Chapter 100

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humsafar 100

Chapter

100

   सिद्धार्थ की श्यामा से पहली मुलाकात बड़ी ही अजीब हुई और उससे भी अजीब थी उसकी बातें। सिद्धार्थ को वह थोड़ी अटपटी और थोड़ी पागल से लगी जिसे अपने पुराने स्कूटी से इतना ज्यादा प्यार था। होते हैं कुछ लोग जिन्हें अपने किसी खास चीजों से कुछ खास लगाव होता है। वह कभी उस और देखता जिस तरफ श्यामा गई थी और कभी अपने हाथ में पड़े रुपए के बंडल को जो श्यामा पकड़ा गई थी। "लड़कियों को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। इसीलिए मैं लड़कियों के चक्कर में पडता ही नहीं" सोचते हुए सिद्धार्थ ने किसी को फोन कर बुलाया और उसे स्कूटी के बारे मे बताया। उसके आने के बाद वह गाड़ी में बैठा और ऑफिस के लिए निकल गया। वह आदमी भी श्यामा की स्कूटी लेकर निकल गया। 

      सिद्धार्थ पूरे एक साल के बाद ऑफिस आया था। उसे देखते ही वहाँ मौजूद सभी लोग खुश हो गये। सिद्धार्थ के लिए वह सब भी उसका एक परिवार ही था जिसमें कुछ नये आए थे तो कुछ पुराने जा चुके थे। सारांश में भी सबके सामने उसकी टांग खिंचाई शुरू कर दी और उसके शादी के प्लान के बारे में सब को बता दिया,"आप सबको पता है? भाई ने शादी के लिए हां कर दी है। अभी आप लोगों की जिम्मेदारी है कि आप सब भाई के लिए एक अच्छी सी लड़की ढूंढे, आखिर वह भी तो आप सबके अपने ही है।"

      सिद्धार्थ की शादी के बारे में सुन कर सभी खुश हो गए। लड़कियों ने तो उम्मीद से सिद्धार्थ को ऐसे देखा मांनो उसी से शादी कर लेगा। सभी चाहते थे कि जिस तरह सारांश की बीवी खूबसूरत है वैसे ही खूबसूरत सिद्धार्थ की वाइफ हो। सिद्धार्थ ने घूरकर सारांश को देखा फिर जब उससे लगा कि ऑफिस में कुछ ज्यादा ही गॉसीप् होने लगी है तब उसने बात बदलते हुए कहा," आप सभी को ट्रीट चाहिए? आज का लंच मेरी तरफ से। जिसको जो मर्जी है वह खाए। पूरी पेमेंट सारांश करेगा क्योंकि मेरे पास मेरा वॉलेट नहीं है" कहकर सिद्धार्थ अपने केबिन मे चला गया। सारांश भी उसके पीछे भागा। 

      सारांश का चेहरा अजीब हो गया। उसने कहा, "क्या भाई! ट्रीट आप दे रहे हो और बिल मेरे सिर पर क्यों फाड़ रहे हो!!! आप की ट्रीट है तो आप पेमेंट करो और वॉलेट नहीं है, मतलब? आप तो मार्केट गए थे ना फिर इतनी जल्दी वापस कैसे आए! कहीं जेब तो नहीं कटवा लिया आपने?",सारांश ने सिद्धार्थ का मजाक बनाते हुए कहा। 



      सिद्धार्थ की आंखों के सामने श्यामा का चेहरा उभर आया। उसने कहा,"जेब नहीं कटवाई पगले! जेब काट गई कोई मेरा और सारे कार्डस् भी, बस पैसे थमा गई।"

     सिद्धार्थ की बात सुन सारांश की आंखें हैरानी में चौडी हो गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि कोई लड़की इस तरह सिद्धार्थ से उसका वॉलेट और कार्ड्स लेकर चली गई लेकिन यहां बात वॉलेट की नहीं थी। सबसे बड़ी बात थी कि कोई लड़की सिद्धार्थ से इतनी बदतमीजी कर के गई थी और सिद्धार्थ ने उसे जाने भी दिया। यह बात उसके समझ में नहीं आई ,"कौन थी वह? नाम क्या था उसका? दिखने में कैसी थी भाई? मतलब आते ही आप लड़की के चक्कर में पड़ ही गए!"

        "थी एक माँ दुर्गा का अवतार। अपनी मामूली से स्कूटी के लिए मुझे कितना कुछ सुना गई कि पूछो मत। साफ-साफ उसने मुझे धमकी दी है की कैसे भी  मैं उसकी स्कूटी को रिपेयर करा कर उसके एनजीओ पहुंचा दु। तभी मुझे मेरा सामान वापस मिलेगा और ये क्या कहा तू ने लड़की का चक्कर!!! मैं किसी लड़की के चक्कर में नहीं पड़ने वाला, इतना तो तु जान ले।" सिद्धार्थ ने झुंझलाते हुए कहा तो सारांश को सिया की लड़कों वालों बात याद आ गई और उसकी हंसी छूट गई। 

      सिद्धार्थ समझ गया कि सारांश को हंसी किस बात पर आई है। उस ने एक पेपर बॉल उठाया और सारांश को दे मारा लेकिन सारांश भी कम तेज नहीं था। उसने झट से खुद का बचाव किया और बोला, "अरे भाई! लेकिन यह तो बताओ कि वह थी कौन?"

     "यह बात तो तू मुझे बताएगा कि वह है कौन?", सिद्धार्थ ने कहा तो सारांश ने सवालिया नजरों से उसे देखा। उसके समझ में नहीं आया आखिर जिस लड़की से सिद्धार्थ की झड़प हुई, उस लड़की को वह कैसे जानता है। सिद्धार्थ ने वह कार्ड सारांश की ओर उछाल दिया जो श्यामा ने उसे पकड़ आया था। सारांश कार्ड देख कर हैरान रह गया और बोला, "भाई यह तो अपने एनजीओ का कार्ड है!"

     सिद्धार्थ बोला, "बिल्कुल!!! इसलिए तो पूछ रहा हूं कौन है वो। सांवला रंग बड़ी बड़ी आंखें तीखी नाक कमर तक लंबे बाल, हाइट करीब 5 फुट 10 इंच।"

     सारांश समझ गया कि सिद्धार्थ जिस की बात कर रहा है और कोई नहीं श्रेया की कजन श्यामा ही है। उसने कहा, "भाई वह अवनी की फ्रेंड है श्रेया, उसकी कजन है। कुछ दिनों पहले ही उसने हमें ज्वाइन किया और सच में भाई, उसने इतनी अच्छी तरह से एनजीओ को संभाला है कि मॉम भी काफी ज्यादा इंप्रेस्ड है उस से। आप यकीन करिए भाई, वह बहुत ही शांत किस्म की लड़की है लेकिन सिर्फ तभी तक जब तक उसे छेड़ा ना जाए।"

      "शांत माई फुट! पता नहीं उसके घर वाले उसे कैसे  झेलते होंगे। जिससे भी शादी होगी ना वह तो कुछ ही दिन में छोड़ कर भाग जाएगा उसे", सिद्धार्थ ने कहां तो सारांश गंभीर हो गया और बोला, "भाई वह तलाकशुदा है। कई सालों बाद ससुराल वालों के टॉर्चर से तंग आकर उसने फाइनली सबसे अलग होने का डिसाइड किया और इतना कुछ बर्दाश्त करने के बावजूद उसके अपने घर वालों ने उसका साथ नहीं दिया। इस वक्त वह बहुत अकेली है।" 

      सारांश की बात सुन सिद्धार्थ को पछतावा हुआ कि उसे श्यामा से वह सारी बातें नहीं कहनी चाहिए थी जो कुछ उसने कहा था। उसे यू सोचता हुआ देख सारांश ने मजाकिया लहजे में कहा, "वह अकेली है भाई! आप चाहे तो उनको कंपनी दे सकते हैं। यकीन मानिए भाई, समर्थ को मां मिल जाएगी और आप को कंट्रोल करने वाली एक दुर्गा मां" कहते हुए सारांश की फिर से हँसी छूट गई। सिद्धार्थ ने गुस्से में इस बार पेपर वेट उसको दे मारा। 


      श्यामा और अवनी मंदिर के पूरे प्रांगण को सजाने में लगी हुई थी। जो कुछ भी हुआ उसे अपने दिमाग से निकालने के लिए अवनी खुद को व्यस्त रखना चाहती थी। इसलिए सारांश और सभी घरवालों के लाख मना करने के बावजूद अवनी ने आराम करने की बजाय मंदिर में काम में हाथ बटाने का सोचा और श्यामा के साथ काम करने मंदिर चली आई। सारांश ने भी उसकी सिक्योरिटी का पूरा इंतजाम कर रखा था ताकि कोई उसके आसपास भी ना फटक पाए। 

       जब मंदिर की लगभग पूरी सजावट हो गई तब जानकी ने देखा और बोली, "ऐसा लग रहा है मानो यहा किसी की शादी हो। इतनी खूबसूरती से सजाया तुम दोनों ने! सच में बहुत खूबसूरत लग रहा है।"

     "शादी कब किसकी हो जाए, यह कुछ कह नहीं सकते मासी। अब मेरा ही देख लो, शादी के दिन तक मुझे पता भी नहीं चला कि मेरी शादी होने वाली है आज और अचानक से मैं दुल्हन बन गई और मेरी पूरी दुनिया बदल गयी। इसीलिए अब मुझे यह किस्मत और संजोग पर पूरी तरह से यकीन हो गया है' , अवनी ने कहा और फिर झुक कर धीरे से जानकी के कान में बोली, "क्या लगता है मासी! सिद्धार्थ भैया और श्यामा दी एक-दूसरे को पसंद आएंगे क्या? और उससे भी बड़ी बात, क्या वे दोनों शादी के लिए मानेंगे?"

     जानकी ने कंधे उचका दिए और बोली, "जिसकी जैसी किस्मत। अगर सिद्धार्थ के जीवन में श्यामा जैसी लड़की है तो फिर इससे ज्यादा खुशी की बात और कोई  हो ही नहीं सकती। समर्थ को एक माँ मिल जाएगी और श्यामा को मां कहने वाला कोई। दोनों ही पूरे हो जाएंगे।"

      पंडित जी जब मंदिर वापस आए तो वहाँ की सजावट देखकर वह भी हैरान रह गए। पूरा मंदिर फूलों से सजा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी की शादी होने वाली हो। वह भी उन लोगों की तारीफ किए बिना ना रह पाए। कल की पूजा की कुछ जरूरी बातें समझा कर वह मंदिर के भीतर चले गए और कुछ देर के बाद हाथ में दो थैले ला कर अवनी को पकड़ा दिया। अवनी के दोनों हाथ में चोट लगी थी तो श्यामा ने जल्दी से आकर उन दोनों थैलों को पकड़ लिया और वह लोग वहां से बाहर निकल आए। 

     श्यामा अवनि के साथ ही मित्तल मेंशन पहुंची और उसने पंडित जी के दिए दोनों थैले सिया की ओर बढ़ा दिए जिसमें सिद्धार्थ और कार्तिक के लिए कुछ कपड़े और जरूरी सामान थे जो पूजा में पहनने थे। वहाँ वह सिद्धार्थ के बेटे समर्थ से मिली जो काफी प्यारा था लेकिन मुस्कुराहट उसके होठों से काफी दूर रहती थी। श्यामा अपने बैग में हमेशा कुछ न कुछ बच्चों के लिए जरूर रखती थी। उसने अपने बैग में हाथ डाला तो दो चॉकलेट उसके हाथ लगे उसने और निकाला और समर्थ की ओर बढ़ा दिया लेकिन समर्थ भी ठहरा अपने पापा की तरह ही। उसने श्यामा से कुछ भी लेने से साफ मना कर दिया और बोला, "मैं आपको जानता नहीं, पहचानता नहीं। तो मैं आपके हाथ से यह कैसे ले लूं! सॉरी मिस...जो भी हैं आप! मैं किसी अनजान के हाथ से कोई चीज नहीं लेता।"

     श्यामा समर्थ के इतने फॉर्मल बिहेवियर से हैरान रह गई। वह अवनि से पूछे बिना ना रह पाई कि यह बच्चा है कौन और इसके बारे में कभी नहीं सुना तो अवनि बोली, "ये सिद्धार्थ भैया का बेटा है, समर्थ।"

      "समर्थ सिद्धार्थ मित्तल! ये है मेरा पूरा इंट्रोडक्शन और मैं लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करता।" समर्थ ने कहा। श्यामा ने पूछा " क्यों "  तो समर्थ ने कहा, "क्योंकि लड़किया काफी कॉम्प्लिकेटेड होती है और उन्हे समझना मुश्किल ही नही नामुमकिन होता है।"

    श्यामा बस उसे देखती रह गयी। इतने छोटे से बच्चे के दिमाग मे इतना कुछ कहाँ से आया की वह बड़ों की तरह बातें कर रहा था। "लाइफ भी अगर कॉम्प्लिकेटेड ना हो तो मजा नही आता है। वैसे ही लड़किया भी होती है। आप मुझे नही जानते लेकिन मै तो आप को जानती हु, और आपकी दादी और चाची को तो और भी अच्छे से जानती हु। तो अब बताओ की मै अंजान कैसे हुई और अगर अंजान हु तो इस घर मे क्या कर रही हु?"

    श्यामा की बात सुन समर्थ चुप हो गया। उससे कुछ कहा नही गया तो उसने अपना दूध पीने मे फोकस किया लेकिन दूध उसके कपड़ो पर जा गिरा जिसकी वजह से समर्थ थोड़ा इरिटेट् हो गया, "आपकी वजह से हुआ ये सब। आपने मुझे अपनी बातों मे उलझा दिया और मेरे कपड़े खराब हो गए।"

    समर्थ की बात सुन सिया ने उसे डांट लगाई लेकिन श्यामा ने उसका कमरा पूछा और बिना कुछ कहे उसे उसके कमरे मे उठा कर ले गयी। श्यामा को समर्थ के साथ ऐसे देख सिया को अच्छा लग रहा था। "बस इन दोनों बाप बेटे को थोड़ी सी समझ आ जाय" सिया ने कहा। रज्जो वहीं बैठी सब देख सुन रही थी। उसने कहा, "जीजी माँ! माना श्यामा दी बहुत अच्छी है और गुणी भी। लेकिन सिड ब्रो के साथ उनकी जोड़ी कुछ बेमेल सी ना लगेगी? मतलब कहा श्यामा दी सांवली सी और कहा सिड ब्रो एक दम व्हाइट। ब्लैक एंड व्हाइट जोड़ी बन जायेगी।"

     "तुम ने कभी राधे श्याम की मूर्ति देखी है? क्या वो तुझे बेमेल दिखती है?" सिया ने पूछा। 

   "नही जीजी मां! वो दोनों तो कितने सुंदर लगते है एक साथ।" रज्जो ने कहा पर अपने जवाब से वह खुद ही चुप हो गयी। उसने सिया से जो सवाल किया था उसका जवाब उसने खुद ही दे दिया था। 

     "रंग रूप बाहरी दुनिया के लिए होते है रज्जो। मन को जब कोई भा जाए तो उसकी सारी बुराईया भी छुप जाती है फिर श्यामा मे तो कोई खराबी भी नही है। आखिर हम सिद्धार्थ को शादी के लिए क्यों मना रहे है! इसीलिए न की समर्थ को माँ का प्यार मिले। एक बच्चा अपने पिता के बिना रह सकता है लेकिन माँ के बिना...........! एक बच्चे के लिए माँ बाप दोनों ही जरूरी होते है और हम सब यही तो चाहते है की समर्थ को माँ के प्यार का एहसास हो। बाप के साथ रहे कर वो भी उसके जैसा ही बन गया है। एक माँ का प्यार ही उसके बचपन को लौटा सकता है और मुझे अब एक उम्मीद की किरण नज़र आ रही है।" सिया ने कहा। 

     काव्या वहीं बैठी सिया और रज्जो की बातें सुन रही थी। सिया की बातों से और समर्थ से मिलकर उसे कार्तिक की कही बातों का मतलब समझ आ रहा था। एक बच्चे का अधूरे परिवार मे पलने से उस बच्चे पर क्या असर होता है। 




क्रमश: