Chapter 126

Chapter 126

सुन मेरे हमसफ़र 119

Chapter


119








   काया भागती हुई गेस्ट रूम में पहुंची और जल्दी से दरवाजा बंद कर लिया। उसके दिल की धड़कन इस वक्त किसी बुलेट ट्रेन की तरह चल रही थी। उसने अपनी आंखें बंद की और कुछ देर वही दरवाजे से सर लगाकर खड़ी रही।


    ऋषभ ने जो भी हरकत की थी उस सपने काया को बुरी तरह परेशान कर दिया था। उसके कान में ऋषभ की आवाज पड़ी "किस से भाग रही हो?"


       काया ने चौंककर पलट कर देखा तो वाकई ऋषभ उसके बेहद करीब खड़ा था। उसने गुस्से में कुछ कहना चाहा लेकिन ऋषभ ने उसके और करीब आकर कहा, "मुझसे भाग कर कहां जाओगी? मैं अब तुम्हारे एहसासों में बसा हूं। अब झूठ मत बोलना कि तुम्हें मुझसे कोई फर्क नहीं पड़ता।"


     काया ने गुस्से में अपनी मुट्ठी कसली और आंखें बंद कर गहरी सांस लेने लगी। वह ऋषभ से यहां कोई झगड़ा करके कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी। लेकिन उसे इतना भी एहसास नहीं हुआ कि यहां इस कमरे में ऋषभ क्या कर रहा है। जैसे ही उसे इस बात का ध्यान आया, उसने आंखें खोली और पूछा "तुम यहां क्या कर रहे हो?" लेकिन हैरानी यह कि वहां कोई नहीं था।


    काया ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, सारी खिड़कियां भी बंद थी और बालकनी का दरवाजा भी लगा हुआ था। ऐसे में किसी के आने या जाने का सवाल ही नहीं उठता। काया परेशान हो गई। 'अब मुझे वह लफंगा अपने चारों तरफ नजर आने लगा है? मैं पागल हो जाऊंगी।' काया के हाथ में एक पैकेट था उसने बेड पर रखा और बाथरूम चली गई।


     बाथरूम से फ्रेश होकर आने के बाद उसने पैकेट खोला और अपना सेलेक्ट किया हुआ ड्रेस बाहर निकाला। लेकिन यह क्या  यह वो ड्रेस नहीं था जो उसने पसंद किया था। यह कोई पीले रंग की साड़ी थी और साड़ी पहनने का उसका कोई मूड नहीं था। लेकिन इस वक्त वो करें? अगर ये सुहानी का कमरा होता तो दूसरा कुछ निकाल लेती लेकिन इस गेस्ट रूम में उसे क्या ही मिलता!


     काया खुद से बोली "कोई बात नहीं। सबने सूट पहन रखा है तो मैं थोड़ी अलग हो जाऊंगी। लेकिन ये ड्रेस तो मैंने नहीं उठाई थी! कहीं किसी से एक्सचेंज तो नहीं हो गया? लेकिन मैं तो बुटीक से सीधे यहां आ रही हूं, तो क्या मैं ने ही गलत पैकेट उठा लिया?"


    काया के पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था सो उसने वही साड़ी पहन ली। हैरानी की बात तो यह थी कि उसमें साड़ी से मैचिंग चूड़ियां और एक छोटा सा लॉकेट भी था। काया के पास कुछ और सोचने का टाइम नहीं था इसलिए जल्दी से तैयार होकर वो बाहर निकली।


     बाहर आते ही उसका फोन बजा। काया ने देखा तो किसी अननोन नंबर से उसे कॉल आ रहा था। काया का वैसे ही मूड ऑफ था। उसने पहले तो उस कॉल को इग्नोर किया लेकिन जब दोबारा फोन बजा तो उसे रिसीव करना ही पड़ा। उसने झुंझलाकर कहा "हेलो! कौन बोल रहा है?"


     दूसरी तरफ से एक आवाज आई "मुझे पता था, तुम साड़ी में बहुत खूबसूरत लगोगी।"


    काया ये सुनकर बुरी तरह से घबरा गई।


  कायरा इस आवाज को कैसे भूल सकती थी उसने घबराते हुए अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई और कहा, "तुम....! तुम्हें कैसे पता मैंने क्या पहन रखा है और कौन से कलर का?"


  ऋषभ हंसते हुए बोला "मैंने तो फिलहाल सिर्फ इतना ही कहा है कि मुझे पता था, तुम साड़ी में बहुत अच्छी लगोगी। अभी तो मैंने बताया ही नहीं कि तुमने कौन से कलर का पहना है! वैसे वह कलर मेरा फेवरेट है, तुम्हें पता है? तुम्हें कैसे पता होगा! तुमने कभी मुझे जानने की कोशिश ही नहीं की। और एक मुझे देख लो। मुझे देखकर ही तुम इस तरह भागी जैसे मैं कोई भूत हूं। वैसे एक बात है, तुम जब भी आंखें बंद करोगी, मुझे ही महसूस करोगी।"


     काया गुस्से में चिल्ला कर बोली "तुम एक नंबर के घटिया इंसान हो। हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी, मेरे साथ वो सब करने की!"


     ऋषभ ने हंसते हुए मासूमियत से जवाब दिया "मैंने! मैने क्या किया? अच्छा वो! उसके लिए तो तुमने खुद मुझे परमिशन दिया था। पहली बार जो हुआ वह अचानक से था, इसलिए मैंने तुमसे पूछ नहीं पाया था। लेकिन इस बार मैंने तुमसे पूछा था और तुमने हां कहा था। बिना परमिशन के मैंने कुछ नहीं किया, इतना जान लो तुम। इसलिए तुम मुझ पर कोई ब्लेम नहीं लगा सकती। और वैसे भी, तुम भी चाहती थी यह सब।"


काया का दिल धक से रह गया। उसने चारो तरफ देखा और साइड में जाकर दांत पीसते हुए कहा "खबरदार जो ऐसी घटिया बातें मेरे साथ की तो! मैं, और तुम्हारे साथ! कभी नहीं।"


    ऋषभ ने पूछा "अच्छा ऐसी बात है! तो फिर तुमने मुझे खुद से अलग क्यों नहीं किया? उस किस को तुमने भी इंजॉय किया है। इस बात से तुम इनकार नहीं कर सकती।"


    काया अब और नहीं सुन सकती थी। उसने गुस्से में फोन काट दिया और बाहर सबके बीच जाने लगी लेकिन सामने देखा तो उसने सर पकड़ लिया। कार्तिक सिंघानिया सबके साथ बैठकर बातें कर रहा था और सुहानी उसके साथ खड़ी थी। काया को अब तक यकीन नहीं हुआ था की ऋषभ और कार्तिक दोनों जुड़वा भाई है। वो अभी तक कार्तिक को ही ऋषभ समझ रही थी। उसने कार्तिक को यही सबक सिखाने की सोची लेकिन सबके बीच यह सब कैसे करती?


     सुहानी जो अब तक सबसे बातें कर रही थी, उसका पूरा ध्यान कार्तिक सिंघानिया पर था। उसकी नजर जैसे ही काया पर गई, वह हैरान रह गई। उसने एकदम से चिल्लाते हुए कहा, "कायु! यह क्या पहन लिया तूने?"


सबका ध्यान काया की तरफ गया। उसके पापा कार्तिक ने पूछा, "ये क्या कायू! तुम तो अपने लिए सूट लेने गई थी ना, फिर साड़ी कहां से उठा लाइ? लेकिन कुछ भी कहो, ये तुम पर काफी अच्छा लग रहा है। हमारी दूसरी बेटी भी शादी के लायक हो गई और हमे पता भी नही!"


     काया क्या ही कहती। उसने हकलाते हुए जवाब दिया, "पापा......! वह........ पापा...... मैं............ मुझे कुछ पसंद नहीं आया तो मैं बस यह साड़ी ले आई।"


   लेकिन काव्या ने बीच में सवाल किया "लेकिन यह साड़ी मेरे बुटीक का नहीं है। और ना ही यह मेरी डिजाइन है, फिर तुम्हें यह वहां कैसे मिला?"


    अब तो काया से जवाब देते नहीं बन रहा था। उसने गुस्से से कार्तिक सिंघानिया की तरफ देखा जो विचारा मासूम सा सब की तरह उसे ही देखे जा रहा था।