Chapter 164

Chapter 164

YHAGK 163

Chapter

 163




  रूद्र को रजत की कही बातों पर यकीन नहीं हुआ और वो भागते हुए एयरपोर्ट पहुंचा। उसके पीछे पीछे विहान भी चला आया। रूद्र ने सारे पैसेंजर लिस्ट खुद से चेक की और उसमें शरण्या का नाम देखकर उसे यकीन हो गया कि अब शरण्या यहां से जा चुकी है। रजत और विहान रूद्र को संभालने की कोशिश कर रहे थे लेकिन रूद्र ने किसी तरह का कोई रिएक्शन नहीं दिया। उसके चेहरे पर दर्द साफ नजर आ रहा था, उसकी आंखों में नमी थी लेकिन होंठ खामोश थे। उसे यकीन हो गया था कि उसकी शरण्या अब जा चुकी है। उसकी आंखों के सामने उसकी पूरी जिंदगी बिखर गई और वह कुछ ना कर सका। इस बात का उसे अहसास तक नहीं हुआ कि शरण्या इतना बड़ा कदम उठाने वाली है। 


       रजत और विहान उसके सामने खड़े थे लेकिन रूद्र ने एक बार भी उन दोनों की तरफ नहीं देखा और वहां से बाहर निकल गया। जिहान अच्छे से जानता था कि रूद्र किस कदर टूटा हुआ है। 


     एयरपोर्ट से निकलकर रूद्र बाहर आया। चलते हुए एकदम से उसे ठोकर लगी। वह लड़खड़ाया और गिरने को हुआ लेकिन उसी वक्त रजत और विहान ने उसे संभाल लिया। रूद्र खड़े होने की बजाय वही रास्ते पर बैठ गया और हंसने लगा। उसकी हंसी देखकर विहान घबरा गया और उसे झकझोड़ते हुए बोला, "रूद्र क्या हो गया है तुझे? संभाल खुद को! अभी हमें घर वालों को भी सारी बात बतानी है। घर में सब तुम दोनों की शादी..........." कहते कहते विहान खुद रुक गया। उससे अपने बात पूरी करते हुए भी नहीं बन रहा था। शरण्या की इस बेवकूफी भरी हरकत पर उसे बहुत बुरी तरह से गुस्सा आ रहा था। 


      रूद्र हंसते हुए बोला, "बहुत सही किया उसने। बिल्कुल सही किया। मुझ जैसे इंसान के साथ यही होना चाहिए था। मैंने कहा था उसे, शरण्या मुझे मेरी गुनाहों की सजा दे लेकिन वह नहीं मानी। सब कुछ भूल कर मैं उसके साथ एक नई जिंदगी के सपने देख रहा था। यह दी है उसने मुझे सजा। मैं इसी सजा के लायक हूं। यही होना चाहिए था मेरे साथ। मुझे शरण्या से कोई नाराजगी नहीं है। वह भी तो मेरे साथ अपनी नई जिंदगी के सपने देख रही थी और मैंने क्या किया था? सब कुछ छोड़ कर चला गया। उसके सारे सपने बिखर के रह गए थे। उसकी खुद की जान जाते-जाते बची है। जिस दर्द से वह गुजरी थी वह दर्द अब मेरे हिस्से आया है। मैं बहुत खुश हूं! जो सजा मैंने उससे मांगी थी उसने मुझे दी भी। बस एक कमी रह गयी। जिस तरह वह मेरे सामने गिडगिड़ाई थी, वो मौका उसने मुझे नहीं दिया। मैं भी उसके सामने हाथ जोड़कर पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाना चाहता हूं। प्लीज उसे ले आओ कहीं से, प्लीज ले आओ उसे।" कहते हुए रूद्र बुरी तरह से फफक कर रो पड़ा। 


     विहान से रूद्र की यह हालत देखी नहीं गई। उसमें और शरण्या में जरा सा भी अंतर नहीं था। उसने रूद्र को गले से लगा लिया और बोला, "अभी तु घर चल। इस वक्त यहां रहने का कोई फायदा नहीं है। हम उस पागल लड़की को कहीं से भी ढूंढ कर ले आएंगे। मैं देखता हूं उसने कौन सी फ्लाइट ली थी। जहां भी होगी मैं ढूंढ कर ले लूंगा उसे। तेरा दोस्त तेरे लिए उसे कहीं से भी ले आएगा।"


      वही रूद्र की हालत देखकर रजत को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। उसने कभी भी रूद्र को इस हालत में नहीं देखा था। उसने रूद्र को हाथ पकड़ कर खड़ा करना चाहा लेकिन रूद्र ने उन दोनों से खुद को छुड़ाया और उठ कर धीमी कदमों से वहां से चला गया। 


    रजत उसके पीछे जाना चाहता था लेकिन विहान ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे रोका और कहा, "अभी कुछ देर उसे अकेले रहने दो। बहुत बुरी तरह से टूटा हुआ है। जानता हूं उसे जरूरत है किसी की लेकिन इस वक्त उसे सिर्फ शरण्या ही संभाल सकती है और कोई नहीं। कम से कम रूद्र रो तो रहा है। अपना दर्द अपने आंसुओं के जरिए निकाल तो रहा है। शरण्या तो जैसे पत्थर की मूरत हो गई थी। भगवान कितना गलत करता है ना! जब भी लगता है कि हमारी लाइफ में अब सब कुछ ठीक हो रहा है उसी वक्त सब खराब कर देता है। मैं अभी भी यही सोचता हूं कि आखिर इन दोनों के साथ ऐसा क्यों हुआ? जब हम सोचते थे कि इन दोनों में कभी प्यार हो ही नहीं सकता, इन दोनों में प्यार हो गया और जब हमें लगा कि अब इन दोनों को कोई अलग नहीं कर सकता यह दोनों अलग हो गए, एक बार नहीं दो दो बार! ना जाने इनके किस्मत में क्या लिखा है और ना जाने भगवान ने किस स्याही से इन दोनों की किस्मत लिखी है। हमें अभी घर जाना होगा और सब को इस बारे में बताना होगा।"


     रजत बोला, "नेहा और मानसी भाभी इस वक्त घर पर है और शरण्या मैम के मां पापा भी। उन दोनों ने घर में सबको बता दिया।"


    विहान बोला, "अच्छा किया जो सबको बता दिया। अब बस हम सबको मिलकर रूद्र को संभालना है। हमें अभी घर चलना चाहिए। रूद्र अभी वही गया होगा जहां शरण्या उसे छोड़ कर गई है। बस डर इस बात का है कि वो कुछ उल्टा सीधा ना करे बैठे।"


      रजत बोला, "ऐसा कुछ नहीं होगा। देखा है मैंने उन्हें इतने सालों तक। उनको तकलीफ सहते, शरण्या मैम को याद करते, लेकिन कभी कोई गलत कदम नहीं उठाया ना ही कोशिश की। क्योंकि उनके ऊपर मौली की भी जिम्मेदारी है और वह यह बात हमेशा कहते थे कि उनकी जिंदगी पर उनका नहीं सिर्फ शरण्या मैम का हक है। फिलहाल हमें घर चलना चाहिए सब इंतजार कर रहे होंगे।"




      रूद्र अपनी गाड़ी लेकर जा चुका था। विहान और रजत भी अपनी अपनी गाड़ियों में निकल पड़े। रूद्र को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस वक्त कहां जाए। कोई ऐसी जगह जहां उसे चैन मिल जाए। उसका सुकून उसकी शरण्या उसका घर उसे मिल जाए। काफी देर तक सड़कों पर भटकने के बाद हार कर वो उसी जगह पहुंचा जहां वह और शरण्या आज वक्त गुजारने वाले थे। उन दोनों का घर! उन दोनों का सपनों का घर! 


      रूद्र ने गाड़ी पार्किंग में लगाई और लिफ्ट से जाने की बजाए सीढ़ियों से ऊपर की तरफ बढ़ने लगा। हर एक सीढियाँ चढ़ते हुए उसके दिल में इस वक्त कोई एहसास नहीं थे। एक बार फिर रूद्र अपनी शरण्या को खो चुका था। एक बार फिर वह बेजान हो चुका था। फ्लैट के दरवाजे के सामने पहुंचकर इस बार उसने चाबी नहीं लगाई। बस हल्के से दरवाजे पर हाथ रखा और दरवाजा खुल गया। उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और वह अंदर चला गया। अंदर पूरे फ्लैट में अंधेरा था और सिर्फ कैंडल्स जल रही थी। इस वक्त यह अंधेरा ही उसे सुकून पहुंचा रहे थे। वो हर उजाले से दूर हो जाना चाहता था। अपने पास जल रहे कैंडल्स को उसने अपनी हथेलियों से बुझाना शुरू कर दिया।


    एक-एक कर उसने कई कैंडल्स बुझा दी जिससे उसका हाथ भी जल गया लेकिन रूद्र को कुछ महसूस नहीं हुआ। जैसे ही उसने अगली कैंडल को बुझाने के लिए अपना हाथ उठाया किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। रूद्र ने नजर उठा कर देखा तो सामने खड़े इंसान को देख कर उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। कुछ देर तक वह बिना पलकें झपकाए उसे देखता रहा। उसकी आंखों से आंसू बरबस गिरने लगे। उसके सामने उसकी शरण्या खड़ी थी। वो शरण्या जिसको वो खो चुका था। वह जो उसे छोड़कर जा चुकी थी। 


     रूद्र के बहते हुए आंसू शरण्या से देखे नहीं गए और उसने उसके चेहरे को अपनी हथेली में भर लिया। शरण्या की आंखों में भी आंसू थे। उसने कहा, "मुझे माफ कर दो रूद्र! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था मुझे माफ कर दो। मुझे तुमसे बात करनी चाहिए थी ऐसे ही इतना बड़ा फैसला नहीं लेना चाहिए था। मैं बहुत बड़ी बेवकूफ हु। तुम सच कहते हो मैं बहुत बड़ी बेवकूफ हु।"


     ना जाने रूद्र एकदम से क्या हुआ, उसने कसकर शरण्या के बाल पकड़ लीए और अपनी ओर खींचा। शरण्या दर्द से कराह उठी। रूद्र ने खींचकर उससे अपने सीने से लगा लिया तो शरण्या ने भी उसे कसकर थाम लिया। लेकिन इस वक्त रूद्र के दिल में जो चल रहा था वह तूफान ना जाने क्या कर गुजरने वाला था। रूद्र के बाहों की कसाव शरण्या पर बढ़ने लगी थी। कुछ इस कदर कि शरण्या का दम घुटने लगा। ऐसा लगा जैसे अब उसकी जान निकल जाएगी। शरण्या ने उसे आवाज लगाने की कोशिश भी की लेकिन रूद्र तो जैसे इस दुनिया में था ही नहीं। बड़ी मुश्किल से शरण्या ने दो तीन बार रूद्र को आवाज लगाई तब जाकर रूद्र होश में आया और उसने एकदम से शरण्या को छोड़ दिया। 


     दम घुटने की वजह से शरण्या को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और साथ ही हल्की खांसी भी। उसे इस तरह बेहाल देख रूद्र को एहसास हुआ और उसने जल्दी से शरण्या की तरफ पानी बढ़ाते हुए बोला, "मुझे....... मुझे माफ कर दे! मुझे माफ कर दे! पता नहीं मुझे क्या हो गया था। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैं...... मैं तुझे हर्ट नहीं करना चाहता था लेकिन पता नहीं मुझे क्या हो गया था। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। आ........ आ........... आई आई एम सॉरी! आइंदा ऐसी गलती कभी नहीं होगी, कभी नहीं। बस तुम मुझे छोड़कर मत जाना, बस मुझे छोड़कर मत जाना प्लीज! ऐसी कोई हरकत करन।" कहते हुए वो शरण्या के पैरों में गिर गया। 


     रूद्र की आवाज बुरी तरह से कांप रही थी। उसकी आवाज में जो लाचारी थी उसे महसूस कर के शरण्या को एहसास हुआ कि उसने रूद्र को कितनी बड़ी तकलीफ दी है! कितना बड़ा सदमा पहुंचा है उसे उसकी इस हरकत से! उसने रूद्र को शांत करते हुए कहा, "इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है रूद्र! तुम्हारी कोई गलती नहीं है। सारी गलती मेरी है, मुझे तुमसे बात करनी चाहिए थी। मुझे इस तरह खुद से फैसला नहीं लेना चाहिए था। हो गई गलती मुझसे।"


     रुद्र एकदम से उठा और बोला, "घर चल!"


    शरण्या के पास उसकी बात मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। वह खुद को दोष दिए जा रही थी। रूद्र ने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए नीचे पार्किंग एरिया में लेकर आया। उसने खुद से दरवाजा खोला और शरण्या को अंदर बैठाया। उसके बाद खुद ड्राइविंग सीट संभाल लिया और वहां से निकल पड़ा। 




     पूरी रॉय फैमिली और सिंघानिया फैमिली एक साथ सिंघानिया हाउस में मौजूद थी। सब के सब परेशान थे कि आखिर शरण्या ने ऐसी हरकत की ही क्यों? वो भी खुद की शादी से कुछ दिनों पहले। शिखा जी का दिल बैठा जा रहा था यह सोच कर कि अब रूद्र को वह कैसे संभालेगी. एक बार फिर रूद्र कहीं उन्हीं अंधेरों में ना गुम हो जाए यह सोचकर ही वह कांप उठी। 


      मिस्टर रॉय सर पकड़े बैठे हुए थे और अनन्या जी बार-बार अपनी बेटी का फोन ट्राई कर रही थी। इतने सालों बाद उन्हें उनकी बेटी वापस मिली थी और वह एकदम से ऐसे सब कुछ छोड़ कर कैसे जा सकती थी! लावण्या को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि शरण्या रूद्र से दूर जाने का कभी सोच भी सकती है। शिखा जी रोते हुए बोली, "पुरोहित जी ने कहा था! मेरे दोनों बच्चों की किस्मत में एक साथ खुशियां नहीं लिखी है और मुझे इसी बात का डर था। लेकिन क्या भगवान ने मेरे रूद्र की किस्मत में जरा सी भी खुशियां नहीं लिखी? कितना खुश था वह! अपनी शादी का कार्ड उसने खुद पसंद किया था। क्या करूं मैं अब इन सबका?"


       "सब कुछ स्टोर रूम में रखवा दीजिए माँ!" रूद्र की आवाज सुनकर सभी चौक पड़े। सब ने मुड़कर देखा तो पाया दरवाजे के पास रूद्र खड़ा था और उसके साथ अपना सर झुकाए शरण्या भी खड़ी थी। शरण्या को वापस देखकर सबकी जान में जान आई। रूद्र शरण्या का हाथ पकड़े अंदर चला आया और आते हुए उसने कहा, "इन सारे कार्ड को स्टोर रूम में रखवा दीजिए। अब इन की कोई जरूरत नहीं है। बाहर का कोई मेहमान नहीं आएगा। जो घर के लोग हैं बस वही चाहिए मुझे। किसी को भी कार्ड नहीं जाएगा जो भी रसमें आप लोगों करनी है आप लोग कीजिए ना मैं आपको रोकुंगा ना टोकुंगा। मुझे उससे कोई मतलब नहीं है क्योंकि शादी कोर्ट में होगी, सिंपल और सादे तरीके से। और सबसे जरूरी बात! शरण्या यहीं रहेगी मेरे साथ।"


      शरण्या रूद्र का चेहरा देख रही थी। इस वक्त उसके चेहरे पर जो सख्ती थी उसे देख शरण्या की हिम्मत नहीं हुई कि वह रूद्र से कुछ भी कहे। रूद्र उसका हाथ पकड़े हुए था। वह शरण्या को खींच कर अपने साथ ऊपर कमरे में ले गया।