Chapter 98

Chapter 98

humsafar 98

Chapter

98

     अवनी और सारांश वहां से काफी दूर तो निकल आए थे लेकिन उन लोगों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा था। उनके सामने तीन चार गाड़ियां आकर रुकी तो अवनि ने डरकर सारांश को कस कर पकड़ लिया और बोली,"सारांश! यह सब में शुभ और उसके पिता का हाथ है।" सारांश ने जब सुना तो उसे थोड़ी हैरानी तो हुई लेकिन शायद वह ये बात जानता था क्योंकि अलीशा उसके कैद में थी और शुभ पूरा दिन शराब के नशे में डूबा हुआ था। बस एक वही इंसान था जो उस की कैद से बाहर था। उस दिन मॉल में भी उसके लोगों ने उस आदमी को पकड़ने की कोशिश की थी लेकिन उसे भागने में शुभ ने ही मदद की थी। 

      कुछ लोग उस गाड़ी से उतरे और अपने हाथ में बंदूक लेकर उन दोनों को चारों ओर से घेर लिया। सबसे आखिर में उतरा वह शख्स जिसने यह पूरी साजिश रची थी। सारांश उसे देखते ही पहचान गया, " मुझे पता था! तुम्हारे अलावा यह काम कोई और नहीं कर सकता। तुम बाप बेटे हो एक जैसे। उसे उसके किए की सजा मैं दिलवाकर रहूंगा लेकिन पहले तुम्हारा हिसाब तो कर दू।"

    "मौत तुम्हारे सर पर खड़ी है और तुम मेरा हिसाब करने चले हो। लगता है तुम्हारी आंखें खराब हो गई है जो अपने चारों ओर देख नहीं पा रहे। इस वक्त तुम जहां खड़े हो वहां कोई आता जाता नहीं है। यह एक सुनसान इलाका है अगर मैं तुम्हें यहाँ मार कर फेंक दूं तो किसी को तुम्हारी हड्डियां तक नहीं मिलेंगी", ललित ने मुस्कुरा कर कहा। अवनि पहली बार उस आदमी को अपने सामने देख रही थी जिसके बारे में सिया से इतना कुछ सुना था और जो शुभ का पिता भी था। एक खूबसूरत चेहरा और नीली आँखे। शुभ की आँखे बिलकुल उसके पिता के जैसी थी। 

    

    "अक्सर जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं। रही बात मौत की तो किसे पता काल की नजर कब किस पर पड़ जाए और किसके सिर पर मंडराने लगे। आखिर मौत होती है लेकिन दिखती नहीं। वैसे एक बात बिल्कुल सही कही तुमने, यहां अगर किसी को मार कर फेंक दिया जाए तो उसकी हड्डियां भी नहीं मिलेगी", सारांश बड़े इत्मीनान से खड़ा था लेकिन अवनी का डर से बुरा हाल हो रहा था। उसने सारांश को ललित से प्रोटेक्ट करना चाहा लेकिन सारांश में से एक साइड कर दिया। 

     "हर मां बाप अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं। उसे अच्छे संस्कार देते हैं लेकिन तुमने अपने ही बेटे को अपने साथ जुर्म के दलदल में खींच लिया। उसे भी अपनी तरह मुजरिम बना दिया। तुम्हारे लिए वह तुम्हारा बेटा नहीं सिर्फ हम लोगों से बदला लेने का एक जरिया भर है।" सारांश ने कहा। 

     "तुम्हारा कहना भी सही है लेकिन अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है। अब तुम दोनों मरने के लिए तैयार हो जाओ और मुझे बताओ कि तुम दोनों में से पहले किसको मारू?" ललित नें पूछा। 

      अवनि घबरा गई और वह सारांश के आगे आकर ललित के सामने खड़ी हो गई जिसे देख ललित हंसने लगा, "मैंने सोचा था कि तुम्हें अपने बेटे को गिफ्ट के तौर पर दूंगा लेकिन यहां तो तुम खुद ही मरने को तैयार हो पर क्या इतनी आसान मौत तुम दोनों को देना बनता भी है?", ललित सोचते हुए बोला।। 

     ललित की बात सुन अवनि और ज्यादा घबरा गई और पलट कर सारांश के सीने से जा लगी। सारांश ने भी उसे थाम लिया और ललित से बोला, "मरने वाले की आखिरी इच्छा पूछी जाती है"। जिस पर ललित ने कहा,"तो बताओ अपनी आखिरी ख्वाहिश! तेरे बाप ने तो बताई ही नहीं मुझे। बस मेरे सामने सीना ताने खड़ा रहा बिलकुल वैसे ही जैसे अभी तू खड़ा है। अब जल्दी बताओ मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं है। मुझे और भी बहुत से काम करने हैं।"

     सारांश की घड़ी से एक बीप की आवाज़ आई जिसे सुन वह मुस्कुराने लगा और बोला, "मैंने अपनी नहीं, तुम्हारी आखिरी इच्छा पूछी थी और सच कहा तुमने वक्त नहीं है तुम्हारे पास बिल्कुल भी नही"

    ललित को गुस्सा आ गया और उसने बंदूक सारांश के सिर पर तान दी लेकिन इससे पहले कि वह ट्रिगर दबा पाता, एक गोली हवा की तेज रफ्तार के साथ आई और उसकी खोपड़ी को छेदते हुए दूसरी तरफ निकल गई। कुछ देर तक किसी को कुछ भी समझ नहीं आया कि आखिर उसके मालिक ने गोली क्यों नहीं चलाई लेकिन जैसे ही वह जमीन पर गिर कर ढेर हुआ बाकी सभी घबराकर पीछे हट गए और इधर-उधर देखने लगे। वहां चारों ओर खाली मैदान था जिसमे किसी का छुपना नामुमकिन था। वहां जो भी बिल्डिंग थी वह भी 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही आती थी तो फिर गोली चलाई किसने और कहां से? जब चारों और देखने के बाद भी किसी को कुछ नहीं मिला तो उनमें से एक ने सारांश के ऊपर गन तान दी लेकिन इससे पहले कि वह भी गोली चला पाता एक गोली आकर उसके सिर में जा घुसी और वह भी ललित की तरह ही वहीं ढेर हो गया। 

      यह सब देख वहां खड़े बाकी के लोग घबरा गए और डर कर अपनी जान बचाते हुए भाग खड़े हुए। अवनि अभी तक आंखें बंद किए हुए सारांश के सीने से चिपकी हुई थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह आंखें खोल कर अपने आसपास के नजारे को देख सकें लेकिन जैसे ही उसकी कानों में गाड़ियों के जाने की आवाज़ पड़ी, उसने आंखें खोली और सिर उठाकर सारांश की ओर देखा। सारांश उसे ही देख कर मुस्कुराए जा रहा था। उसने अपने चारों ओर देखा तो वहां सिर्फ दो लाशें पड़ी हुई थी और बाकी सब वहां से भाग चुके थे। अब अवनी ने सवालिया नजरों से सारांश को देखा तो सारांश ने शरारत से कहा, "ऐसे मत देखा करो मुझे वाइफी! वरना मुझसे प्यार हो जाएगा........फिर से"

     अवनि अभी भी काफी बुरी तरह से डरी हुई थी। ऊपर से सारांश का यु मजाक करना उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उसने एक मुक्का सारांश के पेट में दे मारा। इतना कुछ होने के बाद भी सारांश के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं थी और अवनि की समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर इन दोनों को मारा किसने। अगले दस मिनट में उन दोनों के पास एक सफेद रंग की गाड़ी काफी तेज रफ्तार मे आकर रुकी। अवनि को लगा शायद वह लोग फिर से वापस आ गए तो उसने डर से एक बार फिर सारांश को हग कर लिया। 

     "तुम दोनों का रोमांस खत्म हो गया हो तो घर चले", गाड़ी में बैठे उस शख्स ने बिना गाड़ी से उतरे हुए कहा। अवनी ने सुना तो उसे समझ में आ गया कि यह उन आदमियों में से नहीं है जिन्होंने उन पर हमला करने की कोशिश की थी और शायद यह वही है जिसने ललित को गोली मारी थी क्योंकि इस वक्त उन तीनों के अलावा वहां पर कोई और मौजूद नहीं था। अवनी ने सारांश की ओर देखा जो उसी शख्स की ओर मुस्कुरा कर देख रहा था। 

      अवनी ने उस शख्स की ओर देखा, दूधिया रंग तीखी नाक गहरी आँखें सुर्ख होंठ। ब्लू शर्ट सफेद कोट में वह किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था लेकिन उसका चेहरा अवनी को काफी जाना पहचाना सा लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा कि आखिर उसने इस शख्स को पहले कहां देखा है। अवनी ने एक बार फिर सारांश की ओर देखा और फिर उस शख्स की ओर जो गाड़ी में बैठा था और फिर अचानक है उसके मुंह से निकला "सिद्धार्थ भैया!!!"

    सारांश ने भी मुस्कुराकर हाँ में अपनी गर्दन हिला दी, "भाई की फ्लाइट आज अर्ली मॉर्निंग ही लैंड हुई। जैसे ही उन्हें पता चला कि तुम किडनैप हो गई हो और हमें कहीं से कोई सुराग नहीं मिल रहा, वह फौरन वापस आ गए।अभी तक वह घर भी नहीं गए। मुझे पता था जैसे ही तुम्हें होस आएगा, तुम जरूर मुझ तक कोई ना कोई सिग्नल जरूर भेजोगी इसीलिए अपने बैकअप के तौर पर मैंने भाई को यहां बुलाया था। मैं किसी और पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं कर सकता था। भाई एक बहुत ही अच्छे शार्प शूटर है और मेरे फेवरेट बॉडीगार्ड भी।"

     सिद्धार्थ गाड़ी से उतरा और बोला, "मैं तेरा बॉडीगार्ड हूं!!! और तूने बुलाया मुझे! वो तो मॉम ने बताया कि कोई छोटे बच्चे की तरह रो रहा है तो मुझे थोड़ी दया आ गई और मैं चला आया। अब घर चलो, सारी बातें यहीं करनी है क्या? वैसे भी छोटे बच्चों को ऐसी जगह पर ज्यादा देर रुकना नहीं चाहिए। ऐसी जगह बच्चों के लिए सेफ नहीं होती है, चलो! जल्दी घर चलो!"

     सिद्धार्थ की बात सुन सारांश के चेहरे के भाव बदल गए। वह बोला, "भाई मैं बच्चा नहीं हूं, अब हम बड़े हो गए हैं। नहीं......! मैं बड़ा हो गया हूं और आप बुड्ढे हो गए।"

   सारांश की बात सुन सिद्धार्थ ने उसे घूर कर देखा तो वह अवनी के पीछे जाकर छूप गया और बोला, "सारी बातें यही करेंगे क्या भाई!!! घर चलते हैं ना मुझे बहुत भूख लग रही है। पता है पिछले दो दिनों से कुछ खाया भी नहीं है", कहकर सारांश ने अवनि का हाथ पकड़ा और जल्दी से गाड़ी में बैठ गया और ड्राइव करके तेजी से वहां से भगा  जैसे किसी भूत से पीछा छुड़ाना हो। अवनि सारांश की यह हरकत देख हंसे बिना ना रह पाई। 

     कंचन की अवनि से पिछले दो दिनों से कोई बात नही हो पाई थी। उसने काव्या से पूछा लेकिन हर बार की तरह फिर से उसने बात टालनी चाहि लेकिन कंचन को शक होने लगा था। आखिर जब काव्या के पास और कोई रास्ता नज़र नही आया तब हार कर उसे सब सच बताना ही पड़ा। अवनि की गुमशुदगी की खबर से दोनों ही बेचैन हो उठे लेकिन उन्हे सारांश पर पूरा भरोसा था। 

      अवनि और सारांश जब मित्तल मेंशन पहुंचे तब कंचन और अखिल भी वहां मौजूद थे और सभी घरवाले उसके लिए परेशान हो रहे थे। सारांश भी बिना कुछ बताए वहां से बाहर निकल गया था जिससे सभी और भी ज्यादा परेशान हो रहे। जब उन दोनों पर घरवालों की नजर पड़ी तब जाकर सबकी जान में जान आई। सिया ने उन दोनों को वही दरवाजे पर रोक दिया और जानकी से आरती की थाली मंगवाई। सिया ने उन दोनों की नजर उतारी और जानकी ने उनकी आरती, फिर उन दोनों को अंदर आने को कहा। 

       "भगवान का शुक्र है की तुम दोनों ही ठीक हो। सारांश तुम हमें बिना कुछ बताए चले गए। तुम्हें पता है हम लोग कितना घबरा गए थे और फिर तुम्हें पता कैसे चला कि अवनी कहां है? इस बात की खबर तो अभी तक कमिश्नर साहब ने भी मुझे नहीं दिया।" सिया ने पूछा तो सबके साथ साथ अवनि के भी दिमाग में यह सवाल था की आखिर इस पेरिडॉट का क्या राज है और इसके दबाने के कुछ देर बाद ही सारांश ने उसे ढूंढ कैसे लिया? 

       सारांश ने अवनी की आंखों में उठे सवाल पढ़ लिया और उसने कहा, "अवनि के गले में मंगलसूत्र के साथ जो हरा पेंडेंट है, यह कोई मामूली पेंडेंट नहीं है। यह एस्ट्रॉयड है। मैं हमेशा से यह अवनि के लिए लेना चाहता था लेकिन यह सिर्फ एक एस्ट्रॉयड ना होकर कुछ और भी है। इसके अंदर एक छोटा सा चिप लगा हुआ है जिसे दबाने से यह एक्टिव हो जाता है, यह बात मैंने अवनी को बताई थी। मैंने उसे सिर्फ इतना समझाया था कि जब भी वह किसी तरह की कोई प्रॉब्लम मैं हो और वह मुझ तक ना पहुंच पाए तब वह बस इतना करे कि जितनी जोर से हो सके इस पेंडेंट को दबा दें, मुझे उसका लोकेशन मिल जाएगा। इसके बारे में सारी बातें अभी तक अवनि को पता थी। अवनि मेरी नजरों से दूर होकर भी वह मेरे पहुँच से बाहर ना हो इसीलिए मैं ने ये सब किया, सिर्फ उसकी सेफ्टी के लिए।"

    सारांश की बात सुन सिया,कार्तिक और अवनि के अलावा सभी चौंक गए। सब की नज़र अवनि के गले मे उस पेंडेंट पर गयी। कंचन को नानु की बात याद आ गयी जब उन्होंने कहा था कि जो भी अवनि के लिए बना है वो उसके कदमों मे टूटते तारे को भी रख देगा। कंचन की आँखे भर आई जिसे उसने सब से छुपा लिया। 

      "लेकिन यह सब किया किसने था? इस सब के पीछे किसका हाथ था?", सिया पूछे बिना ना रह पाई तो सारांश ने कहा, "वही जो अब तक हमारे सारे दुखों का कारण रहा है और जो अब इस दुनिया से जा चुका है। अब उसका चैप्टर क्लोज हो चुका है हमारी लाइफ से हमेशा के लिए।"

      सिया ने जब सुना तब उसके आश्चर्य की कोई सीमा ना रही। उसने कहां, "तो अब वह एक बार फिर से सामने से वार कर रहा था, लेकिन उसे मारा किसने?"

    "वो सब छोड़िये मॉम! आपकी बहू के किस्से सुनिये! क्या किया और कैसे बच कर निकली वहाँ से? मै जब तक वहाँ पहुँचा उस वक़्त ये वहाँ से भाग कर निकल चुकी थी। थोड़ी से देरी और मै इन्हें मिस् कर जाता।" सारांश के कहने पर सब ने अवनि को देखा तो अवनि ने भी एक एक बात सब को बता दी जिसे सुन सारांश को हँसी आ गयी। 

     "हमारी अवनि कब से इतनी बहादुर हो गयी? चार चार गुंडों को चकमा दे आई!!!" कार्तिक ने गर्व से कहा तो सारांश ने उसकी बात को बीच मे काटते हुए कहा, "और एक को गोली भी मार दी ये नही बताया!"

     "लेकिन अब हम लोग क्या करेंगे? वहां दो लोगों का मर्डर हुआ है। पुलिस को उनकी बॉडी मिल जाएगी और वह इन्वेस्टिगेशन करते हुए हम तक पहुंच जाएंगे सारांश!", अवनी ने घबराते हुए कहा। 

      "डोंट वरी! तुम इतनी चिंता क्यों करती हो। यह जो भी हुआ है वह भाई ने किया है। अगर कुछ होगा तो भाई जेल जाएंगे हम नहीं। सो रिलैक्स एंड चिल्", सारांश ने कहा। 

     "अच्छा......! तो जो किया मैंने किया और फसूंगा भी मैं। तुम बिल्कुल साफ बचकर निकल जाओगे इस सब से! एक बात जान लो, अगर मैं फसा तो मैं तुम्हें भी नहीं छोड़ने वाला",कहते हुए सिद्धार्थ अंदर आया। उन के पीछे पीछे सिद्धार्थ का बेटा समर्थ भी घर के अंदर आ गया। समर्थ को देखते ही सिया खुशी से खिल गई और अपनी बाहें फैला ली। समर्थ भी भागते हुए अपने दादी के गले से लगा। 

    जानकी सिद्धार्थ को देख कर चौक गई, उसने कहा, "अरे सिद्धार्थ बेटा! तुम ने तो कहा था कि तुम इस साल नहीं आ पाओगे, लेकिन ऐसे अचानक!"

    "आप लोगों को सच में लगा कि मैं नहीं आऊंगा! ऐसा कभी हो सकता है कि अपने पूर्वजों का श्राद्ध हो और मैं ना आऊं! यही एक मौका होता है जब मैं यहां आता हूं अपने परिवार के पास और पंडित जी भी तो यही कहते हैं ना कि यह हक घर के बड़े बेटे का होता है। तो फिर मैं इसे कैसे मिस कर सकता हूं", सिद्धार्थ ने कहा, "और अवनि! आप परेशान ना हो। अब तक वहाँ से सारे सबूत मिटा दिए गए होंगे। वैसे भी वो सारे लोग भागे हुए क्रिमिनल्स थे। पुलिस उनकी तलाश कर रही थी। कुछ नही होगा आप चिल् करो।"

     सिया ने सिद्धार्थ को कंचन और अखिल से मिलवाया तो सिद्धार्थ ने तुरंत ही उन दोनों के पैर छु लिए। कुछ देर बाद कंचन और अखिल सबसे विदा लेकर अपने घर को चले गए। घर के बच्चे घर वापस लौट आए थे जिसे देख सब ने चैन की सांस ली। अवनी सारांश और सिद्धार्थ तीनों फ्रेश होने अपने अपने कमरे में चले गए। 


क्रमश: