Chapter 20
Episode 20
Chapter
एक जोरदार धक्का लगने के बाद अनुज उस कमरे में जाकर गिरा। एक बार को तो अनुज का दिमाग हिल गया था। वह सोचने लगा था, "मैं तो यहां उस लड़की के लिए आया था। पर यहां शायद कोई और भी है।"
अनुज अंदर मुंह के बल पर जाकर गिरा था। गिरने की वजह से उसका सिर चकरा रहा था, ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। उसने पलट कर देखा तो एक स्त्री आकृति चलकर आ रही थी, जिसके पीछे से तेज रोशनी आ रही थी। अनुज की आंखों को और भी चौंधियाने पर विवश कर रही थी।
उस स्त्री को देखने का मोह अनुज को उसी तरह आंखें खोल कर देखने पर विवश कर रहा था। धीरे-धीरे वह लड़की आगे बढ़ रही थी। एक बार को देखने पर वह लड़की एक फिटेड जींस और टॉप पहने दिखाई दे रही थी। पैरों में हील्स पहनी हुई थी, जिसकी आहट अनुज को सुनाई पड़ रही थी। बाल हवा में लहरा रहे थे, उसे देखने के लिए अनुज को बार-बार अपनी आंखें खोल और बंद करनी पड़ रही थी, पर फिर भी वो लड़की अनुज को दिखाई नहीं दे रही थी।
धीरे धीरे वह लड़की जैसे-जैसे पास आ रही थी, अनुज की आंखें डर से चौड़ी होती जा रही थी। मुंह खुला हुआ था, पर शब्द बाहर नहीं आ रहे थे। एकटक अनुज उसी लड़की को घूरे जा रहा था। बड़े ही मुश्किल से उसके मुंह से एक शब्द निकला….
"स्नेऽऽऽऽऽहाऽऽऽऽऽऽ…!!!"
वह डर के कारण धीरे-धीरे पीछे सरक रहा था, और वह लड़की उसी की तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ती जा रही थी। थोड़ा सा और करीब आने पर उसके हाथों में एक बड़े से फल वाला चाकू दिखाई देने लगा था। उस पर जो पड़ने वाली रोशनी, अनुज को डराने लगी थी। अनुज के मुंह से केवल दो ही शब्द निकल रहे थे…
"छोऽऽऽड़ऽऽऽ दोऽऽऽऽ…!!! जाऽऽऽऽनेऽऽऽ दोऽऽऽ…!!"
पर वो लड़की चाकू से खेलती हुई धीरे-धीरे अनुज की तरफ आगे बढ़ रही थी, और अनुज की जिंदगी पीछे। जब वह लड़की पूरी तरह से दिखाई देने लगी, तब अनुज को समझ में आया, यह सच में स्नेहा ही थी। अभी तक अनुज को सिर्फ उस लड़की के स्नेहा के होने का आभास था, पर अब यह बात साफ हो गई थी कि वह लड़की स्नेहा ही थी।
अनुज ने उसके सामने देख कर कहा, "स्नेहाऽऽऽ तुम.!!! तुम यहां क्या कर रही हो... और यह चाकू तुम्हारे पास क्या कर रहा है…??"
स्नेहा ने गुस्से से एक-एक शब्द चबाते हुए अनुज को घूर कर कहा, "तुम तो बहुत जल्दी डर गए अनुज…!! उस समय तुम लोगों को डर नहीं लगा था, जब तुमने विराज के साथ मिलकर मेरे मां, पापा, भाई, भाभी और राधु के मर्डर का प्लान बनाया था। तब तुम्हें डर नहीं लगा था... जब तुम आत्मानंद के साथ मिलकर उनके ऊपर तंत्र प्रहार कर रहे थे…??"
अनुज कहने लगा, "मुझे छोड़ दो... स्नेहा... मैं भाई हूं तुम्हारा…!!!"
स्नेहा ने एक जोरदार अट्टहास किया और गरज कर कहा, "भाई… हा...हा…हा…!!! तुम जानते भी हो... भाई होता कौन है…?? भाई वह होता है... जो अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान की भी बाजी लगा देता है। पर तुम वह भाई हो... जिसने हमेशा से मेरी जान लेने की कोशिश की। तुम्हें तो मेरी प्रॉपर्टी में इंटरेस्ट है ना... तो अब मैं तुम्हें भी मेरे मम्मी पापा के पास... ओह...नहीं… नहीं… वह तो स्वर्ग गए होंगे। क्योंकि तुम जैसे लोगों को इतने प्यार से जो रखा था… और तुम लोग...तुम तो नर्क में जाने के लायक भी नहीं हो, पर… छोर छोड़ो और कहीं तो जा नहीं सकते, तो नरक में ही जाओगे, और वहां का रास्ता... मैं तुम्हें दिखाऊंगी…!!!" ऐसा कहकर स्नेहा धीरे-धीरे अनुज की तरफ आगे बढ़ने लगी।
अनुज धीरे-धीरे पीछे सरकते हुए दीवार से लग गया था। आगे और पीछे से सरकने का रास्ता नहीं देख कर अनुज हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा।
"प्लीजऽऽऽ स्नेहाऽऽऽ छोड़ दो... मुझे भगवान के लिए छोड़ दो…!!"
स्नेहा ने उसकी बात को अनसुना कर दिया... और एक भयानक हंसी हंसते हुए आगे बढ़ने लगी। स्नेहा ने बालों से पकड़कर अनुज को ऊपर उठा लिया और उसका सर दीवार पर दे मारा।
अनुज के सिर से खून बहने लगा था। वह चीखते हुए सर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया। स्नेहा ने अपने हाथ से अनुज का बांया हाथ पकड़ लिया और हाथ को कंधे से चीरती हुई चाकू को कलाई तक ले गई।
अनुज जोर जोर से चीख रहा था... पर स्नेहा से अपना हाथ छुड़ा नहीं पा रहा था। उसकी हड्डियां दिखने लगी थी। स्नेहा ने उस हाथ से दिखने वाली नसों को पकड़ कर एक-एक करके धीरे-धीरे बाहर खींचना शुरू कर दिया। वह नसों को खींचती जा रही थी और अनुज की ह्रदय विदारक चीखें आसपास के माहौल में फैलती जा रही थी।
उसकी चीखों से स्नेहा को बहुत ही ज्यादा शांति का अनुभव हो रहा था। थोड़ी देर बाद नसें अपने साथ-साथ बाकी शरीर का मांस भी साथ ही लेकर खींचने लगी थी। नसों के साथ बाकी शरीर के मांस के खींचने के कारण अनुज बहुत ही जोर जोर से चीखे जा रहा था। थोड़ी देर बाद दर्द के कारण अनुज का शरीर उसका साथ छोड़ने लगा था। पर स्नेहा रुकी नहीं वह लगातार नसों को खींचती जा रही थी।
अब धीरे-धीरे नसें टूटने लगी थी और फर्श पर खून बिखरने लगा। अनुज का खून पूरे फर्श को लाल कर रहा था। थोड़ी देर में दर्द बर्दाश्त नहीं करने के कारण अनुज की मौत हो गई... और स्नेहा के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान फैल गई।
जल्दी स्नेहा ने वहां से जाने का इरादा कर लिया था। क्योंकि ज्यादा देर रुकने पर उसके बारे में पुलिस को खबर हो सकती थी। जो उस टाइम स्नेहा के लिए ठीक नहीं था। स्नेहा ने जैसे ही चलने का निश्चय किया, उसने देखा उसके पैर के जूतों के नीचे अनुज का खून था।
अगर वह ऐसे जाती तो उसके जूते के निशान सबको दिख सकते थे। जिसके कारण स्नेहा फंस सकती थी। स्नेहा ने अपनी शक्तियों से एक जोड़ी विचित्र प्रकार के दिखने वाले जूते मंगवाए। जिनके जमीन में निशान एक बड़े से जानवर के पैर जैसे दिखें, ताकि किसी को भी स्नेहा पर शक ना हो। स्नेहा उन जूतों को पहन कर जल्दी ही बाहर निकल गई।
स्नेहा ने अगला शिकार दो-चार दिन बाद करने का निश्चय किया। तब तक सबको अनुज के बारे में पता चल ही जाएगा।
स्नेहा ने वह दो-तीन दिन वही मां के मंदिर में बिताने का निश्चय किया। इसी बीच स्नेहा ने विराज पर नजर रखना शुरू कर दिया था।
"कब वह कहां जाता था…? कब आता था…?? और उसकी खास आदतें क्या-क्या थी??"
इन सब पर स्नेहा वही मंदिर से ही नजर रख रखी थी। स्नेहा को पता चला कि…
इस वक्त विराज के घर पर कोई नहीं था।उसके बच्चे विदेश में पढ़ते थे और उसकी पत्नी अधिकतर अपनी किटी पार्टी और क्लबिंग में बिजी रहती थी। फिलहाल वह अपने किसी मित्र मंडल के साथ मालदीव घूमने गई थी।
रात के समय विराज अकेला घर पर होता था। 10:00 बजे बाद नौकरों को बंगले में रहने की इजाजत नहीं थी। रोज रात में नई लड़कियों का आना जाना रहता था। दरवाजे पर एक चौकीदार चौबीसों घंटे तैनात रहता था। मेन गेट पर सीसीटीवी कैमरा और बंगले के मेन डोर पर भी दो सीसीटीवी कैमरे लगे थे। जो हमेशा काम करते रहते थे।
जब भी कोई लड़की बंगले में आती जाती थी उस समय कैमरे कुछ देर के लिए बंद कर दिये जाते थे। लड़कियां एक काली गाड़ी में आती थी, जिसके कांच पर ब्लैक फिल्म चढ़ी होती थी। जिससे बाहर वाला अंदर ना देख पाए कि गाड़ी में कौन बैठा है। ड्राइवर को भी उस लड़की की शक्ल देखने की इजाजत नहीं थी। ड्राइवर को बस उस गाड़ी को बंगले के मेन डोर के सामने रोकना होता था और विराज के फोन आने के बाद गाड़ी स्टार्ट करके लड़की को, जहां वह चाहे वहां वापस छोड़कर आना होता था। इस बारे में सारी बातें स्नेहा को वहां पर गई एक लड़की से पता चली थी।
अब स्नेहा का प्लान फिक्स था कि स्नेहा को किस तरह अंदर जाना था और अपना काम खत्म करके जल्दी से जल्दी बाहर निकलना था…??
वह भी ऐसे कि उसकी शक्ल सीसीटीवी में दिखाई ना दे…!
स्नेहा ने हर एक जानकारी को अच्छे से एनालाइज करके अपना प्लान तैयार कर लिया था।
वहीं दूसरी तरफ आस-पास के माहौल में अजीब सी दुर्गंध फैली हुई थी, जो एक घर की तरफ चलने पर और भी बढ़ती जा रही थी। किसी ने उस दुर्गंध के बारे में पुलिस को खबर कर दी थी।
इंस्पेक्टर अपनी एक टीम के साथ वहां पहुंचा... यह वही घर था जहां... अनुज की हत्या हुई थी…! गर्मी के कारण दो ही दिन में शरीर से बदबू आने लगी थी। गर्मी के कारण बॉडी जल्दी ही डीकंपोज होना शुरू हो गई थी। पुलिस ने घर में कदम रखा तो एक बदबू का भभका बाहर निकला। उसके कारण सभी लोगों को अपनी नाक रुमाल से अच्छी तरह से बंद करनी पड़ गई।
धीरे-धीरे पुलिस ने पैनी नजर रखते हुए अंदर जाना शुरू किया। वहां पर उन्हें जमीन पर अजीब से पैरों के निशान मिले। अंदर जाने पर एक बॉडी जिससे खून बह कर सूख गया था। शरीर की नसें बाहर बिखरी पड़ी थी, आंखें डर के कारण फैली हुई थी पर उनमें भी कीड़े लग चुके थे।
उस बॉडी को देखकर एक बार को तो पुलिस वालों को भी डर लग आया था। इतनी विभत्सता कोई कैसे दिखा सकता था, सभी यही सोच रहे थे।
एक पुलिस इंस्पेक्टर ने कॉन्स्टेबल से कहा, "इसे चेक करो और देखो कि... कोई आईडी या कुछ फोन वगैरह इसके पास है या नहीं??"
कॉन्स्टेबल ने उस बॉडी को चेक किया तो उसके पास से एक फोन बरामद हुआ। जिसमें मां की लगभग 80 मिस कॉल थी, और भी नंबरों से मिस कॉल थी।
इंस्पेक्टर ने मां वाले नंबर पर फोन लगाकर उन्हें अनुज के बारे में बताया…
थोड़ी देर में एक काली गाड़ी वहां झटके से आकर रुकी। उस गाड़ी में से अखिलेश, राहुल और गीता बदहवास से भागते हुए अंदर पहुंचे। अंदर उस बॉडी को देखकर गीता चीख पड़ी…
"अनुऽऽऽऽजऽऽऽऽऽ…!!!"
और चिल्ला कर बेहोश हो गई। अखिलेश भी एक बार को चक्कर खाकर गिरने ही वाले थे कि एक पुलिस वाले ने उन्हें संभाल लिया। राहुल भी एक बार को उस सब को देख कर सकते में आ गया था।
उन्हें यह बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि दो दिन से अनुज इसलिए घर वापस नहीं लौटा था। अनुज ऐसा कई बार कर चुका था। अक्सर वह अपने दोस्तों के साथ बिना बोले बाहर निकल जाता था। पर उन्होंने ऐसा नहीं सोचा था कि अनुज के साथ ऐसा कुछ हादसा भी हो सकता था।
पुलिस ने उनसे जरूरी पूछताछ की।
इंस्पेक्टर ने पूछा, "आप लोगों को कैसे नहीं पता कि अनुज कहाँ और कब गया था…?? वो आप लोगों को बिना बताये ही निकल जाता था???"
तो अखिलेश जी ने बताया, "अनुज हड़बड़ी में बाहर निकला था... बाहर निकलते समय अरुणा जी, मेरी पत्नी से टकरा गया था। अरुणा जी ने उससे पूछा भी था कि इतनी जल्दी में कहां जा रहे हो…?? तो उसने बताया कि मेरे एक दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है... उसी की सहायता के लिए जा रहा हूँ। मैं जल्दी ही वापस आ जाऊँगा…!!"
फोन कॉल के बारे में पता चलने पर पुलिस ने अनुज के फोन को चेक किया। फोन में चेक करने पर एक अननोन नंबर उन्हें मिला था, जो किसी भी जानकारी के लिए उपयुक्त नहीं था।
पुलिस ने भी खानापूर्ति करके इस केस को बंद करना ही ठीक समझा, क्योंकि किसी भी तरह के कोई भी सबूत... कोई भी जानकारी उनके हाथ नहीं लगी थी। सिवाय उन अजीब से पैरों के निशानों के…
गीता जी की हालत रो-रो कर बहुत ही ज्यादा खराब हो गई थी। घर में भी मातम पसर गया था। सभी ने गीता जी को चुप कराने का प्रयास किया पर वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
फिर अखिलेश ने जोर से गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, "जीऽऽऽजीऽऽऽ... बस करो। आपको नहीं पता कि अनुज की हरकतें कैसी थी…?? हो सकता है किसी लड़की के चक्कर में उसके भाइयों ने अनुज की यह दुर्दशा की हो। क्योंकि जितनी बेरहमी से उसे मारा गया है... शायद अनुज ने उसकी बहन के साथ उतनी ही बेरहमी की हो।"
इस पर राहुल और अरुणा जी ने भी हां में हां मिलाई। थोड़ी देर की बहस और बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकला कि विराज के गुरु जी से मिलकर अनुज की मौत के बारे में बात करनी चाहिए। आत्मानंद जी के बारे में बात सुनकर गीता जी को थोड़ी तसल्ली हुई थी। उसे लगा था कि शायद अनुज के बारे में अब कुछ पता चल जाएगा।
अखिलेश ने विराज को कॉल किया। एक-दो रिंग्स जाने पर विराज ने फोन उठाया…
विराज:- "हेलोऽऽऽ"
अखिलेश जी:- "हेलोऽऽऽ विराज जी मैं... अखिलेश बोल रहा हूं। हमें आपके गुरु जी... आत्मानंद जी से मिलना है।"
विराज:- "वह तो नहीं हो पाएगा... क्योंकि अब गुरुदेव नहीं रहे... किसी ने उनकी बहुत ही दर्दनाक तरीके से हत्या कर दी है।"
यह सुनकर अखिलेश की हालत खराब हो गई और उसके हाथ से फोन गिर पड़ा। सभी लोग अखिलेश को ऐसे देख कर घबरा गए थे। जल्दी से राहुल ने फोन उठाया... और विराज से बात करना शुरू कर दिया…
कुछ देर… हांऽऽऽ. हूंऽऽऽ…
के बाद राहुल ने यह कहते हुए फोन रख दिया, "हम कल आपसे... आपके घर पर मिलते हैं…!!"
फोन रखते ही गीता जी अरुणा जी घबराकर पूछने लगी... "क्या हुआ है…??"
तब राहुल ने कहा, "किसी ने आत्मानंद जी की हत्या बहुत ही बेरहमी से कर दी है। इस बारे में विराज को भी कोई जानकारी नहीं है, कि उनकी हत्या किसने की है…? विराज भी इस समय बहुत ही ज्यादा टेंशन में है। मैंने उन्हें कह दिया है... कि हम कल सुबह 12:00 बजे उनके घर उनसे मिलने आ रहे हैं...