Chapter 59
YHAGK 58
Chapter
58
रूद्र बरसों के बाद वापस लौट तो आया था लेकिन अपनो का सामना करने की हिम्मत उसमें नहीं हो रही थी। घबराहट और बेचैनी ने उसके मन को घेर रखा था। वापस उन्हीं रास्तों पर चलते हुए जिन रास्तों पर कभी शरण्या का हाथ थामें चला था वह, फिर से उन्हें सारी यादों को जीते हुए अपने दिल को मजबूत कर गाड़ी में आ बैठा। मौली को यह समझते देर न लगी। उसने रूद्र की हथेली मजबूती से थाम ली और दूसरे हाथ से उसके बाह को पकड़ते हुए उसके कंधे पर सर रख दिया, बिलकुल वैसे ही जैसे शरण्या करती थी। मौली की हरकत उसे उसकी शरण्या की याद दिलाती थी, लेकिन वह उसे भुला ही कब था!
मौली को शरण्या की परछाई बनाने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। रुद्र का ध्यान भटकाने के लिए मौली ने एक बार फिर पूछा, "डैड....! आपने कहा था ना कि हम रास्ते में बात करेंगे तो बताओ ना मेरी फैमिली कितनी बड़ी है? आई मीन सिंगल फैमिली है या फिर जॉइंट फैमिली है? और कौन-कौन है वहां? मै तो अभी से बहुत ज्यादा एक्साइटेड हूं उनके बारे में जाने के लिए। मेरे पेट में तो बटरफ्लाई उड़ रहे हैं। जल्दी बताओ ना प्लीज......!"
रूद्र अपने एक हाथ से उसके बाल सहलाते हुए बोला, 'अपनी दादी के बारे में तो मैंने तुम्हें बता दिया, अब तुम्हारी दादी यानी मेरी मॉम और तुम्हारे दादू यानी मेरे पापा! घर में सबसे ज्यादा मैं किसी का लाडला था तो वह मेरी दादी और मेरी मां। सबसे ज्यादा अगर मैं किसी से डरता था तो वह थे मेरे पापा और तुम्हारी मॉम। दोनों के ही सामने मेरी बोलती बंद हो जाती थी। आपके एक चाचू है जो बिल्कुल मेरी तरह दिखते हैं। वि आर ट्विंस! हम दोनों में पहचान करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है। हम इतने ज्यादा सिमिलर दिखते हैं। यहां तक की तुम्हारी दादी भी अपने दोनों बच्चों को नहीं पहचान पाती थी। अगर किसी की नजर इतनी तेज थी तो वह सिर्फ तुम्हारी मॉम की। मैं चाहे लाख कोशिश कर लूं रेहान बनने की लेकिन वह एक नजर में मुझे पहचान जाती थी। उससे खुद को छुपाना मेरे लिए कभी पॉसिबल ही नहीं रहा। तुम्हारी चाची है लावण्या और तुम्हारी मॉम की बहन भी। उनका एक बेटा है राहुल जो तुम्हारी ही उम्र का है। तुमसे थोड़ा छोटा है, बस यही कुछ तीन चार महीने छोटा होगा। इतने सालों में क्या बदला है और क्या है कैसा है मुझे कुछ नहीं पता और ना कभी उनके टच में रहा हूं। पता नहीं इतने सालों बाद कोई मुझे पहचानेगा भी या नहीं? हां वैसे पहचान तो जाएंगे सब क्योंकि मेरी और रेहान की शक्ल बिल्कुल एक जैसी है तो कोई प्रॉब्लम नही होगी। बस और कोई नहीं है, इतनी छोटी सी फैमिली है हमारी।"
मौली बड़े ध्यान सब के बारे में सुन रही थी। अचानक ही उसके मुंह से निकला, "और मॉम? उनके बारे में तो बताया नहीं आपने?" मौली को एहसास हुआ कि उसने अभी अभी क्या पूछा है तो उसने अपनी आंखें मूंद ली। रूद्र कुछ देर खामोश रहा और बोला, "आपको अच्छे से पता है ना बेटा आपकी मॉम के बारे में! मुझसे जितना चाहे सवाल कर लो, जिनके जवाब मेरे पास होंगे तो जरूर दूंगा और जो जरूरी होंगे जरूर बताऊंगा, ठीक है! वहां जाकर किसी के भी सामने आप अपनी मॉम का जिक्र नहीं करोगे, बिल्कुल भी नहीं करोगे, समझ गए आप?" मौली ने धीरे से हाँ मे सिर हिला दिया। वो अपनी उम्र से काफी ज्यादा मैच्योर थी, दूसरे बच्चों से ज्यादा समझदार।
रुद्र पूरे रास्ते मौली को अपने घरवालों के बारे में बताता रहा। उनकी आदतें, उनके रहने का ढंग, बिहेवियर से लेकर उनकी पसंद नापसंद बारे में। मौली पूरे रास्ते खामोशी से सारी बातें सुनती रही और घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए वहां की खूबसूरती निहारे जा रही थी। "सच में इंडिया बहुत खूबसूरत है डैड! तभी लोग बाहर से इतनी दूर से यहां घूमने आते हैं।" मौली से रहा नहीं गया तो वह बोल पड़ी। रूद्र ने सुना तो कहा, "अभी आपने कुछ देखा ही कहां है! यह तो सिर्फ एक छोटी सी झलक है। इंडिया में ऐसे और इससे भी ज्यादा खूबसूरत जगह भरे पड़े हैं। ये आप जो देख रहे हो सिर्फ शुरुआत है। आप चलो तो पहले, जब आप पूरा नैनीताल घूमेंगे तब जाकर आपको एहसास होगा।"
सुबह का वक्त था और आगे का पूरा रास्ता खाली था जिसके कारण नैनीताल पहुंचने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा। आश्रम की तरफ जाते हुए रुद्र की नजर नैनीताल के ठीक बगल में स्थित नैना देवी के मंदिर पर गई। उसका दिल धड़कना भूल गया। ये जगह बहुत खास थी उसके लिए। वह चाह कर भी इस मंदिर को पार ना कर पाया और ड्राइवर को एकदम से गाड़ी रोकने को कहा। मौली को कुछ समझ नहीं आया। उसने अपने चारों ओर देखा वहां सिर्फ एक मंदिर था जहां काफी भीड थी। किसी के कुछ भी कहने से पहले ही रूद्र गाड़ी से उतर गया। मौली ने ड्राइवर से पूछा तो ड्राइवर ने बताया कि यह नैना देवी का मंदिर है और उनके बगल में लो लेक है वो है नैनीताल। नैना मंदिर के नाम से ही इस शहर का नाम है। मौली को बात समझते देर न लगी। वह भी रूद्र के पीछे पीछे चल पड़ी। पतले संकरे रास्ते पर लगे मार्केट से होते हुए रूद्र आगे बढ़े जा रहा था। मंदिर के करीब पहुंचकर उसे सबसे पहले हाथ जोड़कर दूर से ही उस मंदिर को प्रणाम किया और बाहर से फूल और प्रशाद लेकर मंदिर के अंदर चला गया। मौली भी उसके साथ ही थी। अंदर जाते हुए रूद्र का दिल बुरी तरह से घबराने लगा था। वही सारी पुरानी यादें उसकी आंखों के सामने किसी फिल्म की तरह घूमने लगे थे।
शरण्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? यह कैसी बातें कर रही हो तुम? ऐसे इस तरह से.........मैं कभी नहीं मानने वाला! तुम्हें पता है ना मैं इस सब के खिलाफ हूं! मुझे नहीं पसंद ये सब!" रूद्र गुस्सा होते हुए बोला। शरण्या भी कोई कम जिद्दी नहीं थी। उसने भी रूद्र को अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "तुम्हें जाना है तो जाओ, मैं नहीं रोकूंगी तुम्हें और ना ही तुम्हारे पीछे पीछे आऊंगी। तुम्हारा हाथ थाम कर आई थी यहाँ और तुम्हारा हाथ थाम कर ही जाऊंगी लेकिन तुम्हारी बीवी बन कर!!! तुमने कहा था तुम मेरी हर बात मानोगे, मेरी हर ख्वाहिश पूरी करोगे तो क्या इतना सा नहीं कर सकते तुम?"
रूद्र ने शरण्या को समझाना चाहा। "शरण्या तुम समझ क्यों नहीं रही! इस तरह मंदिर में शादी करने से हमें क्या हासिल होगा? सिर्फ भगवान का आशीर्वाद काफी नहीं होता है, ना यहां हमारे घर वाले हैं ना ही हमारे समाज का कोई सदस्य! शादी के लिए भगवान का आशीर्वाद भी जरूरी होता है तो अपनों की मंजूरी भी और कानूनी भी। बिना मंत्रों के बिना बड़ों के आशीर्वाद के और बिना कन्यादान के कैसे तुम्हारी मांग भर दूं? कैसे अपना लू तुम्हें जब तक तुम्हारे पापा बहुत तुम्हारा कंयादान नहीं कर देते? तुम्हें एहसास भी है कि तुम इस वक्त क्या करना चाहती हो? ऐसे बिना किसी अपने की मौजूदगी के शादी कैसे हो सकती है और सबसे पहले तुम मुझे यह बताओ यह सारा फितूर तुम्हारे दिमाग में डाला किसने?
"तुम समझ क्यों नहीं रहे हो रूद्र! मुझे आज ही शादी करनी है मतलब करनी है, वह भी तुम्हारे साथ। तुम चाहे इस शादी के लिए तैयार हो या ना हो, मुझे कोई फर्क नही पड़ता। अगर तुम्हें मुझसे शादी नहीं करनी तो तुम जा सकते हो लेकिन मैं यहां से यू खाली हाथ वापस नहीं जाऊंगी। अगर तुम नहीं माने तो इसी लेक में डूब कर अपनी जान दे दूंगी। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता रूद्र कि मुझे तैरना आता है। अगर मैं चाहूं तो डूब सकती हूं इसलिए इस बात को मजाक में मत लेना।" शरण्या पर रूद्र की किसी भी बात का असर नही हो रहा था। वो तो अपनी ही जिद लिए बैठी थी।
रूद्र ने एक गहरी सांस ली और पूरे हालात को समझने की कोशिश करने लगा। "तुम्हारे दिमाग में जो कुछ भी चल रहा है वह बताओ मुझे। आखिर ऐसा क्या हो गया है जो तुम अभी के अभी शादी करने के लिए इटिक बेचैन हो। कुछ तो हुआ है शरण्या! वरना तुम इस तरह कभी रिएक्ट नहीं करती। क्या हुआ है बताओ मुझे, हक है मेरा जानने का। तुम्हारे दिमाग में जो भी चल रहा है वह सब कह दो, शायद मैं तुम्हारी प्रॉब्लम समझु और उसे किस तरह सॉल्व करना है, हम दोनों मिलकर देखेंगे। बताओ मुझे आखिर बात क्या है? क्या तुम्हें मुझ पर यकीन नही?"
शरण्या की आंखों में आंसू आ गए तो रूद्र ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया। इससे पहले वह कुछ कहता शरण्या बोली, "तुम पर मुझे खुद से ज्यादा यकीन है लेकिन अपनी किस्मत पर नही। मुझे तुमसे दूर नहीं होना रूद्र। मैं नहीं जानती तुम्हें कितना वक्त लगेगा पापा से मेरा हाथ मांगने में, लेकिन मैं किसी और को मौका नहीं देना चाहती कि वह हमारे बीच आए, यहां तक कि अपने पापा को भी नहीं। तुम्हें पता भी है, वह ईशान........! जो भी था, मैंने पापा को मिस्टर वालिया से बात करते हुए सुना। वो लोग अभी भी मुझे अपनी बहू बनाना चाहते हैं। उनका बेटा अभी भी मेरे पीछे पड़ा है। मैं नहीं चाहती हूं कि पापा मेरा रिश्ता उसके साथ जोड़ दे बिना मेरी मर्जी के। अपनी जिंदगी का यह फैसला मैं खुद करना चाहती हूं इसलिए कह रही हूं, आज मुझे तुम्हारी पत्नी बन कर यहां से जाना है। हमारे प्यार के गवाह भगवान ही है ना, तो उन्हीं को साक्षी रहने दो हमारी शादी के भी।"
रूद्र बोला, "अगर ऐसी बात थी तो तुमने कल क्यों नहीं कहा? किसी और को पता हो या ना हो, दादी ने हमेशा ही तुम्हें अपनी बहू माना है और उन्हें सबसे पहले हमारे रिश्ते के बारे में पता है। वही है जिन्होंने मुझे एहसास दिलाया कि मैं तुमसे प्यार करता हूं। कम से कम उनके आशीर्वाद से ही हम शादी कर लेते। इस तरह मंदिर में शादी करने के खिलाफ मैं हमेशा से रहा हूं और तुम मुझे वही करने को बोल रही हो।"
शरण्या बोली, "रूद्र.....! मैं कौन सा शादी करके तुम्हारे साथ रहने की जिद कर रही हूं! मेरी तसल्ली के लिए हम यहां शादी कर लेते हैं। उसके बाद तुम्हें जितना वक्त चाहिए तुम ले लेना और मेरे पापा से मेरा हाथ मांग कर सबके सामने से मुझे लेकर जाना। लेकिन इस वक्त मेरे दिल की तसल्ली के लिए, प्लीज रूद्र! मेरी बात मान लो।"
रूद्र कुछ देर यूं ही उसके चेहरे को थामें उसकी आंखों में देखता रहा फिर अचानक से उसे छोड़कर बाहर की तरफ निकल गया। शरण्या को समझ नहीं आया कि वह करे तो क्या करें? आखिर रूद्र उसे इस तरह छोड़ कर कहां चला गया? कहीं वो सच में नाराज होकर उसे छोड़ कर तो नहीं चला गया? यह समझने में उसे काफी देर लग गया। लेकिन यह एहसास होते ही वह घबरा गई और बाहर जाने के लिए भागी। लेकिन उसी वक्त उसने रूद्र को मंदिर के अंदर आते हुए देखा। उसके हाथ में लाल रंग की चुन्नी थी और एक सिंदूर की डिब्बी। उसे यकीन नहीं हुआ की रूद्र इतनी जल्दी उसकी बात मानेगा। रूद्र उसके करीब आया और बोला, "यहां सिर्फ चढ़ावे के लिए चुन्नी और सिंदूर मिलेंगे, मंगलसूत्र यहां नहीं मिलता और ना ही यहाँ कोई ज्वेलर्स की दुकान है। इसके लिए तो हमें कहीं और जाना होगा। तो बोलो क्या करना है? बिना मंगलसूत्र की शादी करनी है या फिर चल कर बाहर से लेकर आए?"
शरण्या को इससे ज्यादा और कुछ चाहिए भी नहीं था। उसने रूद्र का हाथ पकड़ा और उसे लेकर बाहर चली आई। "मुझे शादी करनी है, सात फेरे, सिंदूर और मंगलसूत्र के साथ। तेरी सुहागन बनकर जाना चाहती हूं, अधूरी नहीं। सिर्फ सिंदूर से शादी नहीं होती" रूद्र गाड़ी में बैठा और शरण्या को लेकर वहां के मेन मार्केट में चला आया। एक ज्वेलरी की दुकान में जाकर शरण्या ने मंगलसूत्र के एक से एक डिजाइन देख डाले लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इससे पहले उसने कभी ऐसी खरीदारी नहीं की थी। यहां तक कि लावण्या की शादी के वक़्त भी उसने ऐसा कुछ नहीं खरीदा था।
रूद्र ने जब उसे परेशान देखा तो उसके पास आया और एक उठाते हुए उसने शरण्या के हाथ में रख दिया। "यह वाली ज्यादा खूबसूरत लग रही है। अगर ज्यादा देर करेंगे तो पंडित जी कहीं मंदिर बंद करके घर न चले जाएं। फिर कहना मत मैंने तुम्हें जानबूझकर देर करवाई।" शरण्या मुस्कुरा उठी और रुद्र के सीने से जा लगी। रूद्र ने बिल पे किया और वहां से वह दोनों वापस मंदिर लौट आए। नैना देवी को साक्षी मानकर रूद्र ने ना चाहते हुए भी शरण्या की जिद पूरी करते हुए उसकी मांग भर दी। और वही साथ फेरे भी ले लिए। शरण्या को जैसे उसकी पूरी दुनिया मिल गई थी लेकिन रूद्र को यह शादी मंजूर नहीं थी। उसने शरण्या से साफ साफ कह दिया कि जब तक उसके पापा उसका कन्यादान नहीं करते, तब तक वह उसे अपनी पत्नी नहीं मानेगा और ना ही उसे वो हक़ देगा। शरण्या को भी इससे कोई ऐतराज ना था। जो सबसे ज्यादा जरूरी था, वो था रूद्र के नाम का सिंदूर, जो इस वक्त उसकी मांग में था और उसके नाम का मंगलसूत्र, बस और कुछ नहीं!!!!!
क्रमश: