Chapter 61

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humsafar 61

Chapter

61






      कार्तिक स्टडी रूम मे बैठा लैपटॉप पर कुछ काम करने की कोशिश कर रहा था। इधर काव्या सारे काम निबटा कर जब बेडरूम मे आई तो वहाँ कार्तिक नही था। वह उसे ढूँढते हुए स्टडी रूम मे आई तो देखा लैपटॉप बंद था और कार्तिक किसी ख्याल मे गुम था। उसने कार्तिक को आवाज लगाई, "कार्तिक.....!" लेकिन कार्तिक ने कुछ रिएक्ट नही किया। काव्या ने फिर से आवाज़ लगाई तब जाकर कार्तिक की तंद्रा टूटी। उसने काव्या को दरवाजे पर खड़ा देखा तो उसके  दिमाग मे सुबह काव्या के सवाल घूम गए। वह बस उस सवाल से बचना चाहता था इसीलिए उसने कुछ काम खत्म करने का बहाना बनाया लेकिन काव्या ने उसका लैपटॉप बंद कर रख तरफ रख दिया। 

     कार्तिक ने बेबसी से काव्या को देखा लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नही हुई। काव्या ने ही पहल की और उसने कार्तिक से कुछ भी नही छुपाया। "कार्तिक........! इस घर मे हम दोनो सिर्फ इसलिए साथ है क्योंकि हमारी शादी हुई है। किसी भी रिश्ते मे प्यार और सम्मान दोनो ही जरूरी होता है। इन दोनो मे किसी एक का ना होना उस रिश्ते को बोझ बना देता है। हम दोनो ने ही हर मुमकिन कोशिश की है एक नॉर्मल कपल की तरह जिने की। हमारे रिश्ते मे भी सम्मान तो है लेकिन प्यार नही है, और अगर किसी रिश्ते मे प्यार ही नही है तो उसे ढोने का क्या फायदा!!!"

     "ये तुम क्या बोल रही हो काव्या!!! हमारी शादी को अभी एक महिना भी पूरा नही हुआ है और तुम.......! ऐसा नही होता है काव्या, शादी कोई मजाक नही होता है!!" कार्तिक ने कहा। उसकी आवाज़ मे एक बेबसी थी। 

      काव्या के भी अपने ही तर्क थे, "जिंदगी भी कोई मजाक नही होती है कार्तिक......! ये हमें सिर्फ एक बार मिलती है और उसे भी अगर ऐसे रिश्ते को ढोने मे बर्बाद कर देंगे तो कभी खुश नही रह पाएंगे। तुम ये देख रहे हो की हमारी शादी को कितना वक़्त हुआ और मै ये देख रही हु की इस शादी से हम दोनो ही खुश नही है। हमारे बीच के इस रिश्ते मे खुशियाँ कभी आ ही नही सकती जानते हो क्यों?" 

      काव्या के सवाल पर कार्तिक उसे असमझ की स्थिति मे देखने लगा तो काव्या ने उस दोनो की लाइफ का सबसे बड़ा सच उसके सामने रख दिया। "क्योंकि हम दोनो ही किसी और से प्यार करते है.!" 

   काव्या के कहे गए हर शब्द किसी हथौड़े की तरह कार्तिक के कानों मे बज रहे थे। "हम दोनो..!!! हम दोनो से तुम्हारा क्या मतलब है काव्या?" कार्तिक को लगा जैसे उसने कुछ गलत सुन लिया हो। काव्या मुस्कुरा कर बोली, "हम दोनो से मेरा मतलब हम दोनो से ही है कार्तिक! तुम्हारे दिल मे कोई और है ये बात समझने मे तुम्हें वक़्त लगा लेकिन मेरे दिल मे कोई और है ये बात मै हमेशा से जानती थी। और सब कुछ जानते हुए भी मैंने तुम से शादी की। मैं तुम्हारी गुनाहगार हु कार्तिक , लेकिन मेरे सामने दूसरा कोई रास्ता नही था। अगर अपने दिल का रास्ता चुनती तो अपने पापा को खो देती।"

   कार्तिक को कुछ अजीब लगा, "लेकिन काव्या! हम एक दूसरे को पिछले दो सालों से जानते है। कभी तुमने किसी का जिक्र नही किया और ना ही कभी मुझे ऐसा लगा।"

   "क्योंकि मै खुद भी उसे भूल चुकी थी। दस साल बाद अचानक से वो मेरे सामने आया, वो भी हमारी शादी से ठीक पहले. . ....! उस वक़्त एहसास हुआ की मै तो कभी भूली ही नही थी उसे! वो एहसास तो अब भी मेरे दिल मे वैसे ही मौजूद था, पहले की तरह!!!" काव्या की आँखे नम हो गयी। 

     कार्तिक का माथा ठनका। उसे अखिल को आये हार्ट अटैक की याद आई, "मतलब पापा को अटैक आया था वो सब........!"

   "........ पापा ने मुझे तरुण के साथ देख लिया था। वो नफरत करते है उससे, उसके पूरे परिवार से।" काव्या ने कार्तिक की बात को पूरा किया। काव्या ने पूरी बात बतानी शुरू की, "मै और तरुण एक ही स्कूल मे थे। तुम्हारे और चित्रा की तरह ही हमारी दोस्ती भी काफी खास थी। एक दूसरे की हेल्प करते करते कब प्यार हो गया पता ही नही चला। मैं एक लोअर मिडल क्लास से थी और वो! उसकी फैमिली हमारे शहर की एक जानी मानी शख्सियत थी। उन्हे हमारा यूँ करीब आना पसंद नही आया अपने हिसाब से हर कोशिश की हमें अलग करने की। आखिर मे जब कुछ और नही सूझा तो मेरी जान तक लेने की कोशिश की और इस वजह मेरा भाई...........!" कहते हुए काव्या फफक का रो पड़ी। 

     "ये तरुण.............वही न जो हमारी शादी ऑर्गनाइज् करने आया था!" कार्तिक ने हैरान होकर पूछा। काव्या ने हाँ मे अपना सिर हिला दिया। "तो अब क्या तुम उसके पास जाना चाहती हो?" कार्तिक ने फिर सवाल किया। 

    "नही.....! अभी तुम ने ही कहा ना, शादी कोई मजाक नही है! दो बार उसका दिल तोड़ चुकी हु, एक बार अनामिका के रूप मे और एक बार काव्या के रूप मे। फिर भी उसने मुझे प्यार किया लेकिन अब वो कहाँ है मुझे नही पता और मुझे जानना भी नही है ना ही मुझे उसके आने की उम्मीद है। मेरा यकीन करो कार्तिक! अगर तुम्हारे दिल मे मेरे लिए प्यार होता तो मै पूरी लाइफ तुम्हारे साथ ऐसे ही बिता देती। कभी कोई शिकायत नही करती, कभी भी नही..! लेकिन मै नही चाहती कार्तिक की तुम भी वही गलती करो जो मैंने की है। इससे पहले की निक्षय उसे तुम से दूर ले जाए, चित्रा को अपने दिल की बात बता दो।" 

      चित्रा का नाम सुन कार्तिक एक पल को हैरान रह गया, आखिर काव्या कैसे जानती है इस बारे मे!!! कार्तिक को यूँ हैरानी से अपनी ओर देखता पाकर काव्या ने कहा, "ऐसे मत देखो मुझे कार्तिक!!! ये दिल की बाते वही जानते जो खुद दिल के हाथों मजबूर होते है। मैंने बताया न, मेरी और तरुण की दोस्ती बिलकुल तुम्हारे और चित्रा के जैसे थी। मैंने पूछा था तुम से लेकिन तुम खुद ही यकीन नही करना चाहते थे। अब देर मत करो और उसे अपने दिल की बात बता दो। देर तो पहले ही हो चुकी है इससे पहले की बहुत ज्यादा देर हो जाए.....!"

    काव्या ने करीब आकर कार्तिक का हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा, "कार्तिक! मेरी किस्मत मे प्यार नही है, लेकिन मै दिल से चाहती हु की तुम्हें तुम्हारा प्यार मिले। हम दोनो मे कोई तो हो जो अपनी लाइफ खुशी से जिए। तुम एक बहुत अच्छे इंसान हो कार्तिक और पूरी तरह से तुम्हारे साथ हू।" कार्तिक को समझ नही आया की वह क्या कहे। काव्या ने जो कुछ कहा था वो सब अगर शादी से पहले हुआ होता तो सब कुछ कितना आसान होता लेकिन अब उतना ही उलझा हुआ था।



       कल जन्माष्टमी का दिन था और आज आधी रात को कान्हा जी का जन्म होने वाला था। अवनि आज सुबह जब उठी तो मन मे जाने क्यों लेकिन एक अजीब सी खुशी थी जिस कारण उसे बिलकुल भी आलस नही आ रहा था। सबसे बड़ी बात तो ये की आज बिना अलार्म लगाए ही सबसे पहले उठी थी। वह उठी और गार्डन मे सारे पौधों को पानी दिया जैसे सारांश देता था। फिर नहाने के लिए चली गयी। 

     अवनि नहाकर आईने के सामने बैठी खुद को अच्छे से निहार रही थी। अपने मन मे उठे खुशी के बुलबुलों को समझने की कोशिश करते हुए अपने बाल सुखाये और कपड़े बदलने गयी तभी सिया ने उसके कमरे मे आकर उसे एक ड्रेस पकड़ा दिया। अवनि कुछ देर तो उस ड्रेस को देखती रही फिर उसे इतना तो समझ मे आगया की ये ड्रेस जरूर सारांश की पसंद है। 

     "मॉम....! अगर ये सारांश की पसंद है तो मुझे नही पहनना। उनकी आदत है, मेरे लिए इतनी महँगी चीज़ें पसंद करते है की पूछो मत। जब नॉर्मल दुकान से अच्छे और सस्ते कपड़े खरीदे जा सकते है क्या जरूरत है बेकार मे पैसे बर्बाद करने की! आप समझाती क्यो नही उन्हें, मेरी तो सुनते ही नही है!!! " अवनि ने अजीब सी शक्ल बना कर कहा तो सिया को हँसी आ गयी। 

     "अब इस मामले मे वो मेरी भी नही सुनेगा, और क्या प्रॉब्लम है जब तुम्हारा पति ही तुम्हारे ऊपर इतना खर्च करने को तैयार है तो तुम्हे तो खुश होना चाहिए। सारी बीवीयों को यही तो अच्छा लगता है।" सिया ने कहा और मुस्कुरा दी। अवनि ने देखा वो एक नीले और गुलाबी के कॉम्बिनेशन का लहंगा था। उसने कुछ देर तक उसे देखा और चेंज करने चली गयी। सिया भी तबतक नीचे चली आई। 

     अवनि जल्दी से तैयार होकर नीचे आई और सिया, जानकी रज्जो सभी को जल्दी करने को कहा। अवनि आज बहुत खुश लग रही थी। उसे खुश देख किसी ने भी जाने से मना नही किया और सभी तैयार होकर मंदिर के लिए निकल गए। राधाकृष्ण मंदिर पहुँचकर सिया ने पूजा की बड़ी सी थाली मंगवाई और पंडित जी से अवनि और सारांश के नाम से विशेष पूजा के लिए कहा। पूजा खत्म होते होते दोपहर का वक़्त भी निकल गया। पूजा खत्म होने के बाद भी किसी का वहाँ से जाने का मन नही था। 

     अवनि और रज्जो वही मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करने निकल पड़े। वहीं घूमते वक़्त अवनि की नज़र एक गोदने वाली पर गयी जो किसी औरत के हाथ पर गोदना बना रही थी। उस औरत को बहुत ज्यादा तकलीफ जो रही थी लेकिन उसकी सास उसे ये सब करने के लिए मजबूर कर रही थी। अवनि को बुरा लगा लेकिन वह उनके मामले मे कुछ बोल नही पाई। उनके जाने के बाद रज्जो ने अवनि से भी टैटू बनवाने के लिए पूछा तो अवनि को समझ नही आया। 

      "अरे भाभी इन लॉ, ये टट्टू न परमानेंट होता है। पीपल अपने उनके नाम लिखवाते है जिनसे बहुत ज्यादा लव करते है या फिर कुछ पीपल शौकिया फ्लावर बनवाते है। ये बहुत ज्यादा पेनफुल होता है लेकिन हमेशा के लिए हमारी बॉडी पर रह जाता है।" रज्जो की बात सुन अवनि का भी दिल किया लेकिन वह रज्जो खा सामने नही करवाना चाहती थी। उसने रज्जो को बहाने से सिया और जानकी पास भेज दिया और खुद गोदना बनवाने पहुँच गयी। उसने अपने गर्दन के पीछे सारांश का पूरा नाम लिखवाया जिससे उसकी आँखे दर्द बर्दास्त करने से लाल पड़ गयी। 


क्रमश: