Chapter 14

Chapter 14

Episode 14

Chapter


जल्दी ही कुछ खट्टे मीठे अनुभवों के साथ स्नेहा ने अपनी पहली साधना पूरी कर ली थी। साधना पूरी करने के बाद स्नेहा अच्युतानंद जी के पास आशीर्वाद लेने गई।

 स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव आपके आशीर्वाद और मां भगवती की असीम अनुकंपा से मैंने अपनी पहली साधना पूरी कर लिया ली है।"

 अच्युतानंद जी ने कहा, "स्नेहा अभी तुमने पहला पड़ाव ही पार किया है। अगली साधना तुम्हें शव साधना करनी होगी और उसके लिए तुम्हें 2 दिन इंतजार करना होगा। 2 दिन के बाद तुम्हारी साधना के लिए शव नदी के पास के जंगलों में मिलेगा। तुम्हें ये 2 दिन यही रह कर या तुम चाहो तो बाहर भी जा कर बिता सकती हो।"

 स्नेहा ने कहा, "नहीं गुरुदेव…!! मैं कहां जाऊंगी। मुझे यह 2 दिन मां के चरणों में ही बिताने हैं, अगर आप आज्ञा दे तो।"

 अच्युतानंद जी ने कहा, "स्नेहा मां के पास समय बिताने में कैसी आज्ञा... अगर मां को कोई आपत्ति नहीं है, तो मुझे भला क्यों होगी। अगर यह विचार तुम्हारे तुम्हारे मन में आया है, तो अवश्य इसमें मां की इच्छा होगी। तुम अवश्य ये 2 दिन मां के सानिध्य में बता सकती हो।"

 गुरुदेव की यह बात सुनकर स्नेहा बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गई। उस दिन स्नेहा ने मां के लिए विशेष भोग बनाया था।

स्नेहा को याद आया कि आत्मानंद 15 दिनों बाद अपनी साधना से फ्री होने वाला था और सभी लोग उससे मिलने जाने वाले थे।  स्नेहा ने ध्यान लगाकर देखा कि कोई उससे मिलने अभी तक गया है या नहीं।  तब उसे पता चला कि शाम को वह लोग आत्मानंद से मिलने वाले थे।

 स्नेहा जल्दी से अच्युतानंद जी के पास गई और कहने लगी, "गुरुदेव…!! शाम को विराज, चाचा एंड कंपनी आत्मानंद से मिलने जाने वाले हैं। तब तो उन्हें मेरे यहां होने का पता चल जाएगा।" स्नेहा इस बात से थोड़ा घबरा गई थी।

 पर अच्युतानंद जी ने स्नेहा को तसल्ली देते हुए कहा, "स्नेहा यह अब तुम मेरे ऊपर छोड़ कर निश्चिंत हो जाओ। आत्मानंद को मैं देख लूंगा।" 

स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव... क्या मैं 2 घंटे बाद आपसे आकर मिलूं। ताकि हम दोनों को ज्ञात हो सके कि आत्मानंद और चाचा वगैरा आगे क्या करने वाले हैं?"

2 घंटे बाद स्नेहा और अच्युतानंद एक जगह इकट्ठे होकर अपने सामने वह दृश्य देख रहे थे। 

श्मशान में आत्मानंद, विराज, अखिलेश जी और गीता बातचीत कर रहे थे।

 आत्मानंद ने कहा, "फिलहाल तो उस लड़की से आप लोगों को कोई भी संकट नहीं है। मैं जितना देख पा रहा हूं, वह स्वयं किसी संकट में फंसी हुई है।"

 आत्मानंद के इतना कहते ही स्नेहा ने अच्युतानंद की तरफ देखा तो अच्युतानंद जी ने आंखों से इशारा करके उसे चुप रहने के लिए कहा।

 इस पर विराज ने हाथ जोड़कर कहा, "गुरुदेव क्या हम उसे भी रास्ते से हटाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करेंगे क्या?"

 अखिलेश और गीता ने भी विराज की हां में हां मिलाई। 

तब आत्मानंद ने कहा, "विराज एक महीने बाद म ही मैं तुम्हें बता पाऊंगा कि हम उस लड़की के लिए कब और क्या करेंगे?"

 विराज ने टेंशन लेते हुए पूछा, "पर गुरुदेव... इतना समय…???"

 आत्मानंद ने कहा, "मुझे उसके पास कुछ अदृश्य शक्तियों का आवरण दिखाई दे रहा है। जिसे समझने के लिए मुझे कुछ समय की आवश्यकता है। उसके बाद ही हम यह पता लगा पाएंगे कि उस लड़की पर किस प्रकार के तंत्र का प्रहार करना पड़ेगा? ताकि हमें बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के अपने सफलता प्राप्त हो।"

उस दृश्य के समाप्त होने पर स्नेहा ने अच्युतानंद जी की तरफ देखा।  अच्युतानंद जी ने कहा, "फिलहाल के लिए मैंने तुम्हारे आसपास एक सुरक्षा कवच का निर्माण कर दिया है। जिसके कारण उन्हें जब तक मैं ना चाहूं तब तक यह पता नहीं चलेगा कि तुम कहां हो और क्या कर रही हो? इसलिए तुम अपनी साधनाऐं शीघ्र अति शीघ्र पूरी करने की का प्रयत्न करो।"

 ऐसा कहकर अच्युतानंद जी ने स्नेहा को अपनी कुटिया में भेज दिया। कुटिया में आकर स्नेहा आराम ही कर रही थी कि उसके मन में एक विचार आया। 

स्नेहा ने सोचा, "आज मां के लिए छप्पन भोग बनाने की इच्छा है।"

 स्नेहा के ऐसा सोचते ही छप्पन भोग बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्रियां उसकी कुटिया में इकट्ठी हो गई। स्नेहा आश्चर्य में ही थी पर फिर 

स्नेहा ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की।

"मां…!! यह छप्पन भोग बनाने का विचार मेरे मन में आया है। मां इसके लिए मैं खुद से सभी सामग्री इकट्ठा करके, अपनी मेहनत से छप्पन भोग बनाना चाहती हूं। मां... आप मेरी सहायता कर रही है, आपने मेरे लिए इतना कुछ सोचा, उसके लिए मैं बहुत आभारी हूं। पर मां इतनी दया और कर दीजिए... कि सभी सामग्री मैं खुद अपनी मेहनत से जुटा पाऊं।" स्नेहा के ऐसा बोलते ही सारी सामग्रियां अपने आप वापस लुप्त हो गई।  

स्नेहा अच्युतानंद जी के पास गई और उन्हें कहा, "गुरुदेव मैं मां के लिए छप्पन भोग बनाना चाहती हूं। उसके लिए सामग्रियां एकत्र करने के लिए मुझे बाहर जाना होगा। क्या मैं जा सकती हूं??"

 अच्युतानंद जी ने कहा, "ठीक है स्नेहा तुम जल्दी जाना और जल्दी आना मां के साथ-साथ अब मैं भी छप्पन भोग का प्रसाद लेकर ही अपना उपवास खोलूंगा।"

 अच्युतानंद जी से आज्ञा पाकर स्नेहा जल्दी ही बाहर की तरफ निकल गई।  रास्ते भर स्नेहा यही सोच रही थी कि कैसे पैसे कमाए। ताकि अपनी पहली कमाई से मां के लिए छप्पन भोग तैयार कर सकें।  स्नेहा यह सोचते हुए जा ही रही थी कि रास्ते में कुछ लड़के एक लड़की को जबरदस्ती घसीटते हुए जंगल में अंदर ले जा रहे थे।  लड़की बचाने के लिए चीखे जा रही थी। पर इस घने जंगल में उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था।

 स्नेहा ने यह देखा तो उससे रहा नहीं गया, स्नेहा उन लड़कों के सामने पहुंच गई और गुस्से से धमकी देते हुए कहा, "तुम इस लड़की को छोड़कर, अभी की अभी यहां से निकल जाओ। वरना मैं भूल जाऊंगी कि तुम भी मनुष्य हो और तुम्हें तुम्हारे किए की ऐसी सजा मिलेगी, जो तुम तो क्या तुम्हारे परिवार वाले भी भूल नहीं पाएंगे।" 

वह चारों लड़के स्नेहा की तरफ देखकर हंसने लगे। वह लड़की बुरी तरह घबरा कर स्नेहा के पीछे आकर छुप गई थी। उन चारों में से एक लड़का बोला, "वैसे भी बहुत ही नाइंसाफी थी। हम चार लड़के और यह अकेली लड़की, पर कोई ना जो होता है, अच्छे के लिए होता है। अब लड़कियां भी दो हैं तो कोई दिक्कत नहीं होगी।" 

ऐसा कहकर चारों लड़के फिर बेशर्मी से हंसने लगे। अबकी बार एक दूसरा लड़का बोला, "वैसे भी जिसे हम उठा कर लाए हैं, ये तो उससे भी ज्यादा सुंदर है। हमें तो खुशी है कि तुम हमें यहां मिल गई।"

 ऐसा कहते हुए वह लोग स्नेहा की तरफ बढ़ने लगे। स्नेहा हाथ बांधकर उन्हें तेज नजरों से देखती रही, अचानक स्नेहा ने अपने कानों को छूते हुए कुछ बड़बड़ाया। स्नेहा के ऐसा करते ही तेज आंधी चलने लगी और मिट्टी उड़ने लगी। लड़के आंधी के कारण कुछ भी देख नहीं पा रहे थे। उनके पैर थोड़े-थोड़े उखड़ने लगे थे, पर फिर भी उन्होंने आकर स्नेहा का हाथ पकड़ लिया। उनके ऐसा करते ही स्नेहा ने उन लड़कों की जमकर धुलाई कर दी।  वह लड़की आंखें फाड़े हुए, स्नेहा को ही देख रही थी।  अच्छे से लड़कों की मरम्मत करने के बाद स्नेहा जब उस लड़की के पास पहुंची, तो स्नेहा के चेहरे को देखकर ही वो लड़की डर से बेहोश हो गई।

  स्नेहा ने घबराकर सोचा, "क्या हो गया…??"

घबराकर पास ही नदी में स्नेहा अपनी परछाई देखने गई।  एक बार को तो वह खुद भी डर गई थी। उस समय स्नेहा चेहरे से साक्षात् काली का अवतार लग रही थी। बाल हवा में उड़ रहे थे, चेहरे का रंग काला पड़ गया था, आंखों में खून उतर आया था और वो इतनी तेज थी कि मानो आंखों से ही किसी को भी चीर देने की क्षमता रखती हो। स्नेहा खुद भी एक पल को देखकर डर गई फिर उसने मां से प्रार्थना की। तब स्नेहा फिर से पहले जैसे दिखने लगी।

 स्नेहा ने उस लड़की को उठाया और हॉस्पिटल ले गई और वहां जाकर उसे एडमिट करवा दिया। 

फिर डॉक्टर से कहा, "इसे होश आ जाए तो आप प्लीज उसके घर खबर करवा दीजिएगा?" और वहां से वापस जाने लगी।

 बाहर कॉरिडोर में कुछ लोगों में बहस हो रही थी। डॉक्टर उन लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे थे, पर वह लोग समझने के लिए ही तैयार नहीं थे। 

स्नेहा ने उन लोगों से जाकर पूछा। 

उनमें से एक आदमी बोला, "हमारा बेटा 15 दिन से इस हॉस्पिटल में भर्ती है... यह लोग ना तो उसकी हालत के बारे में कुछ बता रहे हैं... ना ही यह बता रहे हैं कि वह कब तक ठीक होगा? यह तो गलत बात है ना…!"

 इस पर डॉक्टर ने कहा, "मैडम उस लड़के को पता नहीं क्या हुआ है। वह लड़का ट्रीटमेंट को रिस्पॉन्ड ही नहीं कर रहा है। तो हम कैसे बता सकते हैं कि वह कब तक ठीक होगा?"

 स्नेहा ने कुछ सोच कर कहा, "डॉक्टर…!! क्या मैं उस लड़के से मिल सकती हूं।"

डॉक्टर ने पूछा, "क्या हुआ मैडम…?? कोई प्रॉब्लम…?"

स्नेहा ने कहा, "नो... नो डॉक्टर...बस 5 मिनट के लिए आप मुझे उस से मिलवा दीजिए। शायद मैं आपकी कोई हेल्प कर पाऊं।"

 इतना कहने पर डॉक्टर ने कहा, "आप आइए मेरे साथ…!"और स्नेहा को उस लड़के के रूम में लेकर चला  गया। 

वह रूम एक फाइव स्टार होटल का लग्जरी रूम  जैसा दिख रहा था। चारों तरफ लाइफ सर्पोटिंग सिस्टम लगे हुए थे। बेड पर लड़का किसी राजा महाराजा की तरह लेटा हुआ था, पर उसमें जीवन के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे। स्नेहा ने मां का स्मरण करते हुए अपने कानों को छुआ,  तो स्नेहा के कान में आवाज आई, "स्नेहाऽऽऽऽ यह लड़का केवल जंगल में मिलने वाली एक विशेष जड़ी को सुंघाने से ही ठीक हो सकता है। किसी प्रकार अगर वह जड़ी लाकर तुम इसे सुंघा दो तो यह उसी समय उठ जाएगा।"

 स्नेहा ने शांत भाव से डॉक्टर से कहा,  "डॉक्टर क्या मैं इससे 2 घंटे बाद आकर फिर से मिल सकती हूं।"

 डॉक्टर ने कहा, "मैडम... उससे कुछ नहीं होने वाला है। फिर भी आप चाहती हैं तो मैं स्टाफ से कह कर 5 मिनट के लिए आपके मिलने की व्यवस्था कर सकता हूं।"

 स्नेहा ने उसे धन्यवाद दिया और बाहर लड़के के परिवार वालों के पास आकर खड़ी हो गई।  उनसे कहा, "आपके बेटे की हालत इतनी भी खराब नहीं है, पर अगर आप चाहें तो मैं इसकी मदद कर सकती हूं।"

 इस पर एक आदमी हाथ जोड़कर बोला, "बेटा अगर तुम ऐसा कर सकती हो तो तुम्हारी दया होगी।"

 स्नेहा ने  उन्हे रोकते हुए कहा, "नहीं… नहीं अंकल दया तो मां की चाहिए। मैं केवल एक प्रयास करना चाहती हूं, ताकि मेरे मन में यह संतोष रहे कि मैंने किसी का जीवन बचाने के लिए प्रयास किया।"

 ऐसा कहते ही स्नेहा जंगल के लिए निकल गई। उसकी सिद्धि स्नेहा की सहायता कर रही थी।  स्नेहा जंगल में वह जड़ी ढूंढ रही थी कि उसके कानों में एक आवाज गूंजी, "स्नेहाऽऽऽऽ आगे उन झाड़ियों के बीच एक चमकदार बैंगनी रंग का पौधा है। उस पौधे के फूल को तुम उस लड़के को सुंघा देना... वह जल्दी ठीक हो जाएगा।"

उस आवाज से ऐसी आज्ञा पाकर स्नेहा ने मां को धन्यवाद दिया और जल्दी ही वह फूल लेकर हॉस्पिटल पहुंच गई।  हॉस्पिटल में स्नेहा ने उस लड़के को फूल सुंघाया... तो उस लड़के की पलकों और हाथों की उंगलियों में कुछ हरकत हुई। जिसे देखते ही नर्स भागकर डॉक्टर को बुला लाई।

 डॉक्टर ने स्नेहा से कहा, "यह आपने कैसे किया है?"

 स्नेहा ने कहा, "बस डॉक्टर... थोड़ा सा आयुर्वेद का ज्ञान है और मां की कृपा…!! उन्हीं के कारण यह ठीक हो पाया है।"

 ऐसा कहकर स्नेहा बाहर निकल गई। बाहर आते ही लड़के के परिवार वालों ने स्नेहा को घेर लिया। अब तक उन्हें भी अपने बेटे के ठीक होने की खबर मिल गई थी।

उस लड़के की मां हाथ जोड़कर कहने लगी, "बेटा…!! तुम हमारे जीवन में आशा की किरण बनकर आई हो। तुम्हारे कारण हमारा बेटा ठीक हो पाया है। अगर तुम्हें कभी भी कोई भी जरूरत हो तो हमारे पास निसंकोच आ जाना। हमें तुम्हारे लिए कुछ करके खुशी होगी।" 

फिर उन्होंने स्नेहा के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, "बेटा तुम्हें कहीं जाना है... मैं ड्राइवर से कह कर छुडवा दूं।"

तो स्नेहा ने कहा, "नहीं... आंटी जी मैं केवल एक दिन के लिए कुछ काम ढूंढने निकली थी।  बस अब यहां से जाकर अपने लिए काम ढूंढूगीं।"

इसपर लडके के पिता ने कहा, "तुम्हें काम ढूंढने की क्या जरूरत है? तुमने आज मेरे बेटे की जान बचाई है। उसके लिए तुम चाहो तो हमेशा के लिए हमारी कंपनी में काम कर सकती हो।"

 स्नेहा ने कहा, "नहीं अंकल... मुझे केवल आज के लिए ही काम की आवश्यकता है।"

 उस लड़के की मां ने कहा, "ठीक है बेटा तुम ऐसा करो... आज के लिए मेरे बेटे का ध्यान रख लो।"  

स्नेहा उनकी बात मानकर उस दिन उस लड़के का ध्यान रखने के लिए ही हॉस्पिटल में रुक गई। अगले दिन जब स्नेहा वापस जाने लगी तो लड़के की मां ने स्नेहा को एक लिफाफा पकड़ाया।  स्नेहा ने उसे खोल कर देखा तो उसमे दो लाख रुपए थे। स्नेहा ने पांच हजार रुपए रखकर बाकी वापस कर दिये और कहा, "मुझे केवल इतने ही पैसों की जरूरत थी।"

 वह पांच हजार रुपए लेकर हॉस्पिटल से बाहर निकल गई। सभी लोग उसे देखते ही रह गए।  

हॉस्पिटल से निकलकर स्नेहा ने छप्पन भोग बनाने के लिए सारा सामान खरीदा और वापस अपनी कुटिया की तरफ चल दी।  कुटिया में पहुंचकर स्नेहा ने सबसे पहले स्नान किया फिर मां के लिए छप्पन भोग बनाना शुरू कर दिया। 

               ,,,,,क्रमश,,,,