Chapter 8
YHAGK 7
Chapter
रूद्र को शरण्या से अपना काम निकलवाना था लेकिन जिस तरह शरण्या अपने प्लेट में रखे चिकन पीस पर चाकू चला रही थी, उससे रूद्र डरना लाजमी था। उसने इस वक्त शरण्या को छेड़ना सही नहीं समझा और चुपचाप अपने खाने पर फोकस करने लगा लेकिन इसके बावजूद बार-बार उसकी नजर शरण्या पर चली जाती। आज जो कुछ भी उन दोनों के बीच हुआ वह लम्हा बार-बार रुद्र के जेहन में घूम रहा था। आज पहली बार उसे एहसास हुआ कि शरण्या बिना किसी मेकअप के भी बहुत खूबसूरत है। जितनी भी लड़कियों के साथ उसने डेट किया या दोस्ती की, वह सब उसकी सादगी और खूबसूरती के आगे कहीं नहीं ठहरती। 'ये तु फिर से क्या सोच रहा है रूद्र? मत भूल तेरा उसका छत्तीस का आंकड़ा है। कंट्रोल रूद्र! कंट्रोल!!वरना यह तेरी उसके सामने सबसे बड़ी हार होगी कि तू उसकी खूबसूरती के सामने घुटने टेक देगा। इतनी भी तो खूबसूरत नहीं है जितना तू सोच रहा है। ऐसी कई लड़कियों को देखा है तूने। तु उस पर ध्यान देना बंद कर और सिर्फ अपने काम से मतलब रख।'
रूद्र अपने आप में बड़बड़ाए जा रहा था, जिसे कोई सुन नहीं सकता था। लेकिन रेहान उसके ठीक बगल में बैठा था और उसे एहसास हुआ कि रूद्र कुछ बोल रहा है। उसने घूर कर रूद्र को देखा तो रूद्र सकपका गया और वापस अपना ध्यान प्लेट की ओर लगा दिया, आख़िर उसकी फेवरेट दाल मखनी जो थी। अनन्या अच्छे से जानती थी कि रूद्र को नॉनवेज पसंद नहीं इसीलिए खासतौर से सिर्फ उसके लिए कुछ डिसेज् उसने तैयार करवाए थे। जिन्हे वो बड़े चाव से खा रहा था। शिखा की नजर बार-बार लावण्या और शरण्या पर जाती और फिर कभी वह अपने दोनों बेटों को देखती। आज उसने जो कुछ भी रूद्र से कहा था वह कोई मजाक नहीं था, बल्कि वह तो खुद दिल से उन दोनों को अपनी बहू बनाना चाहती थी। शरण्या की सारी सच्चाई जानते हुए भी शिखा को इस से कोई मतलब नहीं था। रेहान की तरह उसे भी यही लगता था कि अगर रूद्र को कोई सुधार सकता है तो वह सिर्फ शरण्या ही है, इसी वजह से वह और भी ज्यादा बेचैन हो उठी और पूछे बिना ना रह सकी।
"हमारे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और मुझे लगता है अब उनकी शादी की उम्र भी हो चली है। वैसे यह उम्र शादी के लिए बिल्कुल परफेक्ट होता है, है ना अनन्या? सच कहूं तो मैं तो बहुत बेचैन हूं, जल्द से जल्द अपने घर बहू लाने के लिए। आप लोगों को भी तो अपनी दोनों बेटियों के लिए कुछ सोच रखा होगा, क्यों भाई साहब?" शिखा की बात सुन ललित ने कहा,"भाभी जी बिल्कुल सही कह रही हैं आप! शरण्या का तो अभी फिलहाल कुछ कह नहीं सकते क्योंकि उसके लिए अभी मेंटली इतनी मैंच्योर नहीं है। लेकिन लावण्या के लिए एक रिश्ता मैंने सोच रखा है। अगर वह लोग और अनन्या इस रिश्ते के लिए तैयार हो जाए तो बात आगे बढ़ाऊ। मुझे उम्मीद है लावण्या को इससे कोई एतराज नहीं होगा। अब तक उसने मेरे हर फैसले को उसने माना है, उम्मीद करता हूं इस बार भी मानेगी।"
रिश्ते के बारे में सुनकर लावण्या एकदम से घबरा गई। वही रेहान के हाथ से चम्मच छूटने से बचा। वो दोनों सबसे नजरें चुराते हुए एक दूसरे को देखने लगे। अब तक तो उन दोनों ने एक दूसरे से प्यार का इजहार भी नहीं किया था और अभी ही लावण्या की शादी की बात चलने लगी थी। वहीं शिखा भी शॉक मे थी। उसने क्या सोचा ठग और जवाब क्या मिला! लेकिन ललित इतने पर कहां रुकने वाले थे, उन्होंने धनराज से कहा धनराज! वैसे मेरे पास रेहान के लिए भी एक रिश्ता है। तुम कहो तो मैं बात चलाऊ! लड़की काफी गुणी है और संस्कारी भी, साथ में मॉडर्न भी है। घर भी संभाल सकती है और ऑफिस भी, तुम्हारे दोनों हाथ में लड्डू होंगे।"
बेचारा रेहान हर गुजरते वक्त के साथ उसका दिल बैठा जा रहा था। उसकी नजर अपने पापा पर जा टिकी, ना जाने हो क्या फैसला लेंगे? अगर सच में उसकी शादी किसी और से तय कर दी गयी तो फिर वह क्या करेगा? और अगर लावण्या का रिश्ता किसी और के साथ हो गया तो फिर वह दोनों क्या करेंगे? धनराज ने रेहान की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कहां, "अगर लड़की अच्छी है तो फिर बात चलाने में हर्ज ही क्या है? वैसे भी हमारा बेटा लाखों में एक है। रूद्र की बात होती तो मैं नहीं कहता लेकिन अगर बात रेहान की है तो फिर लड़की मुझे उसी लेवल की चाहिए जैसा मेरा बेटा है, एक परफेक्ट बहू एक परफेक्ट बीवी!" यह सुनते ही बेचारे रेहान का चेहरा लटक गया और प्लेट मे रखा खाना उसके गले से नीचे नहीं उतर रहा था। लावण्या का हाल भी कुछ ऐसा ही था। अनन्या ने भी उस रिश्ते के लिए हां कह दी थी और लड़के वालों को घर बुलाने को बोल दिया।
लेकिन इस सब से रुद्र को कोई मतलब नहीं था। उसे अच्छे से पता था कि उसकी शादी को लेकर कोई कुछ नहीं कहने वाला। वैसे भी उसे शादी से कोई मतलब था भी नहीं। उसका पूरा ध्यान शरण्या पर था और उसे एक मौका चाहिए था ताकि वह शरण्या से कुछ बात कर सके। खाना खाने के बाद जैसे ही शरण्या अपने कमरे में जाने को ऊठी, रूद्र ने पीछे से उसे आवाज दी, "शरण्या!!!!"
रूद्र की आवाज सुन शरण्या के साथ सभी चौंक गए। आखिर रूद्र ने खुद उसे सबके सामने छेड़ा था। "कुछ बात करनी थी तुमसे अगर तुम फ्री हो तो! मतलब अगर तुम्हारे पास टाइम हो तो क्या हम कुछ बात कर सकते हैं?" शरण्या ने उसे घूर कर ऊपर से नीचे तक देखा और भौहें टेढ़ी कर बोली, "दुश्मन से दोस्ती करने चले हो बच्चु! सोच समझ के सांप के बिल में हाथ डालने जा रहे हो और पूछ रहे हो तुम डसोगी तो नहीं! मेरे पास इतना फालतू टाइम नहीं है तो तुम्हारे ऊपर बर्बाद करु! मुझे नींद आ रही है और मेरे पास वैसे भी कल सुबह बहुत से काम है इसलिए गुड नाइट और हो सके तो अपनी शक्ल दोबारा मत दिखाना।" कहकर शरण्या सीधे अपने कमरे में भाग गयी और बेचारा रूद्र अपना सा मुंह लेकर रह गया।
शरण्या की इस हरकत से अनन्या बहुत ज्यादा नाराज हुई और रूद्र से माफी मांगते हुए बोली,"माफ कर देना बेटा! इसका दिमाग हर वक्त चढ़ा हुआ ही रहता है। आज तुमने इस से दोस्ती करनी चाहि और यह इस तरह बोल कर चली गई। इसकी तरफ से मैं तुमसे माफी मांगती हूं और तुम्हें इससे बात करनी है ना? ठीक है! मैं कहती हूं इसे, अगर मेरी बात नहीं मानेगी तो लावण्या की बात जरूर मानेगी! तुम दोनों के बीच दोस्ती हो जाए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। आखिर हम सब भी तो यही चाहते हैं। तुम परेशान मत हो।"
फिर वह ललित की तरफ देखते हुए बोली, "मुझे लगता है लावण्या से पहले हमें शरण्या की शादी के बारे में सोचना चाहिए। बहुत ज्यादा छूट दे रखी है आपने उसे, जरूरत से ज्यादा बिगड़ गई है वह। अब वक्त आ गया है कि उस पर लगाम लगाई जाए वरना हाथ से फिसलते देर नहीं लगेगी। पतंग की डोर उतनी ही ढिली छोड़नी चाहिए जितना हम संभाल सके। एक बार पतंग अगर हाथ से निकल गई तो फिर उसका कटना तय है और कटी पतंग का कोई ठिकाना नहीं होता। हम लावण्या से पहले शरण्या की शादी के बारे में सोचेंगे और जो रिश्ता अपने लावण्या के लिए देखा है या तो वह रिश्ता आप शरण्या के लिए लेकर आइये या फिर कोई दूसरा रिश्ता। या तो इस घर से दोनों बेटियां एक साथ विदा होंगी या फिर पहले शरण्या! और यह मेरा आखिरी फैसला है" कहकर अनन्या किचन मे सब के लिए मिठा लेने चली गई।
बेचारी शिखा, उसने क्या सोचा था और क्या हुआ। कहाँ तो वह दोनों को अपने घर की बहू बनाना चाहती थी, वही उन दोनों की शादी की बात किसी और से चल रही है। यह उसके लिए किसी झटके से कम नहीं था। शिखा का तो मानो दिल ही टूट गया हो लेकिन शरण्या की शादी की बात से सबसे ज्यादा तकलीफ रुद्र को हुई, जिसे वह खुद भी नहीं समझ पाया। जिस तरह से शरण्या ने उससे बात की उससे तो उसे नाराज होना चाहिए था लेकिन इसके बावजूद उसे शरण्या के लिए बुरा लग रहा था। लेकिन क्यों? उसके गुस्से से उसे इतना डर नहीं लगता था जितना कि इस वक्त अनन्या की बातों से लग रहा था।
रूद्र रेहान शिखा और धनराज वापस अपने घर आ गए और सभी अपने-अपने कमरों में चले गए। शिखा कपड़े बदल कर बाहर आई, उस वक्त तक धनराज बेड पर अपने फोन में स्टॉक मार्केट के आज के दिन भर का उतार-चढ़ाव देख रहा था, जो शिखा की समझ से बिल्कुल परे था। आईने के सामने अपनी चूड़ियां बदलती हुई शिखा ने धनराज से कहा, "धनराज!!! एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगे?"
धनराज ने बिना उसकी ओर देखे कहा,"तुम्हारी बातों का कभी बुरा माना है मैंने! तुम जो चाहो कह सकती हो, इसके लिए तुम्हें मुझसे या किसी से पूछने की जरूरत नहीं!"
"राज! सच कहूं तो आज जो बातें हुई, लावण्या और शरण्या की शादी को लेकर। मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। मैंने तो यह बात इसलिए उठाई थी क्योंकि मैं उन दोनों का रिश्ता अपने दोनों बेटों के लिए चाहती हूं। मेरा दिल कर रहा है कि वह दोनों बहने मेरे घर की बहू बने। सच कहती हूं राज! उन दोनों से बेहतर हमारे बेटों के लिए और कोई हो ही नहीं सकती है। आपने अगर ध्यान से देखा हो तो लावण्या और रेहान दोनों एक साथ कितने अच्छे लगते हैं। और रही बात रूद्र की तो यह बात आप भी जानते हैं और मैं भी कि रूद्र की जो हरकतें हैं उसे सिर्फ शरण्या ही सुधार सकती हैं। और फिर दोनों बच्चियां हमारे सामने बड़ी हुई है, हमारे घर परिवार को वह दोनों अच्छे से जानती हैं।
शिखा की बात सुन धनराज चौक गए। उन्हें इस बारे में जरा सी भी भनक नहीं थी कि शिखा के मन में ऐसा कुछ भी आ सकता है। और देखा जाए तो शिखा की बातें गलत भी नहीं थी। वह दोनों ही बहने उनकी आंखों के सामने बड़ी हुई थी और उनकी हर अच्छी बुरी आदतों से वह लोग काफी अच्छे से वाकिफ थे। ऐसे में उन दोनों बहनों का इस घर में बहू बन कर आना किसी सौभाग्य से कम नहीं होता लेकिन शिखा ने जब इस बारे में बात उठाई थी तब ललित ने एक बार भी इसका जिक्र नहीं किया। उल्टे उसने लावण्या के लिए एक रिश्ते की बात चला दी और खुद भी रेहान के लिए एक लड़की के बारे में बताने लगा था। इसका मतलब या तो उसके दिमाग में भी इस बारे में कोई ख्याल नहीं था या फिर उसने जानबूझकर ऐसा किया ताकि उन दोनों के बीच के जो प्रोफेशनल रिश्ते हैं उन्हें पर्सनल ना बनाया जाए। वैसे ललित की सोच भी कुछ इस तरह की थी। वह अपने बिजनेस और निजी जिंदगी को अलग-अलग रखता था। शायद इसलिए उसने शिखा की बात को समझते हुए भी ना समझने का नाटक किया हो।
इधर अपने और लावण्या के रिश्ते के बारे में सोचकर ही रेहान बेचैन हुआ जा रहा था। उसके कानों में रह रहकर ललित और अनन्या की बातें ही घूम रही थी। "कितना अच्छा होता अगर हम दोनों की शादी की बात एक साथ चल रही होती! लेकिन नहीं!!! हमारा रिश्ता तो अलग-अलग जूड़ने वाला है, क्या करूं? कैसे करूं? कैसे बताऊं सबको कि मैं लावण्या से प्यार करता हूं? लावण्या को कॉल करु? इस वक्त............शायद वो सो रही हो........नहीं......हो सकता है कि वो जाग रही हो और मेरी तरह बेचैन हो! क्या सच में वह भी मुझसे प्यार..........लेकिन उसने कभी कहा भी तो नहीं। इडियट! डफर!! तूने कौन सा बोला उसको जो उसके लिए ऐसे सोच रहा है। तुझमें इतनी हिम्मत थी तो तूने ही क्यों नहीं कहा? अगर बोल दिया होता तो यह नौबत ही नहीं आती। अब क्या करूं? मां पापा को बता दु हमारे बारे में? यही सही तरीका है, वरना यह लोग मिलकर मेरी और लावण्या की शादी अलग अलग कर देंगे और हम बस देखते रह जाएंगे। नहीं........! मुझे उसके बच्चों का मामा नहीं बनना!" सोचते हुए रेहान अपने कमरे से निकलने को हुआ, तभी उसे ख्याल आया कि जिसके लिए वह यह सब करने जा रहा है उसे तो कुछ कहा ही नहीं!!! अब क्या करें? क्या मैं लावण्या को कॉल लगाऊ? कहीं उसे बुरा तो नहीं लगेगा? वो कुछ गलत तो नहीं सोचेगी ना? इतना क्यों घबरा रहा है? तू पहली बार थोड़ी ना लावण्या से बात करने जा रहा है जो इतना डर रहा है। अपने माथे के पसीने पोंछ और लावण्या को फोन लगा। जल्दी रेहान!जल्दी कर! वरना तु जिंदगी भर पछताएगा। कम ऑन रेहान! कम ऑन!! कम ऑन!!!
क्रमशः।