Chapter 12
Episode 12
Chapter
रत्नमंजरी ने कहा, "यह मेरी तरफ से तुम्हारे लिए अंतिम भेंट…!!!"
ऐसा कहकर रत्नमंजरी एक दिव्य प्रकाश में विलुप्त हो गई और स्नेहा वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़ी…
जब स्नेहा की आंखें खुली तो स्नेहा ने देखा, वह किसी बड़े से कमरे जैसी जगह में थी। दीवार सफेद रंग की थी और दीवारों पर कुछ विशेष आकृतियां बनी हुई थी। आकृतियां भी सफेद रंग की ही दिखाई दे रही थी। आकृतियां मानो ऐसी लग रही थी जैसे कोई देव राक्षसों के अंत के लिए अवतार लेकर उनसे युद्ध कर रहा था। छत पर भी कुछ विशेष प्रकार के यंत्र बने दिखाई दे रहे थे।
स्नेहा ने एक पल को आंखें खोलकर फिर बंद की, उसे लगा जैसे वह कोई सपना देख रही थी। दोबारा आंखें खोलने पर आसपास का माहौल वैसा ही दिखाई दे रहा था। स्नेहा ने गर्दन घुमा कर देखा तो उसके पैरों की तरफ एक बड़ा सा दरवाजा था। उस दरवाजे से बाहर आसमान में तारे दिखाई दे रहे थे। जहां वह लेटी हुई थी, वहां पर बहुत ही ज्यादा शांति का अनुभव हो रहा था। एक विशेष सुगंध फैली हुई थी। स्नेहा ने अपने हाथों से फर्श को छूकर देखा तो, फर्श पर भी कुछ बना हुआ महसूस हुआ। जैसे फर्श के पत्थर पर कुछ उकेरा गया हो।
यह सब स्नेहा को बहुत ही आनंद प्रदान कर रहा था। स्नेहा एकदम से उठ कर बैठ गई और आसपास के माहौल को गर्दन घुमा कर देखने लगी।
स्नेहा ने देखा जिस तरफ उसका सिरहाना था उस तरफ मां भगवती महाकाली की एक विशाल प्रतिमा स्थापित थी। प्रतिमा बहुत ही रौद्र भाव की लग रही थी। उनकी जीभ बाहर निकली हुई थी मानो संसार के सभी दुष्टों का रक्त पीकर भी उनकी क्षुधा शांत नहीं हुई। चेहरे पर बहुत ही क्रोध जैसे भाव थे। परंतु नेत्रों से करुणा की वर्षा हो रही थी। शरीर पर बाघम्बर धारण किए हुए, नर मुंडो की माला गले में सुशोभित हो रही थी। चरण कमलों के नीचे भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा थी।
नीलांजना देवी भगवती भले ही अपने रौद्र रूप में दिखाई दे रही थी, पर उनके स्वरूप में ममता, करुणा और दया के ही भाव प्रधान दिखाई दे रहे थे।
उन्हीं के बाएं हाथ की तरफ श्मशान के अधिष्ठाता देव, बाबा काल भैरव की प्रतिमा थी। उनकी प्रतिमा, एक प्रतिमा ना होकर एक लिंग रूप में थी, जिस पर सिंदूर चढ़ा हुआ था।
अपने आप को मंदिर में देखकर स्नेहा को अपार शांति और हर्ष का अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि संपूर्ण जीवन वह ऐसे ही मां के चरणों में बैठ कर बिता सकती थी। आज स्वयं को वहां देख कर स्नेहा यह भूल ही गई थी कि वह अभी-अभी कुछ दिनों पूर्व ही अपनी मां को खो चुकी थी। जगत जननी मां के मंदिर में उसे ऐसे ही आभास हो रहा था, जैसे वह अपनी मां की ही गोद में बैठी हो। मां ने भी उसे ऐसे संभाल लिया था, जैसे बाहर से लड़ाई में पिट कर आए बच्चे को मां अपने आंचल में संभाल लेती है।
स्नेहा बस ऐसे ही मां की प्रतिमा की तरफ भाव विभोर होकर देख रही थी कि एक आवाज आई...
"तुम उठ गई स्नेहा... अब कैसा लग रहा है…?"
स्नेहा ने पलट कर देखा तो अच्युतानंद जी उसके सामने खड़े थे। स्नेहा के नेत्रों से आनंद अश्रु बह रहे थे।
अच्युतानंद जी ने कहा, "स्नेहा तुम सुबह से मूर्छित हो... यह कुछ फल लाया हूं। इन्हें ग्रहण करो और फिर अपने घर चली जाओ।"
स्नेहा ने भाव विभोर होते हुए कहा, "गुरुदेव आपने यहां लाकर मेरे जीवन की क्षुधा शांत कर दी है। कुछ खाने की कोई भी अभिलाषा नहीं है। बस आप मुझे वापस जाने के लिए ना कहो…!! वापस जाने के नाम ऐसा लग रहा है, जैसे कोई गाय के भूखे बछड़े को उसकी मां से दूर ले जाकर बांधना चाहता हो।"
अच्युतानंद जी ने कहा, "पर स्नेहा…!! तुम्हें जाना तो होगा। क्योंकि केवल 1 दिन है, जिसे तुम अपने हिसाब से बाहर बिता सकती हो। उसके बाद तुम्हें कठोर और संयमित जीवन व्यतीत करना होगा।"
स्नेहा ने कहा, "जी गुरुदेव…! परंतु केवल आज की रात मैं मां की गोद में बिताना चाहती हूं। कल का पूरा दिन और रात मैं बाहर अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने में व्यतीत कर दूंगी। आज मां को छोड़कर जाने का बिल्कुल भी मन नहीं है।"
अच्युतानंद जी ने कहा, "ठीक है फिर तुम कुछ फलाहार कर लो और यही विश्राम करो। मैं बाहर अपनी कुटिया में जाकर विश्राम करता हूं। क्योंकि कल का पूरा दिन तुम्हारी साधना की तैयारी में निकलने वाला है।"
ऐसा कहकर अच्युतानंद जी फल वही रख कर बाहर चले गए। स्नेहा ने वह फल भाव से पहले मां को और भगवान काल भैरव को को अर्पित किए फिर स्वयं खाए। उसके बाद मां की प्रतिमा को निहारती रही... निहारते-निहारते कब नींद आ गई, उसे खुद ही पता नहीं चला।
सुबह किसी के बाल सहलाने से स्नेहा की नींद खुली। उसे लगा कि उसकी मां उसे सुबह-सुबह जगाने आई थी, पर जब स्नेहा को यह याद आया कि उसकी मां अब उसके पास नहीं थी और वह मंदिर में थी। तो स्नेहा झट से उठ कर बैठ गई।
चारों तरफ गर्दन घुमा कर देखने पर स्नेहा को कोई भी दिखाई नहीं दिया। स्नेहा की नजर मां की प्रतिमा पर गई तो उनके चेहरे से पर एक ममतामयी मुस्कान दिखाई दी। स्नेहा को लगा कि शायद मां ही उसे सुबह-सुबह जगाने के लिए वहां आई थी। स्नेहा ने मां को प्रणाम किया, फिर बाबा काल भैरव को प्रणाम कर मंदिर से बाहर आ गई।
बाहर अच्युतानंद जी ध्यान में लगे हुए थे। ध्यान मग्न होते हुए ही उन्होंने अपने हाथ से स्नेहा को रुकने का इशारा किया। दस मिनट बाद अपनी पूजा पूर्ण कर कहा, "स्नेहा अभी तुम अपने घर चली जाओ और कल ठीक शाम पांच बजे वापस यहां आ जाना। क्योंकि साधना शुरू करने का शुभ मुहूर्त रात को 10:00 बजे का है। उससे पहले बहुत सी तैयारियां और बहुत कुछ तुम्हें जानना और बताना आवश्यक है। तो तुम ठीक समय पर यहां पर पहुंच जाना।"
ऐसा कहकर अच्युतानंद जी वापस ध्यान मग्न हो गए। स्नेहा ने उन्हें प्रणाम किया और वापस अपने घर आ गई।
घर पहुंच कर स्नेहा ने देखा सभी लोग नाश्ता कर रहे थे। उसके घर में कदम रखते ही पीहू दौड़ कर उसके पास आ गई। स्नेहा ने पीहू को गोद में उठा लिया और उसे लाड करने लगी।
पीहू भी स्नेहा के गले लगी हुई थी और गले लगे हुए ही स्नेहा से पूछा, "बूईईई आप कल पूरे दिन कहां थी?"
स्नेहा ने कहा, "बेटा कल बूई की एक फ्रेंड बहुत ज्यादा बीमार हो गई थी। तो वही उन्हीं के पास थी।"
पीहू ने परेशान होते हुए पूछा, "बूईईई अब आपकी फ्रेंड ठीक हैं।"
स्नेहा ने कहा, "हां बेटा... अब वह ठीक है और वह अपनी मम्मी के पास चली गई है।"
स्नेहा ने ऐसा कहते हुए पीहू को गोद से उतारा और हाथ पकड़ कर डाइनिंग टेबल की तरफ ले गई। उसे चेयर पर बैठा कर कहा, "पीहू बेटा…! आप नाश्ता करो बुई अभी आती है।"
इस पर अखिलेश जी ने भी कहा, "स्नेहा जल्दी आना हम सब नाश्ते के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।"
स्नेहा ने कहा, "कोई बात नहीं चाचा जी, आप सब लोग नाश्ता कीजिए मुझे थोड़ा टाइम लगेगा।"
ऐसा कहकर स्नेहा अपने कमरे में चली गई। वहां जाकर स्नेहा जल्दी से तैयार हुई और ऑफिस के लिए निकल गई।
ऑफिस जाकर स्नेहा ने देखा, आज ऑफिस काफी साफ सुथरा और व्यवस्थित दिखाई दे रहा था। स्टाफ में केवल दो या चार लोग दिखाई दे रहे थे।
सभी जाकर स्नेहा से कहने लगे, "सॉरी मैडम…!! आपको इतना सब कुछ देखना और झेलना पड़ा। पर इस सब में हमारी कोई भी गलती नहीं थी। यह सब केवल कुछ लोग लोगों के कारण हुआ है। हम आगे से ट्राई करेंगे कि आपको या इस कंपनी को हमारे कारण कोई भी नुकसान उठाना नहीं पड़े।"
स्नेहा ने कहा, "मुझे भी आप लोगों से सॉरी बोलना चाहिए, क्योंकि गेहूं के साथ कभी-कभी घुन भी पिस जाता है। मगर फिर भी आप इसे अपनी ही कंपनी समझ कर काम कीजिए। आज से यह पूरी कंपनी प्रखर जी ही संभालेंगे... तो आपको जो भी कोई प्रॉब्लम हो... आप उनसे कह सकते हैं वह आप लोगों का अच्छे से ध्यान रखेंगे। ठीक वैसे ही जैसे पापा और भाई आप लोगों का ध्यान रखते थे। आप बस उन्हें वैसे ही सपोर्ट करते रहिएगा जैसे आप पापा और भाई को सपोर्ट करते थे।"
ऐसा कहकर स्नेहा अपने केबिन में चली गई। स्नेहा के केबिन में जाने के थोड़ी देर बाद प्रखर जी उसकी केबिन में आए गए। स्नेहा प्रखर जी के साथ कुछ देर अपने बिजनेस से संबंधित बातचीत करती रही।
प्रखर जी ने कहा, "स्नेहा बेटा…! बिज़नस तो मैं संभाल लूंगा पर साइनिंग अथॉरिटी तुम्हारे पास ही रखो।"
स्नेहा ने कहा, "ठीक है अंकल।"
प्रखर जी ने कहा, "कुछ अपकमिंग प्रोजेक्ट्स है और कुछ जरूरी पेपर्स जिन पर तुम्हारे साइन चाहिए।"
ऐसा कहकर प्रखर जी ने बाहर किसी को फोन करके सारे कागज लाने को कहा। जल्दी ही एक आदमी सारे पेपर्स लेकर आ गया।
पेपर साइन करते हुए स्नेहा ने कहा, "अंकल मुझे कुछ टाइम लग जाएगा वापस आने में। तब तक के लिए आप अकाउंटेंट को बुलवाकर कुछ चेक बुक और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के लिए फॉर्म साइन करवा लीजिए ताकि मेरे पीछे से किसी की भी पेमेंट या सैलरी लेट ना हो।"
प्रखर ने स्नेह के कहे अनुसार अकाउंटेंट को बुलाकर चेक और फॉर्म्स साइन करवा लिए। पूरा दिन स्नेहा का इसी तरह बहुत ही ज्यादा व्यस्त बीता।
स्नेहा ने सोचा, "कल का दिन मैं पीहू के साथ ही बताऊंगी।"
स्नेहा जब घर आई तो ऑलरेडी रात के 10:00 बज चुके थे। स्नेहा थकी हुई थी तो जल्दी खाना खाकर सो गई।
सुबह जब स्नेहा उठी तो स्नेहा ने आवाज दी, "पीहूऽऽऽऽ पीहूऽऽऽऽ बेटाऽऽऽऽ…!!! कहां हो…!"
स्नेहा कुर्सी पर बैठे-बैठे आवाज दे रही थी कि पीहू ने पीछे से आकर स्नेहा की आंखें बंद कर दी और पूछने लगी, "बूईईई बताओ आपकी आंखें किसने बंद की है…??"
स्नेहा ने अपने हाथों से उन छोटे-छोटे हाथों को छुआ और पीहू को प्यार से आगे की तरफ खींचते हुए कहा, "यह तो मेरी छोटी सी, स्वीट सी, एंजेल है।" और पीहू के पेट में गुदगुदी करने लगी। पीहू बहुत जोर से हंसे जा रही थी।
स्नेहा ने पूछा, "पीहू बेटा…! आप आज बूई के साथ मूवी देखने चलोगी क्या?"
स्नेहा ने फिर पीछे से आती हुई प्रीति से पूछा, "प्रीति क्या मैं आज पीहू को बाहर घुमाने ले जाऊं? हम लोग एक कार्टून मूवी देखने जाने की सोच रहे हैं।"
प्रीति ने मना किया, "स्नेहा बुरा मत मानना... पर ऐसे रोज-रोज बाहर जाकर पीहू की आदतें खराब हो जाएंगी।"
स्नेहा ने कहा, "नहीं होंगी फिर भी मैं केवल आज के लिए ही कह रही हूं। उसके बाद हम 2 महीने तक कहीं भी बाहर नहीं जाएंगे।"
पीहू ने जब यह सुना तो वह उसकी मम्मी से कहने लगी, "प्लीज मम्मा... जाने दो ना... हम पक्का दो महीने बाहर नहीं जाएंगे। प्लीज मम्मा... मैं जाऊं क्या?" पीहू ने भोली थी शक्ल बनाते हुए प्रीति से पूछा, तो प्रीति मना नहीं कर पाई।
प्रीति ने कहा, "ठीक है... आज जा सकती हो पर फिर बाद में 2 महीने तक तुम कहीं भी घूमने नहीं जाओगी।"
पीहू ने प्रीति को गले लगाते हुए किस किया और कहा, "आप वर्ल्ड की बेस्ट मम्मा हो... आई लव यू सोऽऽ मच।"
प्रीति ने कहा, "बस... बस... ज्यादा मस्का लगाने की जरूरत नहीं है। जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ।"
पीहू अपने कमरे की तरफ भागी तो प्रीति ने कहा, "अरे रुको मैं आ रही हूं। मैं ही तो तैयार करूंगी तुम्हें। स्नेहा तुम भी तैयार हो जाओ, मैं अभी पीहू को तैयार करके लाती हूं।"
इतना कहकर प्रीति भी पीहू के पीछे चली गई।
स्नेहा और पीहू तैयार होकर मूवी देखने के लिए चल दिए। रास्ते में दोनों ने कुछ स्नैक्स खाए और फिर मूवी की टिकट लेकर हॉल में चले गए।
अंदर जाकर पीहू ने कहा, "बूईईई हम ना बड़ा वाला पॉपकॉर्न भी लेंगे और साथ में कोल्ड ड्रिंक भी।"
स्नेहा ने कहा, "हम पॉपकॉर्न तो ले लेंगे पर बेटा कोल्ड ड्रिंक नहीं। कोल्ड ड्रिंक नहीं पीनी चाहिए, वह बहुत हार्मफुल होती है। अब आप कोल्ड ड्रिंक के लिए जिद नहीं करोगे, नहीं तो हम वापस जाते टाइम पिज्जा नहीं खाएंगे।"
पीहू पिज़्ज़ा के नाम बहुत खुश हो गई और कोल्ड ड्रिंक ना लेने के लिए मान गई। उन्होंने साथ में टॉम एंड जेरी और मोटू और पतलू की मूवी देखी।
मूवी देख कर बाहर आते समय पीहू बहुत खुश लग रही थी। साथ ही साथ स्नेहा भी क्योंकि आज उसने पीहू के साथ बहुत अच्छा समय बिताया था। स्नेहा और पीहू दोनों पिज्जा खाकर वापस घर के लिए निकल गई।
रास्ते में गाड़ी एक फ्लाईओवर से गुजर रही थी कि अचानक गाड़ी को एक झटका लगा और गाड़ी आधी फ्लाईओवर के नीचे लटक गई...