Chapter 91
YHAGK 90
Chapter
90
विहान मानसी को लेकर घर आया तो विहान की मम्मी ने उन दोनों का ही स्वागत किया और साथ ही विहान से अपनी नाराजगी जताई। विहान के पापा अभी भी नाराज थे। उन्होंने कुछ कहा तो नहीं लेकिन उनके रवैए यह साफ जाहिर था कि वह इतनी आसानी से विहान को माफ नहीं करने वाले थे। विहान भी उनकी नाराजगी समझता था इसीलिए उसने अपने पापा का ऑफिस ज्वाइन करने की बजाय रूद्र की आर्ट गैलरी में ही कुछ वक्त काम करना बेहतर समझा ताकि वह खुद को इस लायक बना सकें की उसे अपने पापा का बिजनेस संभालने में कोई दिक्कत ना हो। साथ ही उसे अपने पापा की नजरों में खुद को साबित भी करना था। रूद्र के लिए भी ये एक अच्छी बात थी जिससे वह शरण्या को अपना वक्त दे सकता था।
विहान और मानसी के जाने के बाद रूद्र जब घर में उनके बाकी के कुछ सामान पैक कर रहा था, उस वक्त रूद्र के हाथ एक ऐसा पेपर लगा जिसे देख रूद्र के होश उड़ गए। वो तलाक के पेपर्स थे।यह पेपर्स उसके तो नहीं थे बल्कि मानसी के थे जिसे खुद विहान ने बनवाया था। उस पर मानसी के सिग्नेचर देख रूद्र के होश उड़ गए। इस बारे में उसे विहान से बात करनी थी वह भी जल्द से जल्द। इससे पहले कि वह उन पेपर्स को लेकर अपने फ्लैट से बाहर निकलता, विहान उसी वक्त वहां आ पहुचा। रूद्र के हाथ में वो पेपर्स देख विहान ने उन्हें जल्दी से छीना, लेकिन रूद्र ने उससे भी ज्यादा तेजी से उन पेपर्स को अपने पीछे छुपा लिया।
विहान समझ गया कि रूद्र ने वह पेपर देख लिए हैं और सारी बातों को समझ भी लिया है। रूद्र ने जब गुस्से से उसे घूर कर देखा तो विहान बोला, "यह तलाक के कागजात मैंने हीं बनवाए थे।"
रूद्र ने गुस्से में सवाल किया, "तो फिर यह पेपर यहां क्या कर रहे हैं विहान? और इस पर अमित के सिग्नेचर कैसे हैं? इस सब का मतलब क्या है.......? क्या इसका मतलब मैं यह समझु कि तूने मुझसे बहुत बड़ा झूठ बोला? तेरे लिए........ हर किसी से लड़ गया मैं तेरा साथ देने के लिए! तुझे पता भी है, जो घर मैंने तुझे रहने के लिए दिया था कोई मकान नहीं है मेरे लिए! इसका हर एक कोना मैंने अपने दिल से सजाया हैं, उसके लिए जिसे मैं प्यार करता हूं। मेरे पास तेरे लिए और कुछ नहीं था तो मैंने ये घर दे दिया तुझे रहने के लिए। अपना दिल निकाल कर तेरे सामने रख दिया और तू साले......... , इतनी बड़ी बात छुपाई तूने मुझसे? अमित जिंदा है! कुछ नहीं हुआ है उसे, है ना? और मानसी ने भी इस सब में तेरा साथ दिया? वह भी अच्छे से जानती है कि अमित जिंदा है! तेरे इस एक गुनाह में बराबर की हिस्सेदार है वो?"
विहान बोला, "तुगलत समझ रहा है यार! और मानसी जानती थी कि अमित जिंदा है लेकिन उसका किसी भी गुनाह में कोई हाथ नहीं। जब अमित हैदराबाद में था, वहां उसने किसी लड़की के साथ वही करने की कोशिश की। उस लड़की को मैंने ही प्लांट किया था। मैं जानता हूं हम दोनों ही चाहते थे कि अमित को उसके किए की सजा मिले लेकिन बात अगर यहां की कोर्ट में आती तो मानसी को भी कोर्ट में हाजिरी लगानी पड़ती। उसके साथ जो कुछ हुआ सबके सामने खुल जाता। मैं बस यही नहीं चाहता था। हैदराबाद के एक लोकल कोर्ट में उसको सजा हुई। वह आगे हाई कोर्ट में अपील करना चाहता था लेकिन मैंने ही उसे मजबूर किया। उसे डराया धमकाया, उसके पिता की इज्जत का हवाला दिया और वह सारे सबूत कोर्ट में मैंने ही पेश किए जिससे उसे 10 साल की सजा हुई। अगर यहां नेहा के घरवालों में से या किसी और को भी पता चल जाता कि अमित जिंदा है और जेल में है तो सोच उसके पिता पर क्या गुजरती! उन लोगों का जीना हराम हो जाता। क्योंकि अमित किसी छोटे मोटे जुर्म में अंदर नहीं गया है। ये एक ऐसा गुनाह है जिसकी लपटे उसके मां-बाप तक भी पहुंचती और उनकी परवरिश पर उंगलियां उठती। जब गुनाह अमित ने किया है तो उसकी सजा बाकी लोग क्यों भुगते? मैंने तुझसे बात नहीं छुपानी चाहिए थी लेकिन यह बात मैं बस अपने तक ही रखना चाहता था ताकि किसी को भी कानो कान भनक ना हो। मानसी को भी इस बारे में बहुत बाद में पता चला, जब मैंने उसके सामने ही तलाक के कागजात रखें। मैं बस मानसी को इस सब से बचाना चाहता था और नहीं चाहता था कि इस सब में तेरा नाम आए। अमित अगर वापस आता भी है तो भी वो सिर्फ मुझसे बदला लेना चाहेगा, किसी और से नहीं।"
रूद्र ने विहान की बात समझी और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, "मैं समझ सकता हूं! तूने जो भी किया वह तेरी अपनी मजबूरी थी लेकिन वह 10 साल के बाद फिर वापस आएगा, तब किसी को क्या समझाएगा तू? यह बात तुझे मुझसे छुपानी नहीं चाहिए थी। जिस तरह यह बात मानसी को पता चली, मुझे भी बताना चाहिए था। खैर जो हुआ सो हुआ। इसी बात का डर मुझे भी था कि कहीं मानसी के बारे में दूसरों को पता ना चल जाए। तूने जो किया वह गलत नहीं था लेकिन उसे सही भी नहीं कह सकते।"
फिर उसने विहान की तरफ वह पेपर्स देते हुए कहा, "इसे कहीं संभाल कर रख। ऐसे लापरवाही से कहीं भी रखेगा तो किसी से भी हाथ लग जाएगा और जैसे मैं समझ गया कोई और भी समझ जाएगा।"
विहान रुद्र के हाथ से वह पेपर लेते हुए बोला, "हर कोई तेरी तरह इतना चालाक नहीं है कि सारे पेपर देखकर ही पूरी बात समझ जाए। रही बात अमित की तो वह जब आएगा तब देखा जाएगा। फिलहाल तो इन पेपर्स को सबमिट करना है। अभी मैं चलता हूं तु अपना ख्याल रखना।"
रूद्र मुस्कुराते हुए बोला, "तू भी मानसी का ख्याल रखना।" विहान अपना सामान लेकर वहां से निकल गया और रूद्र भी अपने घर चला गया।
रूद्र ने विहान और मानसी, दोनों को सेटल तो कर दिया लेकिन खुद को लेकर वह अभी भी कंफ्यूजन में था। एक तरफ तो वह पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, दूसरे में शरण्या के पिता से उसका हाथ मांगना था। लेकिन इस बारे में सबसे पहले उसने अपनी मां को बताना था।
रुद्र और रेहान का जन्मदिन पास ही था। शरण्या इस साल उसका जन्मदिन खास बनाना चाहती थी जिसके लिए उसने रूद्र से कहीं बाहर चलने की जिद की। "शरु.......! कैसी बात कर रही है? तुझे पता भी है आजकल मेरा काम अभी कितना ज्यादा बढ़ गया हुआ है! ऐसे में कहीं बाहर जाना पॉसिबल नहीं हो पाएगा। फिर तु ही सोच, सारा काम विहान के ऊपर आ जाएगा और फिर उसे में तो टाइम चाहिए मानसी के लिए! वह अकेले कैसे मैनेज करेगा यह सब?"
शरण्या शिकायत करते हुए बोली, "पिछली बार हम दोनों ने कब एक साथ वक्त गुजारा था? हम कहीं बाहर गए थे? जब हम बनारस गए थे, नैनीताल से होकर! हमारी शादी के बाद! सही कहते हैं लोग, लड़के शादी के बाद बदल जाते हैं! तू भी बदल गया।"
रूद्र उसे समझाते हुए बोला, "क्यों परेशान हो रही है? तुझे लगता है मैं बदल जाऊंगा? और अगर मैं बदल गया तो क्या तु मुझे जिंदा छोड़ेगी? जान..........!"
रूद्र ने इतने प्यार से कहा की शरण्या खुद को पिघलने से ना रोक पाई और बोली, "तू ना, अच्छे से जानता है मुझे किस तरह मनाना है। ठीक है, लेकिन सिर्फ इस बार! उसके बाद मैं एक नहीं सुनूंगी तेरी। फिलहाल हम घर पर मिल रहे हैं। उसके बाद तुझे मेरी हर बात माननी होगी।"
रूद्र ने सर झुका कर कहा, "जी मैडम! जैसी आपकी मर्जी। आप जैसे चाहो वैसे मुझे बंदर की तरह नचा सकती है।" शरण्या खिलखिला कर हंस पड़ी।
रूद्र के बर्थडे से 1 दिन पहले शरण्या ने पूरे घर को अपने हिसाब से डेकोरेट किया और फिर सारे कैंडल्स को सही जगह लगा कर वह घर चली आई। आज रात उसे रूद्र से मिलना था और उसके लिए उसे खासतौर पर तैयार भी तो होना था। अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए शरण्या के कदम एकदम से रुक गए जब उसने रूद्र का जिक्र सुना। उसके मां पापा दोनों ही रूद्र के बारे में बात कर रहे थे।
अनन्या बोली, "रूद्र से मेरी चाहे जो भी अनबन हो लेकिन देखा जाए तो वह एक सही इंसान हैं और अब तक उसने जो भी किया है मैं उसे काफी एडमायर भी करती हूं। उसने मुझसे बदतमीजी की लेकिन अपने लिए नहीं की! जो भी किया शरण्या के लिए किया। इतना कोई दोस्त नहीं करेगा जितना उसने विहान के लिए किया। शरण्या से इतनी अनबन होते हुए भी उसने उसका कितना ख्याल रखा है यह हम सभी जानते हैं। जिस वक्त शरण्या बीमार थी वो भी कितना ज्यादा बेचैन हो गया था, यह हम सभी ने देखा है। अगर शरण्या उससे ठीक से पेश आए तो मुझे नहीं लगता उसके लिए रूद्र से बेहतर कोई और हो सकता है। लेकिन इन दोनों की जो अनबन है वह बरसों पुरानी है। आंटी जी भी तो उन दोनों के रिश्ते के बारे मे बात कर रही थी। लेकिन पता नहीं...... इस बारे में हमें उन दोनों से ही बात करनी होगी।"
ललित बोले, "तुम शरण्या के लिए इतनी फिक्रमंद दो, यह देख कर मुझे अच्छा लगा। मैं जानता हूं शरण्या की वजह से तुम्हें बहुत तकलीफ होती है। मैंने जो किया उसकी सजा मुझे और मेरे पूरे परिवार को मिल रही है और आगे भी मिलती रहेगी।"
मैं तुम्हारी बेटी के लिए फिक्रमंद नहीं हूं! मैं बस यह नहीं चाहती कि उसकी मां ने जो किया वह उसके साथ ना हो। उसकी मां ने एक ऐसे इंसान को फंसाया था जो शादीशुदा था और एक बच्चे का बाप बनने वाला था। ना तुमने कोई लिहाज रखा और ना ही उस औरत ने कोई शर्म। जिसकी निशानी आज भी शरण्या के रूप में मेरे घर मौजूद है! लावण्या मेरी एकलौती बेटी है और हमेशा रहेगी। जिस दिन तुम अपनी नाजायज औलाद को इस घर में लेकर आए थे ना, उसी दिन मै ये घर छोड़कर चली गई होती। शरण्या का गुनाह सिर्फ इतना है कि उसने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया। इसके बावजूद मैं नहीं चाहती कि किसी के साथ बुरा हो। रूद्र ने चाहे जो भी किया हो लेकिन अब वह एक जिम्मेदार इंसान है। खुद के बलबूते पर खुद को खड़ा करना चाहता है। अगर वह और शरण्या एक दूसरे को पसंद करते हैं तो फिर मैं खुद शिखा से उन दोनों के रिश्ते की बात चलाना चाहूंगी।"
शरण्या जब अपनी और रूद्र के रिश्ते की बात सुनी तब उसकी कोई खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन जैसे ही उसने अपनी असलियत के बारे में जाना, उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे यकीन नहीं हुआ जो भी उसकी कानों में सुना था। "लावण्या मेरी इकलौती औलाद है" "तुम्हारी नाजायज औलाद......... शरण्या के रूप में मौजूद है" यह सारे शब्द शरण्या के कानों में गूंज रहे थे। वह लड़खड़ा कर वहीं उन सीढ़ियों पर बैठ गई। इस घर में उसे प्यार तो मिला लेकिन कभी अपनापन नहीं मिल पाया। उसकी माँ ने कभी प्यार से उसके सर पर हाथ नहीं फेरा, ना कभी प्यार से उसे देखा। हमेशा नजरे फेरकर रही। जितने प्यार से लावण्या के लिए उसकी मां हर एक चीज पसंद करती थी, शरण्या को कभी वह सब नसीब ही नहीं हुआ।
एक ही पल में उसे अपना वजूद झूठा सा लगने लगा। क्या वह सच में इस घर की नाजायज औलाद थी? नहीं.......! शरण्या का दिल इस बात को मानने की कतई तैयार नहीं था। उसने हमेशा से ललित को अपना पिता और अनन्या को अपनी मां समझा था। उसने कभी किसी और का जिक्र तक नहीं सुना था तो फिर यह अचानक एकदम से कैसी बात कर रहे थे यह लोग? जिस मां से अपना हक मांगती रही वह उसकी मां नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है? शरण्या बिल्कुल भी नहीं समझ पाई। उसने जैसे तैसे खुद को खड़ा किया और लगभग घसीटते हुए खुद को अपने कमरे में लेकर गई। दरवाजे को बंद कर शरण्या काफी देर तक वहीं बैठी रही। उसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे और उसे खुद पता नहीं था। वह यह तक भूल चुकी थी कि आज उसे रूद्र का जन्मदिन सेलिब्रेट करना है।