Chapter 71
humsafar 71
Chapter
71
मानव श्रेया को उसके घर ले जाने की बजाय अपने घर ले गया। ऐसे समय मे जहाँ लक्ष्य का कोई पता नही की वो कब क्या कर दे! मानव को श्रेया का यूँ अकेले रहना सही नही लगा। सारांश ने ऑफिस से निकलने से पहले किसी को फोन किया और शुभ के बारे मे पूछा। "सर! उसने फिर से भागने की कोशिश की थी, हमारे तीन लोग घायल हो गए, इसीलिए उसे नींद का इंजेक्सन लगाना पड़ा। अभी वो सो रहा है।" फोन के दूसरे तरफ से आवाज़ आई। सारांश को तसल्ली हुई की वो जो कोई भी है, कम से कम शुभ तो नही है।
सारांश जैसे ही घर मे दाखिल हुआ उसकी नज़र सोफे के हत्थे पर सिर टिका कर सोई अवनि पर गयी। वह चल कर उसके पास गया और उसके बगल मे बैठ एक टक अवनि के चेहरे को देखने लगा। फिर हल्के हाथ से उसके चेहरे पे आये बालों को साइड किया जिससे उसकी गर्दन के पीछे बने टैटू पर उसकी नज़र गयी। "सच क्या है अवनि!!! वो जो मैंने आज जाना या फिर वो जो मेरे आँखों के सामने है!!!" अभी वो वहाँ से उठने वाला ही था की तभी जानकी अपने कमरे से बाहर आई।
सारांश को वहाँ अवनि के पास बैठा देख वह आई और सारांश के सिर पर हाथ फेर कर बोली, "आ गए तुम! ये बेचारी तुम्हारा इंतज़ार करते करते यही सो गयी। चलो फ्रेश हो लो मै तबतक खाना गर्म कर देती हू। "
"नही मासी, मुझे भूख नही है। आप रहने दो और जाकर सो जाओ।" सारांश ने बुझे मन से कहा।
"अरे ऐसे कैसे भूख नही है!!! अगर भूख नही भी है तब भी....... अपनी बीवी का साथ देने के लिए तो खा ही सकते हो न!!" जानकी ने कहा।
"मतलब!!! अवनि ने खाना नही खाया?" सारांश ने पूछा तो जानकी ने ना मे सिर हिला दिया।
"जब से आई है तब से तुम्हारे लिए परेशान है। उसे लगता है की तुम परेशान हो। पूरी बावरी है तुम्हारे पीछे। पिछले कुछ दिनों मे इतना तो समझ आगया सारांश की जितना तुम उसे प्यार करते हो उससे कहीं ज्यादा वो तुम्हें चाहती है। हर किसी को इतना प्यार करने वाला जीवनसाथी नही मिलता जैसे की तुम दोनो हो। तुम दोनो ऐसे ही हमेशा साथ रहो, किसी की नज़र ना लगे। अब अपने ऑफिस की परेशानी बाहर रख आओ और अवनि को कमरे मे लेकर जाओ, मै खाना गर्म कर के लाती हु।" जानकी ने कहा और किचन मे चली गयी।
सारांश कुछ देर बस यूँ ही अवनि को देखता रहा और उसे गोद मे उठाकर कमरे मे ले गया। अवनि को बेड पर सुला कर खुद नहाने चला गया। कुछ देर बाद सारांश जैसे ही बाहर निकला, जानकी दरवाजे पर खाना लेकर खड़ी थी। उसने खाना लेकर टेबल पर रखा और अवनि को जगाने के लिए प्यार से उसका चेहरा छुआ। उसके बाल से टपकते पानी जब अवनि के चेहरे पर पड़ी तो अवनि की नींद खुल गयी।
"आप....! आप कब आये? और यहाँ....! आप बैठिये मै खाना लेकर आती हु।" सारांश को देख अवनि हड़बड़ा कर उठी और जाने लगी तो सारांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे बैठाया और बोला, "खाना मासी लाकर दे गयी है। चलो खाना खा लो।" और फिर अवनि को सोफे पर बैठाया ताकि वो दोनो खाना खा सके। अवनि ने एक प्लेट मे खाना लगाया और पहला निवाला सारांश की ओर बढ़ा दिया।
"सिर्फ एक प्लेट? तुम्हें नही खाना क्या?" सारांश ने सवाल किया।
" अब या तो आप मुझे अपने साथ खाने के लिए इन्वाइट कर सकते है या फिर मै आपके खाने के बाद इसी प्लेट मे खा लूँगी। ऐसे दो प्लेट लगाना मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लगता।" अवनि ने मुस्कुरा कर कहा। सारांश ने देखा उसकी आँखों मे एक प्यार और शिकायत दोनो ही थे। उसने पहला निवाला पहले अवनि को खिलाया और खुद भी उसकी हाथ से खाया।
"तुम्हें मेरा जुठा खाने का मन था!" सारांश ने पूछा।
"हाँ.....! वो तो मै रोज ही करती हु, सब से छुप कर। जूठा खाने से प्यार बढ़ता है। आपको क्या लगता है, मै ऐसे ही आपके प्यार मे पड़ी!!!" कहते हुए अवनि की हँसी छूट गयी।
"मैंने कहा था मेरा इंतज़ार मत करना फिर क्यों?" सारांश ने आँखे झुका कर पूछा।
"आप के बिना कुछ अच्छा नही लगता। आप परेशान थे इसीलिए........मुझे पता था आपको देरी होगी तो आप खाना भूल जायेंगे। सच बताइये अगर मै खाना खा कर सो गयी होती तो क्या आप खाना खाते? और ये क्या टॉपिक लेकर बैठ गए! खाते टाइम बातें नही करते, चुपचाप खाना खाइये।" अवनि ने ऑर्डर देने के अंदाज मे कहा तो सारांश भी चुपचाप खाने लगा।
खाने के बाद अवनि ने बर्तन समेटे और किचन मे ले गयी। उसके जाने के बाद सारांश अवनि की अब तक की बातों को याद करने लगा। शादी के बाद की उसकी हिचकिचाहट, उसका प्यार, उसका डर , उसकी बाते सब कुछ उसके दिमाग मे घूम रही थी। अवनि बर्तन साफ करने के बाद कमरे मे आई तो देखा सारांश किसी ख्याल मे गुम था और उसके बाल अभी भी भीगे हुए थे। अवनि ने टॉवल उठाया और उसके सामने जाकर बाल पोछने लगी। सारांश अपने ही ख्यालो मे गुम कब अवनि की कमर पर अपने हाथ लपेट दिये उसे खुद भी पता नही चला।
"आप ने बताया नही कभी शुभ के बारे मे!!!" अवनि ने पूछा।
"तुमने भी तो नही बताया कभी..... लक्ष्य के बारे मे...!" सारांश के मुह से निकला। अवनि के हाथ जहाँ थे वही जम गए और दिल की धड़कन रुक गयी। घबराहट के कारण उसके माथे पर पसीना छलक आया। सारांश को ख्याल आया की अचानक से उसने क्या सवाल कर दिया। उसने बात बदलते हुए उसकी तरफ देखकर कहा, "तुम ने कभी बताया ही नही तुम्हारा लक्ष्य क्या है? तुम आगे क्या करना चाहती हो! एनजीओ का काम ही सम्भालना है या अपना कुछ और करना है?"
सारांश के मुह से लक्ष्य का नाम सुन अवनि की जो हालत थी वो बस वही जानती थी। लेकिन सारांश के ऐसे सवाल से उसको चैन मिला और खुद को शांत कर बोली, "आप जो चाहें....! अपना खुद का कुछ करना मेरा सपना था लेकिन वो एनजीओ आप की जिम्मेदारी है जो आप की हर चीज बहुत मुझे बहुत ज्यादा प्यारी है।" और अवनि ने झुक कर उसका माथा चूम लिया।
अवनि सारांश के बाल सुखाकर खुद कपड़े बदलने चली गयी। सारांश ने आँखे बन्द की और मन ही मन अवनि से माफी मांगी, "मुझे माफ कर देना अवनि! मैंने तुम्हारे प्यार पर शक किया। लेकिन अब नही!!! ये जो भी मै उसका पता लगा ही लूँगा, और तुम पर कभी कोई आँच नही दूँगा। तुम्हारे चेहरे की मुस्कान कभी कम नही होगी, ये वादा है मेरा।"
अवनि बाथरूम से बाहर निकली तबतक सारांश बेड पर था। रात ज्यादा हो चुकी थी लेकिन अवनि को नींद नही आ रही थी। लक्ष्य का नाम ऐसे अचानक सामने आने से उसकी नींद और चैन दोनो ही गायब थे। उसने सोते हुए सारांश का हाथ कस कर पकड़ रखा था। "सारांश......!मेरे जीवन के लक्ष्य का मुझे नही पता लेकिन मेरे जीवन का सारांश ही मेरे लिए सबकुछ है।" अवनि ने उसके बाँह पर सिर रख कर कहा। उसके यूँ हाथ पकड़ने से सारांश को उसकी बेचैनी और डर महसूस हो रही थी। उसने अवनि के बालों को प्यार से सहलया और धीरे धीर अवनि को नींद आ गयी लेकिन नींद मे भी अवनि की पकड़ सारांश पर कम नही हुई।
लक्ष्य अपने कुछ दोस्तो के साथ शहर के बाहर किसी ठेके पर बैठा था। उन सभी ने काफी ज्यादा पी रखी थी और वक़्त का कोई होश नही था उन्हे। "भाई.....! वो मित्तल साहब बड़ी बेसब्री से आप को ढूँढ रहे है। का करना है उनका?" एक लड़के ने पूछा।
"ढूँढने दो उन्हें! गोल गोल चक्कर लगा कर वापस वही आ जायेंगे जहाँ से चले है। आज तक तेरे भाई ने अपने पीछे कोई सबूत छोड़ा है जो......! वो तो एक बार गलती हो गयी वरना मेरा सौ फ़ीसदी रिकॉर्ड होता। वो मुझे ढूँढ रहा है न, लेकिन जब मेरा दिल करेगा मै तभी आऊंगा उसके सामने। तबतक उसे अपनी बीवी के साथ खुशी खुशी जीने दो और मुझे ढूँढने दो। जब मुझे ढूंढते ढूंढते थक जायेगा, तब मै अपनी चाल चलूँगा और तेरी भाभी को उठा ले आऊंगा।" लक्ष्य ने कहा।
"ये सही बोला भाई ने !!! उठा कर ले आयेंगे भाभी को.... वो भी मित्तल साहब के नाक के नीचे से.!!! बड़े बेचैन थे वो आज!" दूसरे ने कहा और सभी ठहाके मार कर हँस पड़े लेकिन लक्ष्य ने उस दूसरे लड़के को जोर का एक थप्पड़ मारा जिससे वो कुर्सी से नीचे जा गिरा।
"अबे साले..! मुझे इतना कमीना समझ रखा है जो उसे सारांश के नाक के नीचे से ले आऊँगा। मै तो उसके आँखों के सामने से उठा लाऊंगा और वो कुछ नही कर पायेगा। लेकिन मै सोच रहा हु की क्यों ना मित्तल साहब को ही मजबूर किया जाए की अपने आप ही अवनि को मेरे हवाले कर दे।" लक्ष्य ने कहा और सिगरेट का लंबा कस लेकर हवा मे छोड़ दिया।
क्रमश: