Chapter 35
humsafar 35
Chapter
35
सारांश और अवनि की शादी को अब कानूनी मंजूरी भी मिल चुकी थी। शादी के बाद ये पहला मौका था जब सारांश और अवनि एक ही कमरे मे एक दूसरे के इतने करीब थे। जब सारांश के होंठो ने अवनि के माथे को छुआ तो उस एहसास मे उसका प्यार, उसकी परवाह सब अवनि महसूस कर पा रही थी। उसे लगा मानो वक़्त वही थम सा गया हो। यही हाल सारांश का भी था। अवनि की नज़दीकिया उसे मदहोश किये जा रही थी। उन दोनो को ही वक़्त का होश नही रहा।
सारांश के फोन पर सिया का कॉल आया तो वह अवनि को बेमन से छोड़कर जाने लगा। अवनि के दिमाग मे कई सारे सवाल उमड़ घुमड रहे थे जिनका जवाब वो सारांश से चाहती थी। वह सारांश के पीछे दो कदम चली ही थी की सारांश ने पलटकर उसे देखा और कहा, "मुझे माफ कर देना अवनि! ये सब इतनी जल्दी मे हुआ की मै कुछ कर ही नही पाया। मेरा यकीन मानो! मै हमारे इस दिन को बहुत ही खास बनाना चाहता था। मै यो बस इस शादी के पूरे होने का इंतज़ार कर रहा था लेकिन कार्तिक ऐसा कुछ कर जायेगा.....! मैंने बिलकुल भी एक्स्पेक्ट् नही किया था। मै जानता हु इस वक़्त आप के दिल मे हज़ारों सवाल होंगे जिनका जवाब आप को मुझ से चाहिए होगा। आपको आपके हर सवाल का जवाब मिलेगा क्योंकि आपको पूरा हक है। लेकिन इस वक़्त आप आराम करो बाकी की बातें हम हमारे घर जाकर करेंगे।"
सारांश की बातें सुन अवनि ने भी हाँ मे सर हिला दिया तो सारांश वहाँ से चला गया। अवनि खुदको ही समझ नही पा रही थी रह रह कर उसे कभी श्रेया की बाते याद आती तो कभी नानु की!. और सारांश..... उसका साथ होना इतना सुकून भरा क्यों होता है,ये एहसास अवनि को बेचैन कर देता है।
"क्या अब तब मै जिस एहसास को जीती रही बस एक झूठ था!!! अगर लक्ष्य के लिए मेरी भावनाएं प्यार थी तो फिर वो क्या है जो मै सारांश के लिए महसूस कर रही हु क्या श्रेया सही थी!!!।" अवनि बेचैन हो उठी।
सिया धानी के साथ काव्या के कमरे मे गयी, उसके पीछे कुछ लड़कियाँ कपड़े गहने और बाकी समान का थाल लेकर खड़ी थी। सिया ने एक नज़र काव्या को देखा और प्यार से उसका माथा चूमकर उसे तैयार होने को बोली और धानी को वही छोड़ अवनि के कमरे की ओर चली गयी। अवनि ने मुड़कर देखा तो सामने सिया को खड़ा पाया। सिया ने उसके लिए लाये कपड़े और गहने वही बिस्तर पर रखे और कपड़े बदलने को कहा।
अवनि कपड़े लेकर बाथरूम मे गयी और नहा कर वापस आई। लाल रंग की साडी मे नई नवेली दुल्हन का रूप और भी ज्यादा निखर कर आता है। अवनि के साथ भी ऐसा ही कुछ था। कुछ सोच सिया की आँखों मे आँसू आ गये लेकिन उन्हे झट से छुपा लिया। अवनि को तैयार होने के लिए बैठाया गया और स्टाइलिस्ट ने उसे विदाई के लिए तैयार करना शुरू किया।
जब अवनि पूरी तरह से तैयार हो गयी तब सिया ने सबसे पहले उसकी नज़र उतारा, फिर कान के पीछे काला टिका लगा दिया। अवनि ने हिचकते हुए लहंगे का पैकेट सिया को वापस करते हुए बोली, "मैम, ये मै नही संभाल सकती, इसे आप वापस रख लीजिए!"
"अवनि.....!" सिया ने उसे गुस्से मे घूरा जिससे अवनि डर गयी और आँखे नीची कर ली। सिया ने उसका चेहरा उपर उठाते हुए कहा, " पहली बात तो ये की अब मै तुम्हारी मैम नही तुम्हारी सास हु। मैंने तुम्हे पहले ही अपनी बहू मान लिया था इसीलिए मैंने तुम्हारे लिए लिया था। लेकिन अब मै तुम्हे अपनी बेटी बनाकर ले जाना चाहती हु। अगर तुम भी मुझे माँ समझती हो तो चुपचाप इसे रखलो। अगर नही..... तो मै भी तुम्हे सास बनकर दिखाऊंगी।"कहकर सिया मुस्कुरा दी।
"लेकिन ये बहुत महंगा है, मै इसे......." अवनि ने कहाना चाहा मगर सिया ने उसकी बात बीच मे काटते हुए कहा, "तो मै इसका क्या करूँगी? अब मेरी उम्र भीनही रही ये सब पहनने की। अगर तुम्हे ये महंगा लग रहा है तो अपने पति को बोलो, उसी ने खरीदा था तुम्हारे लिए। इसीलिए मुझे इन सब मामले से दूर ही रखो।" सिया के मुह से पति शब्द सुन अवनि का दिल एक पल को धड़कना भूल गया।
कंचन काव्या के कमरे मे गयी और फिर अवनि को सिर से पाँव तक निहारकर दोनो को विदाई के लिए नीचे ले आई। दोनो ही बहने एक लगभग एक जैसी लग रही थी। अपना अपना गठबंधन संभाले दोनो नीचे उतरी तो उन्हे देख सारांश और कार्तिक भी उनके पास जाकर उन्हे थाम लिया और साथ चलने लगे। अचानक ही सारांश को चित्रा का ख्याल आया तो उसने चारों ओर देखा मगर वह कहीं दिखाई नही दी।
"माँ...! चित्रा कहीं नज़र नही आ रही!!!" सारांश ने पूछा। चित्रा का नाम सुन कार्तिक ने ऐसे रिएक्ट किया मानो उसने कुछ सुना ही नही लेकिन काव्या पर उसकी पकड़ और मजबूत हो गयी।
"अरे जीजू!!! वो आराम से सो रही है। कल चढ़ गयी थी ज्यादा तो अभी तक पूरी तरह से उतरी नही है। " श्रेया ने कहा।
श्रेया के मुह से अपने लिए जीजू सुन सारांश को थोड़ा अजीब लगा लेकिन जल्दी ही नॉर्मल होकर कहा, "हम्म्....! लगता है सुलह हो गयी है दोनो बिल्लियों मे!" यह सुन श्रेया झेप गयी और बोली, "अब क्या करे! दो बिल्लियों के झगड़े मे फायदा हमेशा......." कहते कहते श्रेया रुक गयी और अवनि को देखने लगी। आखिर वो अवनि को बंदर कैसे बुला सकती थी वो भी उसके पति के सामने। अवनि ने श्रेया को देखा तो उसका हाथ पकड़ लिया। श्रेया भी उसे छेड़ते हुए बोली, "तूने गलत हाथ पकड़ा है ये हाथ मेरा है तेरे उनका नही।" सब उसकी बात पर हँस दिये। श्रेया अवनि के गले लगी और कान मे धीरे से बोली, "अपना पास्ट तु यही पर छोड़ जा अवनि और उसका हाथ थाम कर आगे बढ़ जो तेरा प्रेजेंट है और फ्यूचर भी। इस चौखट के आगे तु कभी पीछे मुड़ कर नही देखेगी वादा कर।" कहकर श्रेया अवनि से अलग हुई तो अवनि ने भी हाँ मे धीरे से अपना सर हिला दिया।
पूरे रीति रिवाज के साथ दोनो बहनो की विदाई हुई। उन्हे गाड़ी मे बैठा कर कंचन और अखिल बस दूर से उन्हे देख रहे थे। अपनी बेटियो की खुशहाल जीवन के बारे मे सोच उन्हे रोना सही नही लगा लेकिन बेटियों की विदाई वक़्त ही कुछ ऐसा होता है की नाचाहते हुए भी आँखे नम हो जाती है। विशाल ने भाई का फर्ज़ निभाया और गाड़ी को हल्का सा धक्का देकर उन्हे विदा किया। अब वहाँ सिर्फ लड़कीवाले ही रह गए थे और साथ मे चित्रा भी। सब के जाने के बाद श्रेया उपर कमरे मे गयी और दरवाजा बंद किया।
"चले गए सब?" चित्रा की आवाज़ गूंजी। श्रेया ने मुड़ कर देखा तो चित्रा खिड़की के बाहर सूनी आँखो से आसमान को निहार रही थी। श्रेया को बहुत बुरा लगा उसे ऐसे देखकर। अगर देखा जाए तो दोनो ही इस वक़्त एक ही नाव मे सवार थे। दोनो के दिल मे एक जैसा ही दर्द था, अपने प्यार को किसी और का होते देखने का दर्द। और कहते है न, दर्द का रिश्ता सबसे गहरा होता है। इस दर्द ने उनके बीच की सारी कड़वाहट को मिटा कर एक दूसरे का हमदर्द बना दिया था।
शादी के मंडप से निकल कर चित्रा अपना मन हल्का करने छत पर चली गयी जहाँ श्रेया पहले से ही मुह फुलाए बैठी थी। चित्रा ने जब श्रेया को देखा तो उसकी ओर बढ़ी और पास मे बैठ गयी। "तुम्हे पता था की मै यहाँ हु?" श्रेया चित्रा के हाथ मे वाइन की बोतल और दो ग्लास देखकर बोली।
"नही....! लेकिन मुझे अकेले पीना अच्छा नही लगता इसीलिए मै अपने साथ दो ग्लासेज रखती हु। अगर कोई मिल गया तो ठीक वरना दोनो से ही पी कर खुद को कंपनी देती हु।" चित्रा की बात सुन श्रेया को हँसी आ गयी और उसने भी एक ग्लास थाम लिया फिर दोनो ने साथ मे पिया। श्रेया ने कम लेकिन चित्रा तो पूरी तरह डूब जाना चाहती थी। श्रेया ने सारांश को लेकर अपनी फीलिंग्स बताई तो चित्रा मे उसे सारांश की अवनि के लिए गहरे फीलिंग्स के बारे मे बताया तब जाकर श्रेया को पता चला सारांश का कबसे अवनि को चाहता है। लेकिन सबसे बाद शॉक लगा उसे चित्रा के बारे मे जानकर। श्रेया को बिलकुल भी उम्मीद नही थी की चित्रा के मन मे कार्तिक के लिए फीलिंग्स हो सकती है। उसे तो हमेशा लगता था की वह भी सारांश को ही पसंद करती है।
"कार्तिक के लिए मेरी फीलिंग्स कब बदली ये मुझे भी नही पता। बचपन से ही उससे लड़ती झगड़ती, प्यार कब हुआ नही पता। लेकिन जब पता चला तब तक देर हो चुकी थी। कार्तिक काव्या के करीब आ चुका था। यही रीजन था की मैंने उसकी सगाई को स्किप कर दिया। मै जानती हु मैंने कैसे संभाला था खुद को। मुझे लगा था मैने खुद को तैयार कर लिया है उसको किसी और का होते देखने के लिए। यहाँ आई भी तो मैंने पूरी कोशिश की थी........मगर नही होता यार। पिछले तीन सालों से सारांश अवनि के पीछे पड़ा था, ये बात सिर्फ मैं जानती हु। उसे अवनि के लिए वो पेरिडोट् चाहिए था जिसे पाने के बहाने मै सारांश के करीब और कार्तिक से दूर रहना चाहती थी।"
कहते कहते चित्रा रुकी और वही लेट कर आसमान के सितारों को निहारने लगी फिर हँसते हुए बोली, "मै खुश हु..... मै बहुत खुश हु, क्योंकि आज मेरा कार्तिक खुश है..... किसी और के साथ। दो प्यार करने वालो को मंजिल मिल जाए उससे अच्छा और क्या हो सकता है। जब दो दिल एक दूसरे को चाहते है तो उन्हे ही साथ होना चाहिए।उसे उसकी मंजिल मिल गयी, आज मै बहुत खुश हु।" चित्रा की आँखो से आँसू बह चले।
क्रमश: