सारांश ने कहा। अवनि ने अपना फोन चेक किया तो उसको बैंक का एक मैसेज दिखा। उसको खोलने पर उसे पता चला की उस कार्ड मे बीस लाख रुपए थे। अवनि के होश उड़ गए, "इतने पैसे....! मेरे अकाउंट मे.....! कहाँ से आये??"
"इतना हैरान क्यों हो रही हो! मेरी एक महीने की सैलरी है ये, जो अब से हर महीने तुम्हारे पास जमा होती रहेगी।" सारांश ने बिना उसकी ओर देखे कहा।
"लेकिन मेरे पास क्यों? और अपनी सैलरी मुझे दे देंगे तो आप क्या करोगे?" अवनि ने कहा।
"मै अपनी सैलरी अपनी बीवी को नही दूंगा तो फिर किसको दूँगा! और इससे मेरा कुछ नही होने वाला, इसीलिए ये तुम ही रखो। मेरा खर्च मेरी कंपनी उठाती है। इनसे तुम अपनी शॉपिंग करो या किसी भी तरह से खर्च करो।" सारांश ने जवाब दिया। अवनि को समझ नही आया की वो इतने पैसों का करेगी क्या! वो कभी उस कार्ड को देखती तो कभी सारांश को जो शांति से बैठा हुआ था।
क्रमश: