Chapter 15

Chapter 15

Episode 15

Chapter

जब सब बन गया तो स्नेहा ने मां की थाल सजाने के लिए थाल ढूंढना शुरू किया। स्नेहा बाहर गुरुजी के पास पूछने गई और यह बताने गई कि उसके मन में मां के लिए छप्पन भोग बनाने की इच्छा थी, तो सारी सामग्री उसकी कुटिया में ही प्रकट हो गई थी। पर स्नेहा ने खुद की मेहनत के पैसों से ही स्नेहा ने छप्पन भोग की सामग्री की व्यवस्था की थी। अब बस केवल एक बड़े थाल की ही आवश्यकता थी, जिससे वह मां के भोग के लिए थाल सजा सके।

 स्नेहा ने अच्युतानंद जी से कहा, "गुरुदेव मैंने मां के लिए छप्पन भोग तैयार किया हैं।  पर एक थाल का अभाव है, जिसमें भोजन परोस कर मां को खिला सकूं।"

 अच्युतानंद जी ने कहा, "तुम्हारी कुटिया में चलकर ही देखते हैं कि कितने बड़े थाल की आवश्यकता होगी।"

ऐसा कहकर दोनों स्नेहा की कुटिया की तरफ चल दिए।  वहां जाकर देखा तो एक बड़ा सा थाल रखा हुआ था। बहुत सी कटोरियों में बहुत से व्यंजन परोसे जा चुके रहे थे। और बहुत सी कटोरियां ऐसे ही खाली थी। चूल्हे पर खीर का बर्तन रखा हुआ था और बीच-बीच में उस खीर को हिलाया जा रहा था। 

पर वहां कोई भी नहीं था, स्नेहा को याद आया तो उसने अच्युतानंद जी से कहा, "गुरुदेव मैं तो खीर बनाना भूल ही गई थी... मैं यह भूल ही गई थी कि मां के भोग के लिए खीर भी आवश्यक है।  पर देखो मां कितनी दयालु है, उन्होंने मेरी इच्छा पूरी करने के लिए स्वयं ही खीर बना दी।"

 गुरुदेव अच्युतानंद और स्नेहा ने उस दिव्य शक्ति को प्रणाम किया जो उस समय खीर बना रही थी। 

खीर के बनते ही स्नेहा उस बड़े थाल को लेकर मां के मंदिर की तरफ जल्दी चल दी। एक थाल अच्युतानंद जी के पास था जो बाबा काल भैरव के लिए भोग के लिए था। गुरुदेव ने वह थाल बाबा काल भैरव को अर्पण किया और दूसरा थाल स्नेहा मां के सामने लेकर बैठ गई। 

मन ही मन विनती करने लगी, "मां मैंने आप ही की इच्छा से, आप ही के लिए छप्पन भोग बनाने की कामना की थी। जो आपने खीर बनाकर पूरी भी की। अब आप इसे भोग रूप में स्वीकार करें।" ऐसा कहकर मन ही मन विनती करने लगी।

 मां का भोग लगाने के बाद स्नेहा ने प्रसाद अच्युतानंद जी को दिया और फिर स्वयं खाया। प्रसाद खाने के बाद दोनों को ऐसा लगा, मानो वर्षों की भूख और प्यास शांत हो गई और मन आनंद से भर उठा। भोजन के बाद अच्युतानंद जी ध्यान में मग्न हो गए और स्नेहा वही मंदिर में बैठकर मां के प्रेम का आनंद उठाती रही। 

दो दिन के बाद अच्युतानंद जी ने स्नेहा को बुलाकर कहा, "स्नेहा आज तुम्हें दोपहर में नदी के पास वाले जंगल में जाना होगा। वहां तुम्हारी साधना के लिए तुम्हें शव प्राप्त होगा। उसे लेकर तुम्हें यहां आना होगा।" 

अच्युतानंद जी की आज्ञा से स्नेहा जंगल में अपनी साधना के लिए शव ढूंढने निकल पड़ी। ढूंढते- ढूंढते उसे शाम होने आई थी। अचानक एक जगह बहुत सी चील और कौवों को मंडराते देख, स्नेहा उस ओर गई।

 वहां पर एक 22-24 साल का लड़का पेड़ पर फांसी के फंदे में लटका हुआ था। स्नेहा ने कोशिश करके सावधानीपूर्वक उसे पेड़ से उतारा। पर इतनी दूर तक शव को ले जाने की सामर्थ्य स्नेहा में नहीं थी। स्नेहा सोच ही रही थी कि कोई उस शव को उठाकर स्नेहा के साथ-साथ चल पड़ा। एक बार को तो स्नेहा को लगा कि कोई और उस शव को ले जा रहा था, पर जल्दी उसे ज्ञात हो गया कि उसी के लिए इस शव को ले जाया जा रहा था। स्नेहा आगे-आगे और वह  शक्ति शव को लेकर पीछे-पीछे अच्युतानंद जी के पास पहुंचे।  उनके पास पहुंचते ही उस शव  को जो भी उठा कर ला रहा था, उसने सावधानी से नीचे रख दिया। 

स्नेहा ने अच्युतानंद जी से कहा, "गुरुजी आपकी आज्ञा अनुसार शव आ गया है। आगे की विधि बताइए…?? पर मैं एक बात जाना चाहती हूं... क्या अगर हम इस शव को साधना के लिए प्रयोग कर लेंगे तो इसके परिवार वाले इसे नहीं ढूंढेंगे? इसका अंतिम संस्कार कैसे होगा?"

अच्युतानंद जी ने कहा, "ऐसी कोई बात नहीं है... यह लड़का पास ही के गांव के रहने वाला एक लकड़हारा है।  प्रेम में धोखा मिलने के कारण इसने आत्महत्या की थी। हमें ऐसे ही अकाल मृत्यु प्राप्त शव की ही आवश्यकता थी। शव साधना के लिए अकाल मृत्यु प्राप्त शव ही उपयुक्त होता है। इसलिए इसे ढूंढने कोई नहीं आएगा। हमारी साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात, हम स्वयं इसे अग्नि को समर्पित कर देंगे।"

 अच्युतानंद जी ने फिर से स्नेहा से कहा, "रात्रि 10:00 बजे स्वयं स्नान करके और शव को स्नान करवा कर श्मशान में पहुंच जाना।

फिर अच्युतानंद जी ने बताना शुरू किया…

"वीर साधन प्राचीन काल की तंत्र शाखा की ही एक सिद्धि है, इसे ही शव साधना भी कहते है। 

 इसमें चारों दिशाओं में रक्षा हेतु गुरु, बटुक भैरव, योगिनी और श्री गणेश की आराधना की जाती है। भैरव और भैरवी की साधना भी इसमें आवश्यक मानी जाती है। वहीं सभी दिशाओं के दिगपाल की आराधना भी आवश्यक है। 

भोग स्वरुप बकरे या मुर्गे की बलि देने के साथ ही शराब चढ़ाना भी अनिवार्य है। शव को भी यह चीजें अर्पित की जाती है। कुछ ही समय में देखते ही देखते यह भोग समाप्त हो जाता है। इस साधना के पूर्ण होते-होते शव भी बोलने लगता है। साधना पूर्ण होने पर तुम्हें वह सिद्धी प्राप्त हो जाएगी जिसके लिए  शव साधना करवाई जा रही है।

 कई बार आधी रात बीतेते-बीतते शव की आंखें भी विचलित होने लगती है और उसके शरीर में कई परिवर्तन एक साथ देखे जा सकते हैं। लेकिन इन भयावह और खतरनाक दृश्यों को देखते हुए भी तुम्हारा मन लक्ष्य से नहीं हटना चाहिए। तुम्हें मंत्रोच्चार जारी रखना होगा, ताकि साधना को पूर्ण किया जा सके।"

स्नेहा ने सारी बात ध्यान से सुनी और उन्हें पूरा करने का आश्वासन भी अच्युतानंद जी को दिया।

 अच्युतानंद जी ने आगे कहा, "यह साधना बहुत ही घातक भी हो सकती है। अगर यह साधना करते रहे वक्त कोई भी गलती होती है तो साधना करने वाले का भोग शव स्वयं करता है। इसलिए हर एक छोटी चीज का तुम्हें ध्यान रखना होगा और अपनी सुरक्षा का भी। ध्यान रखना किसी भी चीज से डरना नहीं है। मैं सदैव तुम्हारी सुरक्षा के लिए यही रहूंगा, फिर भी किसी भी मूल्य पर तुम्हें यह साधना पूरी करनी ही होगी।"

 ऐसा कह कर अच्युतानंद जी ने शव साधना से संबंधित सारे विधि विधान स्नेहा से पूरे करवाए। स्नेहा ने जल्दी सारे आवश्यक पूजन देह बंधन, शिखा बंधन, स्थान बंधन करते हुए स्नेहा ने शव के ऊपर बैठकर मंत्र जाप आरंभ कर दिया। अच्युतानंद जी के बताएं हर एक नियम और चरण को पूरा करते हुए शीघ्र ही अपनी साधना पूरी कर ली।

साधना के पूरा होते ही अच्युतानंद जी वहां आ गए और उन्होंने स्नेहा को साधना सफलतापूर्वक संपन्न करने पर आशीर्वाद दिया।  स्नेहा के साथ के साथ मिलकर उस शव को अग्नि को समर्पित कर दिया।

 उसके बाद स्नेहा से कहा, "स्नेहा यह साधना तुमने सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। अब तुम जाकर अपनी कुटिया में विश्राम करो।" 

 स्नेहा कुटिया में ना जाकर मां के मंदिर में ही चली गई और वही मां के सामने जाकर लेट गई।  और मां को निहारते निहारते ही सो गई।

अगले दिन अच्युतानंद जी ने स्नेहा से कहा, "स्नेहा अगली साधना हम निखिल तंत्र साधना करेंगे। यह साधना हम आज शाम से ही शुरु करेंगे। यह इक्कीस दिन की साधना है,  जिसमे एक लाख मंत्रों का जाप करना होगा इक्कीस दिन में  उसके बाद दशांश हवन  होगा। इसलिए तुम रात को 8:00 बजे तक स्नान करके लाल वस्त्र पहन कर यही मंदिर में मिलना। आगे की विधि मैं तुम्हें उसी समय बताऊंगा।"

 स्नेहा बिना कोई सवाल किए  उन्हें प्रणाम करके वापस अपनी कुटिया में आ गई। कुटिया में आकर सोचने लगी, "गुरुदेव मेरे लिए बहुत ही ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। मुझे हर हालत में उनके विश्वास और उनकी मेहनत को खराब नहीं होने देना है। 

फिर उसने मां से प्रार्थना की... "मां आप तो सर्व ज्ञाता है, आप सबके मन की जाने वाली हैं, मुझ पर भी दया करें... और इतनी शक्ति प्रदान करें... जिससे मैं अपने गुरु जी के विश्वास को सही सिद्ध कर पाऊं। उनकी कसौटी पर खरी उतरु।" ऐसा विचार कर स्नेहा ने शाम के लिए अपने आपको तैयार करने के लिए आराम करना ही ठीक समझा।

 शाम को अच्युतानंद जी के बताए समय पर स्नेहा वहां पहुंच गई।  उस समय अच्युतानंद जी स्नेहा की साधना में प्रयोग में आने वाली सभी वस्तुएं इकट्ठा कर चुके थे।

 स्नेहा ने आकर उन्हें प्रणाम किया और कहा, "गुरुदेव मुझे आशीर्वाद दें... कि मैं आपके विश्वास पर खरा उतरूं और यह सिद्धि भी सफलतापूर्वक पूरी कर पाऊं।"

 अच्युतानंद जी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, "अब मैं तुम्हें आगे के सभी विधान बता कर चलता हूं। तुम मेरे बताए अनुसार सारे विधान पूरे करके यह साधना भी शीघ्र अति शीघ्र पूरी करो। ताकि मां धूमावती तुम्हें इतनी सफलता प्रदान करें, ताकि तुम अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सको।"

 स्नेहा ने पूछा, "गुरुदेव क्या आप इस सिद्धि के बारे में भी मुझे बताएंगे?"

 अच्युतानंद जी ने कहा, "क्यों नहीं... अवश्य बताऊंगा...।" फिर कुछ देर रुक कर उन्होंने आगे बोलना शुरू किया।

"साधना के क्षेत्र में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत धूमावती का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। इसे  निखिल तंत्र  भी कहा जाता है। धूमावती साधना के प्रभाव से शत्रु-नाश एवं बाधा-निवारण भी होता है। धूमावती साधना मूल रूप से तान्त्रिक साधना है। इस साधना के सिद्ध होने पर भूत-प्रेत, पिशाच व अन्य तन्त्र-बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि प्रबल से प्रबल बाधाओं का भी निराकरण होने लग जाता है।

           धूमावती का स्वरूप क्षुधा अर्थात भूख से पीड़ित स्वरूप है और इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। जब कोई साधक भगवती धूमावती की साधना सम्पन्न करता है तो देवी प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण कर लेती है और साधक को अभय प्रदान करती हैं।

धूमावती सिद्ध होने पर साधक का शरीर मजबूत व सुदृढ़ हो जाता है। उस पर गर्मी, सर्दी, भूख, प्यास और किसी प्रकार की बीमारी का तीव्र प्रभाव नहीं पड़ता है। साधक की आँखों में साक्षात् अग्निदेव उपस्थित रहते हैं और वह तीक्ष्ण दृष्टि से जिस शत्रु को देखकर मन ही मन धूमावती मन्त्र का उच्चारण करता है, वह शत्रु तत्क्षण अवनति की ओर अग्रसर हो जाता है। इससे साधक की आँखों में प्रबल सम्मोहन व आकर्षण शक्ति आ जाती है।

धूमावती  के सिद्ध होने पर भगवती धूमावती साधक की रक्षा करती है और यदि वह भीषण परिस्थितियों में या शत्रुओं के बीच अकेला पड़ जाता है तो भी उसका बाल भी बाँका नहीं होता है। शत्रु स्वयं ही प्रभावहीन एवं निस्तेज हो जाते हैं।

  इस साधना के करने से आपके जितने भी शत्रु हैं, उनका मान-मर्दन होता हैऔर जो भी आप पर तन्त्र प्रहार करता है, उस पर वापिस प्रहार कर उसी की भाषा में जबाब दिया जा सकता है। जिस प्रकार तारा समृद्धि और बुद्धि की, त्रिपुर सुन्दरी पराक्रम और सौभाग्य की सूचक मानी जाती है, ठीक उसी प्रकार धूमावती शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार कर नेस्तनाबूँद करने वाली देवी मानी जाती है। यह अपने आराधक को बड़ी तीव्र शक्ति और बल प्रदान करने वाली देवी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपों में साधक की सहायता करती  है।"

अच्युतानंद जी ने आगे कहा, "स्नेहा तुम्हारे सामने कोई छोटा-मोटा तांत्रिक नहीं है,  तुम्हारे सामने आत्मानंद जैसा महान तांत्रिक है। उसके लिए तुम्हें इस तरह की विभिन्न साधनात्मक शक्तियों की आवश्यकता होगी। इसलिए अभी तुम धूमावती साधना करो। उसके बाद तुम्हें और भी साधनाऐं  मां के आशीर्वाद से करनी होगी। जिन्हें मैं तुम्हें इसके बाद करवाऊंगा।"

 स्नेहा आंखें चौड़ी करके केवल इस सिद्धि के बारे में ही सुन रही थी। उसने पूछा,  "गुरुदेव…!! क्या धूमावती साधना इतनी श्रेष्ठ साधना है…??" 

अच्युतानंद जी ने कहा, "अवश्य है... तुम्हें आत्मानंद से सामना करने पर इस साधना की बहुत ही आवश्यकता होगी। अब तुम मां पर विश्वास करके यह साधना शुरू करो।"

 ऐसा कहकर अच्युतानंद जी स्नेहा को सारे जरूरी विधान बताए और सारे सुरक्षा चक्र पूरे करवा कर वापस चले गए।

 स्नेहा ने मां से अपनी साधना निर्विघ्न पूरी होने की विनती की और अपनी साधना में लग गई। नित नए अनुभवों के साथ स्नेहा ने धूमावती साधना भी सफलतापूर्वक पूरी कर ली। छोटी- मोटी परेशानियां तो आई, पर मां के वरद हस्त के कारण, उसे कोई भी संकट का सामना नहीं करना पड़ा।

उसके बाद अच्युतानंद जी ने स्नेहा को कृत्या साधना, त्रिजटा अघोरणी साधना, पाताल भैरवी साधना और ना जाने कितनी साधनाऐं करवाई।