Chapter 17

Chapter 17

humsafar 17

Chapter

17      अवनि ने पूल मे छलांग तो लगा दी लेकिन वो एक नौसिखिया तैराक थी जो पहले कभी गहरे पानी मे नही उतरी थी और उस पूल की गहराइ छह से आठ फिट थी। अवनि तैर कर सारांश के करीब तो पहुँची मगर इससे पहले वह उसे पकड़ पाती अवनि खुद ही उसमे डूबने लगी। उसने अपने हाथ पैर चलाकर खुद को पानी के ऊपर रखना चाहा ताकि अपनी हेल्प के लिए किसी को आवाज़ लगा सके मगर नाकाम रही। 

    अवनि को लगा अब वह नही बचेगी की तभी किसी ने उसे कमर से पकड़ कर ऊपर की और खींच लिया। अवनि ने भी बिना कुछ सोचे उस सहारे से मजबूती से लिपट गयी। अवनि की साँसे फूल रही थी, वह खुद को नॉर्मल करने की कोशिश मे यह भूल ही गयी की वह किस हालत मे है। थोड़ी देर बाद जब उसने खुद को संभाला तो महसूस हुआ की जिस सहारे को थामे हुए है वो एक मजबूत कद काठी का इंसान है और उसका हाथ अभी भी अवनि के कमर को मजबूती से पकड़ा हुआ है और अवनि खुद अपनी बाहों को उसकी गर्दन पर लपेटे हुए उसके सीने से लगी है। 

     अवनि होश मे आई और खुद को उसकी पकड़ मे पाया जिसको डूबने से बचाने के लिए वो पूल मे कूदी थी। सारांश का चेहरा उसकी आँखो के सामने था। दोनो एक दूसरे के इतने करीब थे की दोनो एक दूसरे की साँसों को खुद पर महसूस कर सकते थे। कुछ डूबने का असर था और कुछ सारांश से नज़दीकी का, अवनि का दिल जोरों से धड़क रहा था जिसे सारांश साफ सुन सकता था। 

   सारांश का हाथ अभी भी अवनि की कमर पर था और अवनि का उसके काँधे पर। वो आँखे अवनि की सबसे बड़ी कमजोरी थी जिनमे वो खो जाती थी। शाम के ढलते सूरज की लालिमा मे अवनि का गोरा रंग सोने की तरह दमक रहा था। उसका भीगा चेहरा, भीगी पलके भीगे होंठ सारांश को होश खोने पर मजबूर कर रहे थे। ना चाहते हुए भी उसके अंगूठे ने अवनि के होंठो को छुआ तो एक सनसनी सी दौड़ गयी पूरे शरीर मे। 

    सारांश का फोन बजा और अवनि होश मे आई। "छोड़िये मुझे......!! नीचे उतारिये!!!" अवनि छटपटाने लगी तो सारांश ने भी उसे अपना पकड़ से आज़ाद कर दिया। जैसे ही अवनि उसकी पकड़ से छूटी, सीधे पानी के अंदर चली गयी और डूबने लगी। एक बार फिर सारांश ने उसे कमर से पकड़ा और ऊपर खिंचा। "अब भी कुछ कहना है??" सारांश ने मज़ाक बनाकर कहा। "अब बताओ तुम यहाँ कैसे???"

   " वो मै.... यहाँ... सिया मैम..... का फोन.......लेने आई....थी ....आपको डूबते....देखा तो कूद गयी।" अवनि की साँस अभी भी फूल रही थी। 

  "तुम्हारा दिमाग खराब है!! क्या सच मे तुम इतनी बेवकूफ हो। पानी मे कूदने से पहले ये तो देख लेती की इंसान क्या सच मे डूब रहा है!"

  "मैंने पानी मे कोई मूवमेंट नही देखी तो मुझे सच मे लगा आप डूब रहे है।" अवनि ने सर झुका कर कहा। 

  "इतनी ही स्मार्ट हो तो जरा आस पास ही देख लेती। अगर कोई डूबता है तो वो कपड़ो के साथ डूबता है कपड़े उतार कर नही डूबता।" सारांश ने फिर अवनि को छेड़ते हुए कहा। 

  अवनि ने देखा सचमुच सारांश सिर्फ शॉर्ट्स पहने था उसके कपड़े घडी जुतें और फोन वही पास के कुर्सी पर पड़े थे। अवनि झेंप गयी, "तो आप इस तरह...... क्या!! आई मीन ऐसे कोई स्विमिंग करता है क्या!!"

   "मैं जब थक जाता हु तो रिलैक्स होने के लिए ऐसे ही करता हु। मुझे अच्छा लगता है इस तरह फ्लोट करना। और एक बात बताओ! तुम्हे तैरना नही आता फिर पूल मे कूदी क्यों? मुझे बचाने के लिए!!!" सारांश शरारत भरे अंदाज़ मे पूछा। 

   "मुझे जो सही लगा मैंने किया। अब मुझे बाहर निकलिए प्लीज़ वरना मुझे सर्दी लग जायेगी" कहकर अवनि झूठमुठ का छींक दी सारांश ने भी किनारे लाकर उसका कमर पकड़ा और ऊपर बैठा दिया। अवनि झट से उठी और अपना दुपट्टा अपने ऊपर लपेट कर वहाँ से भाग गयी। सारांश उसकी इस बचकानी हरकत पर हँसे बिना ना रह सका। उसने एक बार अपना फोन चेक किया और वापस पानी के अंदर चला गया। 

    अवनि भागती हुई अपने कमरे मे पहुँची और बाथरूम मे जाकर दरवाजा लॉक कर वही धम्म से बैठ गयी। अवनि घबराहट मे बुरी तरह से काँप रही थी, उसका दिल बुरी तरह धड़क रहा था मानो अभी बाहर आ जायेगा। रह रह कर वो सब उसकी आँखों के सामने घूम रहा था। अपनी फीलिंग्स को अवनि खुद नही समझ पा रही थी। "जो हक तूने कभी लक्ष्य को नही दिया वो हक़ तु किसी और को कैसे दे सकती है!!, कैसे!! तू किसी और को अपने इतने करीब कैसे आने दे सकती है" अवनि अभी भी बुरी तरह हाँफ रही थी, उसे अभी भी अपने होंठो पर सारांश की छुअन महसूस हो रही थी। 

   "जब उसने तुझे छुआ तो उसे रोकने की बजाय अपनी आँखे मूंद कर उसे महसूस कर रही थी?? तु ऐसा कैसे कर सकती है अवनि! ये सरासर गलत है, वो तुझ पर इतना हावी कैसे हो सकता है और तु उसके सामने इतनी कमजोर क्यों पड़ जाती है!!! क्या हो रहा है तुझे अवनि! उसे श्रेया पसंद करती है और तु खुद किसी और को! मुझे बात करनी होगी, मेरा फोन.....!" अवनि कमरे मे अपना फोन ढूँढने लगी। उसने काँपते हाथों से लक्ष्य को कॉल लगाया मगर उसका फोन बन्द था। उसने कई बार फोन लगाया मगर हर बार  फोन बन्द ही मिला, अवनि रोने लगी, "ये क्या आदत है !!! तुम्हे पता भी है इस वक़्त मेरी क्या हालत है!! प्लीज फोन ऑन करो!!! 

     अवनि का रोते रोते सर दुखने लगा। उसने जैसे तैसे अपने कपड़े बदले और बेड पर लेट गयी। सारांश तैयार हो कर नीचे आया और सिया को घूर कर देखने लगा। "आपका फोन कहाँ है??" सिया समझ गयी और उससे बचने का बहाना तलाशने लगी। "अरे जानकी.....! कहाँ रह गयी! मेरी कॉफी ला दो जल्दी, सर दर्द से फटा जा रहा है"

  "अभी लाई जीजी!! 

   तभी अंदर हॉल मे डायना दाखिल हुई और सारांश से बोली, " मिस्टर मित्तल!!! कल के हल्दी फंक्सन के लिए सारी डेकोरेसन हो चुकी है आप एक बार चेक कर ले तो मै निकलु।"

    सारांश एक पल को रुका और बोला, "क्या तरुण है या चला गया? अगर वो है तो आप जा सकती है मै उसी से बात कर लूँगा। आपका देर रात निकलना सेफ नही होगा।" 

    "यस मिस्टर मित्तल! तरुण बाहर ही है। उसे कुछ काम था तो वह अभी देर रात यही रुकने वाला है।" डायना ने कहा जिसे सुन सारांश की त्योरिया चढ़ गयी। सिया ने ये बात नोटिस् कर ली की कुछ तो गड़बड़ है। सारांश डायना के पीछे पीछे बाहर चल दिया। 

    तरुण अपने कुछ स्टाफ के साथ डेकोरेशन को फाइनल टच अप देने मे लगा था। चारों ओर नजर दौड़ाने के बाद वो खुद पूरे इंतज़ाम से संतुष्ट था। उसने अपने एक स्टाफ को एक लीफाफ पकड़ा कर कहा, "इसे मेरे ऑफिस मे रख देना और ध्यान से कहीं गुम न हो जाए।"

   "किस्मत मे जो लिखा होता है वो कभी गुम नही होता" पीछे से सारांश ने लगभग ताना मारते हुए कहा। तरुण कोई इतना बेवकूफ नही था जो उन बातों का मतलब और उन मे छिपे ताने को समझ नही पाए। 

   "सही कहा आपने, किस्मत मे जो लिखा है वो हमसे चाहे कुछ पल के लिए दूर हो जाए मगर लौट कर हमारे पास जरूर आता है और अब तो मुझे अपने किस्मत पर और ज्यादा भरोसा हो गया है।" तरुण ने भी उसी अंदाज़ मे कहा जिसे सुन सारांश का चेहरा शख्त हो गया और बोला, "दूर रहो उससे, किस्मत भी तुम्हारे साथ नही होगी।"


क्रमश: