Chapter 83
humsafar 83
Chapter
83
चित्रा का मन अभी भी कहीं और उलझा हुआ था। वह चाह कर भी निक्षय की ओर नहीं देख पा रही थी। वह जानती थी की सामने बैठा शख्स उसके चेहरे के हर भाव को देखकर मन की बात जान ले रहा है। वह ना ही उसे धोखा देना चाहती थी और ना ही खुद को। क्या करूं क्या ना! ये वह समझ नहीं पा रही थी। निक्षय उसके मन की उलझन को अच्छे से समझता था, उसने भी बात बदलने और माहौल को थोड़ा हल्का-फुल्का करने के लिए कहा।
" वैसे भी तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूं! अभी तक मैंने कुछ खाया नहीं है। आई थिंक मुझे यह व्रत कर लेना चाहिए वरना क्या पता कब तुम्हारा मन बदल जाए! तुम्हारा तो कोई भरोसा ही नहीं है।"
"निक........! हमारी शादी होने वाली है।" चित्रा ने कहा।
"गलत..........! हमारी सगाई होने वाली है और वह भी हमारे पेरेंट्स के कहने पर। जब तक तुम अपने मन की उलझन से बाहर नहीं निकल जाती, शादी का तो सोचना भी मत", निक्षय ने गंभीर हो कर कहा फिर थोड़ा छेड़ने के अंदाज़ मे बोला,"वैसे देखा जाए तो सही है! ऐसे बिना शादी के हम दोनों का एक साथ एक घर में रहना........, अच्छा नहीं लगता ना तो सगाई बेस्ट ऑप्शन है। वो कहते है न बिन फेरे हम तेरे यू नो लाइक लिव इन रिलेशनशिप। और रही बात तुम्हारे उलझनों की तो मै तुम्हें ऐसी ऐसी डिसेज खिलाऊंगा! ऐसी ऐसी डिसेज लाऊंगा कि तुम्हें मेरी आदत हो जायेगी और तुम मजबूर हो जाओगी और शादी के लिए हां कर दोगी।" चित्रा ने सुना तो उसने बिना सिर उठाए आँखे टेढ़ी कर उसे घूर कर देखा और हाथ मे पकड़ा चम्मच उसकी ओर उछाल कर मारा। फिर खुद ही खिलखिला कर हंस पड़ी।
"ऐसे ही हँसती रहा करो! तुम पर बहुत अच्छा लगता है।" निक्षय ने कहा तो चित्रा थोड़ी देर शांत हो गयी फिर हल्के से मुस्कुरा कर हाँ मे सिर हिला दिया।
अवनि आज बहुत ज्यादा खुश थी। जो त्योहार उसने अब तक अपनी मां को करते हुए देखा था, आज वह खुद भी उस त्यौहार को मना रही थी। सब के जाने के बाद इस वक्त घर पर सिर्फ वह रज्जो काव्या और जानकी ही बचे थे। अवनि पूजा की तैयारियों में लगी हुई थी रज्जो उसका हाथ बटा रही थी और जानकी उसे पूजा की हर एक चीज समझा रही थी। काव्या वही हॉल में बैठे सब कुछ देख रही थी और अपने बुटीक का काम कर रही थी। तभी वहां हॉल में लगे लैंडलाइन पर किसी का फोन आया तो रज्जो उठकर उसे रिसीव करने चली गई।
कुछ देर तक हेलो हेलो करने पर भी दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आया उसने फोन रख दिया और वापस अवनि के पास उसका हाथ बटाने बैठ गयी। उसके बैठते ही एक बार फिर फोन की घंटी बजी तो रज्जो फिर से उठकर आई और फोन उठा लिया लेकिन इस बार भी किसी ने कुछ नहीं कहा तो अवनि को एक डर सा महसूस हुआ कि कहीं यह लक्ष्य नहीं। जब फिर से तीसरी बार फोन की घंटी बजी तो जानकी ने रज्जो को उठने से मना कर दिया और खुद कॉल रिसीव किया।
कुछ देर फोन को कान में लगाने के बाद ही जानकी के चेहरे के भाव अचानक से बदल गए और उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलक आई। कुछ देर बाद उसने "रॉन्ग नंबर" बोल कर फोन रखा और वापस जाकर बैठ गई। जब अवनि ने देखा तो उसे थोड़ी हैरानी हुई, 'आखिर ऐसा किसका फोन था जिसकी वजह से जानकी मासी इतना घबरा गई है'। इससे पहले कि वह कुछ पूछ पाती रज्जो ने हीं पूछा "किसका फोन था मासी? कुछ बोला किसी ने? पता नहीं क्या हो गया है टुडेज् के पीपल्स को! इतनी फुर्सत कहां से मिल जाती है कि किसी को परेशान करने के लिए बार-बार फोन करें।"
अपनी थोड़ी हैरान थी जानकी को देखकर वह वही काव्य अपने लैपटॉप में बुटीक का काम कर रही थी। जब पूजा की सारी तैयारियां हो गई। तब अवनि कुछ देर आराम करने के लिए अपने कमरे में गई और लेट गई। कुछ देर बाद रज्जो आई, उसके हाथ में एक बड़ा सा बैग था। अवनि के कुछ पूछने से पहले ही रज्जो ने बैग वहां रख दिया और बोली ,"अवनि भाभी! यह सारांश ब्रो ने आपके लिए सेंड किया। इनसाइड पूजा के कपड़े हैं नहीं-नहीं पूजा मैं पहनने के लिए आपके कपड़े हैं।"
"और दिदु के कपड़े? उन से तो पूछना ही भूल गयी, तुम ने पूछा की आज वो क्या पहनेंगी?" अवनि ने पूछा।
"अरे आप टेंसन नोट लो भाभी! वो कार्तिक ब्रो ने उनके लिए सेंड दिया था, मै नाउ नाउ उनके रूम मे रख के आ रही हु।" रज्जो ने कहा और कमरे से बाहर चली गयी।कार्तिक को काव्या का ख्याल करते देख अवनि को भी अच्छा लगा।
अवनि ने बैग को खोल कर देखा उसमे लाल रंग का एक बहुत ही खूबसूरत लहंगा रखा हुआ था जिसे सारांश ने खुद पसंद किया था उसके लिए और साथ ही उसकी ज्वेलरी से लेकर चूड़ियां सबकुछ था। अवनी के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गयी। उसने उसी वक्त सारांश को फोन कर उसे थैंक्यू बोला और कुछ देर एनजीओ का काम देखने लगी।
काम निबटाने के बाद अवनि फ्रेश होने बाथरूम में चली गई। पूजा का समय होने मैं थोड़ा वक्त था और अवनी जानती थी उसे तैयार होने में भी टाइम लगेगा। उसे खुद से तैयार होना अच्छा लगता था इसलिए उसने सारांश से किसी को भी बुलाने से मना कर दिया था। अवनी ने कपड़े बदले और अपना श्रृंगार किया। बाल बनाएं और पूरे मांग सिंदूर से भरा तब तक सिया ऑफिस से वापस आ चुकी थी और काव्या भी तैयार हो चुकी थी
सिया उसके कमरे में आई और उसे देख उसकी नजर उतारते हुए बोली, "सच में! बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही है मेरी बच्ची, देखना आज सारांश अपनी नज़र हटा ही नही पायेगा तुम से।" सिया की बात सुन अवनि शर्मा गयी। उसे नीचे आने का बोल जल्दी नीचे चली गई। अवनी तैयार हो कर खुद को सिर से पांव तक अच्छे से आईने में देखा फिर सारांश को एक मैसेज भेज दिया, 'मैं तैयार हूं बस आपका इंतजार है।'
सारांश को जैसे यह मैसेज मिला उसके कुछ देर बाद ही वह तुरंत अपनी मीटिंग खत्म कर बाहर निकल गया और अपने लिफ्ट की ओर चला गया। अवनि नीचे जाने को तैयार थी लेकिन उसी वक्त उसका फोन बजा। उसने जब फोन उठाया तो तू दूसरी तरफ से किसी की कोई आवाज नहीं आई। अवनि ने फोन काट दिया तो एक बार फिर उसका फोन बजा इससे पहले कि अवनि कुछ कहती दूसरी ओर से आवाज आई, "कहा था मैंने तुम्हें! समझाया भी था! उसके लिए व्रत रखने का कोई फायदा नहीं है तुम्हारा बेकार ही खुद को भी तकलीफ दे रही हो और उसे भी। अब देख लो! तुम्हारा पति जिस लिफ्ट से नीचे जा रहा है कहीं ऐसा ना हो क्यों सीधे ऊपर ही पहुंच जाए!" अवनी के होश उड़ गए और उसके हाथ से उसका फोन छोड़कर नीचे जा गिरा। अवनि बिना एक पल भी गवाए वह सीधे भागते हुए नीचे गई और बाहर गाड़ी में बैठकर निकल गई।
अवनि भागती हुई बाहर निकली, उसे देखते ही ड्राइवर ने गाड़ी के दरवाजा खोल दिया। अपनी बिना कुछ सोचे सीधे अंदर जाकर बैठी और सिर्फ एक शब्द बोला "ऑफिस"। ड्राइवर समझ गया और उसे यूं घबराया हुआ देख उसने भी बिना किसी देर के जितना हो सके उतनी जल्दी गाड़ी को भगाया और अपनी को ऑफिस लेकर गया। रास्ते में अवनी अपना फोन ढूंढने लगी लेकिन उसे कहीं नजर नहीं आया तब जाकर उसे ख्याल आया उसका फोन तो कमरे में ही रह गया है। अवनि झुनझला उठी और अपनी आंखें बंद कर भगवान से सारांश की सलामती की प्रार्थना करने लगी। ड्राइवर ने भी लगभग आधे समय में ही उससे ऑफिस पहुंचा दिया।
ऑफिस के एंट्रेंस पर पहुंचते ही अवनी अंदर की ओर भागी लेकिन वहां ऑफिस के अंदर का नजारा देख उस के होश उड़ गए। सभी सारांश की प्राइवेट लिफ्ट के पास भीड लगाए हुए थे। अवनि ने उस भीड़ में सारांश को ढूंढने की कोशिश की लेकिन उसे वह कहीं भी नजर नहीं आया। तभी दूसरी लिफ्ट से बाहर निकलते हुए सारांश के असिस्टेंट नितिन की नज़र जब अवनी पर गयी तो वह जल्दी से उसके पास आया और बोला, "सर ऊपर सेवंथ फ्लोर पर है" अवनि लिफ्ट की बजाय सीढ़ी से ऊपर की ओर भागी। ऊपर पहुंचने तक अवनि की सांस उखड़ चुकी थी लेकिन इस वक्त उससे खुद का कोई होश नहीं था। वह बस जल्दी से जल्दी सारांश तक पहुंचना चाहती थी। ऊपर पहुंचते ही अवनी ने उस पूरे फ्लोर पर एक नजर दौड़ाई। वहां कुछ लोग खड़े थे साथ ही इतनी ही देर में वहां पुलिस भी आ चुकी थी और सब से कुछ सवाल जवाब करने में लगी थी। उन सब से होते हुए अवनि की नजर एक कोने में खड़े सारांश पर गई जो उस की तरफ पीठ किए किसी से बात कर रहा था। सारांश को देखते ही अवनी की जान में जान आई, उसके मन में खुशी की लहर दौड़ गई उसने सारांश को आवाज लगाई लेकिन उसकी आवाज इतनी धीमी थी कि खुद उसे भी सुनाई नहीं दी फिर जाने कैसे सारांश को एहसास हो गया की अवनी उसे ही बुला रही है। उसने पलट कर देखा तो पाया की अवनि हताश सी खुद को सीढ़ी के पास वाले दीवार से टिका कर खड़ी है। उसे इस तरह अचानक से आया देख सारांश तुरंत ही भाग कर उसके पास पहुंचा। इससे पहले अवनी लडखडा कर गिर पड़ती, उसने जल्दी से उसके कमर को थाम लिया अवनि ने खुद को संभालते हुए पहले उसे सिर से पांव तक अच्छे से निहारा, उस पल में उसके होठों से चाह कर भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे। वह बस एक बार अच्छे से तसल्ली कर लेना चाहती थी कि सारांश बिल्कुल ठीक है। सारांश ने भी कहा ," अवनि! मैं बिल्कुल ठीक हूं! मुझे कुछ नहीं हुआ!" जब अवनि को पूरी तसल्ली हो गयी कि सारांश बिल्कुल ठीक है तो अचानक ही उसकी रुलाई फूट पड़ी और उसके सीने से लग कर रोने लगी। उसे बस एक ही ख्याल आता था एक जरा सी चूक और बहुत बड़ा हादसा हो सकता था। उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया।
सारांश ने उसे संभाला और उठाकर अपने केबिन में ले गया। उस वक्त अवनी को लग रहा था मानो उसके अंदर जान ही नहीं बची हो। सारांश ने उसकी ओर पानी का गिलास बढ़ाया लेकिन उसने लेने से इनकार कर दिया। अभी तो पूजा भी नहीं हुई थी और यह सब हो गया था ऐसे में इस वक्त में पानी कैसे पी सकती थी।
"लेकिन यह सब हुआ कैसे? " अवनि ने पूछा।
"पता नहीं! पुलिस अभी जांच में लगी है। देखते हैं यह कोई एक्सिडेंट है या फिर किसी ने जानबूझकर किया है।" सारांश ने सोचते हुए कहा फिर अचानक ही पूछा, "लेकिन तुम यहां कैसे आई, वह भी इस हालत में! तुम्हें पता कैसे चला इस बारे में?"
"यह सब कोई एक्सीडेंट नहीं है सारांश! यह सब उसने जानबूझकर किया है। उसी ने मुझे फोन करके बताया तुम्हारा एक्सीडेंट होने वाला है। तभी मै भागती हुई आई और यहां आ कर जो देखा उसके बाद से लगा मुझे जैसे......." अवनि के आगे के शब्द उसके गले में ही में एक घुट के रह गए। " इसका मतलब वह यहां तक पहुंच गया है, इसका मतलब कोई है तो उसका साथ दे रहा है, हमारी ऑफिस से ही कोई है। हमें उसे ढूंढना होगा सारांश, उसमें से ढूंढना होगा! इससे पहले वो हमारे घर तक पहुँचे, हमें उसे ढूँढना ही होगा।"
" किसे ढूंढना होगा? कोई खो गया है क्या भा......भी.........जी" , एक जानी पहचानी आवाज ने अवनि का ध्यान अपनी ओर खींचा। अवनि ने जब उस आवाज की ओर देखा तो सामने खड़े शख्स को देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गए और वह उछलकर को सीधे खड़े हो गई। उसका चेहरा अचानक से बिल्कुल पीला पड़ गया। वह अपने होश खो बैठी और वही बेहोश होकर गिर पड़ी।
क्रमश: