Chapter 38

Chapter 38

humsafar 38

Chapter

38

      श्रेया के मुह से सारी बातें जानकर सारांश शॉक रह गया। उसने उसे वो सारी बातें बता दी जो कुछ भी चित्रा ने कहा था। सारांश को यकीन ही नही हो रहा था जो कुछ भी श्रेया ने अभी अभी कहा था। वो सारे शब्द किसी हथौड़े की तरह दिमाग मे बज रहे थे। सारांश चित्रा और श्रेया को लेकर मित्तल मेंशन पहुँचा। उसने बेसुध पड़ी चित्रा को गोद मे उठाया और घर के अंदर  दाखिल हुआ। रात के एक बजने वाले थे और सब सो चुके थे इसीलिए सारांश ने किसी को जगाना सही नही समझा। उसने उसे गेस्ट रूम मे ले जाकर सुलाया तो पीछे से आ रही श्रेया भी उससे लिपट कर वही सो गयी। उसे तो चित्रा पर इतना प्यार आ रहा था मानो दोनो एक दूसरे को काफी दिनों से जानते हो। 

       अवनि उपर रेलिंग के पास खड़ी चुपचाप सब देख रही थी। वह जानना चाहती थी की आखिर दोनो कर का रही थी। सारांश ऊपर आया तो देखा अवनि बाहर ही खड़ी है। अचानक ही उसके चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा तो अवनि थोड़ी घबरा गयी। 

  "क्या कर रही हो यहाँ?" सारांश ने फटकार लगाई तो अवनि को समझ नही आया की ऐसी क्या गलती कर दी उसने जो सारांश इतना गुस्सा कर रहा है। लेकिन अगले हु पल उसने अपनी बात पूरी की तो उसे समझ आया। 

  "यूँ इस तरह खाली पैर......! आप जानते हो फर्श कितना ठंडा है! सर्दी लग गयी तो!!!" सारांश ने सख्त आवाज़ मे कहा और बिना अवनि से पूछे उसे गोद मे उठाकर अंदर कमरे मे ले जाकर बिस्तर पर रख दिया। अवनि को सारांश का यूँ प्यार जताना बहुत ही अच्छा लगा। इस तरह उसे छोटी सी बात के लिए किसी ने भी डांट नही लगाई थी जिससे उसे थोड़ा बुरा जरूर लगा लेकिन सारांश उस की इतनी परवाह करता है ये जान कर उसे बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था। 

   "आगे से ऐसी लापरवाही नही....! अगर मैंने दोबारा से देखा तो सबके सामने ही सही, फिर से डाँट पड़ेगी। रात बहुत हो गयी है अब सो जाओ।" सारांश ने दोनो हाथो को आपस मे फोल्ड कर किसी टीचर की तरह सख्ती से बोला। अवनि ने किसी आज्ञाकारी स्टूडेंट की तरह अपना सिर हिलाया और सोने के लिए लेट गयी और वही पड़े तकियों से बीच मे दीवार सी बनाई। सारांश भी बाथरूम जाकर फ्रेश हुआ और सोने के लिए चला आया। बीच मे पड़े तकियो को देख उसे हँसी आगयी। 

     अवनि को महसूस हुआ की सच मे बेड इतना बड़ा है की उसपर सात आठ लोग आराम से सो सकते। उसने इस बारे मे सारांश से कही तो सारांश ने पहले तो घूर कर देखा और शरारत भरे अंदाज़ मे बोला, "तो क्या आप हमारे सात आठ बच्चो के बारे मे इमैजिन कर रही है?"

   सारांश के इस सवाल पर अवनि अपना ही माथा पिट लेना चाहती थी। उसे ये बात उठानी ही नही चाहिए था। अपनी झेंप को छुपाने के लिए वह करवट लेकर दूसरी ओर पलटी तो सारांश ने हल्का सा गला खराश दिया। अचानक से अवनि को उसके कहे शब्द याद आये "मेरी तरफ पीठ करके मत सोना वरना जो होगा उसकी जिम्मेदारी मेरी नही होगी" अवनि झट से उसकी और वापस पलट गयी। उसने देखा सारांश अभी भी उसे ही शरारत से देखे जा रहा है तो शर्म से एक तकिया लेकर अपने चेहरे डाल लिया और सोने की कोशिश करने लगी। 

   कुछ देर बाद जब अवनि को लगा की सारांश सो गया है तो उसने धीरे से तकिया हटाया और उसकी ओर देखा। सोता हुआ सारांश और भी ज्यादा प्यारा लग रहा था। अवनि तो उसके चेहरे मे कहीं खो ही गयी। वो मासूम सा चेहरा, सागर के जैसी शांत आँखे, घनी पलके...... अवनि को कुछ अजीब सा महसूस होने लगा, एक अजीब सी बेचैनी। उसने झट से अपनी आँखे कसके मूंद ली और फिर तकिये मे मुह छुपाये सो गयी। 

     

    सुबह सुबह कार्तिक की आँख खुली तो उसने अपने बगल मे सोई काव्या को देखा। उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गयी। काव्या सोते हुए और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। कार्तिक ने उसके चेहरे पर हवा से लहराते बालों की लट को एक तरफ किया और उसके चेहरे को धीरे से चूम लिया। बाथरूम से आने के बाद उसने अपना फोन चेक किया तो उसमे चित्रा के दो मिस्ड कॉल्स थे वो भी रात के बारह बजे के करीब। कार्तिक ने कॉल बैक किया मगर उधर से किसी ने भी आँसर नही किया तो उसने सारांश को कॉल लगाया।   सारांश उस वक़्त अपने ऑफिस मे था।

    "सारांश कल रात चित्रा ने मुझे कॉल किया था लेकिन...... "

    "चित्रा ने नही श्रेया ने कॉल किया था। दोनो टल्ली हुई पड़ी थी, इस वक़्त मेरे घर पर है। अब आप भी आ जाइये दुल्हे राजा! शादी संपन्न हो चुकी है लेकिन काम अभी भी पेंडिंग है।" सारांश ने चिढ़ाते हुए कहा। 

   "सारांश....तु.इतनी सुबह ऑफिस! तु ठीक है न.....? मतलब सब ठीक है न, तु खुश तो है?" कार्तिक अवनि के बर्ताव के बारे मे जानना चाहता था। उसे अच्छे से पता था की अवनि शादी के लिए तैयार नही थी।

    "मै बिलकुल परफेक्ट हु और इस सब के लिए तुझे बड़ा वाला थैंक यू........नही बोलूँगा। अब आ भी जाओ काम बहुत है..(कुछ सोचकर) एक काम कर आज रहने दे......काव्या को अच्छा नही लगेगा।" सारांश भी काव्या के बारे मे पूछना चाहता था लेकिन चुप हो गया। 

    कार्तिक सारांश की आवाज़ मे खुशी की खनक अच्छेसे महसूस कर पा रहा था। उसे तसल्ली हुई की सब ठीक है और ऑफिस आने का बोलकर कार्तिक ने फोन रख दिया। 

         काव्या नहाकर बाथरूम से निकली तो कार्तिक ने उसे पीछे से पकड़ लिया और उसके काँधे पर अपनी ठुड्डी रखकर बोला, "हम्म्! जरा देखो और बताओ... ये जो सामने दो लोग खड़े है एक दूसरे के साथ, क्या ये दोनो ही एक साथ परफेक्ट नही लग रहे?" कार्तिक बच्चो की तरह आईने की ओर दिखाकर बोला। काव्या ने देखा और जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोली, "हाँ..... बिलकुल परफेक्ट है।" 

    कार्तिक ने काव्या की गर्दन मे चेहरा छुपाकर एक गहरी सांस ली और फिर थोड़ी देर बाद उसे छोड़ दिया क्योंकि उसे ऑफिस के लिए देर हो रही थी। कार्तिक बाहर निकल गया और पीछे पीछे काव्या भी तैयार होकर बाहर निकली। धानी ने अपने हाथो से सब के लिए नास्ता बनाने जा रही थी। काव्या को देख धानी बोली, "आज तुम्हारी पहली रसोई है, एक काम करो कुछ मिठा बना दो जल्दी से।" 

     काव्या  बोली, "लेकिन माँ!!! मुझे अभी बुटीक के लिए निकलना है। काफी दिनों से गयी नही हु वहाँ। काफी सारा काम पड़ा है,कार्तिक ऑफिस जा रहे हो तो मुझे भी छोड़ देना।"

   "एक दिन और रुक जाओ, कल चली जाना। माँ ने कहा न आज पहली रसोई है। अभी अभी तो शादी हुई है हमारी..... " कार्तिक बोला लेकिन काव्या उसकी बात काटते हुए बोली, "शादी हमारी हुई है, हम दोनो की। जब तुम ऑफिस जा सकते हो तो मै क्यों नही। तुम्हारा काम जरूरी है तो क्या मेरा काम जरूरी नही?"

     अपने बेटे और बहू मे बात बढ़ते देख धानी ने बीच बचाव किया, "अरे कोई बात नही बेटा! मिठा ही तो बनाना है, कुछ भी बने क्या फर्क पड़ता। काव्या, एक काम करो बेटा! तुम बस चाय बना दो फिर चली जाना।" धानी की बात सुन काव्या चुप रह गयी और किचन मे चली गयी। 


    अवनि आराम से सो रही थी जब कंचन ने उसके फोन पर कॉल किया। अवनि ने अलसायी आवाज मे जब फोन उठाया तो कंचन उसे डाँटते हुए बोली, "ग्यारह बजने को है और ये लड़की अभी तक सोई हुई है!!! सब क्या सोच रहे होंगे की कुछ नही सिखाया!!! क्यों हमारा नाक कटवाने पर पर तुली है।"

     माँ की डाँट सुन अवनि की नींद एकदम से उड़ गयी। उसने एक नज़र घडी पर डाली तो सचमुच ग्यारह बज रहे थे। वो हड़बड़ा कर उठी और फोन रखकर बाथरूम की ओर भागी।! जल्दी से नहाकर जब चेंजिंग रुम मे गयी तो वहाँ उसके पहनने के लिए कपड़े पहले से ही तैयार रखे हुए थे। पीले रंग की साडी, उसकी मैचिंग चूड़ियाँ और गहने साथ मे एक चश्मे का डब्बा। चश्मे का डब्बा देख अवनि को थोड़ी हैरानी हुई। जब खोला तो उसमे बड़े अक्षरों मे एक नोट था "मेरी तुनकमीज़ाजी बीवी के लिए"। 

    " मै तुनकमीज़ाजी हु?" अवनि को गुस्सा आया लेकिन जब चश्मे को देखा तो उसे याद आया की स्कूल के दिनों मे वो ऐसा ही चश्मा पहनती थी। उसने पहनकर खुदको आइने मे देखा तो अपने पुराने दिन याद आगये। लेकिन आईने पर एक और नोट चिपका हुआ था "लेंस आँखों के लिए सही नही होता है,चश्मा  ज्यादा  सूट करता है"। 

   अवनि तैयार होकर बाहर निकली और नीचे जाने से पहले कमरे मे लगे आईने मे खुदको अच्छे से देखा। उस आईने पर भी एक नोट चिपक हुआ था "हम आज माँ पापा से मिलने जा रहे है, तैयार रहना और मेरा इंतज़ार करना"। अवनि के होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी। सारांश की बातों और हरकतो से अवनि भले ही इरिटेट् होती हो लेकिन उन्हे याद करना अवनि को एक अलग तरह का सुकून दे जाता है। 

    अवनि नीचे उतरी तो उसे कोई दिखाई नही दिया। किचन से कुछ आवाजे आ रही थी तो उसी और बढ़ चली। उसकी पजेब की तेज आवाज़ से जानकी ने उसे पलट कर देखा. सिर पर पल्लू, मांग मे सिंदूर। जानकी की आँखे भर आई, उसने प्यार से उसका चेहरा छुकर चूम लिया और बलाये लेकर बोली, "उठ गयी...! तुम्हारे पति और सास ने मना किया था तुम्हे उठाने से। इतने दिनों से शादी की तैयारियो मे जो लगी थी। और अचानक से शादी..... थकान तो होगी ही न। तुम अपने कमरे मे चलो मै नास्ता भिजवाती हु।"

     "मासी......! मै कुछ हेल्प कर दु आपकी?" अवनि ने हिचकिचाते हुए कहा। 

  "नही...... बिलकुल भी नही....! जब तक तुम्हारे हाथ की मेहंदी उतर नही जाती तबतक कोई काम नही। घर की पहली बहू हो, तुम्हारी सास का बस चले तो तुम्हे पलकों पर बैठा कर रखे। " जानकी ने कहा। 

    "पहली बहू....! लेकिन उनका तो एक पोता है न....!" अवनि ने हैरानी से पूछा। इससे पहले जानकी कुछ जवाब देती चित्रा की आवाज़ सुनाई दी, "अरे कोई है.....! मै कहा हु?"



क्रमश: