Chapter 7

Chapter 7

Episode 6

Chapter

"वह तो पता नहीं बाबू साहब.. आने के बाद जब अनीता बिटिया ने हमसे कई बार बात की थी.. तब पूछा था?? तब वही बताती थी कि आश्रम गए थे। अधिकतर उनके सास ससुर के साथ ही जाती थी।  बस अभी पिछले महीने ही अकेले गई थी।" इस गार्ड से बात करके रुद्र को काफी सारी नई नई जानकारियां मिल रही थी.. जिन्हें सुनकर केस एक अलग ही दिशा में जाता दिखाई दे रहा था।


"अकेले क्यों??" रूद्र ने पूछा। 


 "क्या बताएं साहब!! बड़े लोग बड़ी बातें..! हमने पूछा था तो उसने बिना कुछ बताए बात टाल दी। ना जाने ऐसी क्या बात रही थी..??" चौकीदार ने हताशा से कहा।


 रूद्र ने कहा, "एक बात पूछूं..?? और कुछ ऐसा याद आ रहा हो.. जो लगे कि हमें बता सको..??" रूद्र ने पूछा।


"नहीं साहब..!! अभी तो कुछ याद नहीं आ रहा।" गार्ड ने कहा। 


 "ठीक है..!! यह मेरा कार्ड रख लो.. जैसे ही कुछ याद आता है.. या कुछ और भी पता चलता है वैसे ही मुझे खबर कर देना।" रूद्र ने इस गार्ड को भी अपना कार्ड देते हुए कहा।


"क्यों..?? क्या हो गया साहब..??" गार्ड ने असमंजस में रुद्र की तरफ देखते हुए पूछा।


 "दीप कह रहा था कि उसकी पत्नी अनीता अपने प्रेमी के साथ भाग गई??" रुद्र ने इस बार उस गार्ड को भड़काने के उद्देश्य से कहा।


 "राम!! राम!! राम!! कैसी बात कर रहे हो साहब..? अनीता बिटिया जैसी औरत के बारे में ऐसा सोचना भी पाप है??" गार्ड ने थोड़ा आश्चर्यपूर्ण ग़ुस्से से कहा। 


"मैं नहीं सोच रहा काका..! यह बात दीप और उसके घर वाले बोल रहे हैं!  और तो और वह तो सभी को यह भी कह रहे हैं की अनीता उनके घर से उनका जेवर और बहुत सारा पैसा लेकर भागी है।" रूद्र  इस वक्त उस गार्ड को भड़का कर बहुत कुछ उगलवाने के मूड में नजर आ रहा था। 


 रुद्र ने आगे दुखी होते हुए कहा,  "अगर अनीता नहीं मिलती है या उसका कोई पता नहीं चलता है तो सभी को हार कर यह बात माननी ही पड़ेगी..!! कि हो ना हो अनीता सच में किसी के साथ उनका रुपया पैसा और जेवर लेकर भाग गई होगी।"


 "झूठ बोल रहा है साहब!! अनीता बिटिया बहुत ही ज्यादा स्वाभिमानी लड़की थी.. जब वह यहां से लंगड़ाते हुए जाती थी.. तो कई बार हमने और आसपास के लोगों ने उनसे गाड़ी से मंदिर तक छोड़ देने की बात कही थी। पर उस लड़की ने कभी भी किसी की भी मदद लेना ठीक नहीं समझा। बेचारी से चला नहीं जाता था तब भी तकलीफ में होते हुए भी किसी की मदद नहीं ली।" उस गार्ड में अनीता की तरफदारी करते हुए कहा।

 

 "ठीक है.. फिलहाल तो मैं चलता हूं..

और आपको कुछ भी पता चले तो जरूर बताना।" रूद्र ने कहा।


"जरूर बताएंगे साहब..! हम भी तो यही चाहते हैं कि अनीता बिटिया के माथे से यह कलंक जल्द से जल्द मिट जाए।" गार्ड ने कहा।

           


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 उस गार्ड से बात करके रूद्र अपनी गाड़ी लेकर मंदिर की तरफ चला गया। थोड़ी दूर आगे जाने पर एक छोटा सा मंदिर बना हुआ था।  मंदिर के चारों तरफ बाउंड्री वॉल बनी हुई थी और उसपर एक लोहे का गेट लगा हुआ था। रूद्र ने वही पास ही अपनी गाड़ी पार्क की और मंदिर के अंदर चला गया। 


 उस गेट के अंदर जाने पर दीवार के किनारे किनारे फूलों के पौधे लगे हुए थे।  बीच में घास बिछी हुई थी.. कुछ पत्थर की बेंच बनी हुई थी.. जहां पर कुछ बुजुर्ग लोग बैठे हुए थे।


 मंदिर जमीन से कुछ फुट ऊंचा बना हुआ था और मंदिर के अंदर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। मंदिर के चारों तरफ पिल्लरों पर मंदिर की छत टिकी हुई थी।


 सामने जगत् माता महाकाली मां की एक भव्य प्रतिमा रखी हुई थी। मां के चरणों के नीचे भोलेनाथ लेटे हुए थे और एक हाथ में खड्ग, एक हाथ में खप्पर,  एक हाथ में दानव का मुंड और एक हाथ मां का वर मुद्रा में था।  मां की मूर्ति ऐसी लग रही थी.. जैसे मां अभी ही दुष्टों के संहार के लिए मंदिर से बाहर निकलेंगे।  इस समय मां के इसी स्वरूप की संसार को आवश्यकता भी थी। इतने ज्यादा पाप, दुराचार और अत्याचार स्त्रियों पर होने लगे थे कि मां को आना ही पड़ता।


 रुद्र ने अपने जूते मंदिर के बाहर उतारे और अंदर जाकर मां को प्रणाम किया। सामने पंडित जी मां की सेवा और उनकी अर्चना में लगे हुए थे। 


 रूद्र ने मां के दर्शनों के बाद वही एक तरफ बैठकर पंडित जी का थोड़ी देर इंतजार किया। पंडित जी तब तक उसे देख कर बाहर आए और रुद्र से पूछा, "बेटा तुम इस समय यहां कैसे बैठे हो.. कोई परेशानी हो तो बताओ..? मां अवश्य तुम्हारे संकट दूर करेंगीं।"


"संकट ही है बाबा..!! एक बेचारी लड़की के सर पर झूठा चरित्रहीनता का कलंक लगा है। और मैं हूँ कि उसके लिए कुछ कर भी नहीं पा रहा।" रुद्र ने पुजारी को बताया।


ऐसा नहीं था कि अनीता के बारे में पूछने पर पुजारी ज़वाब ना देते या सब कुछ सही सही ना बताते.. पर रुद्र ये भी जनता था कि अगर किसी के लिए हमारे मन में सहानुभूति हो तो हम अपना रिश्ता उससे और ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और उसके बारें में वो सबकुछ भी बता पाते हैं जो हमें साधारण परिस्तिथियों में याद भी नहीं होता। बस यही सोचते हुए रुद्र ने पुजारी को भावुकता का पाठ अपनी बातों से याद दिलवा ही दिया।


"क्या बात हैं बेटा..? किसकी बात कर रहे हों..??" पुजारी ने पूछा। 


"अनीता की..??" रुद्र ने सपाट शब्दों में कहा।


"क्या हुआ अनीता को..?? ठीक तो है वो..?? कहाँ हैं..??" पुजारी ने परेशान होते हुए एक ही साँस में सभी सवाल किए। 


"पता नहीं बाबा..!! उसके पति का कहना है कि अनीता उसके किसी प्रेमी के साथ उनका बहुत सा रुपया पैसा लेकर भाग गई।" रुद्र ने थोड़ी भावुकता से कहा।


"ऐसा कैसे हो सकता है..? ये होने का तो सवाल ही नहीं उठता। अनीता हार मान कर भागने वालों में से नहीं थी.. वो तो हिम्मत से लड़ने वालों में से थी।" पुजारी ने बताया।


"हाँ ये बात अलग है कि कभी-कभी माँ के सामने कमजोर पड़ जाती थी.. माँ को अपना दुखड़ा रो कर अपना मन हल्का कर लेती थी.. पर बेटा वो ऐसा कदम कतई नहीं उठा सकती।" पंडित जी ने अपनी बात पूरी की।


ये सब कहते हुए उनके चेहरे पर दुख, क्षोभ, दया और घृणा के भाव एक साथ थे। रुद्र ने जब य़ह देखा तो उसे लगा कि पंडित जी से अनीता के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल सकती थी। बस इसके लिए पंडित जी के मन में अनीता के लिए थोड़ी और सम्वेदनशीलता पैदा करनी थी.. और वो काम रुद्र की बातें  बखूबी कर ही रही थी।


"माँ के सामने कमजोर पड़ जाती थी..! इससे आपका क्या मतलब है..?? पंडित जी..!" रुद्र ने चौंकते हुए पूछा।


ये सब सुनकर पंडितजी रुद्र के पास ही मंदिर की सीढ़ियों पर ही बैठ गए और कहा, "क्या बताऊँ बेटा..!! ऐसी बेटियाँ और बहुएं किस्मत वालों को मिलती हैं.. पर उन्हें भी अच्छा ससुराल मिले ये भी तो नसीब की ही बात है।" पंडित जी अनीता को याद करते हुए थोड़ा भावुक हो गए थे और कुछ सोचने लगे।


"क्या हुआ बाबा..?" रुद्र ने पंडित जी को हाथ से हिलाते हुए पूछा।


"क...कुछ नहीं बेटा..!!" पंडित जी ने कहा।


"बताइए ना बाबा..!!" रुद्र ने मनुहार करते हुए पूछा।


"बेटा थोड़े दिनों से अनीता बहुत परेशान दिखने लगी थी। कभी कुछ कहती तो नहीं थी लेकिन यहीं माँ के सामने बैठकर रोती थी.. और माँ से सवाल करती थी कि उसी की जिंदगी में इतने कष्ट क्यों लिख दिए..?? अभी पिछले महीने ही बहुत ज्यादा ही रो रही थी और माँ को पूछ रही थी..??" पंडित जी ने कहा।


"क्या पूछ रही थी.. बाबा??" रुद्र ने पूछा।


"क्या पूछेगी बेटा?? यही कि उसके दुखों का अंत कब होगा? एक दिन तो मैं अंदर ही बैठा पाठ कर रहा था.. उसे नहीं पता था कि मैं अंदर ही हूँ..उसी दिन मैंने सुना था??" पंडित जी ने कहा।


"क्या सुना था आपने??" रुद्र ने व्यग्रता से पूछा। 


हर पल इस केस के बारे में खोजने पर कुछ ऐसी बातें निकलकर आ रही थी कि इस केस को एक नई ही दिशा मिलती जा रही थी। रुद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना कुछ इस केस में होगा और इस तरह से पता चलेगा।


"बेटा..! उस दिन तो बेचारी बहुत ही ज्यादा रो रही थी.. और रोते रोते माँ को अपना दुखड़ा सुना रही थी। बोल रही थी कि उसके ससुरालवाले उस पर बच्चे के लिए दबाव बना रहे हैं और उसका पति अभी बच्चे नहीं चाहता। वो लोग अपने बेटे से तो कुछ बोल नहीं सकते पर इस सब में बेचारी को बहुत परेशान करते थे। उसकी सास और दादी सास तो इसे लेकर बहुत ताने देती थी।" पंडित जी ने एक नया ही खुलासा किया।


"लेकिन बाबा..!! वो लोग तो बोल रहे थे कि अनीता गुस्सैल, झगड़ालु और बदतमीज लड़की थी।" रुद्र ने उन्हें और उकसाया।


 पंडित जी थोड़ा आवेश में आ गये और थोड़ी तेज आवाज में बोले, "झूठ बोल रहे हैं..!! अनीता तो बहुत ही संस्कारी और शांत बच्ची थी। अगर ऐसा नहीं होता तो उन जालिमों के साथ इतने दिनों से नहीं रह रही होती।"


पंडित जी ने रुद्र को अपनी ओर देखता पाया तो उन्होंने एक गहरी साँस लेकर अपने आपको समान्य किया और कुछ पल रूक कर कहा, "बेटा.. कुछ भी ऊंच नीच हो जाती है तो उसमें दोष केवल स्त्री का ही होता है.. हम जिस समाज मे रहते हैं उसमे भले ही स्त्री को देवी कहा जाता है.. पर मानते नहीं है। अगर मानते तो.. औरतों पर इतने दुराचार थोड़े ही हो रहे होते।" पंडित जी अनीता पर लगे झूठे आरोप से आहत थे।


कुछ देर उन्होंने साँस ली और फिर आगे कहना शुरू किया, "बेटा मंदिर तो वो बहुत समय से आती थी.. पर सभी को उसके बारे में पता पिछले एक या दो महीनों से ही चला था कि बेचारी इतनी ज्यादा दुखी थी।  उसके पिताजी बहुत ज्यादा बीमार थे और हस्पताल में भर्ती थे.. पता नहीं कितने दिनों के मेहमान थे पर जालिमों ने उनसे मिलने भी नहीं जाने दिया था। ज्यादा मिलने की जिद करने पर उसे किसी आश्रम भेज दिया गया था जहाँ से बाहर आना जाना वर्जित है।"


"ऐसा कौनसा आश्रम है.. बाबा??" रुद्र ने पूछा।


"कोई ध्यान.. या योग सिखाने वाला आश्रम बताया था अनीता ने। उस आश्रम से वापस आई थी उसके बाद आखिरी बार जब मन्दिर आई थी तब मेरे ही फोन से अपने पिताजी से अंतिम बार बात की थी।"


"आपके फोन से..??" रुद्र ने पूछा।


"हाँ बेटा..!! मेरे फोन से.. उसके पास फोन नहीं था। घर वाले लैंडलाइन से जब कोई घर पर नहीं होता था तो छुपकर बात कर लेती थी। जब मेरे मोबाइल फोन से बात की थी.. तभी बोल रही थी कि शायद आज आखिरी बार बात हो रही है.. पापा से..!! तब मुझे लगा था कि उनकी बिगड़ती हालत के कारण ऐसा बोल रही होगी। लेकिन तुम्हारी बातों से पता चला कि उसे शायद अंदेशा हो गया था कि उसके साथ कुछ दुर्घटना होने वाली है।" पंडित जी ने कहा।


पंडित जी से हुई इतनी बातचीत से रुद्र समझ गया था कि पंडित जी से और पूछताछ करने पर शायद बहुत कुछ और पता किया जा सकता था। लेकिन अब लगभग 11 बज चुके थे और उसने चिराग और मृदुल को भी दीप के घर जाने के लिए कहा था। इस वक़्त उसे जाना ही होगा ऐसा सोचकर वो उठ खड़ा हुआ।


"क्या हुआ बेटा..? मुझसे कोई गलती हो गई क्या??" पंडित जी रुद्र के ऐसे अचानक से खड़े हो जाने से परेशान हो गए थे।


"नहीं..! नहीं बाबा..!! मुझे अनीता के बारे में बहुत सी बातें करनी है पर अभी मुझे जाना होगा।  पापी पेट का सवाल है.. नौकरी तो करनी ही होगी ना बाबा। लेकिन मैं जल्दी ही वापस आऊंगा आप जो भी कुछ इस विषय मे जानते हो मुझे वो सबकुछ जानना है।" रुद्र ने पंडित जी के हाथ पर हाथ रख कर उन्हें दिलासा देते हुए कहा।


पंडित जी को वहीं बैठा छोड़कर रुद्र तेजी से मन्दिर से बाहर निकल गया और अपनी गाड़ी में बैठकर तेजी से निकल गया।

        

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रूद्र लगभग गाड़ी को उड़ाते हुए ही पुलिस स्टेशन पहुंचा।  रुद्र गाड़ी चलाते-चलाते भी अपने आप से ही बड़बड़ाते जा रहा था। 


 "आज तो पक्का जान ही ले लेंगे वह मेरी..! एक तो बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिली थी उन्हें और वह भी मैं खा गया।  हे भगवान..!! बचा लेना..!!"


 ऐसा कहते हुए अपनी गाड़ी उड़ाते हुए जा रहा था। 25 मिनट उसे वहां तक पहुंचने में लगी उस समय तक 11:30 बज गए थे।  जब पुलिस स्टेशन के बाहर उसने गाड़ी पार्क की तो देखा मृदुल और चिराग की पुलिस जीप वहां नहीं खड़ी थी। 


 यह देखकर रुद्र की थोड़ी सी जान में जान आई और उसने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा, "हाशऽऽऽ!! बच गया..!!"


 ऐसा बोलते हुए वह पुलिस स्टेशन के अंदर जाने ही वाला था कि एक कॉन्स्टेबल वहां आ गया और उसने कहा, "सॉरी सर..! बचे नहीं हो.. जान तो अब जाएगी..!!" ऐसा बोल कर हंसता हुआ वहां से चला गया।


 रूद्र ने वह देखा तो उसे टेंशन होने लगी ना जाने मृदुल और चिराग अब उसके साथ आगे क्या करने वाले थे।  थोड़ी और अंदर गया और जैसे ही उसने चौकी के अंदर कदम रखा दूसरे कॉन्स्टेबल ने आकर उसे कहा,  "क्या सर..! आपको भी शेर के मुंह में बैठकर ही उनके दांत गिरने का शौक है।  पता है भी है.. मृदुल सर कितना गर्म हो रहे थे.. पूरी चौकी को सर पर उठा रखा था।" रूद्र को ये  सुनकर और भी घबराहट होने लगी थी। 


 वह अपने आप को दिलासा देते हुए और ऑल इज वेल बोलकर अपने सीने को थपथपाते हुए अंदर गया।

 जैसे ही उसने मृदुल के केबिन का दरवाजा खोला तो उसे और भी ज्यादा टेंशन हो गई।  मृदुल और चिराग दोनों में अंदर नहीं थे। अंदर से एक कॉन्स्टेबल निकला और उसने कहा, "सर आप उन दोनों को गलत जगह ढूंढ रहे हैं..!" 


रुद्र ने कहा,  "क्या मत.. मतलब है…??"


 "मतलब यह है सर.. कि वह अभी-अभी अपना गुस्सा शांत करने के लिए सबसे खास जगह गये है..तो अगर आप चाहते हो की उनका गुस्सा जल्दी शांत हो जाए.. तो फटाफट वहां पहुंचे!!" ऐसा कहकर मुस्कुराते हुए निकल गया।


 रूद्र अपना सर खुजाते हुए वहीं खड़ा उस खास जगह के बारे में सोचने लगा। 


"ऐसी कौन सी खास जगह है.. जहां पर वह लोग जा सकते हैं..!!"


 अचानक ही उसके दिमाग में कुछ कौंधा.. रुद्र ने ओ बोलकर अपने सर पर हाथ मारा और उल्टे पांव बाहर की तरफ दौड़ लगा दी।


 उसने जल्दी से अपनी गाड़ी में बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और वहां से फर्राटे से निकल गया। 



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दस मिनट के बाद रुद्र एक टूटी सी झोपड़ी के पास खड़ा था.. दरअसल ट्रेनिंग के टाइम से ही रुद्र, मृदुल और चिराग यहाँ आते थे। ये झोपड़ी एक बुढ़ी अम्मा की थी.. जो अपना और अपनी पोती का पालन-पोषण करने के लिए यहां लोगों के लिए चाय, नाश्ता और खाना बनाती थी।


रुद्र को जब से उनके बारे में पता चला था तभी से ये तीनों दोस्त एक टाइम तो चाय नाश्ता करने या कभी कभी खाना खाने यहाँ आते रहते थे। बुढ़ी अम्मा बहुत ज्यादा बुढ़ी थी तो ज्यादा कुछ तो बनाती नहीं थी.. बस जो भी बनाती थी उसमे उनका प्यार और माँ के हाथ का स्वाद होता था.. जो रुद्र, मृदुल और चिराग जैसे बच्चों के लिए घर से दूर एक घर का एहसास दिलाता था। वो बुढ़ी अम्मा भी इन तीनों से बहुत स्नेह करती थी। रुद्र के ही कारण उनकी पोती एक अच्छे स्कूल में पढ़ रही थी और अब तो वो कॉलेज भी जाने लगी थी।


अब बुढ़ी अम्मा से बहुत ज्यादा काम नहीं होता था.. और उनकी पोती भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च में उनकी मदद करने लगी थी।


फिर भी वो रुद्र,मृदुल और चिराग के लिए अभी भी अपने हाथों से खाना बनाती थी.. सभी ने कई बार उन्हें मना भी किया था कि वो परेशान ना हों.. पर उन्हें तीनों से इतना लगाव था कि वो अम्मा मानती ही नहीं थी।


रुद्र जब वहां पहुंचा तो मृदुल की पुलिस जीप को वही खड़ा देख समझ गया था कि आज तो वो गया काम से..!!


दौड़ता हुआ रुद्र अंदर पहुँचा तो देखा चिराग और मृदुल दोनों ही नाश्ता करने में लगे हुए थे। रुद्र को देखते ही दोनों ने बुरा सा मुँह बनाया और फिर से ध्यान खाने में लगा लिया। अम्मा भी पास ही में बैठी थी और उन तीनों की हरकतें देखकर मंद मंद मुस्करा रही थी। 


रुद्र भी चिराग और मृदुल को देखकर अम्मा के पास जाकर बैठ गया और उनकी गोद में सर रखकर लेटते हुए कहा, "अम्मा..!! बहुत भूख लग रही हैं मुझे भी नाश्ता दे दो।"


"अम्मा कोई जरूरत नहीं है..! लोगों को पता होना चाहिए कि अम्मा पूरे टाइम उनका इंतजार नहीं कर सकती। और भी बहुत से काम करने होते हैं अम्मा को।" चिराग ने मुँह बनाते हुए कहा और फिर से खाने में अपना ध्यान लगाया।


रूद्र ने यह देख कर मुंह बनाया और अम्मा की तरफ देख कर कहा, "अम्मा प्लीज..! सुबह से भागते भागते हालत खराब हो गई है। भूख के कारण पेट में चूहे ही नहीं अब तो हाथी डांस करने लगे हैं।  प्लीज कुछ खाने को दे दो ना अम्मा..!!"


अम्मा ने गर्दन हिलाकर आंखे झपकाते हुए चुप रहने का इशारा किया और बिल्कुल धीरे से कहा, "रुक मैं अभी लेकर आती हूं!!" और अम्मा उठकर अंदर चली गई।

 

अम्मा ने रूद्र को पोहे की प्लेट लाकर दी.. रूद्र पोहा देखकर बहुत खुश हो गया और अम्मा को एक फ्लाइंग किस देकर पोहे खाने लगा। पोहे खाते-खाते रूद्र अम्मा के साथ बातें भी करते जा रहा था।

 

रूद्र ने अम्मा को कहा, "अम्मा पता है आज क्या हुआ..?? आज मैं सुबह-सुबह दीप के घर के पास गया था।"


 दीप के घर का नाम सुनते ही चिराग और मृदुल के कान खड़े हो गए। उन्होंने 1 मिनट के लिए खाते-खाते अपना हाथ रोका और फिर एक दूसरे की तरफ देख कर फिर से पोहे खाने में व्यस्त हो गए।


 रूद्र ने उन लोगों की तरफ देखा और आगे कहा,  "अम्मा पता है..! आज एक नई बात पता चली!! मुझे अनीता थी ना दीप की बीवी.. दीप ने जिसकी गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखाई थी।" 


अम्मा बस रूद्र की तरफ देखते हुए नासमझी से अपनी गर्दन हिला रही थी। रुद्र बस अपनी पूरी बात बोले जा रहा था।  


उसने आगे कहा, "पता है अम्मा.. आसपास के बंगलों के चौकीदार और नौकर सभी अनीता को बहुत अच्छे से जानते हैं और उन्होंने यह भी बताया कि वह सब की मदद करती रहती थी।  पर कभी-कभी उसके शरीर पर चोट के निशान मिलते थे। और तो और वह जिस मंदिर में पूजा करने जाती थी वहां के पंडित जी का भी यही कहना है कि वह मंदिर में बैठकर कई बार रोती रहती थी। और पता है उसे उसके बीमार पिता से ना तो कभी बात करने दी जाती थी और ना ही कभी मिलने जाने की इजाजत थी।"


 रूद्र ने यह बात मृदुल और चिराग को सुनाते हुए थोड़ी तेज आवाज में कही थी।  इतना सुनते ही चिराग और मृदुल दोनों ही थोड़े परेशान हो गए थे।  चिराग का तो खाना.. खाते-खाते उसके गले में ही अटक गया था। जिससे उसे तेज से खांसी आ गई.. मृदुल ने उसकी पीठ थपथपाते हुए इसे पानी पीने के लिए दिया और चिराग ने रूद्र को घूरते हुए पानी पिया। 


"यह सब तुझे कैसे पता चला..??" चिराग ने पानी पीकर रुद्र से पूछा। 

 

"नहींऽऽऽ.. तुम लोग तो मुझ पर गुस्सा कर लो!!" रुद्र ने भी मुँह बनाते हुए जवाब दिया।  


"ज़्यादा नौटंकी तो कर मत.. सीधे-सीधे बता रहा है या फिर हम खुद देख लें कि कैसे पता करें??" मृदुल ने रूद्र को धमकाते हुए कहा। 


 "एक तो तुम लोगों ने ठीक से काम नहीं किया और अब मेरे ऊपर गुस्सा कर रहे हो??" रुद्र ने भी मृदुल के ही टोन में उसे जवाब दिया।

 

वह तीनों आपस में ऐसे ही टोंट मारते हुए बात कर रहे थे कि अम्मा ने उन तीनों को डांटा। 


 "इतने बड़े हो गए हो.. इतने बड़े पुलिस वाले हो गए हो..!  तुम लोगों को शर्म नहीं आती बच्चों की तरह लड़ते हुए!"  तीनों ने मासूम सा मुंह बनाकर अम्मा की तरफ देखा तो अम्मा को हंसी आ गई। 


अम्मा को हंसते देख वो तीनों की हंसने लगे थे। हंसते-हंसते तीनों शांत हुए तो मृदुल ने रूद्र से पूछा, "रूद्र सीरियसली बताओ..! यह तुम सब क्या बता रहे हो??"


 चिराग ने भी रुद्र की तरफ देखते हुए कहा,  "हां क्या हुआ और यह सब तुम्हें किसने बताया??"


 रूद्र ने उन्हें पूरी बात विस्तार से बताई तो चिराग और मृदुल दोनों ही परेशान हो गए थे और उन्होंने रुद्र से कहा,  "सॉरी यार हम लोग इस केस को ठीक से इन्वेस्टिगेट नहीं कर पाए।"


 रुद्र ने भी उन्हें कहा,  "कोई बात नहीं.. हो जाता है कभी-कभी.. पर अब आंख, नाक, कान सब कुछ खोल कर हर एक छोटी से छोटी चीज पर भी ठीक से ध्यान देना।  कुछ भी हमारे हाथों से बचना नहीं चाहिए। ऐसी कोई भी चीज जो हमारे काम की हो या ना हो.. हमारी नजर उस पर होनी ही चाहिए।"


 रूद्र के कहते ही चिराग और मृदुल ने "यस सर..!!" कहते हुए सैल्यूट किया। 


 तीनों ही इस बात पर हंसने लगे थे। 


 अम्मा ने रुद्र की तरफ देखते हुए सवाल किया, "एक बात बता बेटा..! तूने अनीता के बारे में बताया था अगर उसके घरवाले उसे मारते पीटते थे.. तब तो उसने अच्छा ही किया की घर छोड़कर चली गई।  इतने अमीर लोगों की पुलिस में शिकायत भी करती तो पुलिस क्या ही कर लेती। आजकल तो पुलिस भी पैसे वालों के लिए ही काम करती है।" 


 अम्मा की यह बात सुनकर वह तीनों बिल्कुल शांत हो गए थे। अम्मा ने जो कहा था सच ही तो था। हमारी न्याय व्यवस्था ऐसी ही तो हो गई है।



क्रमशः...