Chapter 67

Chapter 67

YHAGK 66

Chapter

 66






   आश्रम में आए सभी लोग अपना अपना सामान समेटने में लगे हुए थे। धनराज् भी अपना सामान ठीक कर रहे थे और शिखा उनकी मदद कर रही थी। एक बार जाने से रहने वो रूद्र से मिलना चाहते थे। उनकी आंखों में अपने बेटे से बात ना कर पाने की उदासी थी जिसे शिखा जी ने बखूबी समझा। 


    उन्होंने धीरज बंधाते हुए कहा, "हमारा बेटा घर वापस आया है और अब वह कहीं नहीं जाने वाला! ना हीं हम उसे कहीं जाने देंगे। जितना आप उसके लिए तड़प रहे हैं उससे कहीं ज्यादा वह आपके लिए बेचैन है, आपकी डांट सुनने को तरस गया है वह। आप देखना, बहुत जल्द यह दूरियाँ खत्म हो जायेगी। आपसे ज्यादा बेचैन है वह, इसलिए खुद को सारे काम में उलझा रखा है। इस सब में उसकी भी क्या गलती है, उसने तो बस अपने परिवार खुशियां देने की कोशिश की थी। उसे क्या पता था, इतना कुछ हो जाएगा! उसे देखकर तकलीफ होती है। हमारा वह हंसता खेलता बच्चा जिसके चेहरे पर मुस्कान की एक लकीर तक नहीं है। जाने उसकी किस्मत में क्या लिखा है? शरण्या के बारे में उसे सारी सच्चाई तो बता दी मैंने लेकिन वो मानने को तैयार नहीं है।उसने साफ साफ कह दिया है कि वह शरण्या को ढूंढ कर रहेगा। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ सुनने को तैयार ही नहीं। वजह चाहे जो भी हो, हमार बेटा अब हमारे साथ रहेगा और जब तक उसे शरण्या नहीं मिलती वह कहीं नहीं जाएगा, यानी वह हमेशा हमारे पास रहेगा हमारी आंखों के सामने। आज उसे कुछ काम निपटाने है इसलिए वह कल आएगा। आज हमें जाना होगा। आप दिल छोटा मत कीजिए और तैयार हो जाइए।"


     शिखा की बात सुन धनराज बोले, "तुम ठीक हो शिखा! हमारा बेटा अब हमारे पास रहेगा तो शायद वह पहले की तरह हो पाए। कभी कभी लगता है जैसे सब कुछ है सपना सा है। जिसे हमेशा डांटते रहता था उसे इस तरह खामोश देखा नहीं जाता। जानती हो शिखा! जब वह आया था उसने आस भरी नज़र से मेरी तरफ देखा था। वह सारी बातें भूले नहीं भूलता मुझसे। कोई बात नहीं! अब कोई गलती नहीं होगी। अपने बेटे के लिए उसका कमरा मैं खुद तैयार करूँगा। उसके कमरे में किसी को घुसने नहीं दूंगा जैसे वह पहले कभी घुसने नहीं देता था। बेटा जब आएगा तब बात करूंगा मैं उससे।" कहते हुए उन्होंने शिखा का हाथ पकड़ा और बाहर चले आए। 


      रूद्र अपने कमरे में बैठा काम निपटा रहा था। उसकी कोई मीटिंग थी शायद जिसके लिए कुछ फाइल देख रहा था। तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने बिना नज़र उठाएं कहां, "तुझे कब से मेरे कमरे में आने के लिए इजाज़त की जरूरत पड़ गई? तू कल भी मेरा छोटा भाई था और आज की मेरा छोटा भाई है। हमारे बीच कुछ नहीं बदला है, बस थोड़े से हालात बदल गए है और कुछ नहीं। वरना हमारा रिश्ता आज भी वैसा ही है इसलिए ज्यादा फॉर्मेलिटी की जरूरत नहीं।"


     रेहान सधे कदर्मों से अंदर आया और बोला, "तु सच में मेरा बड़ा भाई निकला यार! मैं खुद को साबित करते रह गया और तू हम सबसे आगे निकल गया। तेरे लिए हमारे बीच कुछ नहीं बदला, यह तेरा बड़प्पन है। मैंने जो किया उसके बाद हम सब की जिंदगी बदल गई, खासकर तेरी। तुझे बहुत कुछ सहना पड़ा तुझे। कल रात मैंने तुझे जो कुछ भी कहा बस मेरे अंदर का डर था और कुछ नहीं। मैंने कभी नहीं चाहा कि तू घर छोड़कर जाए। मैंने कभी नहीं सोचा कि तु हम सब से दूर हो जाए। मैं आज भी नहीं चाहता हूं लेकिन उस डर का क्या करूं मैं जिस के साए में मैं जी रहा हूं! लावण्या को खोना मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा। मानता हूं तेरा दर्द सबसे बड़ा है और मैं कभी नहीं समझ सकता लेकिन अपने प्यार को खोकर जो दर्द जो तकलीफ तूने सही, क्या तू चाहेगा कि वो दर्द मैं भी बर्दाश्त करू? तुझ में हिम्मत थी शरण्या से दूर जाने की, लेकिन मेरी हिम्मत नहीं है। लावण्या से दूर होकर मैं नहीं रह पाऊंगा यार! जानता हु मैं सेल्फिश हो रहा हूं लेकिन मुझे होना है। मैं बस यह नहीं चाहता कि गड़े मुर्दे उखाड़े जाए।"


     रूद्र की उंगलियां लैपटॉप के कीबोर्ड पर तेजी से चल रही थी। उसने शांत भाव से कहा, "तु घबरा मत! अगर मुझे ऐसा कुछ करना होता तो मैं यहां से जाता ही नहीं। वही उसी शहर में उसी घर में रह रहा होता। तेरा तो पता नहीं लेकिन मैंने लावण्या से वादा किया था कि उसकी खुशियों को कभी कोई आंच नहीं आने दूंगा और उसी वादे के लिए मैंने हर वह वादा तोड़ दिया जो मेरे जीने के लिए जरूरी था। हर वो सपने तोड़ दिए, हर वह खुशियां छोड़ दी। इसके बावजूद भी तुझे मुझ पर भरोसा नहीं तो बता मैं तेरे लिए ऐसा क्या करूं जो तुझे मुझ पर भरोसा हो!"


   रेहान ने कुछ कहा नहीं और बस सर झुकाए खड़ा रहा। रूद्र लैपटॉप साइड करके उसके पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला, "अपने दिल पर ज्यादा बोझ मत ले। छोटा भाई है तू मेरा, तेरी खुशियों का ख्याल रखना मेरा फर्ज है। वह सब छोड़ो तुम लोगों को आज निकलना है ना, सारी तैयारियां हो गई?"


      रेहान ने कहां, "सारी तैयारियां हो गई है, बस आधे घंटे में हम लोग निकल जाएंगे यहां से। वैसे मां बिल्कुल सही कहती थी! हमें कभी भी सोच समझकर बोलना चाहिए। ना जाने कब हमारी कहीं बातें सच साबित हो जाए और हम ज़िंदगी भर अफसोस करते रहे। ऐसे ही किसी वक्त में मैंने तुझे कहा था कि तेरी लव लाइफ का सबसे बड़ा विलेन मैं बनूंगा, और मैं तुझे बहुत बुरी तरह से रुलाउंगा। और देख! अनजाने में कहीं वह बात सच साबित हो गई। तेरे लिए दिल दुःखता है यार! लेकिन मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। तेरा दर्द कम नहीं कर सकता। हो सके तो मुझे माफ कर देना।"


      रूद्र उसे चपत लगाते हुए बोला, "बहुत बड़ी बड़ी बातें करता है तू, इतनी बड़ी बड़ी बातें ना मेरे दिमाग में नहीं घुसती। इसीलिए यह सब बंद कर और जाकर देख ले मां पापा को कुछ जरूरत है तो बताना........ और हां सुन! घर पहुंच कर दादी के नाम से महादान करवाना है तो अगर तू उसकी तैयारी करवा सके या कुछ हेल्प कर सके तो.......!" रुद्र के मुंह से महादान की बात सुनकर रेहान सोच में पड़ गया। वह बोला, "महादान करवाना जरूरी है क्या? मेरी बात का गलत मतलब मत निकालना! प्रॉब्लम यह है कि पिछले कुछ सालों में काफी कुछ हुआ है जिस वजह से हमारी कंपनी पहले जैसी कंडीशन में नहीं रही। हम इतना अफोर्ड नहीं कर पाएंगे, तु समझ रहा है ना?"


    रुद्र उसकी बात सुनकर हैरान रह गया। "क्या हुआ कंपनी में? और तूने मुझे कभी इस बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? तू अकसर मुझे मेल करता था लेकिन कभी यहां की प्रॉब्लम का जिक्र नहीं किया, ना कभी तूने शरण्या के बारे में बताया, ना यहां के कंडीशन के बारे में! बस तुझे मुझ तक पहुंचना था और कुछ नहीं। हुआ क्या है अब बताएगा भी?" 


     रेहान बोला, "बस यूं समझ लो, हमारी कंपनी बैंकरप्ट होते होते बची है। नेहा के हस्बैंड ईशान.... उसकी इन्वेस्टमेंट की वजह से हमने काफी रिकवर किया है लेकिन अभी भी पहले जैसी कंडीशन में नहीं है हम लोग। इस वक्त काम का बोझ इतना ज्यादा है कि पूछ मत। फिलहाल तो हमारी कंपनी ईशान की कंपनी की सब्सिडियरी कंपनी बन कर रह गई है।"


     रूद्र सोचते हुए बोला, "यानी कि सारी मेहनत तुम लोगों की और सारा मुनाफा उनका!!! ठीक है, कोई बात नहीं! वह सब बाद में देखेंगे, एक काम कर तू रहने दे। महादान की तैयारी मैं खुद अपने लोगों को कहकर करवा लूंगा और तू फिकर मत कर कंपनी का एक पैसा नहीं लगेगा उसमें सारी जिम्मेदारी मेरी होगी और धीरे-धीरे हम दोनों भाई मिलकर हमारी कंपनी को फिर से संभाल लेंगे हमारी कंपनी एक दिन वापस अपने पैरों पर खड़ी होगी।"






     रेहान ने जब सुना तो उसे काफी अच्छा लगा। बचपन से ही वह रूद्र के दिमाग से चीढ़ जाता था। जिस टॉपिक को पढ़ने में उसे काफी दिन लग जाते थे उस टॉपिक को वह सिर्फ एक बार पढ़ कर ही समझ जाता था। रेहान भले ही पढ़ाई में कितना भी अच्छा क्यों ना हो रूद्र के सामने वह हमेशा एवरेज ही होता था। अपने दम पर महादान के आयोजन की बात सुन रेहान से रहा नहीं गया और वह पूछ बैठा, "तू इतने बड़े अमाउंट का इंतजाम कैसे करेगा? तुझे पता भी है इतने कितना खर्चा लगेगा? तेरे पास इतने पैसे कहां से आए? जब तू यहां से गया था तब तूने घर का या कंपनी का किसी भी तरह से एक पैसा नहीं लिया था, तो फिर तेरे पास इतने पैसे आए कहां से? तू करता क्या है?"


        विहान भी उसी वक्त रूद्र के कमरे में दाखिल हुआ। उसके दिमाग में भी यही बातें चल रही थी लेकिन कभी पूछ नहीं पाया। आज जब रेहान ने बात छेड़ ही दी थी तो उसने भी सवाल किया, "हां रूद्र! बता तू करता क्या है? इतने सालों में ना तूने हमारी कोई खोज खबर ली ना अपनी कोई खबर लगने दी, तो फिर तु इतने सालों तक कर क्या रहा था? कहां था तू?"


     रूद्र का पूरा ध्यान अपने लैपटॉप स्क्रीन पर था। उसके हाथ अभी भी कीबोर्ड पर वैसे ही चल रहे थे। उसने आराम से कहा, "वही कर रहा हूं जो कभी करना नहीं चाहता था। मजबूरी इंसान से क्या नहीं करवा देती है यार!"


     रेहान को कुछ समझ नहीं आया लेकिन विहान बोल पड़ा, "तू किसी और की गुलामी करता है? मतलब तू जॉब करता है?" रूद्र ने फिर उसी अंदाज में जवाब दिया, "क्या करूं यार! आर्टिस्ट हूं, आर्टिस कहीं ना कहीं से अपने लिए जुगाड़ कर ही लेता है। हाँ वह जुगाड़ काफी नहीं होता तो क्या किया जाए! किसी और की गुलामी तो करनी पड़ेगी! वैसे मेरी बॉस जो है ना, वह एक नंबर की खडूस है लेकिन दिल की बहुत अच्छी है।" 


     विहान शरारत से बोला, "दिखने में कैसी है? खूबसूरत है क्या?" रूद्र ने तिरछी नजर से उसे देखा और बोला, "मेरी नजर में सिर्फ एक ही लड़की खूबसूरत है और वही हमेशा रहेगी। वैसे तुझे मेरे बॉस में इतना इंटरेस्ट क्यों आ रहा है? बुलाऊ मानसी को?"


      विहान एकदम से घबरा गया और बोला, "अरे नहीं यार! मैं तो मजाक कर रहा था। क्या तू इतनी सी बात पर मानसी को बुलाने की बात कर रहा है? तू अपना काम खत्म कर मैं चलता हूं। नेहा को भी तो जाना होगा वापस। मानसी उसका सामान बांधने में हेल्प कर रही है तो मुझे भी तो मानसी की हेल्प करनी है ना। मानव नेहा के साथ ही चला जाएगा तो मुझे जाना होगा वहां, ठीक है! तू अपना काम खत्म करके आ जा जल्दी से। ठीक है बाय!" कहकर विहान अपने सिर पर पैर रखकर भागा। रेहान भी बिना कुछ बोले उसके पीछे पीछे कमरे से बाहर निकल गया। रूद्र यू ही बैठा अपना काम निपटाने में लगा था। 


      सबके जाने का वक्त हो गया था। ललित रॉय और अनन्या पहले ही वहां से निकल चुके थे, बिना धनराज और शिखा से मिले। वह दोनों समझ गए कि रूद्र के आने की वजह से वह लोग उन दोनों से नाराज है। आखिर होते भी क्यों ना, सच्चाई से अनजान जो कुछ भी शरण्या के साथ हुआ उस सब् का जिम्मेदार रूद्र भी था इसलिए रूद्र को माफ करना उनके लिए नामुमकिन सा था। धनराज और शिखा गाड़ी की ओर बढ़ने लगे तो वहां रूद्र नहीं था। शिखा रूद्र को बुलाने के लिए जाने को हुई तो नेहा ने उन्हें रोकते हुए कहा, "आंटी आप रखिए मैं बुला कर लाती हूं। विहान ने कहा कि वह कुछ जरूरी काम निपटा रहा है।" कहकर वह वहां से निकल गई। 


      रूद्र अभी भी अपने लैपटॉप में लगा था। नेहा को देखते ही उसने अपने लैपटॉप साइड में रखा और उठ खड़ा हुआ। नेहा उसे देख कर मुस्कुराते हुए बोली, "सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। एक बार तुमसे मिलना चाहते हैं तभी वह लोग यहां से जाएंगे।" 


     रूद्र नेहा की बात सुनकर वहां से जैसे ही निकलने को हुआ तो नेहा ने उसे पीछे से टोकते हुए कहा, "एक बात कहूं रूद्र? यह जो खुशबू होती है ना, इन्हें छुपाया नहीं जा सकता। अब अगर कोई कह दे की हवा नहीं है क्योंकि वह दिखता नहीं है तो क्या यह मुमकिन है? नहीं ना......! हवा को हम महसूस करते हैं तभी हम कह सकते हैं कि हवा है। अगर हर चीज आंखों से दिखती तो फिर हमारे एहसास के लिए कोई जगह ही नहीं होता। प्यार भी ऐसा ही एहसास है जिसे आंखों से नहीं देखा जा सकता सिर्फ दिल से महसूस किया जा सकता है। अपने दिल पर भरोसा रखना वो रूद्र, ये आँखें हमेशा धोखा देती है।"






क्रमश: