Chapter 1

Chapter 1

Episode 1

Chapter

एक भयानक तंत्र जो ना कभी देखा ना ही सुना होगा। ऐसा शक्तिशाली तंत्र जो अकाट्य और बहुत ही घातक था। जिसका आह्वान मैंने किया था बिना ये सोचे समझे के इसके क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। पर अब जब मैं स्वयं इस का एक भाग बन गई तभी समझ आया कि प्रतिशोध एक ऐसा भाव है जो दूसरे से पहले स्वयं का नाश करवाता है।

"माँ…!! पापा…!!! देखो तो कौन आया है? आपकी बेटी पूरे चार साल बाद वापस आई है,  और किसी को भी उसकी पड़ी ही नहीं है।" स्नेहा बाहर से चिल्लाते हुए अंदर आई और जो दिखाई दिया वो बहुत ही दर्दनाक था।

 पूरे घर में मातम पसरा हुआ था। सभी घरवालों के शव कतार में रखें थे। माँ, पापा, भाई, भाभी और मेरी प्यारी राधू…! चाचा,चाची, बुआ और पता नहीं कौन कौन से रिश्तेदारों से घर भरा पड़ा था। जिनकी जरूरत थी बस वही नहीं थे। सभी बहुत ही आश्चर्य में थे के स्नेहा कैसे बच गई? उसे भी तो साथ ही नहीं मरना था। सभी आपस में कानाफूसी करने लगे थे। मैं दुःखी,बेजान और टूटी हुई वही सबको सूनी आँखों से देख रही थी।

"माँ उठो ना…!! सुनो ना अब से ऐसा नहीं होगा। अब कहीं भी नहीं जाऊंगी। उठो…!!!" अपनी माँ को झिंझोड़कर चिल्लाई।

"पापा…! आप तो उठ जाओ ना।कोई अपनी बेटी से ऐसे मजाक करता है।"

"भाई ऽऽऽऽ भाभी ऽऽऽऽ आप लोग भी ऐसा करोगे मेरे साथ। इसीलिए मुझे रोज रोज आने को बोलते थे। मैं तो आपको सरप्राइज देने आई थी और आप सब ने तो मुझे कभी ना भरने वाला घाव दे दिया।" स्नेहा एक एक करके सभी को हिलाते हुए उठाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

अंत में छोटी सी राधा को गोद में लेकर उठाने की कोशिश करते हुए कहा, " राधु ऽऽ राधु ऽऽ तू तो उठ जा बेटा।  मेरी गुड़िया है ना… बुआ की बात नहीं मानेगी… उठ जा बेटा…!!"

सबको ऐसे देखकर ही स्नेहा अपनी सुध-बुध खो बैठी थी। यंत्र चलित सी सबके हिसाब से उनके कहे अनुसार काम किए जा रही थी। 

सभी शवों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने का समय हो रहा था और घरवालों में बहस। सभी की नजर उनकी संपत्ति पर थी सब चाहते थे कि अंतिम संस्कार से पहले ही अपना हिस्सा निश्चित कर ले। 

"स्नेहा बेटा…! अंतिम संस्कार का समय हो गया है। अब श्मशान के लिए निकलना होगा। चाची, बुआ सभी यही है।  तुम भी अपना ध्यान रखना।" बूढ़े चाचा ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा। 

अचानक ना जाने क्या हुआ था कि स्नेहा झटके से उठ खड़ी हुई और कहा, " मुखाग्नि मैं दूँगी…!!"

सभी कानाफूसी करने लगे और फिर एक बुजुर्ग ने कहा, "ऐसा नहीं हो सकता। लड़कियों का श्मशान प्रवेश वर्जित है और तुम मुखाग्नि की बात कर रही हो।"

"तो कौन देगा…? मैं ही इस परिवार की अंतिम सदस्य हूं।" स्नेहा ने दृढ़ता से कहा। 

बहुत बहस के बाद भी बेमन से सबने स्नेहा की  बात को स्वीकार कर लिया। 

अंतिम संस्कार के बाद सभी अपने अपने घरों को लौट गए। रह गई थी तो केवल स्नेहा, अपने सवालों के साथ जिनके जवाब नहीं थे। थे तो केवल सवाल अनगिनत और असीम!

"इतनी जल्दी क्यों थी सबको अंतिम संस्कार की?? सभी की एक साथ ही मृत्यु कैसे हुई, यहां तक कि राधु भी?? सभी के चेहरे मुझे देखकर ऐसे क्यूँ  हो गए थे जैसे साक्षात यमराज सामने खड़े हो???" स्नेहा ने मन ही मन सोचा।

"सभी की हत्या हुई है…!!" एक डरावनी आवाज गूंजी जिसने स्नेहा को भी डरा ही दिया था।

"अ...अ...आपको क...क..कैसे पता??" स्नेहा इस अप्रत्याशित घटना से डर गई थी तो हकलाते हुए पूछा।

"हा ऽऽऽऽ हा ऽऽऽऽ हा ऽऽऽऽ" एक भयानक अट्टहास गूंजा।

" क… क...कौन है??" स्नेहा ने डरते हुए पूछा।

"कुआं कभी प्यासे के पास नहीं आता, प्यासे को ही आना पड़ता है।" फिर से वही भयानक आवाज गूंजी।

"मैं प्यासी नहीं हूँ...समझे तुम…!!!" स्नेहा चीखी।

"तो शायद तुम अपने परिवार की मौत भूल गई हो।" उस आवाज ने कहा।

"कुछ भी नहीं भूली हूँ मैं ऽऽऽ।" स्नेहा ने चीख कर अपने कान बंद कर लिये।

"तब शायद तुम्हें भूल ही जाना चाहिए क्योंकि प्रतिशोध तुम्हारे बस का नहीं!" आवाज फिर गूंजी।

"जानना नहीं चाहोगी कौन था जिसने स्वर्ग को श्मशान में बदल दिया?"

"कौन हैं..? जो भी कोई है उसे मैं खुद ही नरक का द्वार दिखाऊंगी!" स्नेहा ने गुस्से में चिल्ला कर जवाब दिया।  

"और तुम्हें मेरी मदद करने की क्यों पड़ी है? तुम्हारा क्या फायदा होगा इससे?" स्नेहा ने दर्द भरी आवाज में पूछा। 

"क्यूँ मेरे जख्मों पर नमक छिड़क रहे हो? चाहते क्या हो? स्नेहा ने फिर दुखी होकर पूछा।

"हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है।  दोनों के कारण अलग अलग है।" इस बार थोड़ी शांत आवाज में जवाब मिला।

"तुम मेरी मदद करोगे… कब…? क्यों…? कैसे…???" स्नेहा ने फिर पूछा।

"बस कर लड़की अभी सही समय नहीं है ये सब बात करने का। वैसे भी अभी सब तुझे ही देख रहे हैं। पागल समझ रहे हैं सब तुझे।" आवाज ने मजाकिया लहजे में कहा।

स्नेहा ने इधर-उधर देखा तो सभी उसे ही घूर रहे थे। स्नेहा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था उसे तो बस अभी उसके परिवार के हत्यारे की जानकारी चाहिए थी जो उस आवाज के पास थी।

लोग उसे पागल समझ कर आपस में ही बातें करने लगे थे।

"बेचारी… शायद घरवालों  का सदमा लगा है।" एक बूढ़ा आदमी बोला।

"नहीं काका… कोई भूत प्रेत का चक्कर लगता है।" एक आदमी ने जवाब दिया।

"नहीं भाई… सुना है पूरा का पूरा परिवार ही ख़त्म हो गया। ये तो थी नहीं यहाँ वरना कोई रोने वाला भी नहीं बचता।" एक और आदमी ने दुखी होकर कहा।

"मैंने सुना है कत्ल हुआ है सबका। कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। कुछ तो बहुत ही बड़ा कांड हुआ है।" किसी आदमी ने कहा 

" तुम्हें कैसे पता…?" सभी झटके के साथ उसकी तरफ घूम गए और उससे पूछा।

"अरे भाई मैंने वहां के नौकरों को बात करते सुना था। कह रहे थे कि सभी बहुत खुश थे कल। कोई बहुत ही खास आने वाला था तो इसलिए सबको छुट्टी दी थी। पर अचानक ऐसा क्या हुआ जो ये सब हो गया।" उस आदमी ने जवाब दिया।

"और पता है सभी नौकर भी बड़े दुखी थे। बोल रहे थे कि इतने अच्छे लोग थे के उनमे और अपने परिवार में कभी कोई भेदभाव नहीं करते थे। सभी के सुख-दुख में हमेशा साथ देते थे। बहुत ही अच्छा परिवार था। बड़े ही धार्मिक और दानी थे।

भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।" ये कहते हुए उसने अपने हाथ जोड़कर ऊपर की तरह देखा।

सभी ने हाथ जोड़कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। स्नेहा शांति से उनकी बातें सुन रही थी कि उसे आवाज के बारे में याद आया तो, "तुमने बताया नहीं कौन था वो? किसने किया है??" शांत भाव से पूछा।

"शाम को तुम्हें सब कुछ बताऊंगा और तुम्हें भी मेरा काम करना होगा। ये भी याद रखना की एक बार हाँ बोल कर तुम पीछे नहीं हट सकती। अच्छे से सोच लेना। अभी के लिए तुम्हारा जल्दी घर पहुँचना जरूरी है वहाँ इसका तुम्हें शायद कुछ अंदाजा हो जाए कि तुम्हारे परिवार के साथ क्या हुआ होगा?" आवाज ने कहा जिसके अन्दर एक निर्देश छुपा था।

"क्या…??? क्या है घर पर?  कहना क्या चाहते हो?? क्यूँ जाऊँ मैं घर? हैं कौन मेरा वहाँ जिसके लिए जाऊँ?" स्नेहा ने चिढ़कर पूछा।

"ना जाओ फिर…! तुम्हें खुद तुम्हारी चिंता नहीं तो मैं क्यूँ करूँ? बेवकूफ लड़की अभी नहीं गई तो अपने परिवार के हत्यारे का ही साथ देगी, उसकी इच्छापूर्ति में। बाकी निर्णय तेरा है।" आवाज ने धमकी भरे स्वर में कहा।

स्नेहा ने एक पल सोचा और कहा, "मैं घर जा रही हूँ, पर तुम मुझे कब और कहाँ मिलोगे?"

"रात बारह बजे तुम्हें यहीं आना होगा बिना किसी को कुछ भी पता चले। आगे का रास्ता मैं स्वयं तुम्हें बताता जाऊँगा।" आवाज ने निर्देश दिया।

स्नेहा सुनकर थकी हारी अपने घर चल दी। "कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा दिन भी जीवन में आएगा कि अपने ही परिवार को ऐसे देखना होगा। उनकी लाशों को देखना पड़ेगा।उनकी चिता को अग्नि देनी होगी इन्हीं हाथों से।" अपने हाथों की तरफ देखते हुए सोच रही थी।

"माँ… पापा… भाई...भाभी… राधु…!!!  जिसने भी आप लोगों की ये दशा की वो भी खून के आंसू रोयेंगे। छोड़ूंगी नहीं किसी को भी।" स्नेहा मन ही मन संकल्प लेते हुए सड़क पर पहुँच गई थी।

तभी किसी ने उसे पकड़कर अपनी तरफ खींचा तब उसका ध्यान टूटा।

"क्या कर रही थी बेटा? परिवार के पास जाने की जल्दी है क्या?" एक बूढे दिखने वाले आदमी ने कहा।

"आप मुझे जानते हो? कैसे??" स्नेहा ने पूछा।

"बेटा तुम्हारे परिवार ने मेरा बहुत साथ दिया था। अब मेरी बारी है तुम्हारी मदद करने की।" बुढ़े ने जवाब दिया।

"तुम पहले मेरे घर चल कर कुछ खा-पी लो। फिर तुम्हें घर छोड़ दूँगा।" बुढ़ा आदमी फिर बोला।

"नहीं काका...! आपने इतना सोचा उसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे अब घर जाना होगा।  बहुत कुछ ऐसा है जो मेरी नज़रों से छुपा है। बस वही पता लगाना है।" स्नेहा ने हाथ जोड़कर बूढे आदमी से कहा।

"मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ बेटा। शायद कुछ मदद कर पाऊँ।" बुढ़ा आदमी बोला।

स्नेहा और बुढ़ा दोनों साथ में स्नेहा के घर के लिए निकल गए और जल्दी ही दोनों घर के सामने थे।  गेट पर चौकीदार बैठा था जो उनका पुराना चौकीदार तो नहीं था। नए चौकीदार को देखते ही स्नेहा का माथा ठनका।

"यहां नया चौकीदार पुराने वाले काका कहाँ गए?" स्नेहा ने मन में सोचा। फिर उसने बूढे से कहा, "काका आप इस चौकीदार से पूछकर आओगे क्या की पुराना चौकीदार कहाँ गया?"

"क्यूँ...क्या बात है बेटा? कोई परेशानी है क्या?" बूढे ने कहा। 

"आप पूछकर तो आओ… फिर बताती हूँ।"

"ठीक है बेटा अभी आया।" कहकर वो बुढ़ा चौकीदार के पास जाकर कुछ बात करने लगा और जल्दी ही वापस आ गया।

"उसे तो नौकरी से निकाल दिया गया,बेटा...आज ही।" बूढे ने कहा।

स्नेहा कुछ सोच में डूब गई और जल्दी ही कुछ सोचकर कहा, "काका चलो मेरे साथ!" और बूढे को लेकर घर के पीछे वाले हिस्से की तरफ चल दी। 

"काका…! आप यही मेरा इंतजार करना मैं देखती हूँ, ये सारा चक्कर क्या है?" स्नेहा ने कहा और  पास के पेड़ से होते हुए घर के अंदर चली गई।

नीचे से कुछ झगड़े की आवाजें आ रही थी। स्नेहा दबे पांव नीचे की  सीढ़ियों की तरफ चल रही थी।

अचानक कुछ जोरदार आवाज कान में पड़ गई।

"तुम सब भूल रहे हो वो लड़की अभी भी ज़िंदा हैं। इस परिवार की बेटी और इस सारी संपत्ति की कानूनी वारिस।" आवाज ने कहा।

 एक और आवाज गूंजी, "तो नहीं रहेगी…….!"

स्नेहा के हाथ से टकराकर एक फ्लॉवर वास नीचे गिरा और तेज आवाज हुई। सभी ऊपर की ओर दौड़ पड़े ….