Chapter 129
YHAGK 128
Chapter
128
सुबह रूद्र की आंख खुली, उस वक्त शरण्या उसके सीने से लिपटे सो रही थी। उसने बड़े प्यार से अपनी शरण्या को देखा और उसके माथे को चूम लिया। बहुत ही खूबसूरत सुबह थी जब वो अपनी जिंदगी को अपनी बाहों में देख रहा था। पिछले 8 सालों में वो हर रोज यह सपना देखा करता था, आज जब वह वाकई में उसके सामने था तो उसे यकीन करना मुश्किल हो रहा था। 9 साल.....! पूरे 9 साल हो गए थे उसे अपने प्यार का एहसास हुए। दादी ही तो थी वो जिन्होंने उसे ये अहसास कराया था और वो सुबह भी इतनी ही खूबसूरत थी।
रूद्र हौले से उठा और एक नोट लिखकर वहां से चला गया। घर में सभी सो रहे थे। रूद्र ने हौले से मौली को उठाया और दोनों चुपके से किचन में चले आए। शिखा जी नहा कर पूजा घर की तरफ आई तो होने दोनों बाप बेटी को किचन में खुराफ़ात करते हुए देखा। वो चौक पड़ी और बोली, "ये तुम दोनों बाप बेटी इतनी सुबह क्या कर रहे हो? वो भी किचन में!"
मौली चहकते हुए बोली, "मॉम के लिए और सब के लिए हम नाश्ता बना रहे हैं। आज् किचन से आप लोगों की छुट्टी। आज आप लोग आराम कीजिए, खाना हम बना रहे हैं।"
शिखा जी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई। आज वो रूद्र को पहले की तरह देख रही थी लेकिन फिर भी उसकी आंखों में हल्की उदासी सी थी। शिखा जी समझ गइ, कल शरण्या के साथ जो हुआ उसके बाद रूद्र जितना हो सके उतना शरण्या के साथ वक्त गुजारना चाहता था और उसके लिए बहुत कुछ करना चाहता था। उन्होंने कुछ कहा नहीं और वहां से मंदिर चली गई।
इधर रूद्र और मौली दोनों मिलकर बड़ी खामोशी से किचन का सारा काम निपटाने में लगे थे। सबके डाइनिंग टेबल पर आने से पहले सारा नाश्ता जो तैयार करना था। खाने की खुशबू से पूरा घर महक उठा था। धनराज जी जो अभी उठकर टहलने जा रहे थे उनकी नजर किचन में काम कर रहे दोनों बाप बेटी पर गई तो खुश हो गए। रेहान की जब आंख खुली तब उसने लावण्या को अपने पास नहीं पाया। बाहर आकर वही नजारा उसे भी देखने को मिला तो उसने कहा, "अरे वाह! आज फिर तू नाश्ता बना रहा है? खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है! एक बात तो बता, वहाँ ऑस्ट्रेलिया में तेरे पास नौकरों की कोई कमी तो होगी नहीं, फिर भी तुझे खाना बनाना सीखने की क्या जरूरत थी?"
मौली ने जब रेहान को देखा तो वह वहां से दूर हट गई। वह इतनी सुबह रेहान का चेहरा नहीं देखना चाहती थी। रूद्र ने यह बात नोटिस की लेकिन इस बारे में कुछ कहा नहीं। वह रेहान से बोला, "इंसान को हर काम में परफेक्ट होना चाहिए। परफेक्ट अगर ना भी हो फिर भी उसे हर तरह के काम करना आना चाहिए। मान ले अगर किसी दिन कुक नहीं आया तो क्या तो बाहर से खाना ऑर्डर करेगा? या भूखा रहेगा?"
रेहान को भी यह बात सही लगी तो मौली ने कहा, "डैड....! लेकिन हमारे घर में तो कोई कुक नहीं था! वहां तो सिर्फ हम दोनों रहते थे और कोई नहीं। वैसे भी आपने तो कुकिंग सिर्फ मॉम के लिए सीखी है, है ना?"
रूद्र मुस्कुराया और बोला, "बेटा आप जाकर देख आना, आपकी मॉम उठी है या अभी सो रही है? अगर सो रही हो तो उन्हें जगाना मत, ठीक है?"
मौली ने हां में गर्दन हिलाई और वहां से भाग गई। फिर रूद्र रेहान से बोला, "तू भी जाकर फ्रेश हो आ। तब तक सारा खाना तैयार हो जाएगा। लावण्या को भी बता देना।"
रूद्र जानता था लावण्या उसके हाथ का कुछ नहीं खाएगी। इसके बावजूद भी उसने लावण्या के लिए खास आलू पोस्तो बनाया था। रेहान भी मुस्कुरा कर वहां से चला गया।
लावण्या का बिल्कुल मन नहीं हो रहा था घर जाने का लेकिन फिर भी उसे घर वापस तो आना ही था। जिस रेहान से वो कभी खुद से ज्यादा प्यार करती आज उसी से नफरत हो रही थी। एक ही घर में, एक ही छत के नीचे अब उसे रेहान के साथ नहीं रहना था लेकिन अभी भी यह फैसला लेने में उसे तकलीफ हो रही थी। भारी मन से उसने घर के अंदर कदम रखा। वो वहां से सीधे अपने कमरे में जाना चाहती थी लेकिन मेन हॉल के डाइनिंग टेबल पर जब उसकी नजर गई तो वह कुछ देर के लिए ठहर सी गई।
रूद्र और मौली दोनों मिलकर डाइनिंग टेबल पर प्लेट लगा रहे थे। इसके बाद एक-एक कर रूद्र और मौली नाश्ता टेबल पर लगाने लगे। बीच बीच में मौली रूद्र को डांट दिया करती और रूद्र भी मौली से डांट सुन लेता फिर अपने कान पकड़ लेता। मौली मुस्कुरा देती और अपने पापा के गले लग जाती। दोनों बाप बेटी बहुत खुश थे। लावण्या उन दोनों को देख कर मुस्कुरा दी। फिर अचानक ही उसे रेहान की कही बातें याद हो आई "तूने लावण्या से वादा किया था रूद्र! कि तु उसकी खुशियों पर कोई आंच नहीं आने देगा। यह सारा सच बता कर उससे उसकी सारी खुशियां छिनना चाहता है? वह भी तब जब वह प्रेग्नेंट है!"
लावण्या ने अपनी आंखें मूंद ली और खुद से कहा, "मेरी प्रेगनेंसी कॉम्प्लिकेटेड थी। शरण्या के स्ट्रेस की वजह से डॉक्टर ने मुझे दूसरे बच्चे के लिए मना कर दिया। अगर उस वक्त मुझे रेहान के धोखे का पता चलता तब क्या होता? उस वक्त शायद मैं अपना बच्चा ही खो देती। कैसे कर लिया तुमने रूद्र ये सब? मैंने भी तुम्हें ना जाने क्या कुछ नहीं सुनाया। कैसे तुम सब चुपचाप सह गए! क्यों नहीं कहा कुछ? तुम्हारा भाई इतना बुरा क्यों है? और तुम इतने अच्छे क्यों हो? सबका अच्छा करते करते तुम खुद के और शरण्या के साथ इतना बुरा कर गए जिसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी। लेकिन जो गुनहगार है उसे कभी माफी नहीं मिलनी चाहिए।"
रूद्र और मौली टेबल पर खाना लगा रहे थे, अचानक ही रूद्र की नजर सामने खड़ी लावण्या पर गई जो अपने ख्यालों में गुम थी। रुद्र ने उसे आवास लगाते हुए कहा, "अरे लावण्या! चलो जल्दी से फ्रेश होकर आ जाओ। देखो मैंने सबके लिए नाश्ता बनाया है। उसके बाद बच्चों को लेकर मुझे घुमाने जाना है। आज क्रिसमस है, आई होप तुम्हें याद होगा!"
लावण्या बोली, "हां याद है मुझे! आज के दिन को कैसे भूल सकती हूं! मैं फ्रेश होकर आती हूं।" कहकर लावण्या अपने कमरे में चली गई। रूद्र ने लावण्या की बातों पर ध्यान नही दिया जो उससे आज अच्छे से बात करके गयी।
रेहान पहले ही फ्रेश होकर निकल चुका था। उसने देखा तो लावण्या को अपनी बाहों में भर कर बोला, "हैप्पी क्रिसमस मेरी जान! जल्दी से फ्रेश हो जाओ हमें ऑफिस के लिए भी तो निकलना है।"
लावण्या खुद को रेहान की पकड़ से छुड़ाते हुए बोली, "अब तो नहाना हीं पड़ेगा!" कहकर वह बाथरूम में चली गई। रेहान उसकी बातों का मतलब नहीं समझ पाया और तैयार होकर नीचे चला आया। लावण्या भी कुछ देर बाद तैयार होकर नीचे पहुंची। डायनिंग टेबल पर धनराज जी को छोड़कर सभी आ गए थे और शरण्या भी अभी अपने कमरे में ही थी।
रूद्र ने इतनी देर में पूरा टेबल अलग अलग तरह की डिशेस से भर दिया था। सबके आने के बाद मौली ने कहा, "डैड! आप जाकर मॉम को ले आइए। अभी तक तो नहाकर निकल गई होंगी।"
रूद्र ने नैपकिन में अपना हाथ पोंछा और अपना एप्रिन उतार कर साइड में रखते हुए वह अपने कमरे की तरफ भागा। जैसे ही अपने कमरे में पहुंचा तो देखा शरण्या नहा कर आईने के सामने बैठी हुई थी। उसने वही साड़ी पहनी थी जो रूद्र ने उसके लिए निकाल कर रखा था लेकिन उसके चेहरे पर हल्की उदासी थी। उसके हाथ बार बार उसके बाल को छू रहे थे। कंघी उठाकर भी बाल बनाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
रूद्र ने देखा तो उसके हाथ से कंघी लेकर उसके बाल बनाते हुए बोला, "ऐसे क्या देख रही है? इतना घूर कर देखेगी मेरी बीवी को तो उसे नजर लग जाएगी।"
शरण्या उदास मन से बोली, "अब मैं पहले जैसी खूबसूरत नहीं हूं ना! मेरे बाल कैसे कट गए रूद्र?"
इस बात का जवाब तो रूद्र के पास भी नहीं था। वह क्या कहता उससे! फिर भी मुस्कुरा कर बोला, "बाल ही तो है! घर की खेती है मैडम फिर से बड़ी हो जाएगी। कौन सा तु पैदा होते ही कमर तक बाल लेकर आई थी। इतना मत सोच, वैसे भी मेरी बीवी दुनिया की सबसे खूबसूरत खूबसूरत लड़की है तुझे क्या लगता है, ऐसे ही तुझे पसंद करने लगा था मैं!" कहकर उसने शरण्या का चेहरा ऊपर किया और उसके माथे को चूम लिया।
"मेरा बहुत मन था कि मैं तेरे बाल बनाऊं। लेकिन तूने कभी छूने नहीं दिया। यह सही है, अगर तेरे बाल लंबे होते ना तो मुझसे संभालने मे नहीं होते। लेकिन आज मैं बहुत आसानी से तेरे बाल संवार रहा हूं। मेरे लिए तो बेनिफिट ही है।"
शरण्या को फिर भी तसल्ली नहीं हुई लेकिन उसने रूद्र से आगे कुछ नहीं पूछा। तैयार होने के बाद शरण्या जैसे ही उठने को हुई, रूद्र बोला, "कुछ कमी है!"
शरण्या खुद को आईने में देखते हुए बोली, "क्या कमी है? सब कुछ तो ठीक है!"
ठंड ज्यादा थी तो रूद्र ने उसका सर ढकते हुए कहा,,एक बहुत जरूरी चीज बाकी है!" और उसने अपने अलमारी से एक छोटा सा बॉक्स निकाला फिर उसे शरण्या के सामने आईने के पास रख दिया। शरण्या ने उस बॉक्स को खोलो तो उसमें सिंदूर की डिब्बी और उसका मंगलसूत्र था जिसे देखकर ही उसके चेहरे पर खुशी झलक आई। रूद्र बोला, "मैं जानता हूं तुझे हमारी शादी याद नहीं। लेकिन फिर भी तु अभी भी मेरी बीवी है। लेकिन अगर तुझे वक्त लेना है तो तु ले सकती है, जब तक तुझे याद ना आ जाए।"
आगे रूद्र आपकी बात पूरी करता इससे पहले शरण्या बोल पड़ी, "तेरी बीवी हु ना मैं? तो फिर मुझे तैयार कर और जो कमी है उसे पूरी कर दे।"
शरण्या ने सिंदूर की डिबिया उठाई और उसे खोल कर रख दिया। रूद्र को अच्छा लगा, शरण्या खुद से पहल कर रही थी। रूद्र ने अपनी चुटकी में सिंदूर उठाया और उसकी मांग में सजा दिया। उन दोनों की शादी की वह सारी यादें रूद्र के जहन में जैसे ताजा हो गई, जो उसकी आंखें नम कर गई। शरण्या ने मंगलसूत्र उठाई और एकदम से बोल पड़ी, "यह तो टूट गया था ना?"
रूद्र बोला, "था!! लेकिन मैंने इसे ठीक कर दिया।" और उसे शरण्या को पहना दिया। शरण्या बोली, "कुछ और बता. ना रूद्र! हमारे बारे में बहुत कुछ जानना चाहती हूं मै। हमारा रिश्ता कैसा था? शादी के बाद हमारी लड़ाई हुई या नहीं?मौली कैसे पैदा हुई? कब हुई? हमारी शादी के 1 साल के अंदर या बाद में? हमारी शादी कब हुई थी और हमारी एक ही बच्ची क्यों हैं, दो-तीन क्यो नहीं?"
रूद्र मुस्कुराया और बोला, "इस कमरे में हमारी बहुत सारी याद है। जब तुझसे अपने प्यार का इजहार किया था तो अगले 24 घंटे के अंदर ही हम दोनों ने इसी कमरे में बैठकर हमारे बच्चों के नाम तक सोच लिए थे। अगर लड़की हुई तो बोली और अगर लड़का हुआ तो..........."
"कार्तिक!!!" शरण्या एकदम से बोल पड़ी। रूद्र को एहसास हुआ, शरण्या की यादें टुकड़ों में ही सही लेकिन वापस आ रही थी। शरण्या नीचे जाने के लिए उठ खड़ी हुई तो रूद्र उसे बाहों में भर कर उसके गाल को छूमते हुए कहा, "तू जान है मेरी। अगर तू चाहेगी तो कार्तिक भी आ जाएगा। शरण्या ने शरमा के उसके सीने पर सर रख लिया।