Chapter 42

Chapter 42

humsafar 42

Chapter

42

कार्तिक काव्या और धानी वापस घर चले गए। अखिल और कंचन को सिया ने वही रोक लिया। वे दोनो भी अपनी बेटी का सुखी घरबार देख बहुत ज्यादा खुश थे। अवनि भी खुश थी अपने माँ पापा को खुश देख कर। जानकी के लाख मना करने पर भी अवनि नही मानी और किचन के कामों मे हाथ बटाने लगी। श्रेया और चित्रा तो एक दूसरे को छोड़ना ही नही चाहते थे इसीलिए वो दोनो भी वही एक ही कमरे मे रुक गए। 

      सारे काम निबटाकर अवनि जब कमरे मे आई तो सारांश को कंबल ओढ़े सोता हुआ पाया। अवनि ने एक नज़र उसे देखा और धीरे से चलकर उसके पास गयी। अवनि ने दोनो हाथ फोल्ड किया और कुछ देर देखती रही फिर एक झटके से कंबल हटा दिया। सारांश जो की अवनि के सवालों से बचने की कोशिश कर रहा था, अवनि का चेहरा देख समझ गया की आज वो उसे नही छोड़ने वाली। 

   "रात ज्यादा हो रही है और मुझे नींद आ रही है। कल सुबह मीटिंग है मेरी तो अभी मुझे सोने दो।" कहकर सारांश ने वापस कंबल ओढ़ लिया लेकिन अवनि के मन मे हज़ारों सवाल थे जिनका जवाब उसे चाहिए था तो उसने फिर से कंबल खीच लिया। "जब तक मै सटिसफाइ नही होती तब तक मै आप को सोने नही दूँगी।" अवनि ने कमर पर हाथ रख कहा। 

    सारांश एक झटके से  उठ बैठा और आँखे मटकाकर बोल, "सच्ची!!!!" अवनि उसके बातों का मतलब समझ गयी और अपनी कही बातों को याद कर झेप गयी। "मेरा मतलब जबतक मुझे जवाब नही मिलेगा मै आपको सोने नही दूँगी" अवनि ने कहा तो सारांश का चेहरा उतर गया। "थोड़ा सोच समझ कर बोला करिये हुज़ूर, ये दिल अभी निकल कर बाहर आ जाना था" सारांश ने शरारत से कहा। 

   "सारांश......! मजाक नही! मै सीरियस हु।" अवनि ने परेशान होकर कहा। 

     सारांश एक पल को जम सा गया। वह एकटक अवनि के चेहरे को देखने लगा। उसे अपनी ओर यूँ घूरता पाकर अवनि ने उसके चेहरे को ओर अपना हाथ हिलाकर उसे जगाया। सारांश होश मे आया और बोला, "फिर से बोलो..!" "मैंने कहा मजाक नही, मै सीरियस हु।" अवनि ने कहा। 

   "नही....! उससे पहले।"

  "उससे पहले क्या?" 

  "तुमने आज पहली बार मुझे मेरे नाम से बुलाया" सारांश ने कहा। अवनि ने देखा सारांश के चेहरे पर खुशी की एक अलग ही चमक थी। उसे ध्यान आया की उसने उसको नाम से पुकारा था। अब तक हमेशा ही उसका नाम किसी के भी सामने लेने से बचती रहती थी। नाजाने क्यों लेकिन सारांश नाम ही उसका दिल धड़काने को काफी था। एक अलग सा खीचाव उस नाम मे महसूस होता था। अवनि भी कुछ देर को खामोश हो गयी। 

    "क्या हुआ? अब नही पूछना कुछ?" सारांश ने अवनि को खोया देख कहा। "मै जानता हु तुम्हारे पास बहुत सारे सवाल है और मै तुम्हारे सारे सवालों के जवाब भी दूँगा लेकिन आज सिर्फ एक सवाल हाँ.....! और रोज एक सवाल।"

  "रोज एक सवाल क्यों?" अवनि ने पूछा। 

  "अब कुछ और नही करना तो रोज सवाल जवाब का खेल खेलेंगे" सारांश ने शरारत से कहा तो अवनि ने वही पड़ा तकिया उठाकर उसके ऊपर दे मारा और उठकर जाने लगी। सारांश ने उसका हाथ पकड़ कर वापस बैठाया और कहा, "बताओ... पहले किस बारे मे जानना चाहती हो?"

   अवनि ने कुछ देर सोचा और बोली, "चित्रा के मन मे क्या चल रहा है?......... कार्तिक जीजू को लेकर!" अवनि का सवाल सुन सारांश शॉक रह गया। सारांश को चुप देख अवनि का शक़ यकीन मे बदल गया। वह बोली, "मैंने देखा आज!....खाने की टेबल पर। उसकी बातों मे एक अजीब सी उदासी थी जब वो जीजू के बारे मे बात रही थी। पता है जब मै एक बार उससे जीजू के बारे मे बात रही थी तब मैंने देखा था.....जिस तरह से वो उनका नाम लेती थी, एक अलग ही खुशी उसके चेहरे पर देखी है मैंने लेकिन शादी मे भी चित्रा कुछ अलग सी ही थी। और आज.....!"

   कहते कहते अवनि रुकी, थोड़ी देर सोचने के बाद सारांश बोला, "इस बारे मे मै भी स्योर् नही हु। अभी तक मैंने इस बारे मे उससे कोई बात नही की और समझ भी नही आरहा की कैसे करू। हर बात पर पैनी नज़र रखने वाला मै अपने ही आसपास क्या हो रहा है जान ही नही पाया और शायद कभी जान भी नही पाता अगर श्रेया ने नशे मे सब उगला नही होता तो। एक दोस्त होने की जिम्मेदारिया निभाने मे मै फेल हो गया।"

   सारांश को यूँ मायूस देख अवनि ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख कहा, "आप फेल नही हुए है। भले ही जीजू आपको सुपरमैन बुलाते हो लेकिन आप भी एक इंसान है और कोई भी नॉर्मल इंसान इतना नही कर पाता जितना आप करते है।"

  "फिर आप?" सारांश ने अवनि के आप कहने पर नाराजगी जताई तो अवनि ने कहा, "इस आप को तो आप रहने ही दीजिये। घर मे सबसे छोटी हु तो मेरे लिए तुम कहना थोड़ा मुश्किल है और आप सुनना भी।"

   "ठीक है , लेकिन......! जब भी तुम गुस्सा होगी मुझे तुम कहकर बुलाओगी ताकि मुझे तुम्हारे बिना कहे समझ आये की तुम गुस्सा हो। और.! और!! और!!! रात ज्यादा हो गयी है तो अब मेरे या किसी और के बारे मे इतना सोचने की जरूरत नही है वरना....... तुम्हारे घुटने मे दर्द हो जायेगा।" सारांश ने गंभीर होकर कहा तो अवनि थोड़ी देर को सोच मे पड़ गयी लेकिन जैसे ही उसे मतलब समझ ने आया उसने पास ही पड़ा तकिया उठाकर सारांश को मारना शुरू कर दिया की तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। 

     अवनि ने दरवाजा खोला तो सामने श्रेया खड़ी थी। अवनि के अजीब से एक्सप्रेसन और सारांश की हालत देख उसे कुछ कुछ अंदाज़ा हो रहा था। ज्यादा कुछ ना कहते हुए श्रेया ने अवनि का नया आईफोन उसकी ओर बढ़ा दिया। अवनि को ध्यान आया की मॉल मे श्रेया ने उसका पुराना वाला फोन डस्टबिन मे डाल दिया था और ये वही फोन है जो नेग मे कार्तिक की तरफ से सारांश ने दिया था। अवनि ने भी बिना कुछ कहे फोन ले लिया तो श्रेया ने प्यार से उसका चेहरा छु कर आँख मार दी और भाग गयी। 

    अवनि खीज कर रह गयी। पहले सारांश और अब श्रेया, दोनो ही उसे चीढाने का कोई मौका नही छोड़ने वाले थे। अवनि गुस्से मे पैर पटकती हुई बाथरूम की ओर जाने को हुई तो सारांश ने हाथ पकड़कर रोक लिया और अपनी ओर खीच कर प्यार से कहा, "अवनि!!! तुम्हे मै बता नही सकता की मै कितना खुश हु। जिस तरह हमारी शादी हुई, तुम्हे मेरे साथ कम्फर्टेबल् होने मे काफी वक़्त लगेगा लेकिन देखो...! हम दोनो ऐसे बिहेव कर रहे है मानो हम बरसो से एक दूसरे के साथ हो। अब मुझे पूरा यकीन है की बहुत जल्द ये दूरी भी मिट जानी है और हम हमारे रिश्ते की शुरुआत करेंगे।" कहकर सारांश ने उसे अपने सीने से लगा लिया और झुककर उसकी कान की लौ को चूम लिया। 

     अवनि के पूरे शरीर मे ठंड की एक लहर दौड़ गयी। उसे अपना होश संभालना मुश्किल होने लगा तो सारांश ने कहा, "अब जाकर चेंज कर लो और सो जाओ या कहो तो मै ले चलु तुम्हे।" सारांश की बातों से अवनि होश मे आई और उसने अपना सिर उठा कर उसकी ओर देखा। सारांश की आँखों मे उसे पाने की चाहत साफ नज़र आ रही थी। अवनि ने खुदको छुड़ाया और बाथरूम मे भाग गयी। 

    अवनि ने दरवाजा बंद किया और पीठ लगाकर खड़ी हो गयी। उसके लिए खुदको संभालना मुश्किल हो रहा था और सांस लेना भी। अवनि ने शावर चलाया और नीचे खड़ी हो गयी। "ये सब क्या है अवनि? जहा तेरे सीने मे दिल के टूटने का दर्द होना चाहिए था वही दिल के जुड़ने का एहसास क्यों हो रहा है! जहा तुझे उससे गुस्से मे लड़ना चाहिए वही ये प्यार भरी लडाई क्यों? क्यों सुकून सा मिला उसकी बाहों मे! क्यों उसका मुझे यूँ छूना अच्छा लगता है ! क्यों मै खो जाना चाहती हु....उसकी बाहों मे!! क्या सच मे श्रेया की बाते सही थी! क्या सारांश ही सच मे मेरा पहला प्यार है!!!"

    

    कार्तिक अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा सिगरेट पी रहा था। काव्या ने देखा तो छीनकर कहा, "ऐसी कौन सी परेशानी है जो इसे फूंक कर अपना कलेजा जला रहे हो?" काव्या ये बात अच्छे से जानती थी की कार्तिक जब बहुत ज्यादा परेशान होता है तभी स्मोक् करता है। काव्या की बात सुन कार्तिक को समझ नही आया की वह क्या जवाब दे। पूरे रास्तेउसके दिमाग मे बस चित्रा के वापस जाने की बातें घूम रही थी और यही बात उसे परेशान कर रही थी। 

   "पता नही काव्या! बस कुछ अच्छा नही लग रहा। एक अजीब सी बेचैनी हो रही है मानो कुछ गलत.....! तुम सो जाओ मै फ्रेश होकर आता हु, शायद मूड भी सही हो जाए मेरा।" कार्तिक ने अपनी बात पूरी नही की और बाथरूम मे चला गया। फ्रेश होकर वापस आया और बिना कुछ कहे आँखे बन्द कर बिस्तर पर लेट गया। 

   "तुम और चित्रा बचपन से काफी क्लोज रहे हो न!" काव्या ने पूछा। 

  "हम्म्! बचपन मे हम दोनो ने मिलकर ढेर सारी मस्ती की है। किसी के बाग से कच्चे आम चुराने से लेकर माँ से मार खाने तक, सब मे साथ रही है वो मेरे। सारांश का साथ कभी दे या ना दे लेकिन मेरा साथ कभी नही छोड़ा उसने। मेरे साथ लड़ने का कोई मौका नही छोड़ती थी लेकिन अगर किसी ने भी मुझे परेशान करने की कोशिश की तो वो उसे छोड़ती नही थी। कहती थी "किट्टू! तुझे परेशान करने का हक सिर्फ मेरा है" सारांश से मेरी दोस्ती से भी पुरानी है किट्टू और चिट्टू की दोस्ती। हमें कभी लगा ही नही की वो एक लड़की है। हमेशा लड़को की तरह तैयार होना, लड़को की तरह बर्ताव करना। सब कुछ तो हमारी तरह ही करती थी वो।" 

       कार्तिक अपने और चित्रा के बारे मे काव्या को बताये जा रहा था और उसकी परेशानी अचानक ही कही गायब सी हो गयी। उस परेशानी की जगह अब उसके चेहरे पर एक अलग सी रौनक थी। काव्या को अपने बचपन की याद आ गयी जब वो और तरुण भी यूँ ही साथ मे लड़ते झगड़ते एक दूसरे को सपोर्ट करते कब प्यार हुआ पता भी नही चला। काव्या ने जब कार्तिक के मूड को देखा तो बोली, "कितनी अजीब बात है न कार्तिक!!! इतने क्लोज होने के बाद भी तुम दोनो को प्यार नही हुआ!"

     काव्या की बात से कार्तिक एक पल को सहम गया। "प्यार! वो भी चिट्टू से! क्या ऐसा हो सकता था? नही....! बिलकुल भी नही! अब मेरी शादी हो चुकी है और हमारे रास्ते अलग है। हम सिर्फ दोस्त है और रहेंगे।" सोचते हुए कार्तिक ने काव्या को अपनी और खीच लिया। 



क्रमश: