Chapter 104

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humsafar 104

Chapter

104

सिद्धार्थ ने श्यामा को सीधे-सीधे शादी के लिए प्रपोज तो कर दिया लेकिन श्यामा किसी भी रिश्ते में बंधने से साफ इंकार कर रही थी। जिस दर्द से वह एक बार गुजर चुकी थी, एक बार फिर उस दर्द में लौटना नहीं चाहती थी। इसीलिए सिद्धार्थ ने घरवालों से बात की,"मुझे आप सब की हेल्प की जरूरत है। हो सकता है श्यामा मेरे सामने आने से बचे और यह भी हो सकता है कि वह समर्थ से भी थोड़ी दूरी बना ले। मैं उसे कोई मौका नहीं देना चाहता खुद से दूर जाने देने का और मैं नहीं चाहता कि ऐसा कुछ हो। आप सब को मेरा साथ देना होगा, अगर आप लोग चाहते हैं कि मैं शादी कर लूं तो!!!"

    "कैसी बात कर रहे हो भाई! हम तो हमेशा से तैयार है, अगर भाभी आ जाएंगी तो मैं भी तो उनके साथ मिलकर आपको परेशान करूंगा। बहुत मजा आएगा!", सारांश ने खुश होकर कहा। 

    "मुझे लगता है जीजी को श्यामा के घर वालों से बात करनी चाहिए।" जानकी ने कहा तो अवनी बोली, "नहीं मासी! श्यामा दी के अपने घर वालों से रिश्ते अछे नहीं है। वह तो अपने मायके वापस नहीं जाना चाहती। उन लोगों ने श्यामा दी से सारे रिश्ते तोड़ दिए हैं। उन लोगों को सिर्फ इस बात की नाराजगी है कि उनकी बेटी ने बिना उनकी मर्जी के तलाक ले लिया।"

   " इतना कुछ होने के बावजूद वो लोगे उस लड़के का ही साथ दे रहे हैं जिसने श्यामा को इतनी तकलीफ थी!" धानी ने बेचैन होकर पूछा। 

      "जानकी!!! आपको क्या लगता है, हमें क्या करना चाहिए?" सिया ने पूछा। 

     "अगर मेरी माने जीजी तो सबसे पहले उस बच्ची को समझाना होगा कि उसे खुश होने का हक है। जिंदगी को एक मौका दे कर तो देखें। बहुत कुछ सहा है उसने अपनी जिंदगी में। समझ सकती है हम उसकी तकलीफ। सिद्धार्थ बेटा! आपको उसे यकीन दिलाना होगा खुद पर भी और अपने आप पर भी। आसान नहीं है, अपने पुराने कड़वे अनुभवों को भूल कर आगे बढ़ जाना", जानकी ने कहा और वहां से चली गई। 

     "आप चिंता मत कीजिए भैया! हम सब है न आप के साथ। जब लाइफ ने आप दोनों को मिलवाया है तो थोड़ी मेहनत हम सब को करनी होगी। आप देखना, श्यामा दी के मन मे जमी बर्फ जरूर पिघलेगी।" अवनि ने कहा। 

    खाना खा लेने के बाद सिद्धार्थ उठा और एक नजर सारांश की ओर देखकर कुछ इशारा किया। 

     सारांश समझ गया कि सिद्धार्थ को उससे कुछ बात करनी है। जब सभी सोने चले गए तो सारांश ने चुपके से दो ग्लास और एक बॉटल निकली और लेकर सिद्धार्थ के कमरे में चला गया। सिद्धार्थ की नजर उसके हाथ में रखे ग्लास गयी तो घबरा कर उसने दरवाजा बंद कर दिया। "क्या कर रहा है छोटे!!! मॉम को पता चल गया तो घर से बाहर निकाल देंगी, तुझे भी और मुझे भी। तु घर में यह सब ले कर क्यों आया है?" 

     "आप ही ने बुलाया था भाई! मुझे लगा शायद इसीलिए बुलाया होगा। आज जो भी हुआ उसके बाद आपको जरूरत होगी तो मै जान हथेली पर रख कर ले आया।" सारांश ने भोलेपन से कहा। सिद्धार्थ ने सारांश के हाथ से एक क्लास ली और एक घूंट भरते हुए बोला,"शुभ कुछ वक़्त से चुप बैठा है। कुछ सोचा है तुमने उसके बारे में,क्या करना है उसका?"

     " वह बेचैनी से अलीशा को ढूंढ रहा है। उसे पता है कि अलीशा हमारी कैद मे है। उसकी यह बेचैनी साफ बताती है कि उसे कोई आईडिया नहीं था कि अलीशा और ललित ऐसा कुछ करने वाले है। हमें कुछ नहीं करना है भाई। अब जो भी करेगा वही करेगा।" सारांश ने कहा,"और आप श्यामा की.....मतलब भाभी की टेंशन बिल्कुल मत लो। उसके लिए मैं हाजिर हूं।"

     सिद्धार्थ ने उसे घूर कर देखा तो सारांश बोला, "मेरा मतलब भाई! पुरा दशहरा है उसमे कोई न कोई मौका जरूर मिलेगा उन्हे मनाने का। अगर फिर भी नही मानी तो श्रेया की शादी हो रही है और शादी में लड़कियों का कुछ हो जाता है। वो थोड़ी पागल सी हो जाती है। ऐसे में उन्हें मनाना आसान हो जाता है। मैं खुद के अनुभव से कह रहा हूं भाई। आपके लिए अच्छा मौका है और मैं भी तो हु आपके साथ! हम दोनों मिलकर भाभी को पटा लेंगे।मतलब भाभी को पटाने में मैं आपकी हेल्प करूंगा।"

     सिद्धार्थ  के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई। सारांश समझ गया कि सिद्धार्थ के उस मुस्कुराहट के पीछे वजह क्या है। "भाई आप अभी उसके बारे में सोच रहे हो!!! ऐसे में आप आगे कैसे बढ़ेन्गे! जिसे जाना था वह चला गया। अब जो चला गया उसके बारे में सोच कर हम अपने आने वाले कल के बारे में तो सोचना नहीं छोड़ सकते ना। अगर उसे आना होता तो वह कभी जाती ही नहीं। इतने सालों के बाद आपने फिर से अपनी जिंदगी को एक मौका दिया है। एक बार फिर अब पलट कर पीछे नहीं देख सकते भाई। यह बहुत बड़ी बात है कि आप ने श्यामा से अपने दिल की बात कही है और उससे भी बड़ी बात यह है कि आप उसे मनाना चाहते हैं। वैसे एक बात पूछूं आप इतने आप कब से हो गए मतलब एक बार इतनी स्लो कछुए की तरह और दूसरी बार मैं तो अपनी छक्का मार दिया मतलब ना आई लव यू ना कुछ सीरियस शादी के लिए प्रपोज कर डाला आपने

    "एक बार रिश्ते को वक्त देख कर देख चुका हूं। बदले में कुछ हासिल ना हुआ। इस बार देर नहीं करना चाहता। जब पहली बार उससे मिला, तब वह मुझे सबसे अलग लगी थी। आज तक कभी किसी लड़की ने मुझसे इस तरह बात नहीं की थी। जिस से भी मिला हु, सब ने मुझे अपनी ओर अट्रैक्ट करने की कोशिश की लेकिन वह पहली लड़की है जो सीधे-सीधे मुझे चार बातें सुना कर चली गई। पागल है, पूरी पागल", सिद्धार्थ ने हंसते हुए कहा फिर एक ही घूंट में पूरी ग्लास खत्म कर दी। 

    "एक वक्त था छोटे जब मेरी लव लाइफ बिल्कुल सही चल रही थी और तेरी लाइफ में एक लड़की तक नहीं थी। और आज देख! वक्त कैसे बदल गया। आज तू मेरा लव गुरु  बनने को तैयार हैं।"सिद्धार्थ ने कहा तो सारांश बोला, "वक्त वक्त की बात है भाई! वह आप का दौर था यह मेरा दौर है। अब मान भी लो कि आप बुड्ढे हो चुके हैं भाई। आप फिक्र मत करो, इन आजकल की लड़कियों को मैं अच्छे से जानता हूं।"

     "अच्छा!!! बहुत अच्छे से जानने लगे हो आजकल की लड़कियों को। बताऊ मैं अवनी को? बुलाऊ उसे! वह भी तो जाने किसका सीधा-साधा पति असल में कैसा है!!" सिद्धार्थ ने उसे धमकाते हुए कहा। 

    "क्या कर रहे हो भाई! मरवाना चाहते हो क्या मुझे! अब लड़की मिल गई तो भाई को भूल गए, सही है!" सारांश अवनि का नाम सुन उछल पड़ा। 

     सिद्धार्थ को हंसी आ गई। वह हंसते हुए एकदम से रुका और बोला, "सारांश! शुभ इतने दिनों से बहुत शांत होकर बैठा है। मुझे नहीं लगता कि आगे और ज्यादा दिन वह चुप बैठेगा। अगर मैं गलत नहीं हूं तो वह कुछ बड़ा करने के फिराक में है। ध्यान देना उस पर। अब जा....! जा कर सो जा वरना अवनि तुझे ढूँढते हुए यहां आ गई और उसने तुझे इस तरह देख लिया ना तो तेरी खटिया खड़ी कर देगी और कमरे से भी निकाल देगी।"

     सारांश को सिद्धांत के बाद भी सही लगी। वह उठा और तेजी से सिद्धार्थ के कमरे से निकल गया। सारांश जैसे ही अपने कमरे मे पहुँचा अवनि ने गुस्से मे एक तकिया उसे दे मारा। "ये क्या है? अब मैंने क्या किया जो ऐसे गुस्सा हो?" सारांश ने पूछा। 

      "और कितनी लड़कियो को जानते हो, मेरे अलावा! और मै क्या कोई चुड़ैल हु जो मेरे से इस कदर डरते हो?" अवनि गुस्से से फुफ्कारते हुए बोली। 

    "मैंने ऐसा कब कहा? मेरी बीवी तो सब से अच्छी है सबसे प्यारी है और सब से ज्यादा खूबसूरत भी तो भला मै उससे क्यो डरने लगा", सारांश बोला लेकिन अवनि जस की तस खड़ी उसे घूरती रही। उसने इशारे से सारांश को अपने पास बुलाया, "कहा थे अब तक? और ये चोरों की तरह कमरे से निकलने की वजह जान सकती हु?"

     "मै तो भाई से मिलने गया था, उन्होंने ही मुझे बुलाया था तो मै बस.........! एक मिनट....! तुम्हें कैसे पता मेरे और भाई के बीच क्या बाते हुई?" सारांश को अचानक से कुछ समझ आ गया "भाई ने बताया तुम्हें?" 

     "जी हाँ! उन्होंने ही फोन किया था तब जा कर मैंने आपकी सारी बातें सुनी जो भी आप बोल रहे थे मेरे और बाकी लड़कीओं के बारे मे। तो आज आप बाहर सोयेंगे" अवनि ने कहा और एक चादर पकड़ा दिया। 

     "भाई भी न! उन पर भरोसा करना ही नही चाहिए था। अवनि मेरी बात सुनो! अगर मै बाहर सोया और मच्छरों के साथ रोमांस किया तो कही उन बेचारे मच्छरों की गोद भराई ना करनी पड़ जाए। कितना अजीब लगेगा। कार्तिक और काव्या को देख लो! वो दोनों एक साथ कितने प्यारे लग रहे थे। क्या तुम नही चाहती की हम दोनों भी ऐसे ही.........!" सारांश ने अवनि को मनाने की कोशिश की तो अवनि ने मुह फेर लिया। सारांश ने भी उसे पीछे से जाकर धीरे से कमर से थाम लिया और उसके काँधे पर चूम लिया। अवनि के पिघलने के लिए इतना काफी था। सारांश उसकी कमजोरी अच्छे से जानता था और उसने इसी बात का फायदा उठाया और उसे गोद मे उठाकर बेड पर ले गया। 


    कलश की स्थापना अवनि ने की थी इसीलिए पूरे नवरात्रि की जिम्मेदारी अवनि पर ही थी। दोनों वक्त सुबह और शाम की पूजा और आरती के लिए पूरे घर वाले इकट्ठा होते थे। शुभ कभी इस सब में शामिल होता तो कभी नहीं होता। उसे इस सब से कोई मतलब ही नहीं था। एक दिन आरती के समय मौका पाकर शुभ ने चुपके से सारांश की पिस्टल निकाल ली," अब तुम देखना सारांश मित्तल! राम बने फिरते हो ना, दशहरा के आखरी दिन रावण का नहीं राम का अंत होगा!"


    श्यामा और सिद्धार्थ के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद श्यामा ने मित्तल मेंशन से थोड़ी दूरी ही बना ली। सिद्धार्थ ने भी उसे ज्यादा फोर्स करना सही नहीं समझा लेकिन पूरी प्लानिंग करता रहा उसे अपने करीब लाने का, उसे मनाने का। कभी सिया तो कभी अवनि तो कभी समर्थ के लिए श्यामा को मित्तल नेशन आना पड़ता था। जहां ना चाहते हुए भी उसकी मुलाकात सिद्धार्थ से हो ही जाती थी। समर्थ के प्रति उसका बर्ताव अभी भी वैसा ही था। समर्थ भी खुश हो जाता था उसे देखकर। 

    श्यामा के साथ ने समर्थ को मुस्कुराना सिखा दिया था और सिद्धार्थ को भी। घर के सभी सदस्य किसी ने किसी बहाने से श्यामा को सिद्धार्थ के साथ अकेला छोड़ ही देते थे लेकिन सिद्धार्थ जब भी उससे करीब आने के लिए एक कदम बढ़ाता, श्यामा दो कदम पीछे हट जाती। इसके बावजूद सिद्धार्थ ने हार नहीं मानी। 


     नवरात्रि के आखिरी दिन शुभ को अलीशा का पता मिल गया था। जब वह उस जगह पर  पहुंचा जहां सारांश ने अलीशा को कैद कर रखा था। वहां की सिक्योरिटी इतनी भी टाइट नहीं थी। गिन चुन के ही लोग थे वहां पर वो भी अपनी धुन मे मस्त। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यह सारा इंतजाम सारांश ने किया है लेकिन उसने ज्यादा कुछ नहीं सोचा और सबसे नजर बचा कर सबसे पहले सिक्योरिटी रूम में पहुंचा जहां से सारे सीसीटीवी कैमरा ऑपरेट होते थे। 

   शुभ ने पहले तो सारे सीसीटीवी कैमरे को ऑफ किया और उस कमरे में पहुंचा जहां अलीशा बंद थी। अलीशा को देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह कई दिनों से बीमार हो। कुछ ही दिनों में उसकी हालत ऐसी हो गई थी। कई दिनों से धूप ना मिलने के कारण उसका पूरा चेहरा सफेद पड़ गया था। शुभ को देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई, "अरे शुभ! तुम यहां? अचानक कैसे आना हुआ! इतना वक्त कैसे लग गया मुझ तक पहुंचने में! मुझे तो लगा था आपने बाप की मौत की खबर सुनकर सबसे पहले तुम मुझसे मिलने आओगे!"

     अपने पिता की मौत बात सुनकर शुभ बौखला गया। उसने अलीशा के बाल पकड़ ली और अपनी तरफ खींचा," क्यों किया तुमने ऐसा? मैंने तो तुम्हारी हेल्प की थी फिर तुमने मेरे बाप को क्यों घसीटा इस सब में? जब मैंने कहा था कि उन सब से बदला लेने के लिए मैं अकेले ही काफी हूं, तुम्हें सारांश भी मिल जाएगा और मेरा बदला भी पूरा हो जाएगा फिर क्यों भड़काया तुमने उन्हें?"

    "तुम्हें उन लोगों से बदला लेना था और मुझे तुमसे!!!तुम्हारा मैं कुछ नहीं बिगाड़ पाई लेकिन तुम्हें उस जगह चोट देना चाहती जहाँ तुम्हें सबसे ज्यादा तकलीफ हुई। मुझे अच्छे से पता था कि इस बार सारांश मित्तल तुम्हारे बाप को छोड़ेगा नहीं। इसलिए मैंने उससे भड़काया और यह कहा कि तुम्हें सारांश की बीवी पसंद है। मैंने तो तुम्हें अपना दोस्त माना शुभ लेकिन तुमने मेरे साथ क्या किया! मुझे ड्रग्स देखकर मेरे साथ जबरदस्ती की तुमने, मेरा फायदा उठाया! इतना घटिया कैसे हो सकते थे तुम"

    "मैंने तुम्हारे साथ वही किया जो तुम सारांश के साथ करना चाहती थी। अब सारांश हो या मैं, क्या फर्क पड़ता है तुम जैसी लड़कियों के लिए! तो मैंने सोचा कि थोड़ी सी तुम्हारी हेल्प कर दू लेकिन अब तुम मेरे किसी काम की नहीं हो इसीलिए अलीशा! माय डार्लिंग!!! बाय बाय", कहकर शुभ ने अलीशा पर गोली चला दी। यह वही गन थी जो शुभ ने सारांश के लॉकर से निकाला था। साइलेंसर होने की वजह से किसी को भी कुछ सुनाई नहीं दिया। उसने साइलेंसर निकाल कर अपने पॉकेट में रखा और पिस्टल को वहीं बाहर झाडियों मे फेंक दिया। रात के अंधेरे का फायदा उठाकर वह चुपचाप वहां से निकल गया। 

    शुभ जा घर वापस आया तो उस वक़्त घर मे हवन चल रहा था और सारांश अवनि हवन करने बैठे थे। उन्हे देख शुभ के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गयी लेकिन सब से छुपते हुए वह अपने कमरे मे चला गया। उसने अपने पीछे कोई सुराग नही छोड़ा था इसीलिए वह अपनी ओर से निश्चिंत था और कल का इंतज़ार करने लगा। नींद ने कब उसे घेरा, उसे खुद भी पता नही चला। 


     दशहरे का दिन था और सभी मंदिर से कलश विसर्जन कर वापस आए। शाम में रावण दहन का कार्यक्रम रखा गया था जिसके लिए घर को पूरी तरह से सजा दिया गया था। शुभ अपने प्लान को अंजाम देने में लगा था। उसने किसी पीसीओ से पुलिस को फोन कर अलीशा के बारे में सारी जानकारी दी और सारांश की गिरफ्तारी का इंतज़ार करने लगा। 





क्रमश: