Chapter 39
humsafar 39
Chapter
39
चित्रा जो की कल रात नशे मे बेसुध थी, उसको अब होश आ चुका था लेकिन अभी भी वह होश मे नही थी। चित्रा को इतना तो याद था की वह श्रेया के साथ बार मे गयी थी लेकिन उसके बाद का उसे कुछ याद नही रहा। अपने बगल मे लेटी श्रेया पर उसकी नज़र गयी जो बेखबर होकर उसके ऊपर पैर डाले सो रही थी।
"अरे कोई है घर मे या सबके सब मर गए। और ये छिपकली की तरह मुझसे चिपक कर क्यों सो रही है?" कहकर उसने एक झटके से उसका पैर झटक दिया जिससे श्रेया की भी नींद खुल गयी। जानकी और अवनि ने चित्रा की चीख पुकार सुनी तो दोनो ही गेस्ट रूम मे गए और उन दोनो नशेडियो को देख हँसी छुट गयी।
अवनि और जानकी को देख चित्रा को समझ नही आया की वह यहाँ कैसे पहुँची। उसका सर दर्द से फटा जा रहा था। एक नौकर ने दोनो को निम्बू पानी दिया जिसे पीकर दोनो को थोडी राहत मिली।
"मासी!!! घर मे कोई नज़र नही आ रहा है, सब लोग कहा है?" अवनि के मन मे कुछ और भी सवाल थे जिसे वह जानकी से पूछना चाहती थी लेकिन जानकी को लगा शायद वह सारांश के बारे मे पूछना चाह रही है, "बेटा! इस वक़्त घर ऐसे ही शांत रहता है। तुम्हारा पति सुबह सुबह ही ऑफिस के लिए निकल जाता है और तुम्हारी सास वो नौ बजे के बाद निकलती है। अब तुम आ गयी हो तो शायद सारांश थोड़ा वक़्त इस घर को भी दे। उसने तो ऑफिस को ही घर बना रखा है और घर मे ही ऑफिस खोल रखा है।"
"अरे......! सारांश ने कहा था, जब तुम उठ जाओ तो मै उसे कॉल कर दु। इस लड़की के चक्कर मे मै सब भूल गयी" जानकी को याद आया तो वह कॉल करने चली गयी। अवनि वही खड़ी अपनी जेठानी के बारे मे सोचने लगी। ऐसी बहुत सी बातें थी जो अवनि के समझ मे नही आ रही थी। तभी पीछे से श्रेया ने उसे पकड़ लिया और उसके काँधे पर अपना सिर टिका दिया।
"उतरी कल की या अभी भी नशे मे है?" अवनि ने पूछा।
"नही....! पता नही....! बस सिर दुख रहा है। लेकिन तु यहाँ क्या कर रही है? तुझे तो अभी अपने ससुराल मे होना चाहिए था!" श्रेया अपना सिर खुजाते हुए बोली।
"आँखे फाड़ कर देख झल्ली ये मेरा ससुराल ही है। कल तूने जब फोन किया था तब सारांश ही तुम दोनो को लेने गए थे।" अवनि बोली।
"मैंने फोन किया था!!!! किसे!!!! तुझे...! मतलब मुझे कुछ याद नही। आह.......! मेरा सर...!!!" श्रेया ने अपना सर पकड़ लिया। अवनि ने उसे फ्रेश होने के लिए बाथरूम मे धक्का मारा और बाहर आ गयी। जब तक दोनो पूरी तरह से होश मे आई उससे पहले ही सारांश घर पहुँच चुका था।
सारांश जब घर आया तो सामने अवनि को खड़ा पाया, बिलकुल वैसे ही जैसे उसने सोचा था। अवनि की नज़र जब सारांश पर गयी तो उसका दिल धड़क उठा, उसने अपनी नज़र हटा ली। सारांश धीरे से चलकर उसके पास आया और पूछा, "नास्ता किया?"
अवनि ने ना मे सिर हिला दिया तो सारांश ने कहा, "मैंने भी नही किया, चलो साथ मे करते है।" सारांश ने बड़े आराम से कहा और डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। अवनि ने एक बार गेस्ट रूम की ओर देखा और बोली, "लेकिन चित्रा और श्रेया!"
"उन दोनो को अकेले छोड़ दो, दोनो काफी क्लोज हो रही है आजकल।" कहकर सारांश मुस्कुरा दिया। उसकी तीखी मुस्कान देख अवनि को हँसी आ गयी और उसके बातों के पीछे का मतलब समझ कर चुप हो गयी। जानकी ने नास्ता पहले ही टेबल पर लगवा दिया था। सारांश ने खुद अपने हाथो से अवनि को नास्ता परोसा तो अवनि थोड़ी असहज हो गयी।
"अभी नई नई हो न इसीलिए वरना बाद मे मै नही करने वाला ये सब।" सारांश ने एक निवाला मुह मे डाल कर इतराते हुए कहा तो अवनि मुस्कुरा दी। नास्ता करके दोनो फार्म हाउस ले लिए निकल गए।
रास्ते मे अवनि मौका ढूँढ रही थी की वह सारांश से कुछ पूछ सके लेकिन समझ नही आ रहा था की कहा से शुरू करे। सारांश के सामने अवनि की जुबान ही जैसे सील जाती थी। उससे सवाल करना तो दूर की बात थी। लेकिन सारांश ने उसकी बेचैनी को भाँप लिया इसीलिए उसने खुद ही पहल की, "अब बोल भी दीजिए मोहतरमा! बातों को दिल मे दबाकर रखने से पेट खराब हो सकता है। देख रहा हु कब से बेचैन है आप!"
"बात छुपाने से पेट खराब नही होता और ये क्या आप आप लगा रखा है!!! मुझे बिलकुल भी नही पसंद!!!" अवनि गुस्से मे बोली।
"मुझे नही पसंद की आप मुझे आप कहे" सारांश ने आराम से कहा।
"देखिये आप.... "
"तुम.....! आप नही तुम" सारांश ने कहा तो अवनि से कुछ कहते नही बना। फिर भी उसने पूछना बेहतर समझा, "वो मै आपके... तुम्हारे भैया के बारे मे पूछना चाहती थी।" अवनि की आधी अधूरी बातों से सारांश समझ गया की अवनि क्या पूछना चाहती है। वह बोला, "सिद्धार्थ भाई की शादी नही हुई बस सगाई हुई थी। सोनू उनका अपना बेटा है। कोई सोनू पर उंगली ना उठाये इसीलिए भाई अब्रॉड मे रहते है और कभी कभार ही आते है। वो दोनो एक दूसरे को कॉलेज से डेट कर रहे थे। सब के कहने पर उन दोनो ने सगाई तो कर ली लेकिन सगाई और शादी के बीच के लंबे गैप ने उन दोनो के बीच दूरिया ला दी। भाई ने फिर कभी किसी और के बारे मे नही सोचा, उनके लिए अब सोनू ही सब कुछ है।"
सारांश के बातों से अवनि को इतना तो समझ आ ही गया की क्या हुआ होगा। शायद यही वजह थी की जब नानु ने तुरंत शादी करने को कहा था तो सिया ने क्यों ना नही किया। अवनि ने और कुछ भी पूछना सही नही समझा और वह पूरे रास्ते चुप रही और गाड़ी का म्युजिक सिस्टम ऑन कर दिया।
कंचन और अखिल सुबह से ही अपनी दोनो बेटियो का इंतज़ार कर रहे थे। उनकी आँखे तो जैसे दरवाजे पर ही टिकी हुई थी। जब सारांश की गाड़ी मेन गेट से अंदर दाखिल हुई तो कंचन भागकर आरती की थाल ले आई। उन्हे देख सारांश और अवनि ने उनके पैर छुए। कंचन ने दोनो की आरती उतार कर नज़र का टीका लगाया और भीतर ले आई जहाँ अखिल बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।
सारांश को देखकर अखिल तो मानो दौड़कर उसे गले लगाना चाहते थे लेकिन वह व्हील चेयर से उठ नही सकते थे।
सारांश ने जा कर पैर छुये और अवनि तो देखते ही उनसे लिपट गयी। अपनी बेटी को इतना खुश देख उनको कुछ पूछने की जरूरत ही नही पड़ी। सारांश ने कार्तिक और काव्या के थोड़ी देर मे आने की बात कही तो अखिल के चेहरे के भाव बदल गए। कंचन जब किचन मे जाने को हुई तो सारांश ने रोक दिया और अवनि के साथ बातें करने के लिए भेज दिया और खुद अखिल के पास रुक गया। जाते जाते अवनि ने जब मुड़कर देखा तो उसे अखिल और सारांश के बीच की बातों से उनके चेहरे भाव कुछ गंभीर लगे।
अवनि को कुछ सुनाई तो नही दिया मगर वह इतना समझ गयी की बात कुछ गहरी है। थोड़ी देर तक माँ से बात करने के बाद अवनि बहाने से सारांश के पास गयी और उसे बाहर गाड़ी की ओर ले गयी। "अगर मै आपसे कुछ पूछूँ तो क्या मुझे सही जवाब मिलेगा?" अवनि ने पूछा।
सारांश समझ गया की अवनि के मन मे शायद उसके और अखिल के बीच की बातों को लेकर कुछ शक है लेकिन फिर भी उसे चिढ़ाते हुए कहा, "आप पूछेंगी तो नही बताऊंगा लेकिन अगर तुम पूछोगी तो जरूर बताऊंगा।"
अवनि चिढ़ गयी और बोली, "ठीक है! अब तुम मुझे ये बताओ की क्या मेरे पापा के तबियत बिगड़ने के पीछे की वजह आप को.... तुम को पता है?" अवनि के इस सवाल पर सारांश के दो पल को उसे देखा और गम्भीर होकर बोला, "तुम मेरी पत्नी हो, और ये तुम्हारा हक है वो सब जानने का जो कुछ भी मुझे पता है। हाँ मै जानता हु की पापा की तबियत के पीछे की वजह क्या है।"
अवनि बिना कुछ बोले बस उसे देख रही थी। अवनि को यूँ अपनी ओर देखता पाकर सारांश ने आगे बोलना जारी रखा, "तुम्हारे भैया...! जिनकी मौत दस साल पहले हुई थी, वो कोई एक्सीडेंट नही था। और जिस वजह से हुई थी वो वजह एक बार फिर उनकी आँखों के सामने आ गया था इसीलिए वह बर्दास्त नही कर पाए और.....!"
सारांश की बात सुन अवनि को झटका सा लगा। उस वक़्त वह छोटी थी। उसे तो ज्यादा कुछ पता भी नही था। उसके पैर मानो बेजान से लगने लगे। इससे पहले वह गिरती सारांश ने उसे अपने बाहों मे संभाल लिया। "अवनि!!! संभालो खुदको.....! अगर पापा को पता चला तो उन्हे तकलीफ होगी। इस वक़्त उन्हे खुश रखना ज्यादा जरूरी है। कोई भी ऐसी तरह की बात जो उनका दिल दुखाये या उन्हे तकलीफ हो..... उनकी तबियत खराब हो सकती है। इसीलिए उनके सामने तुम्हे खुश रहना है, हम सबको ऐसे दिखाना है जैसे कुछ हुआ ही नही।
अवनि की आँखों मे आँसू भर आये। वह कुछ और पूछ पाती उससे पहले ही कार्तिक की आवाज़ सुनाई दी, "तुम दोनो को रोमांस के लिए कोई कमरा नही मिला क्या? ऐसे ही खुल्लम खुल्ला...!"
अवनि और सारांश ने देखा कार्तिक और काव्या दोनो चले आ रहे थे। उन्हे देख अवनि ने खुद को संभाला तसल्ली होने के बाद सारांश ने भी उसको छोड़ दिया। कार्तिक ने गला खराश्ते हुए उन दोनो को देखा तो सारांश ने कहा, "ऐसा कुछ नही है...... और.....हमारी छोड़ो, तुम दोनो पहले अंदर जाकर माँ पापा से मिल लो। कब से इंतज़ार कर रहे है।" कहकर सारांश ने कार्तिक और काव्या को अंदर भेजा और पीछे पीछे अवनि को लेकर पहुँचा।
अखिल कार्तिक को देख खुश हुए लेकिन काव्या से नज़रे फेर लिया। काव्या को तकलीफ हुई मगर वह कार्तिक के सामने कुछ न कह सकी। काव्या को समझ नही आरहा था की अब वह ऐसा का करे की अखिल उसे माफ कर फिर से उसे अपना ले। उसकी नज़र सारांश पर गयी तो वह अवनि से बोली, "अवनि....! तु अपने जीजू से इतनी क्लोज है, थोड़ा मुझे भी तो क्लोज होने दे......अपने जीजू से!" कहकर काव्या ने मुस्कुरा कर सारांश की ओर देखा।
सारांश समझ गया की काव्या को उससे बात करनी है तो उसने भी मजाक मे ही उसको साइड हग किया और बोला, "बिलकुल.....! अब साली कहो या भाभी, अब तो दो दो रिश्ता है हमारा। लेकिन मै तो भाभी ही बुलाऊँगा, वरना कार्तिक मियां कही जलभून न जाए।" सारांश की बात सुन सभी हँस पड़े और काव्या सारांश को लेकर पीछे गार्डन एरिया मे चली गयी। अवनि और कार्तिक वही चुप खड़े थे एक दूसरे से आँखे चुराए।
क्रमशः