Chapter 84

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humsafar 84

Chapter

84





     आज सिया ऑफिस से जल्दी वापस आ गई थी ताकि वह पूजा के लिए तैयार हो सके। बरसों के बाद इस घर ने किसी सुहागिनों का त्योहार देखा था इसीलिए घर को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सिया के खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह तैयार होने के बाद एक बार काव्या को देखने गई फिर उसके बाद अवनि को बुलाने के लिए उसके कमरे में गयी फिर वहां से नीचे वापस आकर उन्होंने कंचन को फोन लगाया, " बहन जी कहां है आप? अब तक पहुंचे नहीं!"

   " बस समधन जी! हम लोग पहुंचने ही वाले हैं।" कहकर कंचन ने फोन रख दिया। अभी दोनों बात कर ही रहे थे कि तभी अवनि अचानक से दौड़ती हुई नीचे आई और बाहर की ओर भागी। सिया और घर के बाकी लोगों को कुछ समझ नहीं आया। इससे पहले कि वो लोग कुछ समझ पाते अवनि तबतक बाहर जा चुकी थी। पूजा के समय अवनी का इस तरह घर से बाहर जाना हर किसी को अजीब लग रहा था। 

     सिया भी अवनी के पीछे जाना चाहती थी लेकिन उसी वक्त कंचन और अखिल वहां पहुंच गए। दरवाजे पर आए मेहमानों को छोड़कर बाहर जाना सिया को सही नहीं लगा जिस कारण से वह वही रुक गई। उसे यह सोच में पड़ा देख कंचन ने पूछा, "क्या हुआ बहन जी प्रॉब्लम है क्या?"

    सिया ने कुछ देर उस दिशा में देखा जिस ओर अवनि गई थी फिर कुछ सोच कर जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं वह बस अवनी अभी अभी थोड़ी देर के लिए बाहर गई है तो इसीलिए मैं......., अच्छा कोई बात नहीं आप लोग अंदर आइए।" कह कर सिया ने उन दोनों का अंदर स्वागत किया और दरवाजे से साइड हो गई। उन दोनों के अंदर आते हैं सिया ने सारांश को फोन लगाया। 

    सारांश ने फोन उठाया और सिया को वहां हुए हादसे के बारे में खबर दी और बोला,"मॉम! अवनि को इस बारे में मत बताना!"

   " लेकिन बेटा वह तो अभी कुछ देर पहले ही भागती हुई बाहर निकली है। ड्राइवर उसे लेकर गया है, शायद वो तुम्हारे ऑफिस की गई है!" सिया ने बताया तो सारांश हैरान रह गया। जिस वक़्त सिया सारांश से बात कर रही थी उसी वक़्त अवनि सारांश के पीछे खड़ी थी। सारांश अवनी को संभालते हुए अपने केबिन में ले गया जहाँ एक शख्स पर नज़र जाते ही अवनी के चेहरे का रंग पीला पड़ गया और वह बेहोश हो गई। 

     सारांश ने अवनी को संभालते हुए अपने पीछे खड़े शख्स की ओर देखा और कहा,"शुभ.....! जल्दी जाकर ड्राईवर को बोलो की मेरी गाड़ी निकाले और तुम तबतक वही नीचे मेरा इंतजार करो।"  शुभ ने एक भरपूर नजर अवनी पर डाली और मुस्कुरा कर वहां से चला गया। उसके जाते ही सारांश ने पानी का गिलास उठाया और उसमें से पानी लेकर अपनी के चेहरे पर छींटे मारे फिर चेहरे को पानी से पोछा जिससे अवनी होश में आइ। होश में आने पर अवनि कुछ देर तक सोचती रही थी आखिर उसके साथ हुआ क्या। 

      जैसे ही वह चेतना मे लौटी और उसे बीते वक्त की बात याद आई, उसने जोर से सारांश को पकड़ लिया और बोली, "सारांश......! मैंने शायद कोई बहुत बुरा सपना देखा है। शायद नही.....! मैंने बहुत बुरा सपना ही देखा है। मैंने देखा कि वह....."  इससे पहले की अवनि अपनी  बात पूरी कर पाती, सारांश ने उससे अपने सीन से लगा लिया और उसके कान में धीरे से बोला,"शांत हो जाओ अवनि! तुम ने जो देखा वह कोई सपना नहीं है बल्कि हकीकत है। इसीलिए मैंने कहा था की तुम्हें हिम्मत से काम लेना होगा और खुद को मजबूत करना होगा!"

     अवनि सारांश की बात सुन तो रही थी लेकिन उसे समझ मे कुछ नही आ रहा था। उसने अजीब से नज़रों से सारांश की ओर देखा तो सारांश ने उसे समझाया जिसे सुन अवनि को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ। सारांश ने कहा, "अवनि.....! जब श्रेया ने मुझे लक्ष्य का हुलिया बताया था मै तभी मेरा शक गया था की ये कोई और नही बल्कि शुभ ही है। हम ने उसे पिछले दो सालों से नज़रबंद कर रखा था। इसीलिए यकीन करने के लिए जब मैंने वहाँ फोन किया तो जवाब मिला की वो वही है लेकिन मुझे शक था और मैंने किसी को भेजा था वहाँ। जिससे मुझे यकीन हो गया की श्रेया जिस लक्ष्य की बात कर रही है वो शुभ ही है।"

    "अवनि...! शुभ के बारे मे काफी बाते ऐसी है जो तुम नही जानती और काफी कुछ ऐसा भी है जो मै भी नही जानता। सिर्फ मॉम को पता है और वो इस बारे मे कोई बात नही करती। उन्होंने हम तीनों को ही एक सी परवरिश दी है लेकिन फिर भी वो ऐसा क्यों हो गया ये बात किसी को समझ नही आती। लोगों को तो ये तक लगता है की वो हमारा भाई ही नही है और सिया मित्तल के सिर्फ दो ही बेटे है। अवनि........ " इससे पहले की सारांश अवनि से और कुछ कहता सिया का कॉल आ गया। 

   "सारांश.......! बेटा आप दोनों ठीक तो है! पूजा का समय हो गया है।" सिया ने कहा। 

   "हाँ मॉम! हम दोनों अभी आ रहे है।" कहकर सारांश ने फोन रख दिया और अवनि से बोला, "अवनि.....! बहुत सी बाते है जो तुम अभी नही जानती लेकिन धीरे-धीरे जान जाओगे इसीलिए अभी घर चलो पूजा का टाइम हो गया है सब इंतजार कर रहे हैं।"

       अवनी उठी और चुपचाप सारांश का हाथ पकड़े उसके पीछे पीछे चल दी। नीचे बेसमेंट में आकर सारांश ने अवनि के लिए गाड़ी का दरवाजा खोला और उसे बैठा कर खुद भी पीछे कि सीट पर बैठ गया। इससे पहले कि वह ड्राइवर को चलने के लिए कहता, आगे की सीट पर शुभ आकर बैठ गया। उसे बैठा देख अवनि और ज्यादा डर गई और उसने सारांश का हाथ और कस कर पकड़ लिया। 

  अवनि को यूँ घबराया हुआ देख सारांश ने शुभ से पूछा, "तुम हमारे साथ जा रहे हैं? तुम्हारी गाड़ी कहां है?"

    " वह मै लाया नहीं भाई! मेरा एक दोस्त मुझे यहां छोड़ कर गया था। और जब आप लोग घर जा ही रहे हैं तो मेरे साथ चलने में क्या दिक्कत है! आफ्टर ऑल हमारी मंजिल भी तो एक ही है, क्यों सही कहा ना मैंने अवनि..........भा.........भी!"  शुभ ने रियर व्यू मिरर से अवनि की ओर तिरछी नजर से देखते हुए कहा। सारांश चाह कर भी उसे कुछ ना कह पाया और अवनी का हाथ मजबुती से पकड़ लिया। अवनि ने उसके कंधे पर सिर टिका लिया और आँखे मूंद ली ताकि उसे लक्ष्य का चेहरा नजर ना आए। 

      सिया कब से दरवाजे पर खड़े होकर सारांश और अवनी का इंतजार कर रही थी। उन दोनों को साथ मे आता देख उसकी जान में जान आई लेकिन जैसे ही शुभ गाड़ी से उतरा उसे देख कर सिया की आंखें हैरानी से फैल गई। उसने सारांश की ओर गुस्से से देखा। सिया को अपनी ओर ऐसे देखता पाकर सारांश ने कहा, "मॉम आप अवनी को लेकर अंदर चले, बाकी बातें बाद में होती रहेंगी।"

     सिया अवनी को लेकर अंदर आई और उसे फ्रेश होने के लिए कमरे में भेज दिया। शुभ को देखते ही रज्जो ने मुह टेढ़ा कर अपनी नाखुशी जताई और सिया तो वैसे ही खुश नही थी लेकिन जानकी का चेहरा उसे देखते ही खिल गया। उसने शुभ के पास आकर कहा, "तुम......अचानक से यहाँ......! आने से पहले बता देते की तुम आने वाले हो तो मै तुम्हारी पसंद का कुछ बना देती। अच्छा चलो कोई बात नही मै अभी तुम्हारे लिए कुछ तुम्हारी पसंद का बनाकर लाती हु।"

      जानकी बात सुन शुभ ने झूठी हँसी हँसते हुए कहा, "क्यो...! अगर आने से पहले बता देता तो क्या मेरे स्वागत मे यहाँ फूल बिछे होते? मै अपने घर आया हू, कोई मेहमान नही हू जो पहले बता कर आऊ। समझ गयी जानकी........ !"  शुभ के मुह से मासी की बजाय जानकी सुन सारांश की मुट्ठिया कस गयी। उसे गुस्से मे देख शुभ नॉर्मल होकर बोला, ".......मासी! जानकी मासी! आप मेरे लिए कुछ बना दो, मै फ्रेश होकर आता हू।" कहकर शुभ अपने कमरे मे चला गया। 

   उसके जाने के बाद सिया ने देखा कंचन और अखिल सवालिया नज़रों से उसे ही देख रहे थे। उसने मुस्कुरा कर कहा, "ये शुभ है.......... इस घर का......... " सिया से अपनी बात पूरी करते नही बन था था तो कार्तिक ने कहा, "पापा ये शुभ सारांश का छोटा भाई है। थोड़ा बिगड़ा हुआ है इसीलिए.......!" कार्तिक की बात सुन दोनों ने "ओ" कहा और उस तरफ ज्यादा ध्यान नही दिया। 

       सारांश भी फ्रेश होने अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर अवनी घबरा कर पीछे पलटी। उसे यूँ घबराया देख सारांश ने उसे कंधे से पकड़ा और झकझोरते हुए कहा "अवनी संभालो खुद को और मजबूत बनो। मुझे उस अवनि को देखना है जिसने अलीशा को उसी की भाषा में जवाब दिया था।  मैं इस डरी सहमी सी अपनी से नहीं मिलना चाहता हूं। तुमने वादा किया था अवनि याद करो और होश में आओ। अगर मुझ पर भरोसा है तो नीचे चल कर उसका सामना करो और मेरा साथ दो। 

    "एक बात पूछूँ सारांश....! वो आपका भाई है फिर वो आपको नुकसान क्यों पहुचना चाहता है? क्या सिर्फ मेरी वजह से?" अवनि ने हिम्मत बटोर कर पूछा। 

   "ये कोई पहली बार नही है जब उसने अपने ही परिवार को चोट पहुँचाने की कोशिश की है। ऐसा वो पहले भी कर चुका है। और जब वो ऐसा नही कर पाता तब वह बाहर किसी को जरूर चोट देता है। आज जब उसने मुझे लिफ्ट मे जाने से रोका तभी मुझे कुछ शक हुआ था। अगर मै गलत नही हु तो वो पहले तुम्हें पूरी तरह से डरा कर अपने कंट्रोल मे करना चाहता है फिर वो अपने प्लान को अंजाम देगा। उसके इरादे क्या है ये जानना होगा। वो बचपन मे ऐसा नही था लेकिन पता नही क्यों धीर धीरे उसके बिहेवियर मे बदलाव आने लगे। हम सब ने बहुत कोशिश की उसे सुधारने की लेकिन वो तो जैसे उस रास्ते पर काफी दूर तक निकल गया है। इसीलिए सबसे पहले हमें ये जानना होगा की आखिर उसका असल टार्गेट कौन है और उसका मकसद क्या है, तुम समझ रही हो न मेरी बात!"

    अवनि ने चुपचाप से हाँ मे सिर हिला दिया और बाथरूम मे चली गयी। सारांश की बातों ने उसे एक हौसला दिया था और उसका वादा भी याद दिलाया था, "अगर तुम चाहती हो की हम हमेशा साथ रहे तो तुम्हें मेरा साथ देना होगा।" अवनि ने खुद को संभाला और बाहर निकली। सारांश बाहर ही उसका इंतज़ार कर रहा था। अवनि को देख कर उसके पास आया और उसे हग करते हुए बोला, "अवनि....! जब सामने हमारा दुश्मन हो तो हमारे अपने हमारी हिम्मत बनते है लेकिन जब हमारा अपना ही हमारे खिलाफ हो तो कभी कभी खुद को कमजोर दिखाकर उसे जितना पड़ता है ताकि उसका ध्यान भटके और हम उसे संभाल पाए। जो भी है जैसा भी है मेरा भाई है। मुझे अभी भी उम्मीद है की वो एक दिन जरूर अच्छा इंसान बनेगा वापस पहले की तरह। अभी तुम चलो, मै आता हु। घबराना बिलकुल भी नही, याद रखना ये पूरा परिवार तुम्हारे साथ खड़ा है तुम्हारी सुरक्षा के लिए।" 

    सारांश ने अवनि का माथा चूमा और उसे नीचे भेज दिया। पूजा का मुहूर्त निकला जा रहा था इसीलिए अवनि खुद को संभालते हुए नीचे उतरी। वहाँ कंचन अखिल सिया, कार्तिक काव्या जानकी और रज्जो भी थे। अवनि अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिए सबके साथ पूजा मे सामिल हो गयी। लेकिन लक्ष्य के साथ एक छत के नीचे होने का एहसास ही उसके लिए डरावना था। 

   सारांश भी तैयार होकर पूजा मे शामिल हो गया। पूजा होने के बाद अवनि ने आरती थाली उठाई लेकिन उसके हाथ कांपने लगे जिस पर किसी का ध्यान नही गया। सारांश ने जल्दी से उसके काँपते हाथ को पकड़ लिया। अवनि ने उसकी ओर देखा तो सारांश ने आँखों आँखों मे उसे भरोसा दिया की वो हर हाल मे उसके साथ है। 





क्रमश: