Chapter 3
मेरे हमसफर 3
Chapter 3कंचन जी और अखिल जी भागते हुए हॉस्पिटल पहुंचे। उस वक्त तक काव्या भी कार्तिक के साथ वहां पहुंच चुकी थी। सारांश अभी भी अंदर अवनि के साथ था। कंचन जी परेशान होकर बोली, "दामाद जी को इस तरह अंदर जाना..... मेरा मतलब माना वह डॉक्टर है लेकिन इस वक्त वहाँ उनकी पत्नी है तो क्या ऐसे में डिलीवरी के टाइम उनका आदमी के साथ होना क्या सही है?" सिया हैरान होकर बोली, "कैसी बात कर रही हैं आप समधन जी! जब बच्चा उन दोनों का है तो इस वक्त उन दोनों का साथ होना सबसे ज्यादा जरूरी है। अपने बच्चे को इस दुनिया में आते हुए देखना उन दोनों का हक है। जिस दर्द से अवनि गुजर रही है उस दर्द को महसूस करने का हक सारांश को भी है। अब यह पहले वाला जमाना नहीं रहा जब हम और आप डॉक्टर नर्स के साथ अकेले होते थे।" सिद्धार्थ बोला, "आप परेशान मत होइए। सारांश खुद ही समझता है उस बात को और यह बात तो आप अच्छे से जानते हैं कि सारांश अपनी बीवी को कितना प्यार करता है। आपको लगता है वह ऐसे में उसे अकेले छोड़ेगा!" कंचन को एहसास हुआ तो वह चुप हो गई। काव्या ने उन्हें आराम से बैठाया तो उन्होंने काव्या से पूछा, "कुहु कहां है?" कार्तिक बोला, "कुहु इस वक्त अपनी दादी के साथ है। हमें सुबह-सुबह इस बारे में पता चला तो हम दोनों यहां आ गए। कुकू सो रही थी इसलिए हमने मां को उसके पास रहने के लिए कहा।" उस वक्त सिद्धार्थ का फोन बजा। सिद्धार्थ बोला, "माँ.....! श्यामा फोन कर रही है।" सिया बोली, "हां उसे यहां के बारे में बता देना और कहना यहां आने की जरूरत नहीं है। जो होगा हम उसे बता देंगे। वह परेशान ना हो और शिवि का ध्यान रखे।" सिद्धार्थ ने कॉल रिसीव किया और दूसरी तरफ चला गया। कार्तिक ने भी अपना फोन निकाला और अपने घर पर कॉल करके उसने सिया को फोन पकड़ा दिया ताकि धानी उससे बात कर सके। सबकी नजरें इस पर ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे पर पर ही थी लेकिन अंदर से कोई खबर नहीं आ रही थी। सिया सिद्धार्थ से बोली, "सिड्! तुम घर जाओ। पता नहीं और कितना वक्त लगे। तुम्हें ऑफिस के लिए भी निकलना होगा। हम लोग हैं यहां पर। कोई भी परेशानी होगी तुम्हें कॉल कर देंगे और फिर सारांश तो अवनि के साथ है ही। कार्तिक....! बेटा तुम भी घर जाओ।" काव्या बोली, "मैं यही रहूंगी।" सिया ने उसे मना नहीं किया। कार्तिक और सिद्धार्थ दोनों ही घर के लिए निकल गए। कंचन हाथ जोड़े अवनि और बच्चे की सलामती की जप कर रही थी और सिया वही बैठी मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी। उनका दिल इस वक्त शरद को बहुत ज्यादा याद कर रहा था। ना उन्हें सारांश का चेहरा देखने को मिला था और अब तो वह खुद भी बाप बनने जा रहा था। सारा घर खुशियों से घर जाएगा बस एक की कमी हमेशा रहेगी। अंदर अवनि बहुत ज्यादा दर्द में थी और सारांश से उसका यह दर्द देखा नहीं जा रहा था। उसने अवनि के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बस थोड़ा सा जोर और लगाओ, थोड़ा सा!" अवनि को जब भी दर्द होता वो पूरी कोशिश करती लेकिन हार मान जाती सारांश अवनि को हौसला दे रहा था तभी उसके कान में डॉक्टर की आवाज पड़ी, "ओ शीट्......." सारांश बुरी तरह डर गया। उसने जाकर देखा तो उसके होश उड़ गए। सिस्टर घबराकर बोली, "बच्चे का गर्दन फस गयी है।" अब तो सारांश को काटो तो खून नहीं। वो बोला, "मैंने कहा था डॉक्टर सिजेरियन के लिए लेकिन आप नहीं मानी।" डॉक्टर ने थोड़ी कोशिश की लेकिन उसका असर नहीं हुआ। तब उन्होंने काँपते हाथों से साइड में थोड़ा सा कट लगाया ताकि बच्चे को कोई नुकसान ना हो और हुआ भी कुछ ऐसा ही। पहले बच्चे के इस दुनिया में आते ही डॉक्टर ने उसके पैर पकड़कर उल्टा किया और सारांश ने उसे अपनी गोद में थाम लिया। अपने बच्चे को अपने सामने देख सारांश के गले से आवाज नहीं निकल रही थी। उसने प्यार से अपने बच्चे के चेहरे को छूकर कहा, "अपनी आंखें खोलो और देखो मुझे।" सारांश अच्छे से जानता था कि वह बच्चा इतनी जल्दी आंखें नहीं खोलेगा। लेकिन उसकी सारी खुशी उस वक्त हवा हो गई जब उस बच्चे ने कोई हलचल नहीं की। किसी ने कहा,"बच्चा रो नहीं रहा!" इस वक्त जो हालात थे ऐसे में किसी को भी होश नहीं था कि पहला बच्चा लड़का है या लड़की। बच्चे के ना रोने की वजह से सभी घबराए हुए थे। सबसे ज्यादा घबराया हुआ था सारांश! अगर उसके बच्चे को कुछ हो गया तब वो कैसे जिएगा और उससे भी बड़ी बात वह अवनी को कैसे बताएगा? कैसे उसे संभालेगा? "नहींन ऐसा नहीं हो सकता!" सारांश के गले से आवाज नहीं निकल पाई। अवनी आधी बेहोशी की हालत में थी। उसे एहसास ही नहीं हुआ कि वहां क्या हो रहा है। सारांश ने उस बच्चे की नब्ज ढूंढी लेकिन उसे मिली नहीं। सारांश को सारे हालात समझते देर ना लगी। उसने अपने बच्चे को सीने से लगाया उसके सर को प्यार से चुम लिया। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह चली और वह वहीं जमीन पर बैठ गया। सिया बाहर बैठी अपनी अंगूठी हाथ में जोर से दबाए हुए थी। उन्होंने मन ही मन कहा, "शरद! मेरा साथ दीजिए। हमारे बच्चे इस वक्त अंदर है। हमारे चारों बच्चे! कुछ गलत मत होने दीजिएगा। इतना कुछ खोया है हमने अपनी जिंदगी में, किसी को खोने की हिम्मत नहीं है। एक औरत के लिए मां बनना सबसे खुशी का पल होता है लेकिन उस पल को जीने के लिए मौत से गुजरना होता है। हमारी बच्ची इस वक्त मौत से लड़ रही है। बस हमारे बच्चों के साथ कुछ गलत ना हो। मुझे आपकी बहुत ज्यादा जरूरत है।" इतने में एक नर्स बाहर निकली। काव्या ने एकदम से आगे बढ़कर उसे पकड़ा तो नर्स बोली, "बधाई हो! एक लड़का एक लड़की हुई है। बाकी बातें तो डॉक्टर ही कहेगी।" सिया एकदम से उठते हुए बोली, "अवनी कैसी है? और दोनों बच्चे!! सेहत कैसी है उन तीनों की?" नर्स बोली, "तीनों की सेहत बिल्कुल अच्छी है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो एक या दो दिन में डॉक्टर खुद ही डिस्चार्ज कर देगी। आप लोगों ने कुछ पुराने कपड़ों का व्यवस्था किया है नाम जानते हैं ना नए कपड़े बच्चों के लिए सही नहीं होते!" कंचन बोली, "हां मैं ले कर आई हूं बच्चों के लिए।" और उन्होंने कपड़ों से भरा एक बैग नर्स को पकड़ा दिया। नर्स बोली, "पहले तो बच्चों को नर्सरी में रखा जाएगा उसके बाद आप लोग उससे मिल सकते हैं।" नर्स तो अपनी बात कह कर चली गई लेकिन सिया के पैर कांपने लगे। कंचन ने देखा तो जल्दी से उन्हें थाम कर कुर्सी पर बैठाया और बोली, "क्या हो गया आपको? सब ठीक है। भगवान ने सबको सही सलामत रखा है। बधाई हो! आप फिर से दादी बन गई।" सिया की आंखों में खुशी के आंसू थे जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने कंचन की तरफ देखा और बोली, "बधाई तो आपको और भाई साहब को भी मिलनी चाहिए। आप दोनों भी तो नाना नानी बन गए।" फिर उन्होंने अपने हाथ में पकड़े अंगूठी की तरफ देखा और मन ही मन बोली, "बधाई हो शरद! हमारे सारांश और अवनि के जीवन में दो नन्हे फूल खिले हैं। आप फिर से दादा बन गए।" अवनि बुरी तरह थक चुकी थी और वह इस वक्त गहरी नींद में सोई थी। सारांश उसके बगल में बैठा हुआ था। डॉक्टर दोनों बच्चों को लेकर सारांश के पास आई और बोली, "डॉक्टर मित्तल! आपके दोनों बच्चों को हम नर्सरी में शिफ्ट कर रहे हैं। एक बार आप इन्हें........" सारांश कहीं खोया हुआ था। डॉक्टर की आवाज सुनकर वह होश में आया और बोला, "जो कुछ भी हुआ उसके बारे में किसी को खबर नहीं होनी चाहिए। किसी को भी नहीं!!" सारांश ने वहां मौजूद हर एक शख्स की तरफ देखा। उसकी आंखों में जो आदेश था, उसे देख सब ने अपनी नजर झुका ली और बाहर की तरफ चले गए। सारांश ने दोनों बच्चों को अपनी गोद में लिया और प्यार से सर पर हाथ फेर कर वापस डॉक्टर को दे दिया। डॉक्टर ने दोनों बच्चे को वापस गोद में लिया और नर्सरी जाने के लिए निकल गई। सारांश ने अवनी के माथे को चूम कर कहा, "एक बहुत बड़ा तूफान टल गया। अच्छा हुआ जो तुम उस वक्त होश में नहीं थी वरना पता नहीं क्या होता। यह सब जैसे कोई बुरा सपना सा था और किसी बुरे सपने की परछाई भी मैं तुम पर नहीं पड़ने दे सकता। घर में सब बहुत खुश होंगे। मैं किसी की खुशी कम नहीं करना चाहता।"