Chapter 13
Episode 13
Chapter
रास्ते में गाड़ी एक फ्लाईओवर से गुजर रही थी कि अचानक गाड़ी को एक झटका लगा और गाड़ी आधी फ्लाईओवर के नीचे लटक गई...
स्नेहा बहुत ज्यादा डर गई थी। उसे डर अपने लिए नहीं पीहू के लिए लग रहा था। स्नेहा ने सोचा, "अगर पीहू को कुछ हो गया तो…??"
वह पीहू को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी। पर पीहू बिल्कुल भी डरी हुई नहीं लग रही थी। पीहू को स्नेहा पर पूरा विश्वास था।
पीहू ने कहा, "हम यहां राइड पर है ना... आप डरो मत। जब झूला ऊपर जाकर अटक जाता है... तो फिर हम गिरते थोड़ी है, थोड़ी देर बाद वापस आराम से नीचे आ जाते है। आप टेंशन मत करो हम ठीक से रोड पर वापस चलने लगेंगे।"
स्नेहा को यह सब सुनकर बहुत हिम्मत मिली। स्नेहा ने गुस्से में सीट के पीछे की तरफ एक मुक्का मारा, उसके कारण झटके से गाड़ी वापस रोड पर आ गई। सभी लोग जो आसपास खड़े होकर स्नेहा की लटकती हुई गाड़ी देख रहे थे, अब वह सब झटके से वापस रोड पर आई हुई, उस गाड़ी को देखकर हैरान थे। वह लोग यह सोच रहे थे कि एकदम से ऐसा क्या हुआ जो नीचे लटकती हुई गाड़ी अपने आप वापस रोड पर चल दी।
स्नेहा को भी थोड़ा अचंभा हुआ। पर पीहू ने कहा, "देखो बूईईई मैंने कहा था ना कि कुछ भी नहीं होगा। हम लटकने के बाद वापस रोड पर ठीक से चलने लगेंगे। हम लोगों को कुछ भी चोट भी नहीं आएगी। मेरी बूईईई ग्रेट है... उन्होंने एक मुक्का मार कर गाड़ी को सीधा कर दिया।"
स्नेहा अभी भी हैरान परेशान होकर कभी रोड को, कभी फ्लाईओवर को और कभी गाड़ी को देख रही थी। थोड़ी देर बाद स्नेहा और पीहू वापस घर आ गए।
स्नेहा ने पिहू से कहा, "पीहू बेटा आप घर पर किसी को भी यह नहीं बताएंगे कि आज हमारी कार के साथ क्या हुआ था। सब लोग डर जाएंगे ना और वैसे भी यह पीहू और बूई का सीक्रेट है।"
पीहू ने हां में गर्दन हिलाते हुए कहा, "बूईईई मैं किसी को भी कुछ नहीं बताऊंगी। पर आपको ना मुझे राइड पर ले जाना पड़ेगा।"
फिर से स्नेहा ने पीहू के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "हां बिट्टूऽऽ हम पक्का चलेंगे…!"
और फिर दोनों घर के अंदर चले गए। दोपहर के तीन बज रहे थे और पांच बजे तक स्नेहा को अच्युतानंद जी के पास श्मशान में पहुंचना था। स्नेहा ने थोड़ी देर रेस्ट किया और फिर श्मशान के लिए निकलने के लिए चेंज किया। स्नेहा ने सोचा, "दस मिनट रुक के निकलती हूं…!"
स्नेहा बैठकर जाने के बारे में आंखें बंद करके सोच रही थी। स्नेहा ने दस मिनट बाद आंखें खोली तो वह हैरान रह गई।
स्नेहा इस समय श्मशान में बैठी थी। थोड़ी ही दूर पर अच्युतानंद जी ध्यान में बैठे थे। सामने ही मां का मंदिर दिखाई दे रहा था। स्नेहा ने सोचा, "मैं भी ना कुछ भी सपने देखने लगी हूं। ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं सोचूं और वहां पहुंच जाऊं। यह जरूर मेरा वहम होगा।"
स्नेहा ने दो तीन बार आंखें बंद करके खोली पर, वह अभी भी श्मशान में ही थी। अबकी बार स्नेहा ने खुद को जोर से चिकोटी काटी। चिकोटी के दर्द के कारण स्नेहा जोर से चीख पड़ी...
"आउचऽऽऽऽऽऽ…!!!"
स्नेहा की आवाज सुनकर अच्युतानंद जी ने आंखें खोली और स्नेहा को ऐसे बेवकूफ की तरह अपने आप को चोट पहुंचाते देखकर मुस्कुरा दिए।
उन्होंने स्नेहा से पूछा, "क्या हुआ स्नेहा यह तुम खुद को चिकोटी क्यों काट रही हो??"
स्नेहा ने कहा, "गुरुजी…! मैं थोड़ी देर पहले अपने कमरे में बैठी थी और यहां आने के लिए निकलने की सोच रही थी। मैंने दो मिनट आंखें बंद करके खोली तो मैं यहां थी। ऐसा कैसे हो सकता है…??"
अच्युतानंद जी मुस्कुरा दिए…
फिर स्नेहा ने कहा, "आपको पता है गुरुदेव आज मेरे साथ क्या हुआ…?"
अच्युतानंद जी ने मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या हुआ था??"
स्नेहा ने कहा, "मेरी गाड़ी फ्लाईओवर से नीचे हवा में लटक रही थी। मैं बहुत डरी हुई थी कि अचानक मैंने गुस्से में सीट पर हाथ मारा और मेरी गाड़ी जो नीचे लटकी हुई थी, एक ही झटके में रोड पर थी। गुरुदेव…! गुरुदेव यह आजकल हो क्या रहा है…???"
अच्युतानंद जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ नहीं हो रहा स्नेहा... सही समय आने पर हर एक चीज तुम्हारे सामने बिल्कुल साफ हो जाएगी।"
स्नेहा अभी भी बहुत ज्यादा असमंजस में थी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
अच्युतानंद जी ने कहा, "स्नेहा अभी के लिए वो सब छोड़ो… अभी केवल अपनी साधना पर ध्यान दो। जाओ पहले माँ और बाबा काल भैरव से आज्ञा लेकर आओ। फिर हम आगे बढ़ेंगे।"
ऐसा सुनते ही स्नेहा मंदिर की तरफ चल दी। वहां पहुंचकर माँ से विनती करने लगी, "माँ मैं जानती हूं कि बदला लेने से कुछ नहीं होता। माफ़ करने वाला बड़ा होता है, पर माँ ये आज इन्होंने मेरे साथ किया है। कल किसी और स्नेहा के साथ करेंगे। इन्हें ऐसे ही छोडऩा मतलब है इन्हें बढ़ावा देना, जो मैं बिल्कुल नहीं होने दे सकती। माँ आप मेरी सहायता करना।"
फिर बाबा काल भैरव की तरफ देखकर कहने लगी, "बाबा मैं जो करने जा रही हूँ, वो आपकी आज्ञा के बिना संभव नहीं है। आप मुझपर दया करे और साधना में सफलता का आशीर्वाद प्रदान करे।" ऐसी प्रार्थना कर के स्नेहा वापस अच्युतानंद जी के पास आकर खड़ी हो गई।
अच्युतानंद जी ने कहा, "जाओ और जाकर नदी से स्नान कर के आओ…!!"
स्नेहा ने कहा, "पर मैं तो…!!!"
"सबसे पहली और अंतिम बात गुरु आज्ञा को बिना किसी तरह के प्रश्न किए मान लेना चाहिए…!" अच्युतानंद जी ने कहा।
स्नेहा ने गर्दन झुका कर उनकी बात मान ली और नदी की तरफ चल दी। जल्दी ही स्नेहा नहा कर वापस आ गई। वापस आकर अच्युतानंद जी ने उसे मां के सामने एक आसन पर बिठा दिया और एक रुद्राक्ष की माला दी।
और स्नेहा से कहा, "इस माला से तुम्हें सात दिन तक लगातार रोज जाप करने है। गुरु मंत्र सवा लाख जाप करने पर सिद्ध हो जाता है। किसी भी साधना में सबसे पहले गुरु मंत्र का जाप किया जाता है। इसलिए तुम सबसे पहले गुरु मंत्र का ही जाप करोगी। ये सवा लाख जाप तुम्हें एक हफ्ते में पूरे करने होंगे। अब तुम जाप करो... मैं रात में तुम से आकर मिलता हूं।" ऐसा कहकर अच्युतानंद जी वापस चले गए।
स्नेहा अपने जाप में लग गई, रात को अच्युतानंद जी वापस आए और स्नेहा से कहा, "अब तुम आराम करो... सुबह छह बजे से वापस तुम्हें मंत्र जाप शुरू करना है। तो अभी कुछ खाकर आराम करो।"
ऐसा कहकर स्नेहा को एक झोपड़ी दिखा दी, जो अब से स्नेहा की आश्रय स्थली, स्नेहा का कमरा या उसका महल जो चाहे कह सकते थे। उसी दिन से स्नेहा की कठिन ट्रेनिंग शुरू हो गई थी। पूरी दिनचर्या अनुशासित हो गई थी, स्नेहा सुबह से शाम तक बिना हिले डुले गुरु मंत्र के जाप में लगी रहती थी और शाम को अपनी झोपड़ी में जाकर विश्राम करती थी। शीघ्र ही उसके सवा लाख जाप पूरे हो गए और अच्युतानंद जी ने उसे अपने शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया।
उसके बाद अच्युतानंद ने स्नेहा को कहा, "स्नेहा आज के लिए तुम्हारा जाप पूर्ण हुआ। कल रात नौ बजे तुम यहां स्नान करके लाल वस्त्र पहनकर पहुंच जाना। तुम्हारी साधना को हम अगले पड़ाव में लेकर जाएंगे।" ऐसा कहकर स्नेहा को आराम करने के लिए उसकी झोपड़ी में भेज दिया।
दूसरे दिन स्नेहा ठीक रात नौ बजे स्नान करके, स्वच्छ कपड़े पहन कर वही मंदिर के सामने अच्युतानंद जी के बताए अनुसार पहुंच गई। थोड़ी देर में अच्युतानंद जी भी वहां पहुंच गए।
अच्युतानंद जी ने कहा, "स्नेहा अगली साधना हम मणिकर्णिका योगिनी साधना करेंगे। जो इक्कीस दिन की है और तुम्हें तीन लाख जाप इक्कीस दिन में पूरे करने हैं। यह जाप रात नौ बजे से तब तक करने होंगे जब तक कि उस दिन के जापों की संख्या पूर्ण ना हो जाए। प्रतिदिन दशांश हवन होगा, अपना भोजन तुम्हें खुद बनाना होगा। इस साधना में मौन व्रत रखना होता है, इसलिए जितना हो सके प्रयास करना कि तुम्हें बात ना करनी पड़े।"
अच्युतानंद जी ने स्नेहा को क्षेत्ररक्षण, भूमि पूजन और देहबंधन करना भी बताया। मणिकर्णिका योगिनी साधना का मंत्र बताया और सारी विधि बता कर हवन विधी वे स्वयं करवाएंगे ऐसा कहकर चले गए।
उस दिन का जाप पूरा हो जाने पर स्नेहा ने अच्युतानंद जी से उस साधना के बारे में जानकारी लेने के लिए पूछना चाहा। अच्युतानंद जी ने उसे बोलने से मना कर दिया और स्वयं उस साधना के विषय में बताने लगे।
उन्होंने कहा, "मणिकर्णिका योगिनी साधना, एक ऐसी साधना है जिसकी सिद्धि हो जाने पर देवी साक्षात दर्शन देती है और सभी सिद्धियां प्रदान करती है। यह सिद्धि गुप्त योगिनीओं में मानी जाती है और आप इनसे जो इच्छा हो वह कार्य करवा सकते हैं। देवी स्वयं आपके कान में विराजित हो, आप को सब कुछ बताती हैं। गुप्त रूप से साधक को मां के कर्णफूल प्राप्त होते हैं। जो किसी को दिखाई नहीं देते पर यह साक्षात् होती है। साधक जब अपनी उंगलियों से मंत्र जाप करते हुए कानों में पहने हुए कुण्डलों को स्पर्श करते हैं, तो देवी योगिनी स्वयं आपके सामने प्रकट हो जाती है, यह बहुत शक्तिशाली सिद्धि है। इससे आप किसी भी व्यक्ति के कार्य और उनकी समस्याएं हल कर सकते हैं। यह सिद्धि मां पार्वती की पूर्ण शक्ति का परिचय करवाती है।" ऐसा कहकर स्नेहा की जिज्ञासा शांत की और उसे पुनः उसकी साधना बिना किसी विघ्न की के पूरी होने का आशीर्वाद दिया।
स्नेहा की साधना चल ही रही थी प्रतिदिन उसे साधना के नित नए अनुभव प्राप्त हो रहे थे। कभी उसे बहुत ही तीव्र सुगंध का अनुभव होता, तो कभी बहुत ही तीव्र दुर्गंध का,सदा उसके आसपास उसे किसी के होने का आभास होता रहता था। श्मशान में रहने वाले जीवों से भी यदा-कदा साक्षात्कार हो ही रहा था। साधना ऐसे ही चल रही थी।
एक दिन स्नेहा दिन में खाली थी, बैठे-बैठे उसे पीहू का स्मरण हो आया स्नेहा सोचने लगी... पता नहीं इस समय पीहू क्या कर रही होगी?
स्नेहा के इतना सोचते ही स्नेहा ने स्वयं को अपने ही घर पर पीहू के कमरे में पाया। वहां पीहू अपने खिलौनों के साथ खेल रही थी। उसने खिलौने में ही अपने दोस्त बनाए हुए थे। स्नेहा उसे मंत्रमुग्ध और वात्सल्य से देख रही थी।
तभी पीहू अपनी एक गुड़िया से पीहू ने कहा, चीकू... पता है स्नेहा बूई ना कहीं बाहर गई है। मुझे बता कर भी नहीं गई। मुझे... मुझे कितनी याद आ रही है बूई की, पर बूई तो पीहू को भूल ही गई हैं। कोई भी ऐसे करता है अपनी बिट्टू के साथ।"
स्नेहा ने यह सुना तो वो आगे बढ़कर पीहू को गले लगाना चाहती थी, पर तभी प्रीति कमरे में आ गई। प्रीति ने पीहू से पूछा, "पीहू यह तुम किस से बातें कर रही थी?"
पीहू ने कहा, "मम्मा चीकू से बात कर रही थी... मुझे बूई की याद आ रही थी। "
ऐसा कहकर पीहू थोड़ा उदास हो गई। प्रीति ने चारों तरफ देखा पर सामने खड़ी स्नेहा किसी को दिखाई नहीं दे रही थी। स्नेहा को यह समझ नहीं आ रहा था कि यह सब हो क्या रहा था।
थोड़ी देर बाद स्नेहा वापस अपनी उसी कुटिया में बैठी थी। स्नेहा को थोड़ा-थोड़ा समझ आ रहा था कि वह अगर वो किसी के बारे में सोचें तो वह व्यक्ति इस समय क्या कर रहा है, उसे दिखाई दे रहा था। या यूं कहें स्नेहा वहां अशरीर उपस्थित हो रही थी।
स्नेहा ने सोचा, "देखते हैं... इस समय चाचा एंड कंपनी क्या कर रहे हैं…??"
थोड़ी ही देर में स्नेहा विराज के केबिन में थी। विराज के सामने चाचा, बुआ और अनुज बैठे हुए थे। वह सब लोग स्नेहा को रास्ते से हटाने के बारे में ही बातें कर रहे थे।
विराज ने कहा, "वैसे तो स्नेहा का अभी कुछ पता नहीं चल रहा है। इस हिसाब से हमें उससे ज्यादा कोई खतरा नहीं है।"
"इस समय स्नेहा यहां नहीं है तो क्या हुआ। वह अपने पीछे अपने सारे मोहरे जमा कर गई है। ऑफिस प्रखर संभाल रहा है और उसने हमारे सारे आदमियों को हटा दिया है। संपत्ति सारी उसके नाम है ही, हमारे लिए उसको रास्ते से हटाना ही सही रहेगा।"अखिलेश जी ने कहा।
गीता ने जल्दबाज़ी में कहा, "यह बिल्कुल ठीक रहेगा। हमें जल्दी से जल्दी आत्मानंद जी से मिलकर स्नेहा के बारे में कोई ना कोई इलाज करना ही होगा।"
विराज ने कहा, "अभी गुरुदेव कुछ समय के लिए किसी विशिष्ट साधना में व्यस्त हैं तो यह समय उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए ठीक नहीं होगा। मैं उनके फ्री होते ही आप लोगों को बता दूंगा। फिर हम साथ में ही गुरुदेव से मिलने उनके घर चलेंगे।"
गीता ने हडबडाते हुए पूछा, "कब तक... कब तक फ्री होंगे गुरुदेव…??"
विराज ने कहा, "कम से कम 15 दिन तो लगेंगे ही।"
अनुज ने तपाक से कहा, "इतने सारे दिन…!!"
विराज ने अनुज को तिरछी नजरों से घूरते हुए कहा, "तो... तुम्हारे हिसाब से उनकी साधना होगी…!!"
गीता ने घबराते हुए कहा, "नहीं... नहीं... इसके कहने का मतलब वह नहीं था। जब भी आत्मानंद जी फ्री हो आप हमें बता दीजिएगा।"
स्नेहा अब वापस अपनी कुटिया में थी। वह यह सोच रही थी कि अब जल्दी से जल्दी चाचा एंड कंपनी का इलाज करना ही होगा। स्नेहा को इतना तो समझ आ ही गया था कि अब स्नेहा चाहे तो किसी भी व्यक्ति पर दृष्टि रख सकती थी। इस समय यही स्नेहा के लिए बहुत बड़ी बात थी।
स्नेहा ने सोचा, "पंद्रह दिन में तो मेरी यह साधना भी पूरी हो जाएगी। अब मुझे इन लोगों पर पंद्रह दिन तक नजर रखने की कोई जरूरत नहीं है।"
स्नेहा ने इस बारे में गुरु जी को बताने का निश्चय किया और नियत समय पर अपनी साधना के लिए उसी जगह पहुंच गई।
रोज की तरह उस दिन भी उस रात भी स्नेहा ने अपनी साधना पूरी की और अपनी कुटिया में विश्राम करने के लिए आ गई।
स्नेहा ने अच्युतानंद जी को यह पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा, "स्नेहा... स्नेहा यह समय इन सब बातों में दिमाग लगाने का नहीं है। यह समय तुम्हारे साधना का है तो उस पर ध्यान दो। यह सब कुछ मैं देख लूंगा।"
अच्युतानंद जी के ऐसा कहते ही स्नेहा ने सब कुछ चिंता उन पर छोड़कर वापस अपनी साधना में ध्यान लगाना ही उचित समझा। वह अपनी साधना में व्यस्त हो गई। प्रतिदिन का यही क्रम चलता जा रहा था।