Chapter 118

Chapter 118

YHAGK 117

Chapter

117






 सारे घर वाले इस वक्त शरण्या के पास मौजूद थे लेकिन शरण्या की नज़र सिर्फ दरवाजे पर थी। सबके होते हुए भी शरण्या को रूद्र का इंतजार था। भले ही वह किसी को भी ना पहचान पा रही हो लेकिन रूद्र के एहसास को वह अब तक नहीं भूली थी। यह देखकर ही शरण्या और रूद्र के प्यार की गहराई का एहसास होता था। लेकिन रूद्र दरवाजे पर खड़ा शरण्या का सामना करने की हिम्मत जुटा रहा था। वह चाह कर भी ना तो उस दरवाजे से अंदर जा पा रहा था और ना ही वहां से वापस लौट पा रहा था। शरण्या की सारी बातें, सारी यादें आज भी उसके जेहन में बिल्कुल ताजा थी। उसे तो शरण्या का सामना करना ही था, आखिर जो गुनाह उसने किया था उसकी सजा सिर्फ शरण्या दे सकती थी और उसे अपनी सजा का ही इंतजार था। लेकिन इस सब में वह अपनी बीवी को खोना भी नहीं चाहता था। 


     काफी देर हो गई लेकिन ना तो रूद्र दरवाजे से अंदर आया और ना ही शरण्या की नजर दरवाजे से हटी। आखिर में लावण्या से रहा नहीं गया तो उसने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया। रूद्र नजरें झुकाए वही दरवाजे पर ही खड़ा था। लावण्या बोली, "वो सिर्फ तुम्हारा इंतजार कर रही है। हम में से किसी को नहीं पहचान रही लेकिन उसने तुम्हारे लिए सवाल किया! सिर्फ तुम्हें ढूंढ रही है वो, सिर्फ तुम्हें पहचान रही है। बहुत प्यार जो करती है तुमसे! मैं नहीं जानती रूद्र तुम्हें उससे प्यार है या नहीं! जो कुछ तुमने आठ साल पहले किया और जो कुछ तुमने अब किया उसके बाद मैं कंफ्यूज हूं। अगर तुम्हें शरण्या से प्यार था तो फिर इशिता के साथ तुम्हारा रिश्ता क्या था? इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे लेकिन फिलहाल मेरी बहन को तुम्हारा इंतजार है। वह बस तुम्हें देखना चाहती है। हम में से किसी को भी नहीं पहचान रही। अंदर चलो!"


    लावण्या ने रूद्र का हाथ पकड़ा और उसे लेकर अंदर खींचते हुए चली आई। शरण्या ने सब रूद्र को देखा तो बस देखती रह गई। एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके होठों पर नजर आ रही थी लेकिन रूद्र नजरे झुकाए वहीं खड़ा था। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह शरण्या की तरफ देखें। किसी अपराधी की तरह वह वहां खड़ा रहा। 


    शरण्या ने अपने कांपते हाथों से रूद्र का हाथ पकड़ लिया जिसे देख मिस्टर रॉय बोले, "हमें अभी चलना चाहिए। शरण्या को आराम की जरूरत है। रूद्र तुम यहीं रुकना, अभी उसने अपना सूप खत्म नहीं किया है, ठीक है?" कहते हुए उन्होंने सब को इशारा किया।


     सभी एक-एक कर बाहर निकले तो मौली ने आकर शरण्या के गले लगते हुए उसके गाल पर किस किया और बाहर चली गई। नर्स ने भी सूप का बॉल टेबल पर रखते हुए कहा, "सर...! शरण्या मैम ने अभी तक अपना खाना खत्म नहीं किया है और यह जरूरी है उनके लिए।"


   रूद्र ने हाँ में सर हिलाया तो नर्स भी वहां से चली गई। शरण्या ने अभी तक रूद्र हाथ पकड़ रखा था। रूद्र उसके ठीक सामने बिस्तर पर बैठा तो शरण्या ने उसके चेहरे को हौले से छुआ। शायद कुछ महसूस करने की कोशिश कर रही थी या फिर यकीन करने की, यह तो वही जाने। चेहरे से होते हुए उसके हाथ रूद्र के सीने तक चले गए। रूद्र का दिल बुरी तरह से धड़क रहा था और शरण्या यह महसूस भी कर पा रही थी। 


    जैसे ही शरण्या के हाथ रूद्र के सीने पर गए, रूद्र का दिल सुकून से भर उठा। वो खुद को संभाल नहीं पाया और शरण्या को खींच कर अपने सीने से लगा लिया। इस पल का इंतजार उसनेआठ सालों तक किया था। इस एक लम्हे के इंतजार में वह अब तक जीता रहा, सांसे लेता रहा। बेचैनी में गुजरे दिन, आज एक बार फिर उसे सुकून मिल रहा था। उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह बस अपनी शरण्या को जी भर के प्यार करना चाहता था। उसने एक-एक कर उसके चेहरे को चूमना शुरू कर दिया। आज जिंदगी एक बार फिर उसकी बाहों में थी। वो जिंदगी जिसे वह छोड़कर चला गया था। अपनी शरण्या को अपने सीने से लगाए रूद्र ना जाने कब तक वहां बैठा रहा। वक्त का उन दोनों को ही होश नहीं था। शरण्या को भले ही कुछ याद नहीं था लेकिन उसने रूद्र को खुद से दूर करने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं की। 


   रूद्र को अचानक से ध्यान आया कि शरण्या ने अभी तक अपना खाना खत्म नहीं किया था। उसने नर्स को बुलाया और दूसरा सुप बनवाने को कहा। कुछ देर के बाद नर्स अपने हाथ में सुप का दूसरा बोल लेकर आई और रूद्र को देकर चली गई। शरण्या को अच्छे से सुप पिला देने के बाद रूद्र एक बार फिर उसके माथे को चूमकर उसका सर सहलाने लगा। उसे तकलीफ इस बात की हुई कि शरण्या को अपने लंबे बाल बहुत पसंद थे जो बहुत छोटे हो गए थे। 


    रूद्र ने मन ही मन कहा, "पता नहीं जब तु खुद को आईने में देखेगी तब किस तरह से रिएक्ट करोगी! लेकिन चाहे जो भी हो, मेरे लिए तुम मेरी शरण्या हो और मैं तुमसे हमेशा प्यार करता रहूंगा।"


     शरण्या गहरी नींद में सो गई लेकिन अभी भी उसने रूद्र का हाथ थाम रखा था। यह देख रूद्र को बहुत अच्छा लगा लेकिन इस वक्त शरण्या को आराम से सोने देना भी जरूरी था। उसने अपना हाथ छुड़ाना चाहा लेकिन शरण्या ने उसके हाथ को और भी मजबूती से थाम लिया और अपने सिरहाने छुपा कर सो गई। उसके मन में अभी भी डर बैठा हुआ था। वो डर जो उसनें उसे खोकर महसूस किया था। 


     रूद्र ने दोबारा ऐसी कोई कोशिश नहीं की और शरण्या का सर अपने गोद में रख कर उसके सिरहाने बैठ गया। काफी देर तक वह उसके चेहरे को निहारता रहा और उसके बाल सहलाता रहा। रात के जाने किस प्रहर में उसकी आंख लग गई। आज रूद्र ने अपनी दवाई नहीं ली थी। इसके बावजूद रूद्र आज चैन से सो रहा था। 




   मिस्टर जॉय अपनी वाइफ के साथ घर पहुंच गए और सीधे अपने कमरे में चले गए। अनन्या जी बोली, "हम सब मान चुके थे, हम सब यकीन कर चुके थे लेकिन सिर्फ एक उसकी वजह से हमारी बच्ची हमें वापस मिली है। इसका क्या मतलब निकाला जाए? शरण्या को देखा आपने! रेहान उसके सामने खड़ा था लेकिन एक बार भी उसने रेहान को नहीं देखा। उसकी नजर सिर्फ दरवाजे पर थी। वह दोनों एक दूसरे के साथ सिर्फ दिल से नहीं बल्कि एहसास से जुड़े हैं। इतना प्यार करते है वह दोनों एक दूसरे से! मुझे यकीन नहीं होता, दोनों जिस तरह लड़ते थे ना, जिस बुरी तरह से दोनों झगड़ते थे, उन दोनों में इतना प्यार! इतना गहरा प्यार........! मैं अभी भी यकीन नहीं कर पा रही हूं!"


     ललित वहीं खड़े सब कुछ सुन रहे थे लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बारे में क्या कहें! उन्होंने कुछ कहा भी नहीं और सोने चले गए। नींद तो आज रात किसी को भी नहीं आने वाली थी लेकिन रूद्र और शरण्या दोनों आराम से सो रहे थे, सबकी नींद उड़ा कर। 




     गाड़ी जैसे ही विहान के घर के सामने रुकी, नेहा ने बिल्कुल भी वक्त नहीं गवाया और तुरंत गाड़ी से उतरते हुए वह अंदर की तरफ भागी। मानसी उसे पीछे से आवाज देती रह गई, "नेहा.......! संभल कर!" लेकिन नेहा के पास इतना वक्त कहा था जो वह मानसी की बात सुनती! मानसी ने अपने छोटे से बच्चे को गोद में अच्छे से संभाला और मानव के साथ उतर गई। सिंधिया ने गाड़ी यू टर्न ले ली लेकिन वापस लौटने की बजाए वह भी मानसी के पीछे पीछे चल दिया। 


    नेहा जैसे घर के अंदर पहुंची, अपने मां पापा को देखा और उनसे लिपट कर रो पड़ी। उसके मां पापा भी बरसों बाद अपनी बेटी से मिलकर बेहद इमोशनल हो गए। आखिर एक बहुत बड़ा तूफान उनकी जिंदगी से गुजरा था। हंसता खेलता परिवार देखते ही देखते इतने टुकड़ों में बिखर गया और उन लोगों के साथ इतना कुछ हो गया जो उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। तभी नेहा की मम्मी की नजर पीछे खड़ी मानसी पर गई जो अपने बच्चे को गोद में संभाले हुए थी। उन्हें याद आया किस तरह विहान मानसी को अपनी पत्नी बनाकर अपने साथ ले गया था। वह आखरी बार था जब उन्होंने मानसी को देखा था। उसके बाद से मानसी का उस परिवार से कोई लेना-देना नहीं था और आज इतने सालों के बाद वह लोग उसी मानसी के घर में खड़े हैं, यह सोचकर ही उन्हें बहुत अजीब लग रहा था। 


    मानसी ने हालात को समझते हुए कहा, "नेहा! अब सब कुछ ठीक है। इतने सालों के बाद फाइनली अब जाकर सब कुछ ठीक हो रहा है। रूद्र ने आते ही वह कर दिया जो हम सब इतने सालों में नहीं कर पाए। तुम दोनों को कमरे में ले जाओ, मैं सबके लिए खाना बनवा देती हूं। मुझे पूरा यकीन है इन्होंने खाया नहीं होगा।"


    नेहा के पापा बोले, "हमें भूख नहीं है। हमें कुछ नहीं खाना। बस हम घर जाना चाहते हैं, अपने घर।"


    मानसी बोली, "ये घर भी तो आपका है पापा। आपने कभी बेटी माना था मुझे तो यह आपकी बेटी का घर है कोई गैर तो नहीं। और फिलहाल जब तक आप लोगों के सेफ्टी का सारा इंतजाम नहीं हो जाता तब तक आप लोग कहीं नहीं जाएंगे, यही रहेंगे।"


    नेहा के पापा ने कुछ कहना चाहा लेकिन मानसी ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा, "इस बारे में ज्यादा सवाल जवाब मत कीजिए। जो कह रही हूं सबके भले के लिए है। ईशान अभी-अभी जेल गया है और यह हमारी सेफ्टी के लिए ही था जो रूद्र ने हम दोनों को अकेले नहीं आने दिया। वरना घर आने में कोई प्रॉब्लम तो नहीं थी! आप लोगों को भी यहां लाकर रखा ताकि ईशान को जरा सा भी अंदाजा ना हो कि आप लोग कहां है। क्योंकि रूद्र जो करता है बहुत सोच समझकर करता है। आप लोग यही रहेंगे, मैं मां पापा से बात करू लूँगी। उन्हें कोई एतराज नहीं होगा। और अगर यह मेरा फैसला है तो विहान कभी इस बात का विरोध नहीं करेंगे। आप लोग आराम कीजिए मैं आपके लिए कमरा खुलवा दे रही हूं।"


     नेहा की मम्मी बोली, "पहले एक बार अपने घर वालों से बात कर लो। हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से कोई तमाशा हो। वैसे भी बहुत कुछ सह लिया, अब बस सुकून की जिंदगी जीना चाहते हैं।"


   मानसी को भी यह बात सही लगी। उसने सबसे पहले घर के नौकर को आवाज लगाई और खाने का मैन्यू बता कर जल्दी से तैयार करने को कहा। फिर अपना फोन लेकर उसने विहान का नंबर डायल कर दिया। कुछ देर रिंग जाने के बाद विहान ने फोन उठाया तो मानसी ने पूछा, "आपके दोस्त कैसे हैं?"


    विहान ने कहा, "फिलहाल अभी खतरे से बाहर है। उसकी फैमिली अभी थोड़ी देर में पहुंचती होगी, फिर मैं यहां से वापस चला आउँगा। तुम लोग घर पहुंच गए?"


   मानसी बोली, "जी बस अभी थोड़ी देर पहले! वह आपसे एक बात कहनी थी........!"


     नेहा के मम्मी पापा और नेहा वहीं खड़े मानसी की बात सुन रहे थे। मानसी आगे कुछ कहती उससे पहले विहान बोला, "तुम चाहती हो कि नेहा के मम्मी पापा हमारे घर रहे?"


    मानसी ने बस "हम्म्म" कहा तो विहान बोला, "नेहा ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। उसकी वजह से मेरी बहन मुझे जिंदा वापस मिली है। उसके इतने एहसान है कि हम जिंदगी भर नहीं चुका सकते। वह लोग जब तक चाहे हमारे घर में रह सकते हैं। वैसे भी रूद्र फिलहाल उन्हें कहीं और रहने की इजाजत भी नहीं देगा। तुम चिंता मत करो, मां पापा भी इस बारे में कुछ नहीं कहेंगे। आखिर तुम उनकी लाडली जो हो। वह मेरी बात काट सकते हैं तुम्हारी नहीं।"


    मानसी मुस्कुराई और बोली, "थैंक यू! मैं बस सबके लिए खाना बनवा रही थी। आपको खाना है?"


    विहान बोला, "तुम अपने हाथों से जहर भी दे दो। लेकिन किसी और के हाथ का नहीं खाना मुझे। बेबी ठीक है?"


    मानसी ने कहा, "हां सो गया है। मैं आपसे बाद में बात करती हूं। आप घर आ जाइए पहले।" कहकर मानसी ने फोन रख दिया। 


    नेहा के मां पापा मानसी और विहान के बीच के अंडरस्टैंडिंग को ही देख रहे थे। मानसी ने कुछ कहा भी नहीं और विहान ने बातें समझ भी ली। यह देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगा। दोनों के बीच का प्यार उन्हें अब समझ आ रहा था। तभी उनकी नजर पास खड़े मानव पर गई तो मानसी बोली, "मानव इधर आइए! ये आपके दादा-दादी हैं, इनके पैर छुओ।" 


   मानव ने आगे बढ़कर अपने दादा दादी के पैर छुए तो उन्होंने उसे गले लगा लिया। आखिर उनका अपना जो खून था।