Chapter 4

Chapter 4

Episode 3

Chapter

"नहीं.. नहीं.. तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं आएगा। इस बात की जिम्मेदारी मेरी है। तुम बेझिझक होकर बताओ बात क्या है..??" मृदुल ने आश्वासन दिया।


"इहां नाही साहब.. हम मंगलवार को  बजरंगबली के मंदिर जाते हैं.. ऊ जोन समसान के पीछे है ना.. ऊहई साम सात बजे आपको मिलेंगे.. तभई सब कछु बता देहि।" चौकीदार ने अपनी नजरें इधर उधर दौड़ाते हुए धीमी आवाज में कहा।


"मतलब आज शाम को..?" चिराग ने उससे पूछा।


चौकीदार ने गर्दन हिलाते हुए हाँ में ज़वाब दिया और हाथ जोड़ते हुए कहा, "साहब.. पर देख लेना.. मालिक को जरा भी भनक लगी तो हमारी हड्डियाँ भी नाही मिलेगी तरपन के लई।"


मृदुल ने आँखों ही आँखों में आश्वासन दिया और तेज आवाज़ में सभी को सुनाने की गरज़ से कहा क्योंकि उसने किसी को छुप कर उनपर नज़र रखते देख लिया था। 


"ठीक है..!! अगर कुछ भी याद आये तो रनवीर के पास हमारा नंबर है.. हमें बता देना। हो सकता है कि इसी वजह से अनीता जी जल्दी मिल जाए।" 

इतना बोलकर दोनों जैसे ही बाहर जाने वाले थे कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट वहॉं पहुंच गया था।


"सर..!! क्राइम सीन दिखा दीजिए.. एविडेन्स ले लेते हैं। फिर निकलना है.. एक मर्डर स्पॉट पर भी जाना हैं।" फॉरेंसिक एक्सपर्ट ने कहा।


"एक काम करो.. तुम पहले मर्डर स्पॉट से एविडेन्स कलेक्ट कर लो। यहां का इतना भी अर्जेंट नहीं है।" मृदुल ने उससे कहा।


मृदुल के कहने पर वह फॉरेंसिक एक्सपर्ट वहां से चला गया और साथ ही मृदुल और चिराग भी वहां से निकल गए।

 


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 मृदुल और चिराग दोनों ही मृदुल के केबिन में बैठकर आज सुबह से हुई सारी बातों पर विचार-विमर्श कर रहे थे। उन्हें केस की कोई भी कड़ियां जुड़ती हुई नहीं दिख रही थी। अभी तक सभी की बातों से यही पता चला था कि अनीता के बारे में जैसा दीप और उसके परिवार ने बताया था.. वो वैसी ही थी। लेकिन कुछ तो अनीता के बारे में ऐसा था जो कि छिपा हुआ था.. वहीं जानने की कोशिश मृदुल और चिराग कर रहे थे।


मृदुल और चिराग दोनों ही अनीता के केस के बारे में बातचीत कर ही रहे थे कि तभी कमिश्नर साहब का फोन बजा। 


 मृदुल ने फोन उठाया और कहा, "जय हिंद साहब..!!  मैं आज दीप के घर गया था.. वहां पर जो भी कुछ पता चला उस हिसाब से अनीता एक झगड़ालू और पैसों पर मरने वाली लड़की थी। लगभग सभी लोगों ने यही बात कही थी.. पर एक बात यह भी है कि सभी के चेहरों से ऐसा लग रहा था कि कुछ बात है जो वह सब छुपा रहे हैं।"


  सामने से कुछ आवाजें आई जिनका जवाब मृदुल ने हां..! हूं..!! में दिया।


 अंत में कमिश्नर साहब ने कुछ पूछा तो मृदुल ने उन्हें बताया, " सर शाम को अनीता के केस के बारे में कुछ जानकारी मिलने वाली है। उस जानकारी के बाद ही ठीक से पता चलेगा की अनीता का केस है क्या..??" 


उसके बाद कमिश्नर साहब ने फोन रख दिया और मृदुल और चिराग फिर से अपने केस के डिस्कशन में व्यस्त हो गए।


 मृदुल ने चिराग से पूछा, "चिराग एक बात बताओ??  तुमने अपने नेटवर्क को एक्टिव किया था और सभी को अनीता की फोटो भी भेज दी थी पर अभी तक अनीता के बारे में कुछ भी जानकारी क्यों नहीं मिली है..?? अब तक तो किसी भी तरह की कोई तो बात पता चलनी ही चाहिए थी ना..??"


"हां यार..!!  मैं भी अभी तक यही सोच रहा हूं कि अभी तक अनीता के बारे में किसी भी मुखबिर को कोई टिप क्यों नहीं मिली। ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई आदमी गायब हुआ और उसके बारे में सिर्फ उसके घर वाले ही जानते हैं और किसी को उसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं।" 


बस इसी तरह की बातों में दोनों उलझे हुए थे कि घड़ी ने 5:00 बजने का इशारा किया।


"मृदुल 5:00 बज रहे हैं और चौकीदार ने जो मंदिर बताया था.. उस मंदिर तक जाने में एक घंटा लगता है और तो और हमने अभी लंच भी नहीं किया।  तो एक काम करते है.. पहले लंच करते हैं उसके बाद मेरे एक मुखबिर से मिलेंगे और उसके बाद सीधे हम उस चौकीदार से मिलने जाएंगे.. तुम्हारा क्या कहना है इस बारे में..??"


 मृदुल ने भी उसकी हां में हां मिलाई और ऑफिस के काम जल्दी से निपटाने के लिए बोल दिया।  "ठीक है तुम जल्दी से जो भी छोटे मोटे ऑफिस के काम है.. और जो भी इस केस की फाइलिंग करनी है उसे कंप्लीट करो। हम 6:00 बजे तक चौकी से निकलेंगे.. तब तक जो भी छोटे-मोटे काम यहां के अधूरे रहते हैं उन्हें पूरा कर लो। उसके बाद लंच और फिर और चौकीदार से मिलने चलेंगे।"


 चिराग अपना काम करने के लिए बाहर निकल गया और दोनों ने जल्दी ही अपना काम निपटाना शुरू कर दिया।


 लगभग 6:45 बजे मृदुल और चिराग शमशान के पीछे वाले हनुमान जी के मंदिर पहुंच गए। दोनों ने ही पुलिस की यूनीफॉर्म नहीं पहनी हुई थी और इस वक्त मास्क लगाकर उन्होंने अपने चेहरे को भी ढंका हुआ था। इन सब का कारण उस चौकीदार की सुरक्षा ही थी। जब उस चौकीदार ने इतना बड़ा रिस्क लेकर उन्हें सब कुछ जानकारी देने की बात कही थी.. तो उन लोगों का भी फर्ज बनता था कि उस चौकीदार की सुरक्षा की जिम्मेदारी वह खुद उठाएं। यही सोचकर दोनों ही सिविल ड्रेस में थे और मास्क लगाए हुए थे ताकि कोई उन्हें पहचाने ना।


वो मंदिर बहुत बड़ा नहीं था.. छोटा सा ही था। मंदिर एक बहुत ही पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बना हुआ था। एक बड़े से हॉल में ही हनुमानजी की एक प्रतिमा लगी हुई थी। देखने में मंदिर बहुत भव्य तो नहीं था लेकिन लोगों की मान्यता के अनुसार वो मंदिर काफी प्राचीन और जिवंत था.. जहां पर कोई भी इच्छा अतिशीघ्र पूर्ण होती थी इसीलिए वर्ष भर दर्शनों के लिए भक्तों का तांता लगा रहता था।


मृदुल और चिराग दोनों ने मंदिर में जाकर पहले हनुमान जी के दर्शन किए और गेट के बाहर बनी सीढ़ियों पर आकर बैठ गए। कुछ देर सीढ़ियों पर बैठे रहने के बाद उन्हें वह चौकीदार सामने से आता हुआ दिखाई दिया। वह धीरे-धीरे चल कर आ रहा था और सीढ़ियां चढ़कर मृदुल और चिराग के सामने से मंदिर के अंदर चला गया।  चौकीदार ने मृदुल और चिराग को नहीं पहचाना था। 


 वह चुपचाप अंदर मंदिर में गया और लगभग 10 मिनट के बाद अपनी पूजा पाठ खत्म करके मंदिर के बाहर आया और वह भी आकर सीढ़ियों पर ही बैठ गया। कुछ देर वह सीढ़ियों पर बैठा रहा.. उसके बाद मृदुल और चिराग दोनों जाकर उसकी दोनों तरफ जाकर बैठ गए।


 मृदुल और चिराग के ऐसे जाकर बैठने से वह थोड़ा सा घबरा गया था। तब मृदुल ने उससे कहा, "तुमने ही तो इस वक्त हमें यहां बुलाया था और अब तुम ऐसे बर्ताव कर रहे हो। कहीं तुम्हारा इरादा बदल तो नहीं गया।"

 

जब उस चौकीदार को समझ आया कि यह दोनों वही पुलिस वाले थे.. जिन्हें उसने मंदिर बुलाया था.. तब उसकी थोड़ी जान में जान आई। उसने कहा,  "साहब मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं..!!"


 फिर उसने इधर उधर नजर घुमाई और आगे कहना शुरू किया।


 "साहब अगर आप बुरा ना माने तो क्या हम शमशान के अंदर एक कोठरी बनी हुई है.. वहां पर मेरा एक दोस्त रहता है। वहां चल कर बात करें..!!  यहां पर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।" ऐसा कहकर वह बिना उनके ज़वाब का इंतजार किए ही उठ खड़ा हुआ और चुपचाप चलकर शमशान के अंदर चला गया। 


 मृदुल और चिराग ने एक-दूसरे को देखा फिर वो दोनों भी एक-एक करके उठ कर श्मशान में चले गए। 


 शमशान के अंदर एक टूटी हुई सी झोपड़ी बनी हुई थी। जिसे दूर से देखने पर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वहां कोई रहता होगा या कोई अंदर कभी गया भी होगा। पास से देखने पर वो ठीक-ठाक बैठकर बात कर सकने लायक जगह थी.. इसीलिए वो दोनों लोग इधर उधर देखते हुए चुपचाप उस कोठरी में चले गए और उसका दरवाजा बंद कर दिया। वह चौकीदार वही एक कोने पर बैठा हुआ था। 


मृदुल ने उससे पूछा, "अब बताओ..!! बात क्या है?? ऐसा क्या बताना चाहते हो.. जिसके लिए तुमने पहले बंगले से हमें मंदिर में बुलाया और मंदिर से फिर यहां श्मशान में..??"


 चौकीदार थोड़ा सा डरा हुआ और घबराया हुआ सा था उसने कहना शुरू किया। 


"सरकार मेरा नाम रामफूल है.. मैं 6 साल पहले अपने एक रिश्तेदार के पास आया था जो यही दीप साहब के पास ही चौकीदारी करता था। उन्होंने ही अपनी जगह मेरी नौकरी यहां लगवाई थी। मैं तभी से इन लोगों के साथ काम कर रहा हूं। उस वक्त अनीता मेमसाहब की शादी नहीं हुई थी। दीप साहब कुछ ज्यादा ही गुस्से वाले आदमी हैं और अनीता मैडम एक बहुत ही शांत सुलझी हुई और चुलबुली सी लड़की थी.. जब ब्याह के इस घर में आई थी। पर बंगले के अंदर क्या होता था यह तो मुझे नहीं पता??  पर धीरे-धीरे वह चुलबुली सी लड़की एकदम शांत और गंभीर होती चली गई।"


 चौकीदार ने बोलना बंद किया तो चिराग ने तुरंत ही उससे पूछा, "फिर क्या हुआ..?? तुम चुप क्यों हो गए??"

 

चौकीदार उठ खड़ा हुआ.. इधर उधर नजर घुमाई और कोने में रखे हुए मटके में से एक गिलास भर कर पानी पिया और वापस आकर अपनी जगह बैठ गया। उसके बाद उसने फिर से बोलना शुरू किया।


 "जब शादी करके आई थी तब आते जाते हमेशा मुझसे पूछती थी.. "काका आप ठीक तो हो ना..!!  घर पर सब ठीक है ना!! आपके बच्चे कैसे हैं..??"  बस यही छोटी मोटी बातें वह पूछती रहती थी.. मुझे बहुत अच्छा लगता था कि इतने बड़े लोगों के घर में भी कोई है.. जो हम जैसे छोटे लोगों का ख्याल रखता है। पर धीरे-धीरे पता नहीं क्या हुआ कि उन्होंने पूछना तो छोड़ो किसी से बोलना तक बंद कर दिया।  और फिर कुछ दिनों बाद सुनने में आया कि वो अधिकतर अपने कमरे में ही रहती थी। कोई भी उनके कमरे में जाता था तो चीजें उठा उठा कर फेंकने लगी थी और तो और कभी-कभी तो उनके चीखने चिल्लाने की आवाजें बाहर तक आती थी।"

मृदुल और चिराग दोनों ही बड़े ध्यान से रामफूल की बातें सुन रहे थे।


 "पर साहब.. इस पूरे मामले में मेरा नाम नहीं आए.. इस बात का ख्याल रखिएगा..!!" ऐसा कह कर वह चौकीदार हाथ जोड़कर लगभग रोने ही लगा।


 उसके बाद मृदुल ने उसे चुप करवाया और कहा, "तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो..!  मैं किसी भी कीमत पर तुम्हारे बारे में कोई भी बात बाहर नहीं आने दूंगा और तुम भी वादा करो कि अगर अनीता के बारे में कोई भी जानकारी मिलती है.. तो तुम मुझे जरूर बताओगे!!"


 "जी साहब..!!" रामफूल ने हाथ जोड़कर कहा.. उसके बाद वह उठकर बाहर चला गया पर जैसे ही वह दरवाजे तक पहुंचा तो रामफूल ने पीछे पलट कर देखा और मृदुल से कहा, "साहब..!!  इक्को बात बताना चाहता था.. पता नहीं आपके काम की है भी या नहीं। पर इस घर के सबसे पुराने नौकर शंभू काका कुछ दिन पहले कहीं बाहर गए रहे.. अभी तक वापस नहीं आए हैं। अनीता मैडम पर उनका बहुते सनेह था.. अनीता मैडम को अपनी बिटिया ही मानते थे।"


"शंभू काका..!! सर हमें तो किसी ने भी उनके बारे में कुछ भी नहीं बताया..??" चिराग ने हैरानी से रामफूल की तरफ देखते हुए मृदुल से सवाल किया।


"शंभू काका के बारे में आपको कोई भी कुछ नहीं बतायेगा। हम भी उनके बारे में बस इतना ही जानत हैं कि वो इस घर के सबसे पुराने नौकर रही और दीप साहब को उ गोद में खिलाय  रहे है इसलिए ही घर में उनका थोड़ा दबदबा रहा।" रामफूल ने एक और नया खुलासा किया।


"घर कहाँ है उनका..?? परिवार में कौन कौन है.. और  यहां कब से काम कर रहे थे..??" मृदुल ने सवालों की झड़ी ही लगा दी थी।


"बचपने से ही यहां रहत थे.. गाँव, जवार तो उनका पता नहीं था.. पर बोलते हैं कि उनके घर परिवार में कोनहूं भी नाहीं था।"


"तो अब वो कहां मिलेंगे..?? घर पर तो वो है नहीं..!!" चिराग ने अगला सवाल किया।


"राम ही जाने साहब..!!  रमता जोगी बहता पानी..!! उसका कोन्हू एक ठिकाना होय तो जाने… कोई भी व्यक्ति नहीं जानत रहा उनके बारे में।" रामफूल  ने हाथों को मटकाते हुए ज़वाब दिया।


"तुम्हारे कहने का मतलब है कि शंभू काका ही अनीता के बारे में बता सकते हैं..!!" मृदुल ने पूछा।


"जी साहब..!! पर वो तो खुदे ही गायब है.. तो कोउन बताई ओहका बारे में।" रामफूल ने कहा।


"अब हम चलत रही.. देर हुई गई तो.. मालिक लोग शक करी।" रामफूल ये कहते हुए निकल गया और छोड़ गया अपने पीछे ढेरों अनसुलझे सवाल जिनके ज़वाब तक के बारे में जानकारी तो छोड़ों उन्हें पता भी नहीं था कि वो सवाल काम के थे भी या नहीं।


"चिराग फॉरेंसिक एक्सपर्ट को लेकर जाओ और वहाँ से सारे फिंगरप्रिंट चेक करवाओ के किस किस के फिंगरप्रिंट उस कमरे में मिलते हैं..??" मृदुल ये कहते हुए बाहर निकल गया।


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"मृदुल उस कमरे से सभी फिंगरप्रिंट उठा लिए गए हैं..!! घर के सभी सदस्यों और सभी नौकरों के भी फिंगरप्रिंट ले लिये गये हैं। कल तक उनकी फाइनल रिपोर्ट आ जाएगी और पता भी चल जाएगा कि उस कमरे में से किस किसके फिंगरप्रिंट्स मिल रहे हैं। पर उनमे से अनीता के फिंगरप्रिंट कैसे मैच करेंगे..??" चिराग ने सारी जानकारियाँ देने के बाद अपने मन में उठने वाले सवाल को आखिर मृदुल से पूछ ही लिया।


"एक ही इंसान के फिंगरप्रिंट ही तो एक्स्ट्रा मिलेंगे.. और वो होगी अनीता..!! सिंपल।" मृदुल ने इस सवाल को काफी हल्के में लिया था।


"ठीक है आप भी घर जाकर रेस्ट कीजिए..!!  और मैं भी चलता हूं। इस अनीता ने तो दो दिन से एक टांग पर दौड़ा रखा है। रिपोर्ट कल शाम तक आएगी.. तब तक के लिए मैं आराम करूंगा और अपने पुराने पेंडिंग केस देखूँगा।" चिराग घर जाने और अपने आगे के प्लान के साथ खुश होते हुए बोला।


"ठीक है फिर..! मैं भी घर ही चलता हूँ.. रास्ते में ही कुछ खा लेंगे। तुझे कोई प्रॉब्लम तो नहीं।" मृदुल ने पूछा।


"मुझे क्यूँ होगी..?? अब इंस्पेक्टर साहब मुझ जैसे छोटे से सब इंस्पेक्टर को डिनर करवाने की बात कर रहे हैं.. तो मुझे क्यों प्रॉब्लम होगी..?" चिराग ने छेड़ते हुए कहा।


"चल..! चल..! किसी गलतफहमी में मत रहना.. वो तो आज खाना बनाने का मन नहीं था इसलिए तुझे बोला। नहीं तो तेरे लिए और खाना बनाऊँ.. भूल ही जा।" मृदुल ने भी चिराग की टांग खींची।

    

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दो दिन बाद सुबह-सुबह फॉरेंसिक रिपोर्ट मृदुल के टेबल पर रखी थी।  किसी टेक्निकल कारण की वजह से फिंगरप्रिंट रिपोर्ट आने में 1 दिन लेट हो गई थी। इसीलिए रिपोर्ट आज सुबह सुबह ही आई थी। 

 

मृदुल जब ऑफिस पहुंचा तो फिंगरप्रिंट रिपोर्ट उसकी टेबल पर मिली। मृदुल के पीछे पीछे ही चिराग भी पहुंच गया था।  चिराग ने अंदर आते ही पूछा,  "मिल गई रिपोर्ट..!! तूने देखी क्या..?  क्या आया है.. इसमें..??"

 

"अरे भाई खोलने तो दे.. खोलें, पढ़े फिर ही तो पता चलेगा कि इस में आया क्या है??" मृदुल ने सुबह-सुबह अपना मूड ना खराब करते हुए आराम से कहा।


 "तो फिर जल्दी खोल.. किसका इंतजार कर रहा है..??" चिराग ने भी मृदुल को परेशान करने के अंदाज में कहा।


 "तू कैसे बोल रहा है.. हम दोस्त चौकी के बाहर है। यहां पर तो मैं तेरा सीनियर हूं.. अगर किसी ने तुझे मुझसे ऐसे बात करते देखा तो फालतू ही नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।" मृदुल ने भी चिराग को मजाक में डांटने के अंदाज़ में कहा।


"चलो अब सीरियसली देखते हैं कि रिपोर्ट में क्या है..!" मृदुल ने संजीदा होते हुए कहा। 

 

"हां खोलो.. खोलो..! शायद कुछ ऐसा मिल जाए.. जिससे अनीता का केस सॉल्व हो जाए।" चिराग ने भी परेशान होते हुए कहा।


मृदुल ने रिपोर्ट खोली और उसे पढ़ने लगा। पढ़ते समय उसके चेहरे पर बहुत सारे भाव आ जा रहे थे। मृदुल को समझ में नहीं आ रहा था कि इस रिपोर्ट को देख कर वह खुश हो या दुखी।


 "अब ऐसे क्या मुंह बना रहा है.. साफ-साफ बता बात क्या है..??"  चिराग ने फिर उसकी टांग खींचते हुए कहा। 


"मजाक का वक्त नहीं है..!!  चिराग तुम्हें पता भी है.. रिपोर्ट में क्या है..??" मृदुल ने हैरान परेशान होते हुए कहा।


"नहीं..! जब तक तू बताएगा नहीं.. तो कैसे पता चलेगा..??"  चिराग अभी भी मजाक के ही मूड में था। 


"तू फिर शुरू हो गया..??" अब मृदुल बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था उसने गुस्से से चिराग को घूरा।


"अच्छा ठीक है..! अब मैं कुछ भी नहीं कहूंगा.. पर तू बता तो सही रिपोर्ट में आया क्या है..?" चिराग ने सीरियस होते हुए पूछा।


"इस रिपोर्ट के हिसाब से कमरे में 6 लोगों के फिंगरप्रिंट्स मिलें है.. जिनमें से एक दीप के हैं और बाकी 5 लोगों के फिंगरप्रिंट किसी से भी मैच नहीं कर रहे।  उन 5 लोगों में भी एक फिंगर प्रिंट किसी औरत के बताए जा रहे हैं।" मृदुल ने परेशान होते हुए कहा।


"यार यह फॉरेंसिक वाले पागल हो गए हैं क्या..?? फिंगरप्रिंट देख कर थोड़ी पता चलता है कि औरत के है या आदमी के..??"  चिराग ने जवाब में फिर से एक सवाल उछाल दिया।

 

"अरे यार..! यह तो फॉरेंसिक वाले ही बता पाएंगे.. पर मेरे हिसाब से शायद फिंगरप्रिंट क्लियर नहीं होंगे। या फिर जिस तरह के  वो फिंगरप्रिंट होंगे.. शायद वह घर के काम करके फिंगरप्रिंट घिसने के कारण ऐसा लिखा होगा। डेफिनेटली हुआ क्या था वो तो अब फॉरेंसिक वाले ही बता पाएंगे।" मृदुल ने अपना पल्ला झाड़ते हुए चिराग को कहा। 


"तो फिर क्या कहते हो.. क्या करें इसका..?" चिराग ने पूछा। 


"एक काम करते है..! हम लोग कमिश्नर साहब से ही पूछते हैं कि अब क्या करना चाहिए।" मृदुल इस केस के फालतू के सबूतों और बयानों से परेशान हो गया था।


  यह केस अब एक डेड एंड पर था.. जहां से इस केस सुलझने की कोई भी कड़ी हाथ नहीं लग रही थी।  वह दोनों अपनी गाड़ी में बैठ कर कमिश्नर ऑफिस के लिए निकल गए।

              


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 1 घंटे बाद चिराग और मृदुल दोनों कमिश्नर साहब के सामने बैठे थे और उन्हें उस केस की सारी की सारी बातें बता चुके थे।  कमिश्नर साहब भी इस वक्त टेंशन में थे। उन्हें भी इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि इस केस का क्या किया जाए। वहां के माहौल में चुप्पी फैली हुई थी.. किसी को भी अंदाजा नहीं था कि आगे क्या होने वाला था।


 उस चुप्पी को तोड़ते हुए मृदुल ने पूछा, "तो बताइए सर..! अब क्या करना चाहिए..?  यह केस तो डेड एंड पर पहुंच चुका है.. जहां से आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा।"


 कुछ देर तक वहां पर चुप्पी ही फैली थी। कमिश्नर साहब को इस बारे में क्या जवाब दिया जाए समझ नहीं आ रहा था कि तभी कमिश्नर साहब का पर्सनल फोन बजा.. कमिश्नर साहब ने फोन उठाया तो सामने फोन पर दीप था। 


"हेलो..! कमिश्नर साहब..!!" सामने से आवाज़ आई।


"हेलो मिस्टर दीप..!! कैसे है..?? अभी आपकी वाइफ की मिसिंग कंप्लेंट पर ही बातें हो रही थी।" कमिश्नर साहब ने अपने शब्दों में चाशनी घोलते हुए कहा। सामने से कोई ज़वाब नहीं आया तो उन्होंने आगे कहा,


"हमारे ऑफिसर अपनी तरफ से सारी जांच पड़ताल कर चुके हैं। उन्हें कोई भी क्लू नहीं मिला है आपकी वाइफ का..! अब आप ही बताइए क्या किया जाए..?"

 

सामने से आवाज आई,  "कमिश्नर साहब..!! मेरे हिसाब से आप लोग इस केस को बंद ही कर दीजिए। वैसे भी अब शायद इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। यह बात तो साफ ही है कि अनीता अपने प्रेमी के साथ ही भागी है। रिपोर्ट कराने का सिर्फ इतना सा कारण था कि कल को अगर भगवान ना करे कि उसके साथ कोई दुर्घटना हो जाती.. तो पुलिस का शक तो मुझ पर ही आता ना। क्या पता कल को उसकी बॉडी मिलती और आप लोग उसके मर्डर का इल्जाम मुझ पर लगा देते।" ऐसा कहकर दीप जोर से हंसने लगा।


 दूसरी तरफ से कमिश्नर भी हंसने लगे,  "ऐसी बात नहीं है दीप साहब..!! हमें भी आदमी की थोड़ी तो परख है। हमें भी इतना तो पता है कि आप जैसे समाज के गणमान्य लोग इस तरह की कोई हरकत तो नहीं करेंगे। अगर आप की तरफ से रिटन में मिल जाता तो बहुत अच्छा होता।  हमें इस केस को बंद करने में आसानी होती।" कमिश्नर ने कहा।


 "बिल्कुल सर..! आप किसी को भी भेज दीजिएगा या फिर मैं ही मेरे असिस्टेंट रनवीर को अपने रिटन कंफर्मेशन के साथ भेज दूंगा। ठीक है फिर बात होगी। बाय..!!" ऐसा कहकर दीप ने फोन रख दिया। 


कमिश्नर साहब ने भी मोबाइल को अपने सामने टेबल पर रखा और एक चैन की सांस ली।  मृदुल और चिराग दोनों प्रश्नवाचक नजरों से कमिश्नर की तरफ देख रहे थे।

 

कुछ देर कमिश्नर ने कुछ भी नहीं कहा तो चिराग ने अधीर होते हुए कमिश्नर से पूछा, "सर क्या बात है..? होप एवरीथिंग इज ऑलराइट..??"



 "यस..! एवरीथिंग इज ऑलराइट..!!" कमिश्नर ने कहा।

 

अभी भी चिराग और मृदुल दोनों प्रश्नवाचक नजरों से कमिश्नर को ही देख रहे थे। इस केस का बोझ सर से हटते ही कमिश्नर भी थोड़ा रिलैक्स नजर आ रहे थे।


"अरे यार ऐसे क्या देख रहे हो..?" कमिश्नर ने मजाक में चिराग और मृदुल से पूछा।


कमिश्नर के यह सवाल करते ही वह दोनों हड़बड़ा गए और इधर-उधर बगले झांकने लगे। उन्हें ऐसे हड़बड़ाया देख कमिश्नर जोर से हंस पड़े और कहा, "अरे यार तुम्हारी ही प्रॉब्लम सॉल्व हो गई है। दीप रिटन में कंफर्मेशन दे रहा है कि हम उसकी वाइफ की मिसिंग कंप्लेंट को क्लोज कर दे..वह केस वापस ले रहा है।" कमिश्नर ने ऐसा कहते हुए एक राहत की सांस ली।


"सीरियसली सर..!! ठीक है तो मैं इस केस की फाइनल रिपोर्ट बनाकर इस फाइल को क्लोज कर देता हूं।' मृदुल ने एक्साइटेड होते हुए कहा। 

 "तो फिर हम चलते हैं सर..! फाइल को क्लोज करके फाइनल रिपोर्ट कल तक आपके पास पहुंच जाएगी।" ऐसा कहते हुए मृदुल उठ खड़ा हुआ और चिराग और मृदुल दोनों कमिश्नर को सैल्यूट करके बाहर निकल गए।


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केस खत्म हो चुका था.. सभी लोग अपने अपने कामों में दोबारा लग गए थे। चिराग और मृदुल भी किसी दूसरे केस पर काम करने लगे थे। 


 एक दिन अचानक देर रात कमिश्नर के ऑफिस में उनकी लैंडलाइन पर एक कॉल आया। कॉल करने वाला एक आदमी था शायद क्योंकि उसकी आवाज थोड़ी सी भारी सी सुनाई दे रही थी।


 फोन पर उसने पूछा, "हेलो..! कमिश्नर साहब बात कर रहे हैं?"


"हेलो..! हां मैं कमिश्नर ही बोल रहा हूं..!! आप कौन..??"


"सर आप इस पर ध्यान ना दें कि मैं कौन हूं..?? बस मैं तो सिर्फ आपकी हेल्प करना चाहता था..!!"


 "कैसी हेल्प..?? और तुम बोल कौन रहे हो..?" 


कमिश्नर ने अबकी बार कड़क आवाज में पूछा।


"सर आपका यह जानना ज्यादा जरूरी है कि मैं कौन बोल रहा हूं??  या यह जानना कि मैं क्या कहना चाहता हूं..?" उस आवाज ने कहा।


 कमिश्नर कुछ वक्त शांत रहे। उसके बाद सामने से दोबारा आवाज आई। 


"दीप को तो आप जानते ही होंगे..??"


 "दीप..!! किस दिप की बात कर रहे हो तुम..?" कमिश्नर ने तुरंत ही पूछा।


"वही दीप..! सर.. जिसकी बीवी को आप कुछ दिनों से ढूंढ रहे थे और थक कर दीप के कहने पर आपने उसकी मिसिंग कंप्लेंट पर फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस बंद कर दिया।"


"तुम कौन हो और तुम्हें यह सब कुछ कैसे पता..?" कमिश्नर ने परेशान होते हुए पूछा 


"सर..!! आप आम खाइये ना.. गुठलियां गिनने से क्या मतलब..! मुद्दे की बात तो यह है कि दीप की बीवी कहीं भी गायब नहीं हुई।"


 यह सुनते ही कमिश्नर चौक गए और उन्होंने पूछा, "क्या कहना चाहते हो तुम..!! अगर उसकी बीवी गायब नहीं हुई थी.. तो कहां थी वह..?? और दीप इतना बड़ा बिजनेसमैन होकर भी अपनी बीवी की झूठी मिसिंग कंप्लेंट लिखवाएगा क्या..??"


"सर..!! सर..!! एक तो आपको जल्दी बहुत रहती है। आप पूरी बात सुने बिना ही बात को बीच में काट देते है।"  उस आवाज ने अजीब से लहजे में कहा।


"क्या कहना चाहते हो..! साफ-साफ कहो..! और पूरी बात बताओ..!!" कमिश्नर अब परेशान हो चुके थे। 


उन्होंने अपनी टीम को उस फोन कॉल को ट्रेस करने में लगा दिया था। 


 सामने वाले व्यक्ति ने कहा, "सर मैं कहना यह चाहता हूं कि दीप की बीवी गायब नहीं हुई है। मेरा मतलब है.. दीप के हिसाब से वह अपने प्रेमी के साथ भागी है पर ऐसा है नहीं..! दीप की बीवी का कत्ल हो चुका है..? वह भी उसी घर में..??"


 यह सुनते ही कमिश्नर चौक गए,  "कत्ल..!! तुम्हें कैसे पता कि उसका कत्ल हुआ है..??"


 "सर..! आप आम खाओ ना किस पेड़ का है और कब तोड़ा.. उससे क्या मतलब..! अगर मेरी बात झूठ निकले तो बेशक आप उसके कत्ल का इल्जाम मुझ पर लगाकर फांसी पर चढ़ा सकते हैं..! पर अगर उस घर से कत्ल के सबूत मिले तब..??  आप वहां आपके बेस्ट ऑफिसर को भेजिए..! आपको वहां पर कत्ल के सबूत जरूर मिलेंगे..!" उस आवाज ने कहा।


"क्या कहना चाहते हो तुम..??"


"सर..! मैं कहना यह चाहता हूं कि अभी भी उस घर में अनीता के कत्ल के बहुत से सबूत है और अगर आपने जल्दी एक्शन नहीं लिया तो उन सबूतों को भी मिटा दिया जाएगा..!!" यह कहते ही उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी। 

 

कमिश्नर फोन को हाथ में लिए हुए कुछ सोच रहे थे।  कॉल के कटते ही सामने से एक ऑफिसर ने आकर कमिश्नर साहब को उस कॉल के बारे में सूचना दी।


"सर यह कॉल एक पब्लिक बूथ से किया गया था। वह भी उस बूथ से जो शहर का सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाला बूथ है।"

 

"इतना होने के बाद वहां बहुत ढूंढने पर एक सीसीटीवी कैमरा मिला है।" आने वाले ऑफिसर ने बताया।


"उस सीसीटीवी की फुटेज जल्द से जल्द मंगवाओ।"


"यस सर..!!" कहकर उस ऑफिसर ने सेल्यूट किया और केबिन से बाहर निकल गयी।


 इस कॉल के बाद कमिश्नर बहुत ही ज्यादा टेंशन में नजर आ रहे थे। उनके पास उस वक्त बिलकुल भी आईडिया नहीं था कि इस केस को आगे इन्वेस्टिगेट किया जाए या नहीं।

 उन्होंने उस वक्त एसपी सिटी को कॉल किया। "अशोक तुम जितनी जल्दी हो सके मेरे ऑफिस पहुंचो।" कमिश्नर ने कहा।


"जय हिंद सर..!! सर ऐसा क्या हो गया जो इतना अर्जेंट बुला रहे है..??" एसपी ने परेशान होते हुए पूछा।


"बहुत ही ज्यादा अर्जेंट है.. पहले तुम फटाफट ऑफिस पहुंचो मैं तुम्हें बताता हूं..!"


 1 घंटे के बाद एसपी अशोक कमिश्नर के ऑफिस में बैठे थे और वह दोनों लैपटॉप पर उस सीसीटीवी की फुटेज देख रहे थे।  फुटेज में कोई भी संदिग्ध आदमी नजर नहीं आया था।  जिस वक्त वह कॉल चल रही थी.. उस वक्त उस पीसीओ में कोई भी नहीं था.. 

पीसीओ बूथ बिल्कुल खाली था। 


यह देख कर कमिश्नर और एसपी दोनों ही परेशान हो गए थे। कॉल उसी नंबर से आई थी और उसी एड्रेस पर ट्रेस भी हुई थी.. तो ऐसा कैसे हो सकता था कि उस फोन बूथ में कोई भी ना हो।

 

कमिश्नर साहब ने उसी ऑफिसर को बुलवाया जिसनें वह सीसीटीवी फुटेज अरेंज की थी।  


"कौशिक तुम ने कॉल ट्रेस की थी ना..? और यह फुटेज भी तुम्हीं ने अरेंज की है..! इस फुटेज के हिसाब से उस वक्त पीसीओ में कोई भी नहीं था।  और तुम्हारे ट्रेस की हुई कॉल के हिसाब से कॉल उसी 

पीसीओ से आई थी। ऐसा कैसे हो सकता है..??'


 "सर आप मुझे 15 मिनट दीजिए.. मैं अभी के अभी पता करके बताता हूं कि इस पूरे मामले में गड़बड़ कहां हुई है..??" उस ऑफिसर ने कहा। 


"ठीक है मैं तुम्हें आधे घंटे का टाइम देता हूं। पर इस आधे घंटे में इस कॉल से रिलेटेड हर एक छोटी डिटेल मुझे चाहिए और अगर इस में कोई भी गड़बड़ हुई तो कल से ऑफिस आने की आवश्यकता नहीं है।  तुम्हारा सस्पेंशन लेटर तुम्हारे घर पहुंच जाएगा।" कमिश्नर ने चेतावनी देते हुए कहा।


"उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी सर..! मैं अभी डिटेल लेकर आता हूं।"  ऐसा कहकर कौशिक कमिश्नर के केबिन से बाहर निकल गया।


 कमिश्नर ऑफिस में दोनों ही हैरान-परेशान से एक दूसरे की शक्लें देख रहे थे। दोनों को ही इस बारे में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बस ऐसे ही आधा घंटा बीत गया और वह ऑफिसर अभी भी कमिश्नर साहब के सामने था।


"तो क्या डिटेल्स है..कौशिक..??" कमिश्नर ने पूछा।

"सर.. मैंने टेलीफोन कंपनी कॉल करके पता कर लिया है। उस वक्त उस रूट के सारे लैंडलाइन शटडाउन पर चल रहे थे। उस एरिया में टेलीफोन्स लाइन पर कोई गड़बड़ आ रही थी.. जिसके लिए एक ऑपरेटर उसे ठीक करने के लिए लगा हुआ था।


 कॉल कटने के 10 मिनट बाद ही वह प्रॉब्लम ठीक हुई थी.. तो टेलीफोन कंपनी भी यह नहीं बता सकती कि वह कॉल कहां से आई थी..??" कौशिक ने कहा।


 इस नए खुलासे से कमिश्नर और एसपी दोनों के होश उड़ गए थे। अब उन्हें समझ में आ गया था कि जो कॉल आई थी वह ट्रेस नहीं हो सकती थी  किसी आदमी ने सोच-समझकर ही इस पूरी जानकारी को कमिश्नर ऑफिस पहुंचाया था  पर अब सवाल यह उठता था कि ऐसे किस ऑफिसर को यह केस सॉल्व करने के लिए दिया जाए.. जो उस फोन करने वाले का भी पता लगाएं और यह भी पता लगाएं कि दीप की वाइफ का सच में कत्ल हुआ है या फिर दीप के हिसाब से वह सच में अपने प्रेमी के साथ भाग गई। 

 

कमिश्नर और एसपी दोनों ही अपना सर पकड़ कर बैठ गए। इस वक्त ऐसा कोई भी नहीं था.. जो इस सब में कमिश्नर साहब की हेल्प कर सके। कमिश्नर यह जानते थे कि यह केस अब पुलिस की पहुँच से बाहर निकलता जा रहा था।


 पुलिस के पास ऐसा कोई भी बंदा नहीं था जो इस केस को सॉल्व कर सके।  क्योंकि अब अगर इस केस के बारे में भनक भी किसी को लग जाती तो पुलिस की बहुत ही ज्यादा किरकिरी होनी निश्चित थी।

 कमिश्नर और एसपी दोनों ही इस वक्त बहुत ही ज्यादा टेंशन में थे। उसी वक्त एसपी सिटीषके पर्सनल मोबाइल पर एक कॉल आई।


"सर..! अगर आप चाहे तो मैं इस केस को हैंडल कर सकता हूं।"  एसपी केस का सुनते ही परेशान हो गए थे। उन्होंने हड़बड़ाते हुए पूछा, "क.. क.. कौन सा केस..?? तुम किस केस की बात कर रहे हो..??"


सामने से आवाज आई.. "वही केस सर जिसके कारण पूरा पुलिस महकमा इस वक्त सर पकड़कर कमिश्नर साहब के ऑफिस में बैठा हुआ है।" एसपी ने चौंक कर कमिश्नर साहब की तरफ देखा तो वह सर पकड़े हुए अपनी चेयर पर बैठे थे।

 

इतना सुनते ही एसपी अशोक परेशान हो गए और उन्होंने फोन को म्यूट पर रखकर कमिश्नर साहब से कहा, "सर कोई और भी है.. जो इस केस के बारे में जानता है।"

 

यह सुनते ही कमिश्नर साहब परेशान हो गए और उन्होंने तुरंत पूछा, "कौन..?कौन है..??"


"सर वह खुद से इस केस को सॉल्व करना चाहता है। वह कह रहा है कि वह इस केस को हंड्रेड परसेंट सॉल्व कर ही देगा।"


 एसपी अशोक ने उसका नाम कमिश्नर को बताया तो नाम सुनते ही कमिश्नर के चेहरे का रंग ही उड़ गया था। कमिश्नर बहुत ही ज्यादा परेशान हो गए थे।


"क्या वह ये केस सॉल्व करना चाहता है..? उसे कैसे पता इस केस के बारे में..??" कमिश्नर ने पूछा।


"वह तो सर वही बता पाएगा..??" एसपी अशोक ने ज़वाब दिया।


"ठीक है.. बुला लो.. उसे अभी..!!" कमिश्नर ने इजाजत दे दी।


 एसपी ने फ़ोन म्यूट से हटाया और कहा,  "ठीक है..!  तुम इस केस पर काम कर सकते हो..! पर अभी के अभी कमिश्नर साहब तुमसे मिलना चाहते हैं..!!" ऐसा कहकर एसपी ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।


"सर..!! वो कल सुबह तक यहाँ पहुँच जाएगा।" एसपी अशोक ने कहा।


"ठीक है फिर..!! तुम भी कल इसी टाइम यहाँ पहुँच जाना।" कमिश्नर ने एसपी को कहा।


एसपी अशोक भी सैल्यूट कर वापस अपने ऑफिस के लिए निकल गए।

            

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एक बड़ा सा हाॅल नुमा कमरा.. जिस में रंग बिरंगी लाइटें लगी हुई थी। वहाँ बहुत तेज़ और अजीब सा शोर हो रहा था।  कुछ लोगों के चिल्लाने की और झगड़े की आवाजें आ रही थी। फिल्मी गाने भी कानफोड़ू आवाज में बज रहे थे।  बहुत से लोग इधर से उधर भागते नजर आ रहे थे। कुछ लोग जमीन पर पड़े थे,  कुछ वहां रखे सोफों पर बैठे थे और कुछ लोग कोनों हो में गुट बनाकर खड़े थे। 


 उस हाॅल के बीचोंबीच कुछ आधे अधूरे कपड़ों में लगभग 10 या 12 लड़कियां भद्दा सा नाच प्रस्तुत कर रही थी। लोग उन्हें देखकर अश्लील टिप्पणियां कर रहे थे.. पर वो बिना उनपर ध्यान दिए नाचने में व्यस्त थी। उनमे से कुछ लड़कियां बैठे लोगों के बीच जाकर भी अपनी अश्लील अदाओं से उन्हें उकसा रही थी। कुछ लोग उन लड़कियों से खुश होकर उनपर नोटों की बारिश कर रहे थे। सभी के हाथों में शराब के ग्लास थे.. इसी वजह से वहाँ अजीब सी दुर्गंध फैली हुई थी.. दुर्गंध ना पीने वालों के लिए थी.. पीने वालों के लिए तो वो एक खुशबु का झोंका महसूस होती थी।


हर तरफ आदमियों की भीड़ ही भीड़ नजर आ रही थी। सभी आदमी अधिकतर अपने दोस्तों या किसी ना किसी के साथ ही बैठे थे।


एक तरफ एक खूबसूरत सी बार टेबल रखी हुई थी। जिसके दूसरी तरफ दुनिया भर की शराबों की किस्में रखी हुई थी.. जिनमे से कुछ सस्ती थी तो कुछ इतनी महंगी थी कि खरीदने से पहले भी कोई आम आदमी सात सौ बार सोचे। ये जगह ही ऐसी थी कि कोई भी चाहे उसके पास कुछ भी ना हो.. पर अपने आपको किसी रियासत का महाराज ही समझता था।


 उस बार काउन्टर के दूसरी तरफ दो लड़के खड़े थे जिनकी उम्र लगभग 20 या 22 होगी। दोनों ही वहां आए लोगों के लिए शराब के पैग बना रहे थे.. सर्व करने के लिए वहां पर लेड़ी वेटरेस थी.. जो वहाँ बैठे लोगों को उनकी पसंद से ड्रिंक्स सर्व कर रही थी।

सभी लोग अपने में ही मस्त नज़र आ रहे थे। उनमें से एक आदमी ऐसा भी था जो बार काउन्टर पर बैठा बस ड्रिंक्स पर ड्रिंक्स के ग्लास खाली कर रहा था। जब वो 10-12 ग्लास खाली कर चुका था तभी वहां पुलिस की रेड पड़ी।


सभी पीने वाले और नाचने वाली लड़कियां इधर उधर भाग कर पुलिस से बचने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस भी पूरी मुस्तैदी से सभी को पकड़कर उनसे पूछताछ कर रही थी। वैसे तो यह शहर का बहुत ही नामी बार था.. लेकिन कुछ इललीगल काम भी इस बार की आड़ में होते थे। ड्रग्स, लड़कियां, हथियारों के सौदों के साथ-साथ यहां पर क्राइम्स की प्लानिंग और प्लॉटिंग भी अधिकतर यहीं होती थी। एक बहुत ही बड़े राजनेता के रिश्तेदार होने के कारण इस बार के मालिक को सरकारी संरक्षण प्राप्त था। इसी वजह से सभी को इन सभी कामों के लिए यही जगह सबसे ठीक लगती थी।


आज भी पुलिस को टीप मिली थी कि किसी बड़े बिजनेसमैन पर जानलेवा हमले की प्लानिंग यहां हो रही थी। इसी वजह से आज पुलिस की रेड यहां पड़ी थी। कुछ लोग वहाँ पर बैठे कुछ प्लानिंग में लगे हुए थे.. वो लोग एक बड़े हमले को प्लान कर रहे थे। क्योंकि वहां के एक बड़े बिजनेसमैन जो कि समाज सुधारकर और एक बड़ा एनजीओ भी चलाते थे.. की ही गवाही पर एक बड़े गुंडे को फांसी की सजा हुई थी। उसी के गैंग वाले इस वक्त उस बिजनेसमैन को मारने का प्लान बना रहे थे ताकि सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर कोई गवाह ना होने के कारण उसको सजा नहीं दी जाए।


उस रेड में पुलिस को उन गुंडों के अलावा बहुत कुछ मिला था। वहां से लड़कियों की खरीद फरोख्त भी की जाती थी.. और उन लड़कियों को अलग अलग शहरों के  स्कूल, कॉलेज और माॅल्स से किडनैप किया गया था। वहां पर ड्रग्स की भी एक बड़ी खेप मिली थी जिसमें हेरोइन, चरस, गांजा और भी ना जाने क्या क्या था। इतना सब वहाँ से बरामद होने के कारण ही पुलिस ने सभी को पकड़ रखा था और हर एक आदमी से कड़ी पूछताछ की जा रही थी।


सभी लोगों में अफरातफरी मची हुई थी पर वो आदमी जो बार काउन्टर पर बैठा शराब पी रहा था.. वो अभी भी शांति से अपना पैग खत्म करने में लगा हुआ था। बार काउन्टर पर खड़ा लड़का उसे ऐसे पीने में मस्त और पुलिस को वहाँ देख घबराया हुआ सा था। 


काउन्टर पर कस्टमर को छोड़कर जाने से उसकी नौकरी तक जा सकती थी और ना जाने पर पुलिस उसके साथ क्या सलूक करेगी..?? यही सोच सोचकर लड़का बहुत ही ज्यादा परेशान हो रहा था।


दो कांस्टेबलों ने जब उस आदमी को ऐसे बिना हिलेडुले पीने में ही व्यस्त देखा तो वो उसके पास जाकर उसे धमकाने लगे। उनके धमकाने पर भी उस बैठे आदमी ने उन कांस्टेबलों पर कोई ध्यान नहीं दिया तो दोनों के दोनों ही बहुत चिढ़ गए और उनमे से एक ने उस बैठे आदमी की कॉलर पकड़ ली। कॉलर के पकड़ते ही उस आदमी ने अपनी लाल लाल आँखों से दोनों कांस्टेबलों को घूरा। उस आदमी के ऐसे घूरते ही दोनों कांस्टेबल हड़बड़ा गए और झटके से उसकी कॉलर छोड़ दी।


कॉलर छोड़ते ही वह फिर से वापस अपने आप में मस्त हो गया। कॉन्स्टेबल उसे देख कर अचंभित थे कि उसे कोई फर्क़ ही नहीं पड़ा। कांस्टेबल थोड़े गुस्से में लग रहे थे। उनमें से एक ने जाकर इंस्पेक्टर को उस बैठे हुए आदमी के बारे में खबर दी।


 कुछ ही समय में दो लोग चलकर उस तरफ आये और उस आदमी के पीछे खड़े हो गए।  वह दोनों इंस्पेक्टर मृदुल और सब इंस्पेक्टर चिराग थे।  


चिराग ने उस आदमी के कंधे को थपथपाते हुए पूछा, "क्यों भाई कोई प्रॉब्लम है..?? देखा नहीं तुमनें.. पुलिस की रेड है तो तुम्हारा यहां ऐसे बैठे रहना ठीक है..??"


उस बैठे हुए आदमी ने पलट कर देखा.. उसके पीछे पलटते ही मृदुल और चिराग दोनों ही चौंक गए।  


चिराग एकदम से हैरान होते हुए चिल्लाया, "तुम..?? तुम यहाँ क्या कर रहे हों और इस शहर में वापस आने का क्या मतलब है..??"


 उस आदमी ने घूर कर फिर से  चिराग को देखा और वापस शराब पीने लगा।  मृदुला चिराग दोनों ही उस आदमी को बहुत ही ज्यादा गुस्से से घूर रहे थे।





क्रमशः...