Chapter 103
humsafar 103
Chapter
103
नवरात्रि के पहले दिन ही काव्या की गोद भराई भी थी और घर में कलश की स्थापना भी होनी थी। तब तक श्यामा की चोट भी ठीक हो गई थी और इतने ही दिनों में समर्थ और श्यामा एक दूसरे के काफी करीब आ गए थे। सिद्धार्थ ने भी श्यामा की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। मौका पाकर सिया ने सिद्धार्थ से श्यामा के बारे में पूछा। सिद्धार्थ ने मना नहीं किया और ना ही कुछ बोला। सिया के मन में एक उम्मीद जगी कि शायद अब वह अपने बड़े बेटे का भी घर बसते हुए देख पाएगी।
सिया ने अवनि से जब इस बारे में बात की तो अवनि बोली, "मॉम! सब तो ठीक है, मैं भी यही चाहती हूं लेकिन इस सबके लिए श्याम दी को मनाना होगा जो कि थोड़ा मुश्किल है। अपने पिछले रिश्ते से मिले दर्द से वह अभी तक उबर नहीं पाई है। ऐसे में एक नया रिश्ता......!पता नहीं वह कैसे रिएक्ट करेगी!"
"तुम एक बार श्रेया से बात करके देखो। शायद उसकी फैमिली वाले मान जाए तो.......!" सिया ने कहा
"नहीं मॉम! श्यामा दी अपनी फैमिली वालों की नहीं सुनेंगी क्योंकि उन्होंने कभी उनकी नहीं सुनी। श्यामा दी ने जितनी भी तकलीफे झेली है, वह अपने पति से ज्यादा अपने घर वालों के बर्ताव से की वजह से। उन लोगों ने तो खुद ही दी से अपने सारे रिश्ते तोड़ दिए। यही वजह है कि अब वह उस जगह वापस जाना ही नहीं चाहती और ना ही उनमें से किसी से कोई रिश्ता रखना चाहती है", अवनि ने कहा।
कलश स्थापना अवनी को करनी थी। वह मंदिर से कलश में पानी लेकर अपने सिर पर धारण किए घर आई और पंडित जी के कहे अनुसार पूरे विधि विधान से कलश की स्थापना की। काव्या की गोद भराई का समय हो गया था और सारे मेहमान भी घर पहुंच चुके थे। यह सारी रस्में सिया ने खुद अपने ही घर में रखवाई थी। काव्या अपने कमरे में तैयार होकर बैठी थी। उसने पूरा दुल्हन का श्रृंगार किया था। उसे देख कार्तिक भी उसकी तारीफ किए बिना ना रह सका। उसने काव्या को अपने करीब खींचना चाहा लेकिन उसकी बुरी किस्मत! उसी वक्त अवनि वहां आ धमकी और उन दोनों के रोमांस में दीवार बनकर खड़ी हो गई।
अवनी जाकर काव्या को ले आई और आंगन के बीचो बीच बैठा दिया। कार्तिक भी जाकर उसके बगल में ही बैठ गया और बोला,"जब गोद भराई है और काव्या मां बनने वाली है तो मैं भी तो बच्चे का बाप हूं। मैं क्यों नहीं बैठ सकता?" उसकी बात से सभी हँस पड़े।
दुल्हन के जोड़े में काव्या सच में बहुत खूबसूरत लग रही थी। हर सुहागिनों ने एक-एक कर उसकी गोद भराई की रस्म मे उसे शगुन देती गयी और ढेर सारी बधाइयां भी। उन सब में चित्रा और उसकी मां भी थी। चित्रा बस उन दोनों के ही देखे जा रही थी। वह दोनों एक साथ सच में बहुत खुश थे। चित्रा की मां ने गोद भराई के तौर पर और साथ ही मुंह दिखाई के नाम पर काव्या को प्लैटिनम का एक पूरा सेट दिया।
काव्या समझ गई कि यह कोई तोहफा नहीं बल्कि उसे उसकी औकात दिखाने का एक तरीका था पल्लवी का। काव्या पहले से ही पल्लवी से खार खाये बैठी थी। उसने एक नजर कार्तिक को देखा और फिर मुस्कुरा कर पल्लवी से बोली, "आंटी! मुझे इन सब की आदत नहीं है और ना ही मुझे सब की कोई जरूरत भी है। मेरे पास रहेगा तो यूं ही बेकार हो जाएगा। इससे बेहतर है कि आप बस एक नारियल मेरे गोद में डाल दे। इससे बड़ा शगुन और कुछ नहीं मेरे लिए। आप बस मेरे बच्चे को आशीर्वाद दें। यह सारी रस्में शायद इसी के लिए हो रही है। पैसों और गहनों का इन सब में क्या काम!"
काव्या की बात सुन पल्लवी को गुस्सा आ गया लेकिन वह इस वक्त कुछ बोल कर अपनी इमेज खराब नहीं करना चाहती थी। उसे लगा कि काव्या ने उसकी बेज्जती कर दी। वह जो करना चाहती थी वो काव्या ने करने नहीं दिया। उसने काव्या की गोद में शगुन का एक नारियल डाला और सिया से विदा लेकर चित्रा का हाथ पकड़ वहां से ले गई। कार्तिक ने भी इन सब पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
सिद्धार्थ की नजर श्यामा को ढूंढ रही थी जो अभी तक नहीं आई थी। लेकिन रस्में खत्म होने से ठीक पहले आखिरी वक्त में श्यामा आई। साड़ी पहने और खुले बालों में श्यामा बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने शगुन का सामान काव्या की गोद में डालना चाहा तो की किसी ने उसे रोक दिया," तुम गोद भराई की रस्म में कैसे शामिल हो सकती हो तुम तो......."
इससे पहले कि वह औरत अपनी बात पूरी करती श्यामा ने कहा, "क्योंकि मैं बाँझ हूं इसलिए!!! जो औरत कभी मां नहीं बन सकती, क्या वह औरत नहीं होती? क्या उसका अपना कोई वजूद नहीं होता? क्या उसकी पहचान, उसका वजूद उसके पति और बच्चे से होती है, उसके खुद के होने से नहीं? और अगर खून के रिश्ते ही कुछ होते हैं यह रस्म जो हो रही है जिस में आप सब शामिल है वह इस घर में क्यों हो रही है?"
श्यामा का अपमान सिया से बर्दास्त नही हुआ। "रिश्ते दिल से जुड़ते हैं खून से नहीं। माना खून का रंग गहरा होता है लेकिन दिल नाम की भी कोई चीज होती है। दिल का रिश्ता भी मायने रखता है। ना कार्तिक मेरा सगा है ना ही काव्या। लेकिन मैंने उन दोनों बच्चों को हमेशा से अपना माना है। मुझे कभी याद नहीं रहता अगर आप लोग मुझे याद ना दिलाते कि कार्तिक मेरा सगा बेटा नहीं। एक कमी किसी औरत के वजूद को नकार नहीं सकती। श्यामा काव्या की गोद भराई जरूर करेगी", सिया ने कहा और श्यामा से आगे बढ़कर काव्या को शगुन देने को बोली लेकिन श्यामा न चाहते हुए भी वहीं रुक गई। उसने शगुन की थाल अवनी की ओर बढ़ा दिया और वहां से चली गई।
समर्थ अपने कमरे में था जब उसे श्यामा की आवाज सुनाई दी। वह भागते हुए नीचे आया और उसे ढूंढने लगा। श्यामा जो कि सबके सामने मजबूती से खड़ी थी, बाहर आते ही रो पड़ी। उसने अपने आँसू पोछे और वहाँ से जाने लगी, तभी उसे लगा जैसे उसके पैरों से कुछ लिपट गया हो। श्यामा ने सिर झुका कर देखा तो समर्थ को अपने पैरों से लिपटा हुआ पाया जो उसे ही देख रहा था।
श्यामा ने उसके हाथ हटाये और नीचे बैठ गयी। उसके चेहरे को प्यार से छुआ तो समर्थ बोला, "कहाँ जा रहे हो आप? मत जाओ न प्लीज। मुझे खेलना है आप के साथ। क्या अब आप मुझे प्यार नही करते?" समर्थ ने एक के बाद एक ऐसे सवाल किए की श्यामा को समझ नही आया कि क्या जवाब दे। उसने प्यार से समर्थ को गले से लगाया और बोली, "ये आप से किसने कहा की मै आप से प्यार नही करती?"
"आप मुझे बिना मिले ही जा रही थी इसीलिए।" समर्थ ने रोते हुए कहा तो श्यामा मे उसके आँसू पोछते हुए कहा, "मै कहाँ जा रही थी आप से मिले बिना! मै तो यही हु और ये बात कभी अपने मन मे ना लाना की मै आप से प्यार नही करती।"
"आपसे एक बात पुछू? सच्ची सच्ची जवाब दोगे?" समर्थ ने कहा।
"हाँ पूछो! मैने कभी झूठ बोला आप से?" श्यामा ने कहा।
"क्या आप मेरी मम्मा हो? जैसे मेरी सभी फ्रेंड्स की मम्मा उसको प्यार करती है, आप भी मुझे वैसे ही करते हो। क्या सच मे आप मेरी मम्मा हो?" समर्थ ने पूछा तो श्यामा को जैसे एक झटका सा लगा। आखिर कब और कैसे एक बच्चे के मन मे ऐसी उम्मीद जगा दी उसने! इससे पहले की श्यामा कुछ जवाब देती सिद्धार्थ वहाँ आया और बोला, "हाँ बेटा! ये आपकी मम्मा ही है। आप इन्हे अब से आँटी नही मम्मा बुलाना।"
सिद्धार्थ की बात सुन समर्थ खुश हो कर श्यामा के गले से लग गया और बोला, "अब मुझे और पापा को छोड़कर कभी मत जाना मम्मा! हमें बिलकुल भी अच्छा नही लगता। मै आपकी हर बात मानूँगा। आपको कभी परेशान भी नही करूँगा। प्लीज मत जाना मम्मा।"
सिद्धार्थ की बातों का मतलब अभी श्यामा को समझ मे भी नही आया था कि समर्थ की रिक्वेस्ट ने उसे और भी ज्यादा उलझन मे डाल दिया। उसे लगा शायद सिद्धार्थ मजाक कर रहा है लेकिन समर्थ! उसका क्या? श्यामा समर्थ को पहले घर के अंदर भेजा फिर झटके से खड़ी हो गयी लेकिन वह खुद को संभाल नही पायी और लड़खड़ा कर गिरी तभी सिद्धार्थ ने उसे संभाल लिया।
"क्या कुछ गलत कहा मैंने? अगर गलत है! झूठ है! तो उसे सच बना दो श्यामा! शादी करोगी मुझ से? क्या समर्थ को अपनी ममता की छाव दोगी?" सिद्धार्थ ने सीधे सीधे सवाल किया। उसके इस बेबाकी पर श्यामा हैरान रह गयी। आखिर इतनी बड़ी बात इतनी आसानी से कैसे कर सकता है कोई!
"आखिर हम दोनों एक दूसरे को जानते ही कितना है और इस तरह सीधे सीधे कौन बात करता है?" श्यामा चीख पड़ी।
"तो अगर तुम कहो तो मै मॉम से कहता हु वो तुम्हारे घरवालों से बात कर लेंगी अगर तुम बात करने मे शर्मा रही हो तो!" सिद्धार्थ ने टका सा जवाब दिया जैसे उसे कुछ समझ मे ही नही आया कि श्यामा के कहने का मतलब क्या था।
"मैंने सुना था कि आप बहुत ज्यादा स्मार्ट है लेकिन क्या आपको मेरी इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही!!!शादी कोई मजाक नहीं होता है मिस्टर सिद्धार्थ मित्तल! अभी अभी मेरा तलाक हुआ है अभी इतनी जल्दी कैसे किसी रिश्ते में बन जाऊं मैं। अगर आपको अपने बेटे के लिए मां चाहिए तो आप किसी और को ढूँढ सकते है। मैं उसकी आया बनने को तैयार हूं लेकिन मैं किसी भी रिश्ते में नहीं जुड़ना चाहती। अब तक जिस किसी रिश्ते में जुड़ी हूं हर रिश्ते से तकलीफ ही मिली है मुझे। इसलिए अब किसी भी रिश्ते नाते पर से मेरा भरोसा उठ चुका है। ना मुझे किसी की जरूरत है और ना ही किसी से कोई उम्मीद। अगर यह आप मजाक कर रहे हैं तो बहुत ही भद्दा मजाक है आपका" श्यामा चीखते हुए बोली।
"अगर अभी-अभी तलाक हुआ है तो क्या हुआ! इसका कोई टाइम लिमिट नहीं होता है कि तलाक इतने वक्त बाद ही दूसरे रिश्ते में बंध सकते है। जिंदगी हर किसी को दूसरा मौका नहीं देती लेकिन आज अगर हम दोनों को दूसरा मौका मिला है तो मुझे नहीं लगता कि हमें इसे जाने देना चाहिए श्यामा। समर्थ मेरे लिए सब कुछ है। उसके लिए सब कुछ करना चाहता हूं मैं। हर वह खुशी देना चाहता हूं जो भी उसे चाहिए, जिसका भी वो हकदार है। सब कुछ दिया है मैंने उसे लेकिन एक मां का प्यार नहीं दे पाया क्योंकि मुझे लगा ही नहीं कि ऐसी कोई लड़की है जो उसे मां का प्यार दे सकती है। जिस तरह तुमने उसे संभाला है, मुझे नहीं लगता कि तुम से बेहतर कोई मां हो सकती है" सिद्धार्थ बोला।
"आखिर आपको ऐसा क्यों लगता है!!! और अगर लगता भी है तो ठीक है, मै आया बनकर उसे मां का प्यार दूँगी। उसे संभाल लूंगी लेकिन आपकी बीवी बनना मुझे मंजूर नहीं। एक रिश्ता जिसे प्यार से बाँधा था उसने मुझे इतनी चोट पहुंचाई तो एक मजबूरी के रिश्ते में बंधकर मैं खुद को और घायल नहीं करना चाहती। क्यों खुद का मजाक बनवाना चाहते हैं! लोगों के बीच तमाशा बनकर रह जाएंगे आप। खुद को देखिए और मुझे देखिए। भगवान ने मुझे ना रूप दिया ना रंग और ना ही वो हक जिसकी वजह से मैं खुद को पूरी कर सकूं। हम बस पिछले कुछ दिनों से ही एक-दूसरे को जानते हैं। आपने मेरी इतनी देखभाल कि उसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया और इस एहसान के बदले जिंदगी भर आपके बच्चे की देखभाल करने को तैयार हूं लेकिन इसके आगे ना कुछ सोचियेगा और ना ही कोई उम्मीद रखीएगा", अपनी बात रख बिना सिद्धार्थ को बोलने का मौका दिए श्यामा मुड़ी और वहां से तेजी से निकल गई।
सिद्धार्थ उसे जाते हुए देखता रहा जब तक कि वह आंखों से ओझल ना हो गई। समर्थ ने पूछा, "पापा! मम्मा फिर कभी नहीं आएंगी क्या? वो नाराज है आपसे या फिर मैंने उन्हें नाराज कर दिया है?"
"नहीं बेटा! मामा ना ही आपसे नाराज है और ना मुझसे! वह तो बस वक्त से नाराज है। शायद जल्दी कर दी मैंने लेकिन कोई बात नही हम दोनों मिलकर उन्हें मना लेंगे। थोड़ी कोशिश और थोड़ी प्लानिंग की जरूरत है। आप मेरे साथ होना?" सिद्धार्थ ने कहा और हाथ आगे कर किया। समर्थ ने भी उसके हाथ पर हाथ रखते हुए बोला, "हाँ पापा! हम दोनों मिलकर मम्मा को मना लेंगे।"
रात को खाने की टेबल पर सिद्धार्थ सोच रहा था कि वह कैसे सबको बताएं जो कुछ भी उसके और श्यामा के बीच हुआ। लेकिन समर्थ बेचैन हुए जा रहा था सबको बताने के लिए। जैसे ही उसने अपना मुंह खोलना चाहा सिद्धार्थ ने उसे टोक दिया और बोला, "समर्थ! खाते टाइम बात नहीं करते। पहले खाना खा लो उसके बाद जो बोलना है बोल देना।"
सिद्धार्थ की बात सुन सभी को हैरानी हुई कि आखिर ऐसी क्या बात है जिसे बताने के लिए समर्थ इतना उतावला हो जा रहा है। क्योंकी समर्थ सबसे ज्यादा बात नहीं करता। सिद्धार्थ की बात मान कर समर्थ चुप तो हो गया लेकिन उससे ज्यादा देर तक रुका नही गया और बीच मे ही बोल पड़ा, "आप पापा ने मम्मा को प्रपोज किया।"
समर्थ की बात सुन सभी चौंक पड़े। सब के हाथ जहाँ थे वही रुक गए और आँखे सिद्धार्थ पर जा टिकी। सब को अपनी तरफ घूरता पा कर सिद्धार्थ बोला, "मैंने आज श्यामा को शादी के लिए प्रपोज किया।" सिद्धार्थ की बात सुन किसी की आँखे चौडी हो गयी, किसी के मुह मे भरा पानी नाक से निकल गया, किसी का खाना गले मे अटक गया। डाईनिंग टेबल पर बैठे सभी की हालत खराब हो गयी।
समर्थ ने कहा," मम्मा को मनाना है वह पापा से नाराज है।"
किसी को कुछ समझ नही आया की आखिर ऐसा क्या हुआ हमेशा शादी के नाम से चिढ़ने वाला सिद्धार्थ खुद ही श्यामा को प्रपोज कर आया। समर्थ की बातों से सब होश मे आये। सब ने एक दूसरे की ओर देखा और इशारों में पूछा कि शायद उन्होंने गलत सुन लिया हो। सबकी नजर एक बार फिर सिद्धार्थ पर ही टिक गई। सबको अपनी तरफ फिर से घूरता पाकर सिद्धार्थ बोला, "ऐसे क्या देख रहे हो आप लोग! सभी यही चाहते थे न की मैं शादी कर लू। अब जब लड़की मैंने पसंद कर लिया तो फिर इस तरह से आप लोग मुझे घूर क्यों रहे हैं!"
सिद्धार्थ की बात सुन सभी ने पहले पानी पिया और एक-एक कर अपना सवाल सिद्धार्थ पर दागना शुरू कर दिया।
"क्या कहा उसने? "
"वह तैयार है शादी के लिए?"
"अपने उसे मनाया कैसे?"
"वाह भाई! आप तो काफी फास्ट हो गए। लेकिन यह अचानक कैसे?"
"पहले आई लव यू तो बोला न?"
"या सीधे शादी के लिए पूछ लिया?"
"अंगूठी से प्रपोज किया या फूल लेकर?"
"वो मानी क्या?"
"वो गुस्सा क्यो है?"
सब ने एक-एक कर अपने सवालों की बौछार सिद्धार्थ पर कर दी लेकिन सिया के खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। वह जल्दी से किचन में गई और मिर्ची राई लेकर सबसे पहले सिद्धार्थ की नजर उतारी। सिद्धार्थ ने अपना सिर पीट लिया। सिया ने जब उसकी नजर उतार ली तब उसका हाथ पकड़ कर बोली, "अब बता! क्या हुआ, कैसे हुआ, क्या कहा उसने, कैसे मनाया,..........सब बता मुझे"
" मॉम उसने हां नहीं कहा। बल्कि वो तो और ज्यादा गुस्सा हो गई है। उस ने सीधे-सीधे इंकार कर दिया और बोली कि वह आया बन कर समर्थ को माँ का प्यार देने को तैयार है लेकिन शादी से उसे इंकार है। श्यामा किसी भी रिश्ते में बंधना नहीं चाहती। लेकिन मुझे लगता है मॉम जैसे समर्थ को उसकी जरूरत है वैसे ही उसको भी हमारी जरूरत है"
"जरूरत सिर्फ समर्थ को नहीं है सिद्धार्थ!!! तुझे भी है। जीवनसाथी के बिना जीवन गुजारना कितना मुश्किल होता है, यह मैं अच्छे से जानती हूं" सिया ने कहा तब सिद्धार्थ ने नजरें झुका ली।
क्रमश: