Chapter 160

Chapter 160

YHAGK 159

Chapter

  159






   बड़े ही धूमधाम से रजत की बारात निकली और तय मुहूर्त पर नेहा रजत की हो गइ। पूरी शादी में रूद्र अपनी शरण्या का हाथ पकड़े खड़ा रहा और शरण्या अपने रूद्र के कंधे पर सिर टिकाए रही। रूद्र ने धीरे से उसके कान में कहा, "हमारी शादी हम इससे भी ज्यादा ग्रैंड करेंगे। आज का दिन सिर्फ इन दोनों का है, और वह दिन सिर्फ हम दोनों का होगा। सच कहूं तो अब मुझसे जरा भी इंतजार नहीं होता तुम्हारे बिना वह घर मुझे अजीब खाली खाली सा लगता है तुम मेरे पास हो तो सब कुछ है, मेरी जिंदगी मेरे पास है।"


      रूद्र की बात से सुनकर शरण्या बस मुस्कुरा कर रह गई लेकिन कहा कुछ नहीं। शादी संपन्न हुई और पूरा मंडप खाली हो गया। सभी दुल्हन को विदा करवा कर घर चले गए। सभी थके हुए थे। खुद रूद्र भी काफी ज्यादा थका हुआ था लेकिन फिर भी उसने शरण्या का हाथ पकड़ा और वापस उस मंडप के करीब लेकर आया। 


    शरण्या रूद्र की इस हरकत पर थोड़ी हैरान थी कि आखिर रूद्र करना क्या चाहता है? शरण्या ने कुछ कहना चाहा लेकिन रूद्र ने उसके मुंह पर हाथ रखकर कुछ भी बोलने से रोक दिया और उसका हाथ पकड़कर मंडप में ले आया। शरण्या ने थोड़ी ना नूकुर की तो उसने गोद में उठा लिया और बोला, "आज एक बार फिर मैं तुम्हारे साथ वो सारे वचन लेना चाहता हूं जो हमने बरसों पहले लिए थे। उन सारी यादों को एक बार फिर से जीना चाहता हूं। आज एक बार फिर तुमसे शादी करना चाहता हूं।"


    पहले तो शरण्या थोड़ी हैरान रह गई लेकिन फिर कुछ सोच कर मुस्कुरा दी और उसके गले में बाहें डाल कर बोली, "सिर्फ शादी? उसके बाद?"


     शरण्या की बात सुन रूद्र मुस्कुरा दिया। उन दोनों ने वहां फिर से फेरे लिए। एक बार फिर रूद्र ने अपनी शरण्या के मांग में सिंदूर भर दिया। शरण्या यही सब तो चाहती थी। ये उसका सपना था जो कभी पूरा होगा या नहीं उसे नहीं पता था। उसे इशिता से बात करनी थी लेकिन वह लाख कोशिश करके भी उससे बात नहीं कर पा रही थी। या सच कहे तो उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। वो रात उन दोनों के लिए ही बेहद खूबसूरत थी। 




     अगले दिन से सभी वापस अपने अपने काम में लग गए। रूद्र को ध्यान आया कि शरण्या में उससे नैनीताल जाने की बात की थी। उसने शरण्या से तैयार रहने को कहा। नैनीताल जाने के बात से ही शरण्या खुश थी कि उसे और रूद्र को अकेले एक साथ वक्त मिलेगा। पिछली बार नैनीताल जाते वक्त उसने ढंग से कपड़े नहीं रखे थे। गर्मियों के मौसम में वहां ठंड होती है और अभी तो फिर भी ठंड थी। उसके सारे कपड़े तो रूद्र के कमरे में थे, उसके घर पर। 


    इस वक्त शरण्या के पास शॉपिंग के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उसने कुछ कपड़े एक छोटे से बैग में डाला और कुछ कपड़ों के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ी, वह भी अकेले बिना किसी को बताए। उसने अपने लिए कुछ गर्म कपड़े लिए। नए जूते और रूद्र के लिए एक जैकेट, जिसे देखते ही वह उसे खरीदे बिना ना रह सकी। 


    सारी शॉपिंग कर उसने शॉपिंग बैग गाड़ी में डाली और पार्किंग से निकली। लेकिन पार्किंग से निकलते हुए उसकी नजर कुछ ही दूर पर खड़ी इशिता पर गई जो अपनी बेटी को गोद में संभाले हुए थी। उसकी बेटी बार-बार हाथ बढ़ा कर दूसरी तरफ डैडी डैडी चिल्ला रही थी। शरण्या ने देखा तो वहां से कुछ ही दूर पर रूद्र किसी के साथ खड़ा बातें कर रहा था। इशिता की बेटी की आवाज सुनकर रूद्र इशिता की तरफ पलटा तो इशिता ने उससे जल्दी करने का कहा। रूद्र ने भी 2 मिनट का इशारा किया और अपने बातों में लग गया। 


    बस थोड़ी ही देर बात कर वह दोनों इशिता के पास आए। इशिता की बेटी जोर से चिल्लाने लगी "डैडी!!!"


    रूद्र ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसके गाल पर किस कर दिया। शरण्या से आगे और कुछ देखा नहीं गया। उसने अपनी गाड़ी वहां से आगे बढ़ा ली। कुछ दूर जाकर रास्ते पर एक किनारे गाड़ी खड़ी कर वह बुरी तरह से रो पड़ी। उसने कहा, "मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है? क्या मैं अपनी लाइफ में खुशियां डिजर्व नहीं करती? जब रूद्र की अपनी एक फैमिली है तो फिर वह सब कुछ छोड़ कर मेरे पास क्यों आना चाहता है? मैं नहीं कर सकती ऐसा! मैं इशिता से रूद्र को छीन सकती हूं लेकिन उसकी बच्ची से उसका बाप कैसे छीन लूँ? मैं नहीं कर सकती ये! मुझसे नहीं होगा। ना मैं रूद्र को खुद से दूर कर पाऊंगी ना ही वह मुझे छोड़कर जाएगा। लेकिन यह गलत होगा ना! एक बच्चे को मां बाप दोनों का प्यार चाहिए होता है। रूद्र हमारी शादी के सपने संजो रहा है लेकिन इन सब में वो अपनी उस जिम्मेदारी से कैसे भाग सकता है? आखिर क्या फर्क रह जाएगा उसमें और मिस्टर ललित रॉय में! मुझे कुछ करना होगा! मुझे ही कुछ करना होगा! बस एक बार आश्रम से वापस आ जाऊँ, उसके बाद मैं हमेशा के लिए यहां से चली जाऊंगी। बिना रूद्र को कुछ भी बताए मैं यहां से हमेशा के लिए चली जाऊंगी। वरना रूद्र मुझे कभी जाने नहीं देगा। यही सही होगा! हम सबके लिए यही सही होगा।" कहकर वह फफक कर रो पड़ी पड़ी। 


     बड़ी मुश्किल से उसने खुद को संभाला और वहां से निकलने को हुई। उसी वक्त उसका फोन बजा। देखा तो रूद्र का कॉल था। शरण्या इस वक्त रूद्र से कोई बात नहीं करना चाहती थी। क्योंकि रूद्र उसकी आवाज से ही सब समझ जाता। उसने कुछ देर फोन को बजते रहने दिया और फोन आखिर कट ही गया। शरण्या ने चैन की सांस ली। लेकिन रूद्र ने दुबारा से कॉल किया। 


    कुछ देर रिंग जाने के बाद आखिर शरण्या को फोन उठाना ही पड़ा। उसने फोन कान से लगा कर अपनी आवाज नार्मल करने की कोशिश करते हुए हेलो कहा लेकिन रूद्र को एहसास हो गया। उसने पूछा, "क्या हुआ शरु? सब ठीक तो है? तेरी आवाज क्यों ऐसी आ रही है? तू रो रही थी क्या?"


     यह सुनकर शरण्या को और भी ज्यादा रोना आ गया। फिर भी उसने खुद को शांत करते हुए कहा, "नहीं! मैं क्यों रोऊँगी? मुझे तो खुश होना चाहिए। कुछ टाइम के बाद हमारी शादी है तो फिर मैं क्यों रोऊँगी? मेरा मायका ऐसा है नहीं कि जिसे छोड़ते हुए मुझे तकलीफ हो। रोने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। वह बस कल रात को थोड़ी आइसक्रीम खा ली थी इसलिए थोड़ी सर्दी लग रही है वरना कुछ नहीं है। तू बोल कैसे फोन किया?"


     रूद्र बोला, "वह छोड़! तु मुझे यह बता, तु सच बोल रही है ना? कुछ देर पहले जब तुझे फोन किया था तब तो तेरी आवाज ठीक थी। अचानक से तुझे जुखाम कैसे हो?"


    शरण्या बोली, "अब तू क्या मेरी जासूसी करने के लिए बैठा है? सीधे-सीधे बोल ना क्या हुआ? क्या काम था?"


     रुद्र बोला, "वह बस ऐसे ही। तुझे याद दिलाना था कि आज रात को ही हमें निकलना है। तभी सुबह वहां पहुंचेंगे। रात को 11:00 बजे, ठीक है? मैं तुझे तेरे घर से पिक् कर लूंगा।"


     शरण्या ने फोन रख दिया और चैन की सांस ली। रूद्र को शरण्या की यह हरकत थोड़ी अजीब तो लग रही थी लेकिन शरण्या ने जिस तरह उसे डांट लगाई उसने कुछ पूछना सही नहीं समझा। इशिता इस वक्त रुद्र के साथ ही थी। रूद्र को इस तरह बात करते देख उसने पूछा, "तुम दोनों कहीं जा रहे हो क्या? आई मीन तुम दोनों शादी करने वाले हो ना तो मुझे लगा तुम दोनों शॉपिंग में बिजी होगे! कहीं तुम दोनों शादी से पहले हनीमून की प्लानिंग तो नहीं कर रहे?*


     रूद्र हंसते हुए बोला, "ऐसा कुछ नहीं है। दादी चाहती थी कि शरण्या आश्रम आकर उनके नाम से दिया जला दे। हर कोई मान चुका था लेकिन दादी ही थी जिन्होंने मुझसे कहा कि मैं शरण्या को ढूंढ कर लेकर आउँ। अब यह शरण्या की जीद है कि शादी से पहले उसने दादी से मिलना है। मेरा मतलब आश्रम जाना है। इसलिए आज रात ही हम लोग निकल रहे हैं ताकि वापस आकर शादी की तैयारियां कर सकें। रजत अपनी नई लाइफ में बिजी है इसलिए उस पर सारी जिम्मेदारियां नहीं डाल सकता। फिलहाल मैं निकलता हूं। तुम लोग हमारी शादी में आओगे ना?"


      इशिका ने रूद्र के बगल में खड़े उस शख्स की तरफ देखा जो उसका पति था और बोली, "हम जरूर आते रूद्र! फिलहाल तो मां की तबीयत उतनी संभल ही नहीं है वरना हम लोग कब का निकल चुके होते। एलेक्स को ऑफिस का बहुत सारा काम है। आई विश कि हम दोनों तुम्हारी शादी में आ पाते, राइट एलेक्स?" कहते हुए उसने अपने पति एलेक्स की तरफ देखा तो एलेक्स मुस्कुरा दिया। 


   रूद्र ने भी उन दोनों को बाय बोला और वहां से निकल गया। घर आकर वह थोड़ा फ्रेश हुआ और अपनी पैकिंग में लग गया। शरण्या ने घर से निकलने से पहले अपने और रूद्र के लिए कॉफी पैक कर ली ताकि रात के सफर में रूद्र को झपकी ना आए और शरण्या खुद भी उसके साथ जागती रहे। 


    ठीक 11:00 बजे रात को रूद्र शरण्या के घर के दरवाजे पर था। उसने बाहर से ही हॉर्न बजा कर शरण्या को आवाज लगाई। शरण्या ने अपना बैग उठाया और भागते हुए बाहर आकर रूद्र की गाड़ी में बैठ गयी। उसने अपना बैग थरमस वगैरह पिछली सीट पर रखा और अपना सीट बेल्ट लगा लिया। रूद्र ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। 


    पूरे रास्ते रूद्र मैं गाड़ी में हल्की म्यूजिक चला रखी थी। गाड़ी चलाते हुए उसके हाथों पर शरण्या ने अपना हाथ रख दिया तो रूद्र ने भी एक हाथ से उसका हाथ पकड़ लिया और एक हाथ से ड्राइविंग करने लगा। रात का वक़्त था और शरण्या ने रूद्र के लिए सारे इंतजाम कर रखे थे। बीच रास्ते में रोककर शरण्या कभी रूद्र को कॉफी देती तो कभी हल्का फुल्का कुछ खाने के लिए जिसे खुद उसने तैयार किया था। शरण्या रूद्र पर बिल्कुल भी जाहिर नहीं होने देना चाहती थी कि उसके दिमाग में क्या चल रहा था। वह बस ज्यादा से ज्यादा वक्त रूद्र के साथ गुजारना चाहती थी। 


    तड़के सुबह वह दोनों हल्द्वानी पहुंचे। रात भर ड्राइव करते हुए रूद्र काफी थक गया था तो उसने कुछ देर वहीं पर साइड में गाड़ी लगा दी। लाख कोशिशों के बावजूद भी शरण्या की आंख लग चुकी थी। रूद्र ने प्यार से शरण्या की तरफ देखा और उसके चेहरे पर आए बालों की लटों को कान के पीछे करते हुए बोला, "बस कुछ दिन और! फिर यह बेचैनी यह दूरी खत्म। पूरी दुनिया के सामने तुम मेरी होगी शरण्या। फिर तुमसे चुन-चुन कर बदले लूंगा।"


     रूद्र ने शरण्या का कंबल ठीक किया और दरवाजा खोलकर गाड़ी से बाहर निकल गया। सुबह हो चुकी थी और बस वालों की लाइन लगी थी। बस वाले अपने पैसेंजर छोटी गाड़ियों में बैठा कर उन्हें नैनीताल की तरफ रवाना कर रहे थे। रूद्र ने ट्रेफिक क्लियर होने का इंतजार किया और यह उसे एक अच्छा मौका मिल गया था। उसने एक नजर सोती हुई शरण्या पर डाली और फिर चारों ओर नजर घुमाई तो देखा यह वही जगह थी जहां कुछ महीने पहले वह और मौली रुके थे। वही चाय की दुकान और वही सड़क के उस पार एक छोटा सा देवी मां का मंदिर। उसे याद आया किस तरह मौली ने यहीं पर हाथ जोड़कर देवी मां से प्रार्थना किया था। 


     रूद्र अभी सोच ही रहा था कि दुकानदार ने रूद्र को आवाज लगाई, "हां बाबू जी! चाय लेंगे क्या? सुबह सुबह का वक्त है और इतनी ठंड है। बोलो बाबू जी कौन सी चाय लोगेक्? अदरक वाली या इलायची वाली?"


     रूद्र ने दुकानदार को देखा और बोला, "फिलहाल तो एक कप चाय दे दो, चाहे अदरक वाली हो चाहे इलायची वाली। वैसे हम तो थोड़ी कड़क ही पीते हैं, हमारी वाली थोड़ी कड़क मिजाज है ना इसलिए।"


    दुकानदार हंस पड़ा और रूद्र के लिए चाय बनाने लगा। उसके लिए थोड़ी कड़क चाय बना कर दुकानदार ने सामने टेबल पर रख दिया और बोला, "मैडम जी ना पिएंगी चाय?"


    रूद्र ने शरण्या की तरफ देखा और बोला, "अभी कुछ देर सो लेने दीजिए। जब उठेगी तो आपके हाथ की चाय पीकर जाएगी वह।"