Chapter 123
YHAGK 122
Chapter
122
शरण्या पूरे रास्ते से आंखें मूंदे बैठी रही और अपने और रूद्र के रिश्ते को समझने की कोशिश करती रही। वो अपनी जिंदगी की तकरीबन 10 साल गवा चुकी थी। हॉस्पिटल में क्यों थी यह उसे खुद नहीं पता था और ना ही रूद्र से कुछ बता रहा था। उसके पास बस यूं ही आंखें मूंदे उसके पीछे-पीछे चलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। हमेशा उससे घबराने वाला रूद्र उस पर हक जता रहा था और वह खुद भी रूद्र की हर बात मान रही थी। ऐसा क्यों था यह वह समझ नहीं पा रही थी।
बहुत कुछ बदल गया था। जिसका एहसास शरण्या को अच्छे से था। लेकिन क्या बदला था और कितना बदला था ये उसे घर पहुंच कर ही पता चलता लेकिन रूद्र से कहां ले जा रहा था यह अब तक उसे समझ नहीं आया। उसने भी आंखें खोल कर देखने की जरूरत नहीं समझी, बस उसका दिल कर रहा था कि वह यूं ही रूद्र के साथ चलती रहे और यह सफर कभी खत्म ना हो। घर पहुंच कर फिर उन दोनों को अलग हो जाना था।
घर पहुंचने में रूद्र और शरण्या को 1 घंटे से ऊपर लग गया। ट्रैफिक जाम की वजह से उन्हें बीच-बीच में कई जगह रुकना पड़ा। गनीमत रही कि रूद्र ने खाना पैक करवा लिया था और जितना भी खाना था शरण्या ने वह सारे खत्म कर दिए थे। रूद्र के लिए कुछ नहीं बचा था। शरण्या ने खाना ऑफर किया तो फिर रूद्र बोला, "फिर तू भूखी रह जाएगी! इसे बेहतर है तू खा ले वरना यहां आस-पास गाड़ी रोक कर मुझे तेरे लिए खाना लेना पड़ेगा जो मैं नहीं चाहता और ऐसा होने नहीं वाला। अगर यह खाना खत्म भी हो गया तो यहां किसी हॉस्पिटल में रुक कर तेरे लिए खाना ले आऊंगा, बाहर के खाने की उम्मीद बिल्कुल भी मत करना।"
रूद्र ने लगभग डांटते हुए कहा क्योंकि दिल्ली में मोमोज् और चाऊमीन के स्टॉल जगह-जगह नजर आते थे और शरण्या इनके पीछे दीवानी थी। रूद्र ने जिस सख्ती से उसे डांटते हुए कहा, शरण्या घबरा गई और उस घबराहट में उसने सारा खाना खत्म कर दिया। शरण्या को लगा शायद अब फिर रूद्र उसे डांट आएगा लेकिन रूद्र यह देख मुस्कुरा दिया। शरण्या एक बार फिर आंखें मूंद कर बैठ गई।
घर पहुंचते ही रूद्र ने गाड़ी पार्क की और शरण्या की तरफ का दरवाजा खोल कर बोला, "चल.......! घर आ गया तेरा।"
शरण्या ने आंखें खोली और देखा तो यह सिंघानिया हाउस था। रूद्र बोला, "ऐसे क्या देख रही है? पहली बार आ रही है क्या इस घर में? पहले कभी देखा नहीं है?"
शरण्या ने हैरानी से पूछा, "लेकिन यह तेरा घर है, मैं यहां कैसे? और अगर रहूंगी भी तो कितने दिनों के लिए? फिर वापस तो मुझे उसी घर में लौटना होगा ना!"
रूद्र उसे गोद में उठाकर बाहर निकालते हुए बोला, "तू ही कहती थी ना कि वह घर तुझे जेल की तरह लगता है और मैंने से वादा किया था कि मैं तुझे उस घर में कभी जाने नहीं दूंगा। ये घर जितना मेरा है उतना तेरा भी है। दो चार दिन नहीं, हमेशा के लिए तू यहां रहेगी और यहां से मुझे कोई नहीं निकाल सकता।" बोलते हुए रूद्र दरवाजे तक पहुंचा जहां पहले से ही शिखा जी सारी तैयारी किए बैठी हुई थी। आज पहली बार वह अपनी बहू का स्वागत करने वाली थी।
शरण्या इस वक्त अपने नॉर्मल अवतार में थी। यानी शर्ट जैकेट और जींस पहने, और वह अभी भी रूद्र की गोद में थी। सबके सामने उसे बहुत अजीब लग रहा था। उसे बार-बार यही लग रहा था कि अगर रूद्र की बीवी ने उसे देख लिया तो वह क्या करेगी? क्या सोचेगी?
उसने नीचे उतरना चाहा लेकिन इस बार खुद रूद्र ने हीं अपनी गोद से उतारकर उसे नीचे खड़ा कर दिया। शरण्या को देखते ही सारे घर वाले वहां इकट्ठा हो गए। मिस्टर रॉय और अनन्या जी भी वहां मौजूद थे। उन्हें वहां देख कर शरण्या को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। शिखा जी ने सबसे पहले तो उसके सर पर चुनर डाली और अपनी बहू और बेटे की आरती उतारी। शरण्या को थोड़ा अजीब लग रहा था मानो वह हॉस्पिटल से नहीं बल्कि कोई महान काम करके आई हो। ऐसे स्वागत की उम्मीद उसने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं की थी। ऐसा क्या हो गया था जिसकी वजह से शरण्या को इतनी स्पेशल ट्रिटमेंट मिल रही थी!
शिखा जी तो हमेशा से ही शरण्या को पसंद करती थी और यह बात जगजाहिर थी। लेकिन अनन्या जी के चेहरे पर जो खुशी थी वह शरण्या समझ नहीं पा रही थी। जिस माँ ने कभी उसके सर पर हाथ नहीं फ़ेरा, वह उसके आने भर से इतनी ज्यादा खुश थी। ये सब देख कर ही शरण्या को समझ आ रहा था कि कुछ तो बहुत बड़ा हुआ है, लेकिन क्या? इस बारे में वो रूद्र से कुछ भी बात नहीं करना चाहती थी। कोई फायदा ही नहीं था।
शिखा जी जिस तरह से शरण्या की आरती उतार रही थी वह सब तो ठीक था लेकिन जब उन्होंने चावल का कलश जमीन पर रखा यह शरण्या को काफी हैरान कर गया। आखिर इस सब का मतलब क्या था? वह हॉस्पिटल से आई थी शादी करके नहीं जो इस तरह उसका गृह प्रवेश कराया जा रहा था!
शरण्या हिचकीचा गई। उसे परेशान देख अनन्या जी ने कहा, "क्या सोच रही हो! चलो करो, यह सब एक रसम होती है। चलो जल्दी से करो।" मिस्टर रॉय इस बात से खुश नहीं थे। कहीं ना कहीं उनके मन में रूद्र को लेकर अभी भी शक बना हुआ था। किस पर यकीन करें किस पर नहीं, अब तक उन्हें समझ नहीं आ रहा था। उनकी बेटी उन्हें वापस मिली थी तो रूद्र की वजह से, लेकिन उनकी बेटी ने इतना कुछ झेला वह भी तो रूद्र की वजह से ही था। अगर वाकई में रूद्र शरण्या से इतना प्यार करता है तो फिर उसे धोखा क्यों दिया और क्यों गया उसे छोड़कर? जब तक यह सारे सवालों के जवाब नहीं मिल जाते, मिस्टर रॉय को रूद्र और उसके प्यार पर भरोसा नहीं था। अपनी बेटी को लेकर वह फिर से कोई गलती नहीं करना चाहते थे। इस सब के बावजूद अभी जो हो रहा था वह से रोक नहीं पा रहे थे।
शरण्या को बहुत ज्यादा अजीब लग रहा था। फिर भी उसने सबके कहे मुताबिक कलश गिराया और घर के अंदर आ गई। रूद्र ने भी उसके साथ ही घर के अंदर कदम रखा। शरण्या को यह सब कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था। ठीक इसी तरह रूद्र ने उसका स्वागत किया था। वो भी इसी घर में, जब वह दोनों बिल्कुल अकेले थे।
शरण्या ने चारों ओर नजर दौड़ाई उसे वहां हर कोई दिखा। रेहान उसकी लावी दी, उसके मां पापा, रूद्र के मां पापा। सभी तो थे लेकिन उसे रूद्र की बीवी कहीं नजर नहीं आई। रूद्र ने उसे आराम से बैठाया और सबसे कहा, "आज शरण्या को खाने के लिए कोई कुछ नहीं देगा! पूरे रास्ते खाते हुए आई है। आई नो इसे सफर में बहुत ज्यादा भूख लगती है तो इसका मतलब यह नहीं कि 1 से डेढ़ घंटे के अंदर वो सारा खाना खत्म कर दे! 4 लोगों का खाना था भुक्खड़!!!"
शिखा जी उसे डांटते हुए बोली, "मेरे बच्चे को भूख लगेगी तो वह जरूर खाएगी, तू कौन होता है उसके खाने पर कंट्रोल करने वाला! और तूने चार लोगों का खाना क्यों पैक करवाया था? तुम दो ही लोग थे ना!"
रूद्र खामोश हो गया। वह खुद भी जानता था उसने इतना खाना क्यों पैक करवाया था। अनन्या जी को अब जाकर मौका मिला था अपनी बेटी के पास आने का। वह शरण्या के करीब आकर बैठी और उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "अब कैसा लग रहा है?"
अपनी मां की वह प्यार भरी छुअन पाकर शरण्या को बहुत अजीब लगा। यह पहली बार था जब उसकी मां ने उसके सर पर हाथ रखा था। उसकी आंखों में आंसू आ गए और गला रूंध गया। उसने धीरे से कहा, "मां.......!"
अनन्या जी ने अपनी बेटी को गले से लगा लिया। जिस प्यार के लिए शरण्या बरसों तक तरसती रही वो प्यार अब जाकर उसे मिल रहा था। अनन्या जी को रूद्र की कही बातें याद आई, "अब उसे उसके हिस्से का वह सारा प्यार मिलेगा जिसके लिए अब तक वह तरसती रही।" सच में आज शरण्या को गले से लगा कर अनन्या जी को भी बहुत अच्छा लग रहा था। उन्होंने शरण्या के माथे को चूमा और रुद्र से कहा, "रूद्र! शरण्या कमरे में लेकर जाओ। सफ़र से थक गई होगी।"
उसी वक्त नेहा भी वहां पहुंची अपने नॉर्मल डॉक्टर के अवतार में। शरण्या को देखते ही उसने भाग कर उसे गले से लगाया और बोली, "आ गई तू! तेरा दिमाग तो सही है ना! अब फिर से पागलपन के दौरे तो नहीं पड़ेंगे तुझे?"
शरण्या उसे मारते हुए बोली, "पागलपन के दौरे मुझे नहीं पड़ेगे तो तेरी दुकान कैसे चलेगी पागलो कि डॉक्टर!" पूरा घर ठहाकों से गूंज उठा। नेहा ने रूद्र को इशारा किया। उसे रूद्र से कुछ बात करनी थी। रूद्र ने कहा, "मैं सबके लिए बढ़िया से कॉफी बना कर लाता हु।"
शरण्या ने सुना हैरानी ने कहा, "तुझे पता भी है, कॉफी में कॉफी पाउडर पड़ता है!"
मौली तपाक से बोल पड़ी, "अरे मॉम! आपको पता नहीं डैड कितना अच्छा खाना बनाते हैं! वह दुनिया के बेस्ट कुक है।"
रूद्र ने सुना तो तिरछी नजर से मौली को घूर कर देखा। मौली को अहसास हुआ कि उसने अभी-अभी शरण्या को मॉम कहा है। शरण्या ने भी इस बात को नोटिस किया लेकिन वह कुछ बोलती उससे पहले मौली ने कहा, "मैं आती हूं! मॉम को कुछ चाहिए था, मैं आती हूं!" कहकर मौली बाहर की तरफ भाग गई।
रूद्र किचन में गया तो नेहा बोली, "अब मैं अपने लिए पानी लेकर आती हूं और अपने लिए चाय बना लूंगी। मुझे कॉफी नहीं पीनी।" कहकर नेहा भी किचन की तरफ चली गई। जैसा कि रूद्र ने कहा था, उसने सब के लिए कॉफी बनाना शुरू किया। तभी नेहा भी वहां पहुंच गई। रूद्र ने कहा, "तुम्हें कुछ कहना था ना! कुछ जरूरी बात है? शरण्या ठीक तो है ना, कोई प्रॉब्लम तो नहीं है? उसके भी रिपोर्ट्स तो देखी हो ना तुम!"
रूद्र थोड़ा घबराया हुआ था क्योंकि बात शरण्या की थी जिसे लेकर वह कोई रिस्क नहीं ले सकता था। नेहा बात को संभालते हुए बोली, "सब ठीक है रूद्र। शरण्या बिल्कुल ठीक है लेकिन तुम्हें थोड़ा संभल कर रहना होगा। मेरा मतलब शरण्या को कुछ हुआ नहीं है और वह अभी अभी कोमा से उठी है। उसकी हेल्थ अभी इतनी सही नहीं है कि........ वह मतलब अभी उसकी बॉडी काफी कमजोर है। तुम उसके हस्बैंड हो ऐसे में तुमसे बात करना जरूरी हो जाता है। मैं जानती हूं तुम उसका बहुत ज्यादा ख्याल रखते हो और यह सब मुझे कहने की जरूरत नहीं है लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते और एक दोस्त होने के नाते भी मेरा यह फर्ज है कि मैं तुम्हें इस बारे में बताऊ। तुम समझ रहे हो ना मैं क्या कहना चाह रही हूं? शरण्या की बॉडी अभी इतनी स्ट्रांग नहीं हुई है कि वह किसी भी रिलेशनशिप के लिए.......!"
रूद्र जो अब तक परेशान था, नेहा की बात सुन रूद्र मुस्कुरा दिया और बोला, "तुम चिंता मत करो। शरण्या मेरी आंखों के सामने हैं, मेरे पास है और मेरी है, इससे ज्यादा ना मुझे कुछ चाहिए था और ना ही कुछ और चाहिए। उसके लिए तो पूरी जिंदगी इंतजार कर सकता हूं। यह सब जरुरी तो नहीं। तुम्हारी बातों में बहुत अच्छे से समझ रहा हु मैं। मुझे खुशी है कि तुम हर पल उसके साथ रही। तुम्हेँ जब भी कोई भी जरूरत हो बेझिझक मुझसे कहना और शरण्या कि तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो। फिलहाल चिंता मुझे अपनी हो रही है। इतने दिनों से शांत बैठी थी लेकिन कल से उसे कुछ ज्यादा ही होश आ गया है। कई दफा सवाल कर चुकी है अपने बारे में। रास्ते में भी परेशान किया था उसने मुझे। बड़ी मुश्किल से उसके सवालों के जवाब देने से बचा हु मैं। और ऐसे भी तो वही 10 साल पहले वाली शरण्या है। मुझ पर धौंस जमाना उसे बहुत पसंद था और आज भी है। लेकिन डर लगता है नेहा, आज जो शरण्या मेरे सामने है वो दस साल पुरानी शरण्या है। जब उसे अपनी जिंदगी के पिछले बीते 9 साल याद आएंगे तब वह किस तरह से रिएक्ट करेगी मुझे समझ नहीं आ रहा। इस वक्त मेरा सबसे बड़ा डर यही है। अच्छा हुआ विहान और मानसी नहीं है यहां मुझे लगा एक साथ कई सारी बातें जानकर उसके दिमाग पर प्रेशर पड़ता। तुम शरण्या की चिंता मत करो। वह ठीक है। मुझे उससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए!" कहकर रूद्र ने उसको दिलासा दिया। ललित जी वही बाहर खड़े रूद्र की सारी बातें सुन रहे थे।