Chapter 52
humsafar 52
Chapter
52
सारांश ने अवनि के कहे अनुसार पूजा की सारी सामग्री ली और साथ मे एक और खूबसूरत सी चुन्नी उठा ली। वहीं अवनि अपने अतीत को अपने मुट्ठी मे लिए पुरानी यादों को याद करने लगी।
"लक्ष्य!...... लक्ष्य प्लीज........ सुनो तो...... एक बार मेरी बात सुन लो, सिर्फ एक बार।" अवनि ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा।
"तुम अच्छे से जानती हो अवनि, मुझे इन मंदिर या भगवान मे कोई यकीन नही है फिर भी मै तुम्हारे लिए यहाँ आया। अब तुम चाहती हो की मै ये सब बकवास चीज़े करू तो ये मुझ से नही होगा। ये धागे बांधने से क्या होगा? ये जो इतने लोगो ने बांधे है क्या उन की मन्नत पूरी हो गयी है जो मै भी इन सब मे सामिल हो जाऊ। मुझे नही बंधना कोई धागा वागा।" कहकर लक्ष्य अवनि से अपना हाथ छुड़ाकर मंदिर की सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
अवनि उसके पीछे भागी और फिर से उसका बाजू पकड़ उसे रोक लिया। "लक्ष्य.......! मैने अब तक तुम्हारी हर बात मानी है। अपनी पसंद नापसंद सब तुम्हारे ऊपर छोड़ा है। वो सब किया है जो तुम्हे पसंद हो फिर चाहें वो मुझे पसंद हो या ना हो। प्लीज लक्ष्य....! एक बार सिर्फ एक बार मेरे लिए कुछ ऐसा कर दो जो मुझे अच्छा लगता हो। सिर्फ एक बार मेरी खुशी के लिए प्लीज....!" अवनि ने लक्ष्य को मनाने की हर मुमकिन कोशिश की।
"अच्छा ठीक है.....! लेकिन ये पहली और आखिरी बार मै ऐसा कुछ कर रहा हु। इसके बाद मै कुछ नही सुनूँगा।" लक्ष्य ने कहा तो अवनि खुश हो गयी और उसकी ओर मौली बढ़ा दिया। लेकिन लक्ष्य ने अवनि का दिया मौली बांधने की बजाय अपने हाथ से नीला धागा निकाला और वही बांध दिया।
अवनि अपने ख्यालों के दुनिया से बाहर आई और उस धागे को एक झटके मे ही सामने जलते हवन कुण्ड मे डाल दिया। "तुम वो नही हो....! ना ही तुम्हारा प्यार प्यार कहलाने के लायक है। प्यार का मतलब मैंने मेरे सारांश से जाना है। उसे पाकर मैंने प्यार को महसूस किया है। तुम्हारा प्यार मतलबी था लेकिन मेरे सारांश ने मुझे बताया की प्यार मतलबी नही होता है। प्यार हमें आज़ादी देता है और तुमने हमेशा से मेरी आज़ादी छीनी है। मेरा सारांश मेरी हर चॉइस को इंपोर्टेंस देता है, तुम्हारी तरह अपनी पसंद मेरे उपर थोपता नही है। मेरी हर पसंद नापसंद को तुम्हारे लिए बदल दिया, खुद को बदल दिया लेकिन मेरा सारांश मुझे वैसे ही प्यार करता है जैसी मैं हु। उसने मुझे बदलने की कोशिश नही की। तुम्हारे एहसान को प्यार समझ बैठी लेकिन अब नही.......! अब मेरे लिए तुम्हारा कोई वजूद नही, कोई अस्तित्व नही। इस धागे की तरह ही मै उस हर वादे को जला कर राख करती हु जो सिर्फ मैने निभाए है। उस रिश्ते को जलाती हु जो सिर्फ मैने अपने दिल से लगाए है। आज के बाद अगर मै मर भी जाऊ तब भी मै सिर्फ अपने सारांश की ही रहूँगी, सिर्फ अपने पति की.....! और ये मेरा वादा है खुद से!"
अवनि अब अपना अतीत जला कर राख कर चुकी थी ताकि अपने भविष्य की ओर कदम बढ़ा सके और अपने मन को स्थिर करने करने के लिए मंदिर के अंदर जाने लगी तो उसे सारांश का ख्याल आया और वह रुक गयी। सारांश सारी सामग्री लेकर ऊपर आया और सामने अवनि को उसका इंतज़ार करता देख बोला, "खड़ी क्यों हो इतनी देर से? बैठ जाना था न!"
अवनि को उसका इस तरह हर छोटी छोटी बातों का ख्याल रखना हमेशा से ही अच्छा लगता था। उसने भी जाकर सारांश की बाँह पकड़ ली और उसे मंदिर के भीतर ले गयी। वहाँ पंडित जी को पूजा की सामग्री देकर अवनि ने विशेष पूजा के लिए कहा। पंडित जी ने भी पूजा संपन्न कर उन्हे आरती दी और हमेशा साथ रहने के आशीर्वाद दिया। दोनों के हाथ मे मौली बाँध पंडित जी ने एक मौली उन्हें पेड़ पर बांधने को दिया तो सारांश ने बड़ी श्रद्धा से उस मौली को थाम लिया।
सारांश अवनि को लेकर उस पेड़ के पास पहुँचा जहाँ मौली बांधनी थी। उसने धागा अवनि के हाथ मे पकड़ाया और उसका हाथ पकड़ पेड़ के चारों ओर अवनि के साथ ही फेरे लेते हुए वो मौली उस पेड़ पर बाँध दिया। अवनि की नज़र बस सारांश को ही देखे जा रही थी। वह तो बस अपना सुध बुध खोकर सारांश के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही थी।
तू रूह है तो मैं काया बनू
ता-उम्र मैं तेरा साया बनू
कह दे तो बन जाऊं बैराग मैं
कह दे तो मैं तेरी माया बनू
तू साज़ है, मैं रागिनी ! तू रात है, मैं चांदनी
मेरे दिल में जगह ख़ुदा की खाली थी
देखा वहाँ पे आज तेरा चेहरा है
"आप मानते है इन सबको? मेरा मतलब आप एक डॉक्टर है और एक मेडिकल पर्सन कभी इन सब को नही मानता। फिर भी आप ये सब.....!" अवनि ने पूछा।
"अवनि! इस दुनिया मे ऐसी बहुत सी चीज़े है जो इंसानों के बस की बाहर के है। मेडिकल साइंस मे जो हमें समझ नही आता न, उसे हम नकार देते है। मै ये नही कभी नही कहूँगा की भगवान नही है। भगवान है!!!! और ये बात हर डॉक्टर मानता भी है और जानता है। किसी मरीज को जब कोई दवा असर नही करती उसे अचानक से ठीक होते देखा जा सकता है और तो और कुछ ऐसे भी केस इस दुनिया मे है जहाँ लोग मरने के कुछ देर बाद भी जिंदा हुए है। इस दुनिया मे अगर प्यार है तो नफरत भी है, अच्छाई है तो बुराई भी है, उजाला है तो अंधेरा भी है, खुशियाँ है तो गम भी है और भगवान है तो शैतान भी है। इसीलिए हम किसी के अस्तित्व पर सवाल नही उठा सकते।" सारांश ने अवनि को समझाते हुए कहा।
दोनों वापस मंदिर मे आये और पंडित जी से प्रसाद लिया और लाल रंग की एक चुन्नी जो अवनि के लिए खरीदी थी, अपने हाथों से उसके सिर पर डाल दी। अवनि के लिए सारांश की हरकत प्यार ही लगता था। दोनों वापस नीचे उतर कर गाड़ी मे बैठे। गाड़ी स्टार्ट करने से पहले सारांश ने एक बार अवनि को देखकर कहा, "तुम हमेशा मुझे यूँ घूरती क्यों हो, जैसे कोई बिल्ली मलाई की ओर देखती है। मिलता क्या है तुम्हे?"
"अपने मुझे बिल्ली कहा?" अवनि गुस्सा होकर बोली।
"नही...! मैंने खुद को मलाई कहा।" सारांश ने गंभीर होकर कहा।
अवनि को हँसी आ गयी और फिर थोड़ा शांत होकर बोली, "आप को कैसे बताऊ की मुझे क्या मिलता है आप को यूँ देख कर!!! सारांश! शायद मै आपको कभी बता भी नही पाऊँगी की आपका साथ मुझे कितना अच्छा लगता है, कितना सुकून भरा होता है वो पल जब मै आपको देखती हु। मै नही जानती की प्यार क्या होता है, भगवान को नही देखा लेकिन मै आपको जानती हु, आपको देखा है। आप........! आप पहले क्यों नही आये मेरी लाइफ मे, इतनी देर क्यों की?" कहते हुए अवनि भावुक हो गयी और सारांश के गले से जा लगी।
सारांश को समझ नही आया की वह क्या जवाब दे। कुछ सोच उसने कहा, "नानु की बात याद है!!! किस्मत मे जो जब जिसे मिलना लिखा होता है वो उसी वक़्त मिलता है। हमारा मिलना भी ऐसे ही सितारों की वजह से रुका था और देखो जब सितारों ने अपनी चाल चली तो हम दोनों ही मिले। अब इसमें मै क्या ही कर सकता था!!"
लेकिन सारांश की बात अवनि के समझ मे नही आ रही थी। सारांश पर उसकी पकड़ और मजबूत हो गयी। उसे पता भी नही चला कब उसके हाथ सारांश की गर्दन और बालों से धीरे धीरे खेलने लगे। सारांश को बेचैनी सी होने लगी। उसने कहा, "अवनि...! हम लोग मंदिर के बाहर है, वो भी बीच सड़क पर।" सारांश उन लम्हों मे खो जाना था लेकिन आसपास का माहौल देख उसे अवनि को रोकना पड़ा।
क्रमश: