Chapter 91
humsafar 91
Chapter
91
सिया के थप्पड़ की गूंज इतनी जोरदार थी कि कमरे से दूर हॉल में बैठे कार्तिक काव्या सारांश अवनि रज्जो, सब को सुनाई दी । अपनी चौक पड़ी, वह झटके से उठी और सिया की कमरे की ओर जाने लगी लेकिन सारांश ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। अवनि ने जब पलटकर सारांश की और देखा तब उसके चेहरे के भाव देखकर उसे इतना तो समझ में आ गया कि सिया और जानकी के बीच के इस तनाव की वजह क्या है! सारांश ने पहले तो अवनी को रोकना चाहा लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने अवनी का हाथ पकड़ा और उसे लेकर सिया के कमरे की ओर गया। कार्तिक भी काव्या को बैठने का बोल उसके पीछे पीछे हो लिया।
सिया और जानकी के बीच की बातचीत सुन अवनि और कार्तिक दोनों ही हैरानी से एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था जो कुछ भी उन्होंने सुना था। लेकिन सारांश बिल्कुल शांत खड़ा था मानो उसे सब कुछ पहले से पता हो। कार्तिक ने जब सारांश की ओर देखा तो उसके शांत पड़े चेहरे को देख कार्तिक को सारी बात समझते देर न लगी। उसके मन में इस वक्त कई सारे सवाल उभर रहे थे जिनका जवाब सिर्फ सिया के पास था। कार्तिक ने उम्मीद भरी नजरों से सिया की ओर देखा।
कार्तिक को अपनी ओर इस तरह देखता पाकर सिया की हिम्मत जवाब दे गई। उसका गुस्सा पल भर में गायब हो गया और ऐसा लगा मानो उसके पैर अब उसका साथ नहीं दे रहे हो। वह सामने पड़ी कुर्सी पर बैठना चाहती थी लेकिन उसके पैरों ने उसका साथ नहीं दिया और वह लड़खड़ा गई लेकिन इससे पहले कि वह गिरती, सारांश ने जल्दी से उसे संभाल लिया और कुर्सी पर बैठा दिया। जानकी भी सिया को इस हाल में देखकर घबरा गई। कार्तिक तो अभी तक शॉक में था।
कार्तिक को अभी भी यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि जिस बड़ी मां को अपनी मां से भी ऊपर रखा उसके दिल में इतने गहरे राज दफन है। इतना कुछ बर्दाश्त किया है उसने लेकिन फिर भी असल सच्चाई उससे कोसों दूर थी। वह सारी सच्चाई जानना चाहता था। कार्तिक जाकर सिया के पैरों में बैठ गया और उसका हाथ पकड़ लिया। सिया को उसका बचपन याद आ गया जब भी कभी उसको कुछ चाहिए होता था वह ऐसे ही पैरों में बैठकर उसका हाथ थाम लेता था और सिया कभी उसे मना नहीं करती थी। सिया जानती थी कि आज उससे क्या चाहिए और इसीलिए उसने सबको यह सच्चाई बताने का फैसला किया।
" ललित.....! पापा यानी सारांश के दादाजी के दोस्त का बेटा......! पापा के दोस्त ने अपने आखिरी वक़्त मे उसे पापा को सौंपा था क्योंकि उनके जाने के बाद उनके बेटे का ख्याल रखने वाला कोई नही थी। पापा ने अपने मरते हुए दोस्त को वादा किया कि वह उस बच्चे का पूरा ख्याल रखेंगे और कभी भी कोई तकलीफ नहीं होने देंगे इसलिए पापा ने उस बच्चे को मां की गोद में डाल दिया जबकि शरद पहले से ही उनके आंचल में खेल रहे थे। मां ने भी पापा की जुबान का मान रखते हुए ललित को शरद के बराबर प्यार दिया। जैसे-जैसे दोनों में बड़े होते गए, उन दोनों में दोस्ती भी बढ़ती गई और एक दूसरे के लिए प्यार भी साफ दिखता था।
जब मेरा और शरद का रिश्ता जुड़ा था, उस उस वक्त तो ललित बहुत ही ज्यादा खुश था लेकिन जाने कब से उसकी मन में शरद के लिए नफरत पनप रही थी। या फिर किसी ने उसके मन में नफरत के बीज बो दिए थे भगवान जाने। उसने मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश भी की थी लेकिन शुरू शुरू में मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे उसकी बदतमीजिया बढ़ती गई और उसके मन में दबी सभी के लिए नफरत भी।
बाद में जाकर पापा को पता चला कि उसके नफरत की वजह आखिर क्या थी। ना जाने किस ने उसे यह कहकर भड़का दिया था कि उसके अपने मां-बाप की मौत की वजह पापा थे और उन्होंने ही जानबूझकर उनका एक्सीडेंट करवाया था। पापा ने उसे समझाने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन उसके मन में यह बात गहरे तक बैठ गई थी और नफरत अपनी जड़े जमा चुका था।
जब दूसरी बार मै प्रेग्नेंट थी तब शरद बहुत ज्यादा खुश थे। उन्हे एक बेटी चाहिए थी क्योंकि उनकी खुदकी कोई बहन नही थी और बहन ना होने की तकलीफ वह जानते थे। उन्होंने तो नाम तक सोच रखा था "शिखा"
जानकी के पिताजी मेरे मायके में माली का काम करते थे। हम दोनों बचपन से ही पक्की सहेलियां थी। जानकी जब भी मुझे मिलने मेरे ससुराल आती वह जरूर ललित की शिकायत करती लेकिन सब की तरह मैं भी उसकी नासमझी समझ कर नजरअंदाज कर देती और यही सबसे बड़ी गलती साबित हुई। जब तक मां पापा जिंदा थे तब तक उसकी हिम्मत नहीं हुई कुछ करने की लेकिन उनके गुजरने के बाद से ही शरद के साथ एक के बाद एक जानलेवा हादसे होने लगे। जब कभी वह सब थमता तो कंपनी में कुछ ना कुछ प्रॉब्लम हो जाती।
मेरी डिलीवरी डेट नजदीक थी और उसी वक्त शरद को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। उस वक्त ललित घर पर नहीं था और कुछ दिन पहले ही वह घर से बिना बताए निकल गया था। जब मेरा लेबर पेन शुरू हुआ तब मैं शरद से ही बात कर रही थी। मेरी आवाज सुन वह उसी वक्त वहां से निकल गए मेरे पास आने के लिए। उस वक्त पल्लवी मेरे साथ थी और उसी ने मुझे हॉस्पिटल पहुंचाया। जब मैं होश में आई तब जाकर मुझे पता चला कि घर आते वक्त रास्ते में शरद का एक्सीडेंट.........
जानकी मेरे पास भागी चली आई। मॉम डैड ने भी मुझे कितना कहा साथ चलने को लेकिन मैं अपना घर छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती थी, जहां शरद की यादें बसी थी।उनकी मौत ने ना सिर्फ मुझे बल्कि कंपनी को भी बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया। उनके पीठ पीछे ललित ने पहले ही कई शेयर होल्डर्स को अपनी तरफ कर लिया था। शरद के जाने के बाद उसने पूरी कंपनी को हथियाना चाहा। उसके बहकावे में आकर ही कई शेरहोल्डर्स ने अपने हाथ कंपनी से खींचने चाहे थे। उस वक्त अगर मैं शोक मनाती तो आज हम लोग किसी सड़क किनारे होते। उस वक्त सबको दिखाने के लिए और कंपनी को बचाने के लिए हम ने शरद के हार्ट अटैक की झूठी रिपोर्ट तैयार करवाई और उन्हें जिंदा बताया ताकि हम उस कंपनी को बचा सके जिस कंपनी में पापा और शरद की सालों की मेहनत लगी थी।
अपने दोनों बच्चों को जानकी और धानी के हवाले कर मैंने ऑफिस को संभाला। शरद के हॉस्पिटल में होने की खबर से ही जो शेयर होल्डर्स ने अपने हाथ खींचने की बात कही थी अब उन्हीं लोगों ने मेरा साथ देना शुरू किया। शुरुआती नजरों में शरद के साथ जो हुआ वह एक्सीडेंट था लेकिन पल्लवी की जिद थी कि शरद की मौत का असली वजह पता लगाया जा सके। उस वक़्त यहां के कमिश्नर साहब जो पल्लवी के रिश्तेदार ही थे उन्होंने चुपके-चुपके यह पूरा इन्वेस्टिगेशन करवाया। जिसको मैं अब तक एक एक्सीडेंट ही मानती रही 2 महीने के बाद मुझे पता चला कि वह एक्सीडेंट नहीं बल्कि सोची समझी साजिश थी, वह भी तब जब कमिश्नर साहब खुद ललित को गिरफ्तार करके लेकर गए। एक-एक कर साजिश की सारी परतें खुलती गई और उसके मन में जो तभी नफरत थी वह खुलकर बाहर आए।
उसके जेल जाने के बाद लगा जैसे अब सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन अभी एक हफ्ता भी नहीं गुजरा था मुझे पता चला कि जानकी पेट से हैं। मुझे यकीन नहीं हुआ कि आखिर जानकी ऐसा कैसे कर सकती थी। जहां तक मैंने जानकी को जाना था वह इस तरह की कभी थी ही नहीं लेकिन धानी ने मुझे सारी सच्चाई बताई और बताया कि इस सबके पीछे ललित का हाथ है। मेरी गैर हाजरी में ललित ने जानकी को अपना शिकार बनाया और वह भी एक बार नहीं कई बार। उस वक्त मैं खुद इतने तनाव में रहती थी कि जानकी ने मुझे एक और टेंशन देना सही नहीं समझा और खुद सब कुछ सहती रही।
मैंने जानकी को सबकी नजरों से छुपा कर रखा यहाँ तक की पल्लवी से भी। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि बिन ब्याही मां होने का कलंक जानकी पर लगे। जानकी उस बच्चे को इस दुनिया में लाना नहीं चाहती थी और कहीं ना कहीं मैं भी उसका साथ दे रही थी लेकिन जब उसे हॉस्पिटल लेकर गए उस वक्त ना जाने क्या हुआ मुझे कि मैंने जानकी को ऐसा करने से रोका। आखिर बाप के गुनाहों की सजा उस बच्चे को क्यों मिले जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं था। किसी और के किए की सजा मैं एक मासूम बच्चे को नहीं दे सकती थी इसलिए मैंने यह फैसला किया कि मैं उस बच्चे को अपना नाम दूंगी। यह वो वक्त था जब मैं जानकी और धानी, तीनों एक दूसरे का सहारा बने और अपने बच्चों के लिए पूरी दुनिया के सामने खुद को मजबूती से खड़ा किया।
हम तीनों माँओं ने मिलकर तुम चारों को अच्छी से अच्छी परवरिश देने की कोशिश की लेकिन हर चीज हमारे मन मुताबिक कहां होता है। उस शैतान की पहुंच काफी लोगों से थी जिस कारण वह सजा से बचता रहा। जाने कब उसने शुभ को हमारे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया उसके मन में हमारे खिलाफ जहर डालना शुरू कर दिया। मैं चाह कर भी उस शैतान को अपनी जिंदगी से दूर ना कर पाई" कहते हुए सिया फफक कर रो पड़ी।
"मेरा यकीन करो मैंने कभी शुभ में और अपने बच्चों में कोई अंतर नहीं समझा लेकिन उसकी आँखें.......! उसकी नीली आंखों ने हमेशा मुझे उस इंसान की याद दिलायी है जो हमारे लिए किसी शैतान से कम नहीं था" सिया में एक गहरी सांस ली और अपने आंसू पोछे। आज उसके मन का गुब्बार जो इतने सालों से अपने अंदर दबा के रखा था सबके सामने जाहिर कर खुद को बहुत हल्का महसूस कर रही थी।
कार्तिक और अवनी अभी भी हैरान से उसे ही देखे जा रहे थे। कार्तिकने सिया की गोद में अपना सिर रख दिया सिया फिर बड़े प्यार से उसके बाल सहलाने लगी। कार्तिक अभी भी यकीन नहीं कर पा रहा था कि सिया किन-किन हालातों से गुजरी है और किस तरह उसने सब को संभाले रखा फिर भी मुस्कुराना नहीं भूली। वही सिया की सारी सच्चाई जानकर अवनी के आंखों से भी आंसू गिरने लगे थे लेकिन सारांश बिल्कुल शांत खड़ा रहा। उसने सिया के कंधे पर हाथ रख उसे शांत कराना चाहा।
"आप लोगों का मेलोड्रामा हो गया हो क्या हम लोग खाना खा ले। मुझे भूख लग रही है, आप लोगों का यह सब बात में भी कंटिन्यू हो सकता है", शुभ की आवाज सुन सभी चौक पड़े और सब की नजर उसकी और ही घूम गया जो कि दरवाजे पर ही खड़ा था। जानकी ने गुस्से में उसे कुछ कहना चाहा लेकिन सिया ने उसे रोक दिया और बोली," जानकी अगर इसे इतनी ही भूख लगी है तो इसे इसके कमरे में खाना भिजवा दो।"
शुभ भी एक कटाक्ष भरी मुस्कान देकर वहां से चला गया उसके पीछे जानकी भी चली गयी। दोनों के जाने के बाद कार्तिक ने पूछा,"क्या उसे पता है जानकी मासी के बारे में?" सिया ने हां में सिर हिलाया और बोली, "इसके बावजूद भी वह अपनी मां से ऐसी बदतमीजी से बात करता है! दोष उसका नहीं उसके खून का है। इसलिए मैं चाह कर भी उसका कुछ नहीं कर पा रही। उस आदमी ने उसे भी अपनी तरह ही शातिर और चालबाज बना दिया है जो अपने पीछे कोई निशान नहीं छोड़ता।"
"डोंट वरी मॉम! इस बार अगर उसने कुछ करने की कोशिश की तो वह नहीं बचेगा। उसे उसके किए की सजा मिलकर रहेगी" सारांश ने कहा तो सिया कुछ ना बोली। कुछ देर बाद शुभ को खाना भिजवा कर जानकी शिया के लिए भी खाना ले आई लेकिन सिया ने खाने से साफ इंकार कर दिया तो कार्तिक ने थाल लेकर एक निवाला सिया की ओर बढ़ा दिया," अगर आप नहीं खाएंगे तो आज हम में से कोई भी नहीं खा पाएगा और क्या आप चाहती हैं कि आपके बच्चे आज भूखे सोए!!!"
सिया का दिल भर आया उसने उससे कुछ कहा नहीं गया बस ना में सिर हिला दिया और कार्तिक के हाथ से निवाला खा लिया। जानकी भी अपने आंसुओं को पोंछ वहां से निकल गई और अपने कमरे में चली आई। इतना सब कुछ होने के बाद उसका भी बिल्कुल दिल नहीं था कि वह सब के साथ बैठे। आज बरसों बाद पिछली सारी घटनाओं को याद कर उसका भी बुरी तरह से रोने का दिल कर रहा था लेकिन अपने आंसुओं को छुपाए हुए थी तभी किसी ने उसके दरवाजे पर दस्तक दी।
जानकी ने जब मुड़कर देखा तो पाया कि सारांश हाथ मे खाने की थाली लिए खड़ा था। वह धीरे से चलते हुए अंदर आया और जानकी के बगल में बैठ गया। "मेरा यकीन करो सारांश!!! मैंने कभी उसका साथ नही दिया। मेरा भगवान जानता है की मैंने सबसे ज्यादा तुम्हें प्यार किया है, मेरा यकीन करो!" जानकी ने रोते हुए कहा तब सारांश ने एक निवाला उठाकर जानकी की ओर बढ़ाया और बोला, "जब बच्चे भूखे हो तो माँ खाना नहीं खाती तो फिर जब माँ भूखी हो तो बच्चे कैसे खा सकते हैं। एक माँ ने तो अपने बेटे के हाथ से खा लिया क्या एक और माँ अपने बेटे के हाथ से नहीं खाएगी!!!"
जानकी ने अब तक जिन आंसुओं को रोके रखा था सारांश की बातें सुन उन आंसुओं का बांध टूट गया और वह सारंग के गले लग कर फफक कर रो पड़ी।
क्रमश: