Chapter 94
सुन मेरे हमसफ़र 87
Chapter
87
शिवि फोन रखने को हुई लेकिन कार्तिक ने एकदम से सवाल किया "ठीक है, मैं उसे बता दूंगा। लेकिन तुम बोल कौन रही हो, यह तो बताओ! तुम्हारा नंबर कुणाल के फोन में सेव नहीं है इसका मतलब वह तुम्हे नहीं जानता। अगर वह उठेगा तो मैं उसे क्या कहूंगा?"
कार्तिक एक तरफ शिवि से बात कर रहा था और दूसरी तरफ कुणाल को जगाने की कोशिश भी कर रहा था। शिवि ने सीधे से जवाब दिया "अगर वह उठे तो उससे कहना, कुहू की बहन शिविका ने उसे कॉल किया था।"
कार्तिक की आंखें हैरानी से फैल गई। "शिविका? मतलब शिवि!"
शिवि का नाम सुनकर ही कुणाल जो अब तक अपने को तैयार नहीं था, वह एकदम से उठ कर बैठ गया और कार्तिक के हाथ से फोन छीन कर अपने काने से लगाया। "हेलो! हेलो शिवि!"
लेकिन तब तक शिविका फोन काट चुकी थी। कुणाल ने फोन देखा और उसे साइड में रख कर कार्तिक का कलर पकड़ते हुए बोला "साले! तु मुझे उठा नहीं सकता था? बोल नहीं सकता था कि शिवि का फोन है?"
कार्तिक अपना कॉलर छुड़ाते हुए बोला "अबे मुझे क्या सपना आया था? मैंने तो उससे पूछा और उसने अपना नाम बता कर फोन काट दिया, तो अब इसमें मेरी क्या गलती? तभी से जगा रहा हूं तुझे लेकिन नही! एक लात मारनी चाहिए थे तेरे पिछवाड़े पर, तब जाकर तू जागता।"
करती को नाराज होते देख कुणाल ने उसे मनाते हुए पूछा, "सॉरी ना यार! अब गुस्सा छोड़ और ये बता, तू सच बोल रहा है ना? वाकई शिवि ने कॉल किया था मुझे? क्या बोली वो? क्यों फोन किया था? और ऐसे फोन क्यों काटा?"
कार्तिक ने तंज कसा, "उसने तुझे नही, मुझे कॉल किया था। और ये मेरा फोन है।" कार्तिक ने कुणाल का फोन उसके हाथ में पकड़ा दिया। "वो बोली, 1 घंटे बाद तुझसे मिलना चाहती है।"
कुणाल ने हैरानी से पूछा "मिलने बुलाया है? लेकिन कहां मिलने बुलाया उसने?"
कार्तिक खड़ा हुआ और बाथरूम की तरफ जाते हुए बोला "उसका नंबर है ना तेरे फोन में, लास्ट डायल। उसे कॉल बैक कर और पूछ ले कि उसने कहां मिलने बुलाया है? क्योंकि मुझे तो बताया नहीं। भलाई का तो जमाना ही नहीं है।"
थोड़ी ही देर में कुणाल को उसके सवाल का जवाब भी मिल गया, जब शिवि का मैसेज उसे मिला जिसमें उसने अपने हॉस्पिटल का एड्रेस भेजा था।
*****
शिवि ने कुणाल तक अपनी बात पहुंचा दी थी और लेकिन उससे मिलकर कहना क्या है, वह डिसाइड नहीं कर पा रही थी। "इस तरह घर में रहकर मैं कुछ सोच नहीं पाऊंगी। इसलिए बेहतर होगा मुझे हॉस्पिटल के लिए निकल जाना चाहिए। लेकिन उससे पहले मुझे निर्वाण से बात करनी होगी। है कहां वो?"
शिवि निर्वाण को ढूंढने उसके कमरे की तरफ बढ़ी। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। इस वक्त अगर कोई पिन भी गिरता तो उसकी आवाज पूरे घर में गूंज उठती। शिवि सधे कदमों से निर्वाण के कमरे में गई और धीरे से दरवाजे पर दस्तक दिया। दरवाजा लॉक नहीं था इसलिए उसके छूने भर से दरवाजा एकदम से खुल गया। शिवि अंदर दाखिल हुई तो देखा, अंदर निर्वाण नहीं था और 1 हेल्पर उसके कमरे की सफाई कर रहा था।
शिवि ने उससे निर्वाण के बारे में पूछा तो उसने कहा कि निर्वाण दोपहर से पहले ही घर से निकला है और अभी तक वापस नहीं आया। शिवि के पास घर पर रुकने का कोई कारण नहीं था। वह वापस अपने कमरे में आई और अपना बैग उठाकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ी।
सिया की नजर बाहर जाती शिवि पर गई तो उन्होंने शिवि को आवाज लगाकर अपने पास बुलाया "शिवि बेटा! इधर आओ।"
अपनी दादी की आवाज शिवि इग्नोर नहीं कर सकती थी। वह तो अच्छा था कि इस वक्त उसकी मां घर पर नहीं थी वरना.........! शिवि अपनी दादी के पास आई और उनके पास बैठ कर बोली "जी दादी! बुलाया आपने?"
सिया ने प्यार से शिवि के सर पर हाथ फेरा और पूछा "हॉस्पिटल निकल रही हो?"
शिवि ने हां में सर हिलाया तो सिया ने उसे याद दिलाते हुए कहा, "तुम्हारी मां बहुत नाराज होगी। तुम्हें पता है ना, उसने तुम्हें आराम करने को कहा था! पूरी रात तुम हॉस्पिटल में रही और अभी फिर निकल रही हो।"
शिवि ने उनका हाथ अपने दोनों हाथ में थामा और बोली, "दादी! जरूरी है। आप जानते हो हमारा काम कैसा होता है। मैं अपनी ड्यूटी छोड़ नहीं सकती हूं। मैं समझ रही हूं आप क्या कह रही हैं। मेरी मेरे पेशेंट की तरफ ड्यूटी है, तो मेरे अपनों की तरफ भी मेरी कुछ ड्यूटी है, और मुझे इन दोनों को ही बैलेंस करके चलना है आप फिकर मत कीजिए, मैं दो-तीन घंटे में लौट आऊंगी।"
शिवि उठकर जाने के हुई तो सिया ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ लिया और बोली "तुम्हारी मां पूछेगी तो मैं क्या जवाब दूंगी?"
शिवि ने बिना कुछ सोचे जवाब दिया "उनसे कह देना कि मैं सबके साथ घूमने गई हूं। या फिर कोई और बहाना बना देना।" शिवि जल्दी से वहां से निकल गई। सिया नहीं चाहती थी कि शिवि अपनी मां से डांट खाए, इसलिए उन्होंने सुहानी को मैसेज कर दिया।"
सुहानी इस वक्त बाकी सब के साथ मूवी देखने में व्यस्त थी और फिल्म अब खत्म होने वाली थी। क्लाइमेक्स होने के बावजूद काया का फिल्म में मन ही नहीं लग रहा था। बार-बार ऋषभ का खयाल उसे परेशान कर रहा था। आज जो कुछ भी उसने किया उसके बाद तो वो चाह कर भी उसे नहीं भूल पा रही थी, ना ही अपने दिमाग से 1 मिनट के लिए निकाल पा रही थी। ऊपर से ये इंग्लिश फिल्म उसे और परेशान कर रहा था।
उन चारों में काया अकेली रही थी जिसने हिंदी फिल्म देखने का प्लान किया था। बाकी सभी इंग्लिश मूवी के लिए तैयार थे। काया बस यही नहीं चाहती थी। फिल्म देखकर अपना ध्यान भटकाने की बजाय यह इंग्लिश फिल्म उसे और ज्यादा परेशान कर देता, और वही हुआ भी। काया ने अपना फोन निकाला और उसने गेम खेलने लगी। पूरे फिल्म के दौरान जब वो खेलते हुए थक गई तो उसने सुहानी का फोन ले लिया और उसमे गेम खेलने लगी, जब उसे सिया का मैसेज मिला।