Chapter 23

Chapter 23

Episode 23

Chapter

पांच ही मिनट हुए थे कि... स्नेहा के कान में एक आवाज गूंजी, "स्नेहा ऽऽऽ... जल्दी करो ऽऽऽ  यह समय आराम करने का नहीं है। अगर अखिलेश तांत्रिक के पास पहुंच गया... तो बाकी के लोगों से बदला लेने के बारे में भूल ही जाओ। क्योंकि वह तांत्रिक बहुत ही ज्यादा सिद्ध है... और तुम्हें उनके तपोबल की सीमा से पहले ही अखिलेश को रोकना होगा। पांच मिनट में ही वह उसकी तपोस्थली की सीमा में पहुंच जाएगा... उसके बाद तुम्हें उन लोगों को मारने का भी विचार छोड़ना होगा।"

 स्नेहा एक झटके में उठ गई और कुछ मंत्र पढ़कर ऊपर की तरफ फूंक मार दी। जिसके प्रभाव से अखिलेश ऊपर चढ़ना भूल ही चुके थे... वह भूल गए थे... कि वह इस पहाड़ पर... इस समय क्यों आए। एक जगह बैठ कर सोचने लगे कि "मैं यहां क्यों आया हूं…!" जब उन्हें वहां बैठे हुए दस मिनट हो गए… तब उनके फोन पर एक कॉल आई।

 दो-चार घंटियों के बाद... अखिलेश ने फोन उठाया... फोन राहुल का था।

 राहुल कहने लगा, "पापा… पापा आप पहुंच गए...  बाबा जी मिले क्या… क्या कहा उन्होंने... वह हमारी मदद करेंगे…??"

 राहुल की बात सुनने पर अखिलेश को एकदम से याद आया कि वह लोग बाबा जी से मिलने के लिए आए थे। पर अखिलेश को समझ नहीं आ रहा था कि... "गीता जी और अरुणा कहां रह गई थी??  और वो यहां बैठे क्या कर रहे थे??"

 उसने गीता और अरुणा को ऐसे ही छोड़ कर आगे बाबा जी के पास जल्दी पहुंचने का निश्चय किया। जैसे ही वह आगे बढ़े एक जोरदार लात उनके सीने पर पड़ी…

 अखिलेश एकदम से पीछे उछल कर गिर पड़े।  वह एक बड़े पेड़ से टकरा गए थे। फिर भी उन्होंने पेड़ का सहारा लेकर उठने की कोशिश की… पर वह उठ नहीं पा रहे थे। थोड़ी देर कोशिश करने पर वह फिर से ऊपर की तरफ बढ़ने की कोशिश करने लगे थे। 

उनसे सौ कदम दूरी पर पहाड़ के माहौल में परिवर्तन दिखाई दे रहा था  जहां वह थे वह स्थान  निर्ज, वीरान और डरावना दिखाई दे रहा था... पर सौ मीटर आगे वाला हरियाली से भरा हुआ... शांत और पक्षियों के कलरव से गूंज रहा था। 

अखिलेश जी फिर से एक बार उस तरफ बढ़ गए। पर फिर से एक जोरदार प्रहार से दूर जाकर गिरे। इस बार वह खड़े नहीं हुए... धीरे-धीरे रेंगते हुए आगे बढ़ने लगे थे।  पथरीली मिट्टी की रगड़ से उनका शरीर छिल गया था… जिससे खून रिसने लगा था।  पर जीवन जीने की इच्छा शक्ति... अभी भी बाकी थी।

 थोड़ी दूर घिसट कर चलने पर उन्होंने देखा कि लगभग बीस कदम पर ही वह स्थान था… तो वह एक झटके में खड़े होकर दौड़ने का मन बना चुके थे। उन्होंने खड़े होकर जैसे ही पहला कदम बढ़ाया... एक  तेज प्रहार उनकी पीठ पर हुआ।

 वह एकदम से घूम गए थे। तभी उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि कुछ बहुत ही चुभने वाली चीज ने उनके मर्म स्थल पर प्रहार किया था। वह चुभने वाली चीज उनकी पसलियों के बीच से उनके अंदर प्रवेश कर रही थी। धीरे-धीरे छाती को चीरते हुए…  उस तीखी चीज ने उनकी पसलियों को अंदर से बाहर धकेलना शुरू कर दिया।  जिससे उनकी पसलियां रीढ़ की हड्डी से टूट टूट कर अलग हो रही थी।  फिर वह तीखी चीज पीठ को अंदर से चीरते हुए उनकी पीठ से बाहर निकल गई।

 अखिलेश जी के शरीर के चिथड़े वहीं आसपास बिखर गए थे। वह चीज कोई और नहीं स्नेहा ही थी। उसने अखिलेश जी के अंदर से  उनकी पसलियों को तोड़ कर अलग कर दिया था... और खुद उनकी पीठ से बाहर निकल गई थी।

 जिसके कारण स्नेहा का पूरा शरीर खून से रंग गया था। बालों से खून टपक रहा था... पूरा चेहरा खून के प्रभाव के कारण लाल हो गया था। स्नेहा  उस समय साक्षात महाकाली का रूप लग रही थी। जो स्वयं राक्षसों के रक्त से अपना अभिषेक कर रही हो।

 स्नेहा ने पलटकर अखिलेश की तरफ देखा और कहने लगी, "बस दो और पापा... पापा फिर मैं आपके सारे कातिलों से बदला ले चुकी होंउगी।"  

ऐसा कह कर पास ही के एक कुंड में स्नान करने चली गई। जब वह स्नान करके बाहर निकली तो... फिर उसके कान में आवाज गूंजी…

 "स्नेहा ऽऽऽ स्नेहा ऽऽऽऽ तुम्हें अभी इसी समय यह स्थान छोड़ना होगा।  उस तांत्रिक को इन तीनों हत्याओं के बारे में पता चल चुका है। वह किसी भी समय यहां पहुंचता होगा। अगर इस समय तुम पकड़ी गई... तो वह तांत्रिक तुम्हारी शक्तियों को भी छीन लेगा।  वह तुम्हारी बलि देकर और भी बड़ा तांत्रिक बन सकता है। इसलिए तुम शीघ्र अति शीघ्र इस स्थान को छोड़ दो।"

 स्नेहा ने अपने गुरु अच्युतानंद से मानसिक संपर्क करने का प्रयास किया। पर शायद उस तांत्रिक के प्रभाव के कारण वो ऐसा नहीं कर पाई थी। स्नेहा ने उस जगह से दौड़ लगाना शुरू कर दिया। वह जल्दी से जल्दी पहाड़ी से नीचे उतर कर मां के मंदिर पहुंच जाना चाहती थी।

 स्नेहा लगभग पहाड़ी उतर ही गई थी  कि उसे एक विचित्र सी शक्ति का आभास हुआ। जो उसे कमजोर कर रही थी... फिर भी उसने थोड़ा और जोर लगाया और पहाड़ी से नीचे छलांग लगा दी।  वह जल्दी ही पहाड़ी से नीचे गिर पड़ी... हालांकि उसे चोट लगी थी, फिर भी अब वह सुरक्षित ही थी।

पहाड़ी पर साधना करने वाला तांत्रिक स्नेहा को पहचान गया था।  वह यह भी जान गया था...कि स्नेहा वही विशिष्ट नक्षत्र में जन्मी लड़की थी... जिसकी कई तांत्रिकों को वर्षों से  तलाश थी।

स्नेहा वापस मां के मंदिर पहुंच गई... अब इस समय तक स्नेहा की हालत बहुत खराब हो चुकी थी।  पहले उन तीनों की हत्या... फिर उस तांत्रिक के कारण इतनी ऊंची पहाड़ी से... इतनी जल्दी में उतरना… इन सब के कारण स्नेहा बहुत ही ज्यादा थकान का अनुभव कर रही थी। उसने हाथ मुंह धो कर आराम करने का निर्णय किया। बाकी दो लोगों को कल देखा जाएगा... ऐसा सोचकर स्नेहा उस दिन तो सो गई।

 स्नेहा बहुत ज्यादा थक गई थी... और अब वह गहरी नींद में सो रही थी। 


 स्नेहा ने अपने आप को एक जगह पर बंधा हुआ देखा... आस पास चिताऐं जल रही थी। कुछ कुत्ते ललचाई नज़रों से स्नेहा को देख रहे थे।  बिल्लियां और सियारों के रोने की आवाज़ें आ रही थी।  सामने ही एक हवन कुंड जल रहा था… और उसके पास ही बहुत सी हवन सामग्री रखी थी।  कुछ नरमुंड… और कुछ हड्डियां भी वहां पड़ी थी।  

एक बिल्ली का नर मुंड भी वहां रखा था... जिस पर से अग्नि प्रज्ज्वलित हो रही थी।  ऐसा लग रहा था कि बिल्ली के नर मुंड का दिए की तरह प्रयोग किया गया था। एक मुंड के खप्पर में मदिरा रखी थी। वहीं कछुए के खप्पर में कछुए के कुछ विशेष अंग रखे थे... शायद हवन में आहुति देने के लिए... वह अंग वहां रखे गए थे।  

स्नेहा ने अपने आप को बलि यूथ के पास बंधा हुआ पाया था। उसी के सामने एक बड़ा सा खड्ग रखा हुआ था... जिस पर कुछ विशेष यंत्र रक्त से बने हुए थे। अक्षत, पुष्प और मांस का भोग भी  खड्ग को दिया गया था।

 एक धुंधली सी आकृति हवन कुंड के पास बैठी मंत्रोच्चार कर रही थी। वह आकृति स्नेहा को कुछ जानी पहचानी लगी... पर उस आकृति का चेहरा साफ-साफ दिखाई नहीं दे रहा था। स्नेहा की शक्तियों ने भी काम करना बंद कर दिया था। अचानक से ही उस आकृति ने एक हाथ से एक इशारा किया तो स्नेहा उस बलि यूथ पर जाकर गिरी... और वह व्यक्ति स्नेहा की तरफ उस खड्ग को लेकर चल दिया। उसने स्नेहा को मारने के लिए  खड्ग उठा ली और प्रहार कर दिया।

स्नेहा जोर से चीखी... उसकी चीख के कारण अच्युतानंद जी वहां आ गए। स्नेहा उस समय बहुत ही घबराई हुई दिख रही थी... क्योंकि सपना ही उसने ऐसा देखा था। उसे अभी भी ऐसा ही लग रहा था कि मानो वह सपना ना होकर सत्य ही हो। स्नेहा घबराहट के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी।

 अच्युतानंद ने उसे समझाते हुए कहा, "स्नेहा डरने की कोई बात नहीं है... सब कुछ ठीक है।"

 स्नेहा ने अपने आप को संयत करते हुए कहा, "मैं ठीक हूं...  गुरुदेव... बस थोड़ा घबरा गई थी। मैं ठीक हूं…!!" 

स्नेहा के ऐसा कहते ही अच्युतानंद एक विचित्र सी मुस्कान देकर चले गए।  स्नेहा वहीं बैठे अपनी अपनी सांसों को सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।

पर स्नेहा को वह सपना... सपने जैसा नहीं लग रहा था। सपना को वह एक पूर्वाभास जैसा लग रहा था... मानो मां स्वयं उसे आने वाले बुरे समय के लिए तैयार कर रही हों... या यह भी हो सकता था कि स्नेहा को भविष्य देखने की क्षमता रत्नमंजरी से मिली हो।  पर फिलहाल स्नेहा किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी। इसलिए बहुत ही ज्यादा परेशान दिखाई दे रही थी। स्नेहा का मन भी बहुत विचलित हो रहा था।

स्नेहा ने सोचा कि, "मां के सानिध्य में ही शांति मिल सकती है।"

 ऐसा सोच कर स्नेहा मां के मंदिर में चली गई... और मां के सामने बैठकर... सपने के विषय में मां को बताने लगी।  स्नेहा ने यह भी बताया कि, "मां आज के सपने को जानकर... गुरुदेव के चेहरे पर एक विचित्र सी रहस्यमयी मुस्कान थी। मैं यह समझ नहीं पा रही हूं… कि उस रहस्यमयी मुस्कान का अर्थ क्या था…?? क्या वह सपना मेरा आने वाला भविष्य था या फिर केवल एक सपना…??" 

स्नेहा मां से बातें करते करते ही सो गई थी। अगले दिन सुबह जल्दी ही स्नेहा की आंख खुल गई थी।   आँख खुलते ही स्नेहा की नजर मां के मुस्कुराते चेहरे पर पड़ी... मां को ऐसे मुस्कुराते देख... 

स्नेहा ने मां से खुश होकर कहा, "मां आज का दिन बहुत ही सुंदर और मन को प्रसन्न करने वाला होने वाला है।  सुबह सुबह आपका मुस्कुराता चेहरा जो देखा है। अब मुझे किसी भी बात की चिंता नहीं है। सब शुभ ही होगा।"

 दूसरी तरफ राहुल ने देर रात तक अखिलेश जी, गीता जी और अरुणा जी का इंतजार किया। जब वह देर रात तक भी नहीं लौटे... और उनका फोन भी नहीं लग रहा था। तब उसने पुलिस स्टेशन जाने का निश्चय किया। 

प्रीति से कहकर पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया राहुल ने प्रीति से कहा, "प्रीति... मां, पापा और बुआ का कल से पता नहीं चला है। उन लोगों के मोबाइल फोन भी नॉट रिचेबल  है... मुझे लगता है... हमें पुलिस को खबर कर देनी चाहिए। अब वही उन्हें ढूंढ सकते हैं... भगवान ना करे उनके साथ भी अनुज या विराज जैसी कोई दुर्घटना हुई हो।"

 प्रीति ने कहा, "आप ठीक कह रहे हैं... एक काम करते हैं... हम दोनों साथ ही चलते हैं।" राहुल ने प्रीति को मना किया और खुद पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया।

 जल्दी ही पुलिस स्टेशन पहुंचकर राहुल ने पुलिस इंस्पेक्टर से मिलने के लिए पूछा। यह वही पुलिस इंस्पेक्टर था... जो अनुज के केस पर काम कर रहा था।

 राहुल ने जाकर इंस्पेक्टर से बात की।  राहुल ने कहा, "इंस्पेक्टर साहब... मेरे भाई की मौत के बाद शहर के नामी बिजनेसमैन विराज जी की भी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई है। यह तो आप जानते ही हैं... विराज जी हमारे फॅमिली फ्रेंड थे... मां-पापा और बुआ कल शहर के बाहर वाली पहाड़ी पर कोई एक बाबा जी रहते हैं... उनसे मिलने के लिए निकले थे।  कल से उनसे कोई बात नहीं हुई है। आखिरी बार पापा से बात हुई थी... तो वह ऐसी अजीब सी बातें कर रहे थे, जैसे उन्हें कुछ भी पता ही नहीं था कि वह कब, कैसे, वहां पहुंच गए?? फिर उन्होंने  बाबा जी के पास जाने के लिए कहकर जल्दी ही फोन रख दिया। उसके बाद उनसे बात नहीं हुई है।"

 इंस्पेक्टर ने पूछा, "लगभग किस समय तुम्हारी उनसे बात हुई थी??"

 राहुल ने कहा, "जी सर लगभग शाम के 4:00 बज रहे थे।"

 इंस्पेक्टर ने उन सभी के फोन नंबर लेकर उन्हे सर्विलांस पर डालने का ऑर्डर दे दिया था।  और राहुल से चिंता ना करने का कहकर उसे घर भेज दिया।

राहुल अपने घर आकर हॉल में बैठ गया। प्रीति ने भी उसे सांत्वना दी और आराम करने के लिए कहा।

" राहुल... आप थोड़ा आराम कर लीजिए... ताकि थोड़ी सी टेंशन कम हो जाए। पुलिस मां-पापा को ढूंढ लेगी... आप उनकी चिंता मत करो…!!"

ऐसे ही बातें करते हुए दोनों आराम करने अपने कमरे में चले गए।