Chapter 40
humsafar 40
Chapter
40
काव्या सारांश को लेकर गार्डन एरिया मे चली गयी। वही कार्तिक और अवनि के बीच एक अजीब सी खामोशी फैली थी। दो दोस्त की तरह हमेशा बात करने वालो के बीच ऐसी चुप्पी कभी नही रही। अवनि को समझ नही आ रहा थी की वह कार्तिक से गुस्सा करे या उसका शुक्रिया करे उस सारांश के लिए जिसने उसे अब तक इतने प्यार से रखा! वहीं कार्तिक को समझ नही आ रहा था की वह अवनि से कैसे बात करे, शायद वह अभी तक नाराज है।
कार्तिक का ध्यान अचानक से अवनि के चश्मे पर गया, "तुम चश्मा लगती हो? कबसे? मैंने तो कभी नही देखा तुम्हे!!!" कार्तिक के लिए ये नई बात थी क्योंकि अवनि ने चश्मा लक्ष्य के कारण छोड़ा था। उसकी वजह से अवनि ने खुद को पूरी तरह से बदल लिया था। अपनी पसंद नापसंद सब भूल चुकी थी लेकिन सारांश ने उसे उसकी असली पहचान लौटाई थी, उसका चश्मा जिसे वह कभी छोड़ना नही चाहती थी क्योंकि उसके पापा भी चश्मा लगते है और इस चश्मे मे उसे अपने पापा के जैसी फीलिंग आती थी।
कार्तिक के कहने पर कंचन और अखिल का ध्यान भी अवनि के चेहरे की ओर गया। वे दोनो भी हैरान रह गए क्योंकि पिछले दो सालों से अवनि ने सिर्फ लेंस ही यूज किया था। कंचन कुछ कहती मगर उसे सारांश की बात याद आई तो वह सब समझ गयी। "अब लग रही है तु हमारी अवनि। आखिर सारांश ने हमे हमारी अवनि लौटा ही दी" कहकर कंचन ने उसकी बलाये ली तो अवनि भी मुस्कुरा दी।
उधर काव्या सारांश को बोली, "सारांश!!!! जो कुछ पापा चाहते थे मैंने वही सब किया लेकिन अभी तक उन्होंने मुझे माफ नही किया। प्लीज सारांश!!! पापा को मनाओ की वो मुझे माफ कर दे। मै मानती हु की मैंने उनका दिल दुखाया है और मै शर्मिंदा भी हु लेकिन कब तक वो मुझसे यूँ नाराज रहेंगे!!!"
"लास्ट टाइम कब मिली थी उससे?" सारांश ने सीधा सा सवाल किया। काव्या ने बिना किसी देरी के उसकी आँखों मे आँखे डालकर बोली, "हॉस्पिटल मे!!! उस दिन के बाद से नज़र नही आया वो और ना ही अब मुझे उससे कोई मतलब है। मेरी शादी हो चुकी है और मै अपनी लाइफ मे आगे बढ़ चुकी हु।" काव्या ने पूरी दृढ़ता से कहा तो सारांश को उसकी बात पर यकीन हुआ।
"अवनि जानना चाहती थी की पापा की तबियत कैसे बिगड़ी।" सारांश ने कहा तो काव्या के चेहरे का रंग उड़ गया। उसके और तरुण के बारे मे सिवाय उसके पापा के और कोई नही जानता था, उसकी माँ भी नही। "घबराओ मत! मैंने अवनि से सच नही छुपाया तो ज्यादा कुछ कहा भी नही है और ना ही किसी का नाम लिया है। बेहतर होगा की जो जैसा है वैसा ही रहे वरना सब की जिंदगी उलझकर रह जायेगी और रही बात पापा की तो मैंने पहले भी कोशिश की थी उन्हे समझाने की लेकिन.....तुम्हे माफ करना या ना करना ये पूरी तरह से उनका फैसला है।"
काव्या ने भी हाँ मे सिर हिला दिया और वापस चली आई। सारांश भी उसके पीछे चला आया। कंचन ने सबको खाने पर रुकने को कहा तो सारांश और कार्तिक मान गए और वही से अपना काम देखने लगे। अवनि और काव्या भी माँ का हाथ बटाने किचन मे चली गयी। खाना टेबल पर लगने तक श्रेया और चित्रा भी आ गयी और सबको जॉइन किया।
सारांश और अवनि एक साथ बैठे थे जबकि काव्या और कार्तिक एक साथ बैठे थे। लेकिन चित्रा की सीट ठीक कार्तिक के सामने थी। उसे कार्तिक को काव्या के साथ देख थोड़ा बुरा लगा लेकिन वह कुछ कह नही सकती थी और ना ही अपना सीट बदल सकती थी। खाने की मेज पर दोनो को लवी डबी होता देख चित्रा को और तकलीफ हो रही थी जिसे सारांश ने नोटिस कर लिया। उसने माहौल को हल्का करने के लिए पहल की।
"चित्रा...! अवनि को कुछ ड्रेसेज चाहिए था तो क्या तुम उसको अपने साथ ले जाओगी।" सारांश ने कहा लेकिन उसकी बात सुन कार्तिक को हँसी आ गयी। "जिसको खुद ड्रेसिंग सेंस नही है उसे तु अपनी बीवी के लिए कपड़े सेलेक्ट करने को बोल रहा है सारांश।"
"तु अगर थोड़ी देर चुप रहेगी तो तेरी पगार नही कट जायेगी कम्मो रानी!" चित्रा ने चिढ़कर सबके सामने उसको सुना दिया। कार्तिक का निक नेम सुन कर वहाँ बैठे सभी ठहाके मार कर हँस पड़े। अपने ऊपर सबको हँसता देख कार्तिक झेंप गया और चित्रा को घूर कर देखने लगा। खाना खाने के बाद श्रेया और चित्रा अपने अपने कमरे मे चले गए, सारांश अखिल को अपने साथ ले गया और काव्या और अवनि कंचन के साथ हो ली।
कार्तिक का गुस्सा अभी कम नही हुआ था। चित्रा के ऐसे इंसल्ट करने पर नाजाने क्यों मगर उसे कुछ ज्यादा ही गुस्सा आ रहा था। वह चित्रा के कमरे मे गया और उसका हाथ पकड़कर दीवार की ओर धकेल दिया जिससे उसके पीठ मे चोट लग गयी। कार्तिक को कोई फर्क नही पड़ा उल्टे उसने कस कर चित्रा का दोनो हाथ पकड़ उसे दीवार से चिपका दिया।
चित्रा अचानक से हुए इस हमले के लिए तैयार नही थी वह हैरानी से कार्तिक को देखने लगी। कार्तिक का यूँ करीब आना चित्रा को कमजोर किए जा रहा था। वह खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगी। उसे डर था की जिस प्यार को अब तक सबसे छुपाकर रखा कहीं उसे ही खबर न लग जाए। चित्रा जितना खुद को छुड़ाने की कोशिश करती उतना ही कार्तिक की पकड़ मजबूत हो रही थी।
कार्तिक खुद समझ नही पा रहा था की आखिर चित्रा की बात का उसे इतना बुरा क्यों लग रहा है। ये कोई पहली बार तो नही है जब उसने उसे इस नाम से पुकारा हो। चित्रा खुदको कमजोर पाकर बेबस निगाहों से उसे देखने लगी। उसकी आँखों मे आँसू आगये। उसकी आँखों मे आँसू देख कार्तिक की पकड़ ढीली पड़ गयी। चित्रा ने भी मौके का फायदा उठाकर खुद को छुड़ाया और उसे दूर धकेल कर खुद बाथरूम मे भाग गयी। बाथरूम का दरवाजा बंद करने से पहले वह बोली, "ऐसी हरकत फिर मत करना कार्तिक, वरना.....!" अपनी बात को अधूरा छोड़ दरवाजा बन्द कर लिया।
कार्तिक को भी समझ नही आया की हुआ क्या? वो दोनो बचपन से साथ है लेकिन आज जो हुआ वो क्यों हुआ उसे खुद भी समझ नही आया।
अवनि और काव्या कंचन के साथ थे। कंचन ने अपना एक हार निकाला और अवनि को देकर बोली, "ये एक सामान तो लेजा अपने मायके से। तेरे पास कुछ तो हो जो तेरे माँ का दिया हो। कुछ तो ऐसा हो जिसे देख तु अपने मायके को याद करे। इतनी जल्दबाजी मे तेरी शादी हुई की......देखा था मैंने तुझे सिर से पाव तक....कुछ भी तो ऐसा नही था जो तेरे मायके का हो। सब कुछ तो तेरे ससुराल का ही था। लोग कहते है एक जोड़ी कपड़े मे दुल्हन को विदा कर ले जायेंगे मगर तुझे तो हम वो भी न दे सके।"
कंचन की बात सुन अवनि को आँखे भर आई। उसने कहा, "माँ.... मै नही जानती ये सब कैसे हुआ क्यों हुआ। मै तो ये भी नही जानती की जो हुआ क्या वो पहले से सोचा समझा था या अचानक ही हुआ। लेकिन मै इतना जानती हु माँ की मै उस इंसान को ना बोलकर तकलीफ कैसे दे सकती थी जिसने हम सब के लिए इतना कुछ किया, मेरे पापा की जान बचाई है। मेरे पापा इस वक़्त सही सलामत मेरे सामने है। उनसे सवाल करने की कुछ भी पूछने की मेरी हिम्मत नही हुई।" अवनि ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा।
"तु खुश तो है न? " कंचन ने सवाल किया।
"आपको मै कहीं से भी दुखी लग रही हु क्या माँ। आप ही तो कहती थी माँ की सारांश जिस भी लड़की को पसंद करेंगे वो बहुत नसीबोवाली होगी। वो मुझे बहुत प्यार करते है। मेरी छोटी छोटी चीजो का ख्याल रखते है।" अवनि ने कहा।
"एक बार मुझसे भी तो पूछ लो माँ....... शायद मै भी आप ही की बेटी हु, और शायद दो दिन पहले मेरी भी शादी हुई थी।" अपने पिता के बेरुखी से आहत काव्या ने अपनी माँ पर तंज कसा। कंचन और अवनि को समझ नही आया की वे दोनो कैसे रिएक्ट करे। तभी दरवाजे पर सारांश अखिल को उनके व्हील चेयर पर ले आया। "तु खुश तो है न काव्या?" अखिल ने काव्या से पूछा।
काव्या अपने पापा की आँखों मे अपने अपनापन देख दौड़कर उनके गले लग गयी और बोली, "हाँ पापा! मै बहुत खुश हु! मै बहुत बहुत बहुत खुश हु।" काव्या की आँखे आँसुओ से भरी थी। अखिल ने उसका सिर प्यार से सहलाते हुए उसे चुप कराया।
"बच्चे तो अक्सर गलतिया करते ही है, कभी कभी बड़ों से भी गलती हो जाती है।" अखिल ने कहा।
"लेकिन मेरे पापा कभी गलती नही करते।" काव्या ने कहा और अखिल का हाथ चूम लिया।
अवनि और कंचन को कुछ समझ नही आया। काव्या ने एक नज़र सारांश को देखा और आँखों आँखों मे थैंक्स कहा, बदले मे सारांश भी मुस्कुरा दिया। कार्तिक बेचैन सा वहाँ सबके बीच पहुँचा और जाने की इज़ाज़त मांगा। ऑफिस के काम का बहाना बना कर कार्तिक वहाँ से निकलना चाहता था ताकि वह चित्रा से दूर जा सके।
कार्तिक के निकलने के बाद सारांश भी उसके पीछे जाना चाहता था लेकिन कंचन ने रोक लिया। "सारांश बेटा!!! अब हमें भी यहाँ से निकलना चाहिए। आखिर कब तक हम यहाँ रुकेंगे। आखिर है तो ये बेटी का ससुराल ही न!!!" अखिल ने कहा।
"अगर आप लोग जाना चाहते है तो मुझसे मत पूछिये, जो इस घर की मालकिन है उसी से पूछे तो बेहतर होगा।" सारांश ने कहा।
"लेकिन समधन जी का नम्बर मेरे पास नही है। आप ही हमारी बात करा दो। हम अभी इज़ाज़त ले लेते है।" कंचन ने कहा।
"उनसे तो मै बात करा दूंगा लेकिन आप लोगो को उनसे कि बात की पर्मिशन लेनी है। घर की मालकिन तो ये रही आप के सामने।" कहकर सारांश ने अवनि की ओर इशारा कर दिया। सब लोग अवनि को ही देखने लगे और अवनि हैरानी से सारांश को देखने लगी। उसे कुछ समझ नही आया तो सारांश ने कहा, "ये घर आप की बेटी का है। ये चाहे तो मुझे भी घर से निकाल सकती है।"
"आप ने ये घर मेरे नाम कर दिया? मॉम को पता भी है ये बात?" अवनि ने पूछा।
"गलत......!" पीछे से चित्रा की आवाज़ आई। "तुम्हारे पति ने ये घर तुम्हारे नाम नही किया बल्कि....... ये घर तो हमेशा से ही तुम्हारे नाम पर था। इस प्लॉट को खरीदने से लेकर यहाँ कंस्ट्रकसन का काम तक, सब कुछ तुम्हारे नाम से हुआ है, वो भी दो साल पहले।" चित्रा ने अवनि और सब के सामने सारांश की पोल खोलते हुए कहा। दो साल पहले की बात सुन अवनि ने हैरानी से सारांश को देखा जो चित्रा को चुप रहने का इशारा कर रहा था।
क्रमश: