Chapter 134
सुन मेरे हमसफ़र 127
Chapter
127
समर्थ को लगा, शायद अब सुहानी तन्वी को छोड़ देगी लेकिन सुहानी ने तब भी तन्वी का हाथ नही छोड़ा और अपने साथ लेकर दौड़ लगा दी। उसने भागते जाकर कुहू को पकड़ा और उससे कुणाल के बारे में पूछा।
कुहू भी इस बारे में नही जानती थी, तो वह क्या ही बताती! शिवि को कुणाल पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। वो मन ही मन बोली, 'दिल तो कर रहा है तुम्हारी सारी पोल पट्टी खोलकर रख दूं, मिस्टर कुणाल रायचंद! तुम जो मेरी बहन को इतनी तकलीफ दे रहे हो..........'
सुहानी जोर से चिल्लाई "लो? आ गए जीजू!"
शिवि ने देखा, सफेद कुर्ते जींस में कुणाल सामने से चला रहा था। कुहू के होठों पर मुस्कान आ गई। लेकिन कुहू के सामने होने के बावजूद कुणाल ने उसे नहीं देखा। उसकी नजरें तो सिर्फ शिवि को ही ढूंढ रही थी।
कुणाल को अपनी तरफ देखता ना पाकर कुहू खुद आगे गई और कुणाल के चेहरे पर गुलाल लगाकर बोली "हैप्पी होली कुणाल!"
कुणाल जैसे होश में आया। उसने कुहू को देखकर जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें भी हैप्पी होली।"
सुहानी भी भागते हुए आई और कुणाल को गुलाल लगाकर बोली "हैप्पी होली जीजू! आज अकेले आए हो? अपना बॉडीगार्ड नहीं लाए?"
कुणाल हंस दिया। वह जानता था कि सुहानी उसके दोस्त कार्तिक सिंघानिया की बात कर रही है। उसने हंसते हुए कहा "वही तो यार! मुझे अकेले यहां आने में डर लगता है। लेकिन क्या है ना, मेरे बॉडीगार्ड का भी अपना एक परिवार है जो यही दिल्ली में ही रहता है। तो इस वक्त वह अपनी फैमिली के साथ है।"
कुहू ने उसकी बांह पकड़ी और अपने साथ ले जाते हुए कहा "वो सब छोड़ो। मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी! लेकिन तुम हो कि, ना मेरा फोन उठाते हो और ना ही हमारे बीच ठीक से बात होती है। पता नहीं, कहां बिजी रहते हो तुम?"
कुणाल ने एक नजर शिवि की तरफ देखा जो कहीं और बिजी थी। उसने कुहू से कहा "सॉरी! आज कल ऑफिस के काम में इतना ज्यादा बिजी रहने लगा हूं कि टाइम ही नहीं मिलता किसी से बात करने का।"
कुहू नाराज होकर बोली "मैं कोई और नहीं हूं कुणाल, तुम्हारी होने वाली बीवी हूं! अगर तुम अभी मेरे लिए टाइम नहीं निकाल पा रहे हो तो शादी के बाद कैसे करोगे?"
कुणाल के पास इसका कोई जवाब नहीं था।
काया, सबको खुश होता देख मुस्कुरा तो रही थी लेकिन उसका मन नहीं लग रहा था। ऋषभ ने कहा था कि वह आज आएगा लेकिन अब तक उसका कोई पता नहीं था। काया खुद भी नहीं जानती थी कि वह ऋषभ का इंतजार क्यों कर रही है। जबकि वह चाहती ही नहीं कि ऋषभ से उसका सामना हो। फिर भी हर गुजरते पल के साथ उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। हर बार उसे ऐसा लग रहा था जैसे अब वो नजर आएगा।
ना चाहते हुए भी काया खुद को ऋषभ से दूर करने में नाकाम हो रही थी। ऋषभ खुद भी तो उसे अपने करीब लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा था। काया को किसी की गर्म सांसे अपने कंधे पर महसूस हुई। वह कुछ सोच पाती उससे पहले ही किसी ने उसकी कमर में हाथ डाल कर खींचा और घर के अंदर ले गया।
*****
सुहानी तन्वी का हाथ छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जिस कारण समर्थ परेशान हो रहा था। तन्वी खुद भी सुहानी के पीछे पीछे भाग कर अब तक परेशान हो चुकी थी। लेकिन सुहानी ने मन बना लिया था कि आज वो समर्थ को अच्छे से परेशान करेगी।
सुहानी फोन पर किसी से बात कर रही थी। समर्थ को यह अच्छा मौका लगा। उसने चुपके से तन्वी का हाथ पकड़ा और खींच कर अपने साथ ले जाने लगा। सुहानी एकदम से चिल्लाई "ओ हेलो! भाई!! क्या कर रहे हैं आप? आप इस तरह मेरी दोस्त को मुझसे छीनकर नहीं ले जा सकते।"
समर्थ नाराज होकर बोला "तो एक साथ कितने काम करेगी तू? इधर तन्वी का हाथ पकड़ रखा है, उधर फोन पर किसी से बात कर रही है, आते जाते लोगों से भी बातें कर रही है, हर किसी को रंग लगाने का मौका नहीं छोड़ रही। एक अकेली इंसान है तू, कोई कमल हसन नहीं जो अपने 10 किरदार अकेले खुद निभाएगी!"
तन्वी को दोनों भाई बहन की यह नोकझोंक देख हंसी आ गई। सुहानी ने तन्वी का हाथ पकड़ा और उसे अपनी तरफ खींच कर बोली "मैं जो चाहे कर सकती हूं। आप क्यों परेशान हो रहे हैं? क्या काम है आपको तन्वी से?"
समर्थ ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला लेकिन कुछ बोल नहीं पाया। आखिर अपनी बहन से कैसे करें कि वह अपनी होने वाली बीवी के साथ थोड़ा सा इंजॉय करना चाहता था, वह भी आज के दिन। ये इन दोनों की पहली होली थी, साथ में। इस दिन को वो मिस नहीं करना चाहता था।
समर्थ कुछ बोल नहीं पाया तो सुहानी उसके कंधे पर कोहनी टिका कर बोली "हां हां भैया, बोलिए मैं सुन रही हूं। अगर कुछ सूझ नही रहा तो मैं कुछ आईडिया दूं?" तन्वी ने शर्म से अपनी नजरें नीची कर ली।
समर्थ से कुछ कहते नहीं बन रहा था तो सुहानी ने उसकी मुश्किल थोड़ी और आसान करनी चाही। अब एक बहन अपने भाई की मुश्किल आसान कर सकती है क्या, आप खुद सोचो? सुहानी ने मौके पर चौका मारा। उसने कहा "ठीक है, आप को नहीं बताना तो मत बताइए। आपकी होने वाली बीवी है, आप दोनों की शादी होने वाली है, तो मैं कौन होती हूं बीच में आने वाली? लेकिन पहले यह तो बताइए कि आपने तन्वी को कहां तरह प्रपोज किया था? आई मीन कॉलेज में किया था या किसी रेस्टोरेंट में किया था या किसी गार्डन में किया था? या फिर घर पर किया था? कहां किया था? कहीं ऑफिस में तो नहीं?"
समर्थ बोला "इनमें से कहीं नहीं।"
सुहानी ने अपनी ठुड्ढी पर उंगली रखा और बोली "इनमें से कहीं नहीं तो क्या लाइब्रेरी में किया था?" आपने इस मजाक पर सुहानी खुद हंस पड़ी। फिर आगे बोली "ठीक है नहीं बताना तो मत बताइए, लेकिन यह तो बताइए कि आपने मेरी तन्वी को किस तरह प्रपोज किया था? आई मीन, रिंग देकर या गुलाब देकर?"
सुहानी अच्छे से जानती थी कि दोनों के बीच कोई सीन नहीं था। दोनों एक दूसरे से बातें कर ले या एक दूसरे के सामने आ जाए, वही बहुत बड़ी बात थी। समर्थ ने झुंझला कर कहा "इनमें से कुछ नहीं। अब जाने देगी हमें?"
सुहानी ने हैरान होने का नाटक किया और बोली "इनमें से कुछ नहीं? मतलब खाली हाथ प्रपोज कर दिया आपने मेरी दोस्त को? वेरी बैड भाई!"
समर्थ बोला "अब अगर तेरा इंटेरोगेशन हो गया हो तो क्या मैं तन्वी को लेकर जा सकता हूं?"
सुहानी बड़े बेफिक्र अंदाज में बोली "बिल्कुल! मैंने कब रोका आपको? और मैं क्यों रोकूंगी आप दोनों को? मुझे तो अच्छा लगेगा ना, अगर आप दोनों एक साथ टाइम स्पेंड करते हैं तो!"
समर्थ ने चिढ़कर सुहानी की तरफ देखा और ताना मारा "सच में? तुझे देखकर तो ऐसा कहीं से नहीं लग रहा।"
सुहानी हंसते हुए बोली "देखकर तो आपको भी नहीं लगता कि आप ऐसा कुछ कर सकते हैं। मतलब, नहीं करना नहीं करना कहते कहते अपनी ही स्टूडेंट से प्यार? खैर छोड़ो! यह तो बताओ, कि आप दोनों में से पहले प्रपोज किसने किया था? मैं भी ना, क्या सवाल कर रही हूं! आपने ही किया होगा। मेरी तनु तो कितनी सीधी साधी है। आपने मेरी दोस्त को फंसा कर अच्छा नहीं किया। बहुत तेज निकले आप।"
फिर वह तन्वी की तरफ मुड़ कर बोली "तनु! मैं तो अभी भी कह रही हूं, मेरे इतने शातिर भाई से तू दूर रहना।"
सुहानी की ये बकवास अब समर्थ के बर्दाश्त से बाहर था। उसने तन्वी का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और कहा "तेरी जैसी बहन भगवान किसी को ना दे। शादी से पहले हमारा तलाक करवाना चाहती है तू?" सुहानी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन समर्थ उसकी बात सुने बिना ही तन्वी को खींचते हुए अपने साथ ले गया।
उनके जाते ही सारांश ने सुहानी के कंधे पर हाथ रखा और कहा "अपने भाई को परेशान करते हुए तुझे शर्म नहीं आती?"
सुहानी ने भी मासूमियत से ना गर्दन हिला दिया तो सारांश ने मुस्कुरा कर कहा "आनी भी नहीं चाहिए।" दोनों बाप बेटी खिलखिला कर हंस पड़े।"