Chapter 117
YHAGK 116
Chapter
116
रूद्र सब को लेकर वहां से निकलने को हुआ तभी विहान बोला, "तुम लोग जाओ मैं घर जाता हूं! नेहा के मम्मी पापा मेरे घर पर है, तूने हीं कहा ना रुद्र! ऐसे में मुझे वहां जाना चाहिए।"
नेहा बोली, "विहान सही कह रहे हैं। मुझे सबसे पहले अपने मम्मी पापा से मिलना है। शरण्या के लिए तुम हो ना! अब मैं बेफिक्र हो सकती हूं। बहुत ख्याल रख लिया मैंने तुम्हारी शरण्या का। अब तुम झेलो अपनी शाकाल को।"
रूद्र मुस्कुरा दिया और बोला, "तुम कुछ भूल नहीं रही?" विहान ने रूद्र को अजीब नजरों से देखा और कहा, "अब यह क्या भूल गई?"
नेहा मुस्कुराई और अपने हाथ में से अंगूठी उतार कर रूद्र को देते हुए कहा, "बहुत समय से इस को संभाल कर रखा था मैंने! जिस तरह तुम्हारी शरण्या को! मैं जानती थी जब वो होश में आएगी तो एक ना एक दिन वो यह अंगूठी मुझसे जरूर मांगेगी।"
लावण्या वहीं खड़ी उस अंगूठी को देख रही थी। उसने पूछा, "ऐसा क्या खास है इस अंगूठी में जो शरण्या के लिए खास है?"
रूद्र बोला, "ये अंगूठी मैंने उसे पहनाई थी, नए साल पर। जब उसे पहली बार प्रपोज किया था। जब तुम्हारे हॉस्पिटल पहली बार आया था तो उसी वक्त ये अंगूठी मैंने तुम्हारे हाथ में देखी थी। इसलिए मैंने पूछा था क्या मुझे ईशान से मिलना चाहिए?" यह कहते हुए रूद्र के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थी वह हर कोई देख सकता था।
विहान ने वो अंगूठी रूद्र के हाथ से ली और उसे देखते हुए बोला, "इस अंगूठी में ऐसा खास क्या है? ये तो नॉर्मल प्रपोज करने वाली अंगूठी की तरह तो बिलकुल भी नही लग रहा!"
रूद्र बोला, "तेरी बहन कौन सी नॉर्मल इंसान है? ये पारिजात के फूल की डिजाइन है जिसेे मैंने खास उसी के लिए बनवाया था। उसे पारिजात बहुत पसन्द है और मुझे वो पहली बार पारिजात के पेड़ के नीचे ही मिली थी। पहली बार मार भी वहीं खाई थी। इसीलिए ये बहुत खास है मेरे लिए भी और उसके लिए भी।
मौली ने उसे आवाज देते हुए कहा, "डैड..........! आप लोग चलिए मैं सिंथिया के साथ आऊंगी।"
रूद्र बोला, "ठीक है! लेकिन परेशान मत करना उसे!"
शिखा की नजर मौली पर थी। वो जानना चाहती थी आखिर सिंथिया कौन है? उसी वक्त मिस्टर सिंधिया आए और मौली को गोद में उठाते हुए कहा, "सर! मैं इन्हें लेकर जा रहा हूं। आप घबराइए मत मैम मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं करती है।"
मौली ने एक हाथ से मिस्टर सिंधिया का चेहरा छू कर कहा, "मेरी सिंथिया को मैं कितना भी परेशान कर लू वो कभी बुरा नहीं मानती, है ना सिंथिया?"
वहां मौजूद लोग हैरान हो गए। अब तक जिसे लड़की समझते रहे वह सिंथिया वास्तव में सिंधिया निकला! विहान बोला, "यह सच में शाकाल है, छोटी शाकाल! बड़ी शाकाल से मैं बाद में मिलूंगा, अभी फिलहाल घर जाना जरूरी है। मैं नेहा और मानसी को लेकर घर जाता हूं।"
बाकी सब ने भी विहान से इस बात पर सहमति जताई। विहान उन दोनों को लेकर वहां से जाने को हुआ उस वक्त उसका फोन बजा। विहान ने हड़बड़ाते हुए फोन उठाया। कुछ देर बात कर उसने रूद्र से कहा, "सॉरी यार! मुझे अर्जेंटली जाना होगा। मेरे दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है। फिलहाल मुझे वहां पहुंचना होगा। उसकी फैमिली नहीं है वहां।"
नेहा बोली, "कोई बात नहीं विहान! तुम जाओ मैं और मानसी चले जाएंगे, मेरी गाड़ी है बाहर!"
लेकिन रूद्र ने रोकते हुए कहा, "इस वक्त तुम लोगों का अकेले जाना सेफ् नहीं होगा। ईशान को अभी-अभी पुलिस लेकर गई है। उसके आदमी आस पास होंगे। हो सकता है वो लोग तुम पर अटैक करने की कोशिश करें। रजत........! तुम इनके साथ जाओ और इन्हें सेफली घर पहुंचा कर आना।"
मिस्टर सिंधिया ने सर झुका कर हां कहा और नेहा और मानसी को लेकर चले गए। विहान भी तेजी से गाड़ी लेकर निकला। उन सब के जाने के बाद बाकी के लोग शरण्या से मिलने के लिए जाने को हुए लेकिन रूद्र वही खड़ा रहा।
रेहान ने देखा तो पूछा, "क्या हुआ रूद्र? कहां खो गया? हमें चलना है ना!"
रूद्र बोला, "नेहा अभी भी विहान से प्यार करती है! उसके दिल में अभी भी विहान के लिए जगह है! भूली नहीं है वह उसे। इतना कुछ होने के बावजूद उसने शरण्या के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर दी किस के लिए? शरण्या के लिए या विहान के लिए?"
अनन्या जी बोली, "यह सारी बातें हम बाद में सोचेंगे रूद्र! फिलहाल मुझे अपने बच्ची से मिलना है। मैं नहीं जानती हूं उससे मैं किस तरह माफी मांगुंगी लेकिन मुझे उसे देखना है। पहले ही बहुत देर हो चुकी हूं, मैं अब और देर नहीं करना चाहती।"
रूद्र को समझ आया कि वह इस वक्त समय बर्बाद नहीं कर सकता। इसलिए वह उन सब को लेकर वहां से निकल गया। पार्टी में आए मेहमान अभी भी वहीं से जिन्हें संभालने के लिए रूद्र ने कुछ लोगों को वहां पर रखा था।
रुद्र की गाड़ी सबसे आगे थी जिसे वह खुद ड्राइव कर रहा था और मौली उसके बगल में बैठी हुई थी। आखिर यह हक सिर्फ मौली का जो था।
शहर के बीचो बीच बने एक बड़े से हॉस्पिटल के आगे रूद्र ने अपनी गाड़ी रोकी और वहां से उतरा। पीछे पीछे एक साथ कई गाड़ियां आकर रुकी तो सिक्योरिटी गार्ड ने सब की गाड़ी की चाबी लेकर उसे पार्किंग में लगा दिया। रूद्र ने सबको अंदर चलने को कहा तो सभी उसके पीछे चल दिए। इतने दिनों में रूद्र एक बार भी शरण्या से मिलने नहीं आया था। वह इस हॉस्पिटल में आने की गलती नहीं कर सकता था जिससे ईशान को जरा सा भी शक हो।
जिस वक्त ईशान शरण्या को दूसरी जगह शिफ्ट करवाने में लगा हुआ था, उस वक्त रूद्र ने बरसो बाद अपनी शरण्या को देखा था। सबकी नजरों से बचाकर उसने खुद को किस तरह संभाला था ये सिर्फ वो ही जानता था।
लिफ्ट आकर वीआईपी फ्लोर के बाहर रुकी लेकिन रूद्र के कदम वहीं पर जैसे जम से गए हो। सभी लोग लिफ्ट से बाहर निकल गए लेकिन रूद्र वही खड़ा रह गया। शिखा जी ने जब देखा तब उन्होंने उसका हाथ पकड़ बाहर की तरफ खींचा लगभग घसीटते हुए लेकर आई। वह रूद्र को बाहर तक लेकर आई। उनके साथ एक वार्ड बॉय भी था जिसे रूद्र ने खास शरण्या के लिए रखा था। उसकी नजर जैसे ही रूद्र पर गई वह समझ गया यह सभी उसके परिवार वाले हैं और आज शरण्या से मिलने आए हैं। उसने मुस्कुराकर सबका वेलकम किया और खुद उन्हें लेकर उस कमरे तक गया जहां शरण्या मौजूद थी।
अनन्या जी तो बेसब्री थी अपनी बेटी को देखने के लिए। वार्ड बॉय जैसे ही कमरे तक आया, अनन्या जी ने बिना कुछ सोचे समझे दरवाजा खोला और अंदर चली गई। एक-एक कर सभी अंदर आए। उनके सामने जो था वह एक अजूबा ही था। वहां खड़े किसी को भी अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। शरण्या हॉस्पिटल के बिस्तर पर बैठी थी और नर्स उसे सूप पिला रही थी। शरण्या भी किसी अच्छे बच्चे की तरह सूप पी रही थी लेकिन एकदम से उसकी नजर दरवाजे से अंदर आए उन लोगों पर ठहर गई।
नर्स ने देखा तो वह शरण्या को छोड़कर खड़ी हो गई। वहाँ मौजूद हर किसी की आंखों में आंसू थे और उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा था। उनके सामने वो इंसान मौजूद था जिसे आज से पहले मरा हुआ मान लिया था और जिसके गम से वह लोग अभी भी नहीं उबर पाए थे।
अनन्या जी आगे बढी और उन्होंने अपने कांपते हाथों से शरण्या का चेहरा छुआ। यह कोई सपना नहीं था, ये वाकई में हकीकत थी। रूद्र ने जो कहा वह कर दिखाया और ले आया उसे, अपने प्यार को वापस सबके बीच। अनन्या जी के जहन में इस वक्त सिर्फ रूद्र का ही नाम घूम रहा था। वह अपनी भावनाओं को संभालना सकी और शरण्या को गले लगा कर रो पड़ी।
मिस्टर रॉय ने अपनी पत्नी को संभाला और फिर अपनी बच्ची के माथे को चूम लिया। किसी से कुछ कहा ही नहीं जा रहा था। भावनाए इतनी ज्यादा थी कि वह लोग कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे। शिखा जी भी बहुत खुश थी। उन्हें यकीन हो गया कि अब उनके बेटे की जिंदगी में खुशियां फिर से लौटेगी।
शरण्या अचानक से इतने सारे लोगों को देखकर घबरा सी गई। उसके चेहरे पर हल्का डर नजर आ रहा था तो नर्स ने कहा, "शरण्या मैम...........! यह सब आपके अपने हैं। आपके मम्मी पापा है, आपकी पूरी फैमिली है।"
शरण्या ने एक नजर नर्स की तरफ देखा और फिर उन सब की तरफ। इतने सालों के बाद होश में आने पर शरण्या अभी तक नहीं संभली थी और किसी को भी नहीं पहचान पा रही थी। अनन्या जी बेचैन हो उठी तो मिस्टर रॉय को रुद्र की कही बात याद आई। उन्होंने अपनी पत्नी को संभालते हुए कहा, "अनु.......! रूद्र ने क्या कहा था याद करो! अगर वह हमें ना पहचान पाए तो घबराना नहीं। धीरे-धीरे उसकी याददाश्त वापस आ जाएगी। हमारे लिए इतना काफी है कि हमारी बच्ची हमारे सामने है, इससे ज्यादा हमें कुछ चाहिए भी नहीं।"
शरण्या को कुछ याद नहीं था। अभी भी उससे अपना होश संभालने में वक्त लग रहा था तो एक-एक कर सबने अपना परिचय देना शुरू किया। शरण्या सब की तरफ् एक कंफ्यूज नजरों से देखती और फिर दरवाजे की तरफ। शरण्या का ध्यान किसी की बातों में था ही नहीं। उसकी नजर बार-बार दरवाजे पर जाती और फिर वापस लौट आती। नर्स ने जब उसकी इस हरकत पर ध्यान दिया तब वह बोली, "क्या हुआ मैम? किसी का इंतजार है आपको? कोई है क्या दरवाजे पर?"
नर्स की बात सुनकर सबका ध्यान शरण्या पर गया जो वाकई में दरवाजे की ओर टकटकी लगाए देख रही थी। जैसे वहां से कोई आने वाला हो। लावण्या समझ ना पाई और बोली, "शरण्या, कोई है क्या दरवाजे पर?"
शिखा जी एकदम से बोल पड़ी, "रूद्र....! दरवाजे पर रूद्र खड़ा है।"
रुद्र का नाम सुनकर अचानक ही जैसे शरण्या को कुछ महसूस हुआ हो। उसके गले से पहली बार आवाज फूटी और उसने धीमी से कहा, "वह कहां है?"
ये उन दोनों का प्यार ही तो था। कितना कुछ होने के बावजूद वो प्यार आज भी जिंदा था जिस पर हल्की सी भी आच तक नहीं आई थी। अपने विश्वास के दम पर रूद्र अपनी शरण्या को वापस ले आया और शरण्या को कुछ याद ना होते हुए भी रूद्र का एहसास अभी उसे याद था। सबके होते हुए भी उसे सिर्फ रूद्र का इंतजार था लेकिन रूद्र बेचारा बाहर खड़ा अंदर जाने की हिम्मत जुटा रहा था। उसके पैर मानो किसी भारी पत्थर की तरह जम से गए हो। जिन्हें चाह कर भी उठा नहीं पा रहा था।
शिखा जी उसे खींचकर यहां तक तो ले आई थी लेकिन इससे आगे जाने की हिम्मत उसे नहीं हो रही थी। बार-बार उसे शरण्या का वह रोना याद आता था जब उसने उससे अपना हाथ छुड़ाकर यह देश छोड़ा था। वह वक्त उसके लिए भी कितना दर्द भरा था यह चाह कर भी वह किसी से कह नहीं पाता था। शरण्या से दूर जाने का फैसला उसके लिए नामुमकिन था लेकिन फिर भी उसने ऐसा किया। उसने वह किया जो वह कभी कर नहीं सकता था। जितना दर्द जितनी तकलीफ शरण्या ने सिर्फ एक उसकी वजह से सही, उसके बाद रूद्र में इतनी भी हिम्मत नहीं बची थी कि वो शरण्या का सामना कर सकें। दिल कह रहा था जाकर अपनी शरण्या को सीने से लगा ले। इतने सालों तक बेचैनी में रहा वह दिल एक बार फिर उस दिल को सुकून मिल जाए। एक बार फिर उसे उसका घर मिल जाए लेकिन बार-बार शरण्या की वो दर्द भरी चीखे उसके कानों में गूंजती थी और उसकी सारी हिम्मत जवाब दे जाती। दुनिया के सामने चाहे कितना भी मजबूत क्यों ना खड़ा हो शरण्या के सामने रूद्र हमेशा ही कमजोर पड़ जाता था और आज भी पूरी तरह से खुद को बेबस महसूस कर रहा था। दरवाजे पर हाथ टिकाए रूद्र वही खड़ा रहा। ना तो अंदर जाने की हिम्मत थी और ना ही यहां से वापस लौटने की। ईशान को उसके किए की सजा देकर वो खुद अब अपनी सजा का इंतजार कर रहा था जो सिर्फ और सिर्फ शरण्या ही उसे दे सकती थी।