Chapter 122

Chapter 122

YHAGK 121

Chapter

121








 शरण्या की पूरी रात बेचैनी में कुछ गुजरी। उसे यह सोचकर ही तकलीफ हो रही थी कि रूद्र की शादी हो चुकी थी और रूद्र अपनी बीवी से बहुत प्यार करता था। रूद्र उसे थोड़ा सा परेशान करना चाहता था इसलिए उसने खुलकर कुछ नहीं कहा। जिंदगी से बस कुछ लम्हे वह चुरा लेना चाहता था। अपनी शरण्या के साथ वापस पहले की तरह रहना चाहता था। उसे अच्छे से पता था कि सच्चाई जानने के बाद उसका और शरण्या का रिश्ता पहले की तरह बिल्कुल भी नहीं रह जाएगा।


      शरण्या उसे क्या सजा देगी यह तो फिलहाल खुद शरण्या भी नहीं जानती थी लेकिन रूद्र हर सजा के लिए तैयार था, बस अब अपनी शरण्या से दूर नहीं जाना चाहता था। उसके पास रहकर अपने गुनाहों की माफी मांगना चाहता था और एक बार फिर उसका हाथ थाम कर पूरी जिंदगी चलना चाहता था। वक्त किस ओर करवट लेने वाला था ये कोई नहीं जानता था। 


     रात में शरण्या ठीक से सो नहीं पाई थी। वही रूद्र भी सोफे पर कंबल की ओट से शरण्या को ही देख रहा था। नींद दोनों की आंखों में नहीं थी और दोनों ही सोने का नाटक कर रहे थे। शरण्या बेचैन थी कि कल उसे रूद्र की बीवी से सामना करना होगा। ना जाने उन दोनों के रिश्ते अभी तक कैसे थे? जब वह रूद्र की बीवी को देखेगी तब किस तरह से रिएक्ट करेगी यह बात वह खुद नहीं जानती थी! 


    सुबह 5:00 बजे का अलार्म बजा। रूद्र ने उसे ऑफ कर दिया। शरण्या की अभी-अभी आग लगी थी लेकिन रूद्र की तो सुबह हो चुकी थी। वह हौले से उठा और शरण्या के माथे को चूम कर बाहर चला गया। तकरीबन एक घंटे बाद वह वापस लौटा तो उसके हाथ में ताजे फूल थे। यह रूद्र का पिछले कुछ दिनों से रोज का नियम हो गया था। हर सुबह शरण्या की आंख खुलती और अपने सामने ताजे फूल देखती जिससे उसके चेहरे पर मुस्कुराहट दिनभर बनी रहती। 


       रूद्र जानता था कि उसकी बीवी का नाम सुनकर ही शरण्या थोड़ी अपसेट होगी। लेकिन वह अभी उसे सच बताना भी नहीं चाहता था। आज भी जब शरण्या की आंख खुली तब उसने सबसे पहले अपने सामने फूल लिए रूद्र को खड़ा देखा। रूद्र ने उसे प्यार से गुड मॉर्निंग विश किया तो शरण्या मुस्कुराते हुए उठी लेकिन एकदम से उसे याद आया कि आज उसे घर जाना है और घर जाने का मतलब है रूद्र की बीवी से सामना! सोच कर ही उसका मूड खराब हो गया। 


      रूद्र ने उसका उतरा हुआ चेहरा देखा तो पूछा, "क्या हुआ? तुझे किस बात की टेंशन है? दूसरों को टेंशन देने वाली खुद मुंह लटका कर क्यों बैठी है?"


    शरण्या ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया तो रूद्र उसके पास आकर बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ में लिया। शरण्या को उसका अपनापन अच्छा लग रहा था लेकिन फिर कुछ सोच कर ही उसने अपने मन से सारे ख्याल झटक दिया और बोली, "शायद मैं अपने लाइफ के पिछले 10 साल भूल गई हूं! मैं जानती हूं मेरे साथ कुछ तो हुआ है लेकिन पहले मुझे यह जानना है इन 10 सालों में सब की लाइफ में क्या हुआ? मेरी लाइफ में क्या हुआ? कौन कहां है? क्या कर रहा है? घर के हालात कैसे हैं? यह सब जाना मेरे लिए बहुत जरूरी है रूद्र! आज घर जा रही हूं। कहीं ऐसा ना हो कि मैं सबके बीच होकर भी एकदम लॉस्ट फील करूं!"


    शरण्या की बातें सुनकर रुद्र मुस्कुरा दिया। ना सिर्फ मौली शरण्या जैसी थी बल्कि शरण्या भी मौली की ही तरह ही बातें करती थी। उसने भी तो कुछ ऐसा ही सवाल किया था। उसे मुस्कुराते देख शरण्या बोली, "ऐसे मुस्कुरा क्यों रहा है? मुझे प्लीज बता ना! कब क्या हुआ? अच्छा ठीक है, अगर नहीं बता सकता मुझे मेरे बारे में ही बता दे! मेरे साथ क्या हुआ और मैं 10 साल पीछे कैसे चली गई? तू मेरी कंडीशन नहीं समझ रहा। तू खुद सोच, एक रात तू सोए और जब उठे तब तेरी बेटी की शादी हो रही हो!"


     रूद्र की हंसी छूट गई। उसने कहा, "मैंने तुझे समझाया था ना, अपने दिमाग पर इतना प्रेशर मत ले वरना तेरे घुटनों में दर्द हो जाएगा और सर फट जाएगा। कुछ नहीं बदला है, सब कुछ वैसा ही है जैसा तू चाहती थी। तेरी मॉम तेरा इंतजार कर रही है। बहुत बेसब्र है वह तुझे अपने घर देखने के लिए।"


     शरण्या फिके मुस्कान के साथ बोली, "मेरी मॉम को मेरी जरूरत कभी नहीं थी। मैं मान ही नहीं सकती कि वह मेरे स्वागत में नजरे बिछाए बैठी होगी। कभी-कभी लगता है मैं उनकी बेटी ही नहीं हूं।"


    रूद्र उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "तु चिंता क्यों कर रही है! तुझे वह घर कैद लगता है ना? ठीक है, मैं तेरी मम्मी को बोल देता हूं कि वह लोग हमारे घर आ जाएंगे और तू हमारे घर चल, वही रहना। मां तुझे बहुत प्यार करती है। उनके साथ रहने में तो तुझे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी!"


     शरण्या एकदम से चौंक पड़ी। उस घर में तो वह और नहीं जाना चाहती थी। अगर बात सिर्फ रूद्र की होती तो उसे कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन.........! शरण्या ने कहा, "मैं वहां नहीं जा सकती! वो तेरा घर है और मैं किस हक से जाऊं वहाँ? अगर गई भी तो ज्यादा से ज्यादा दो चार दिन, उससे ज्यादा तो नहीं रह सकती ना मैं!"


    रूद्र बोला, "ठीक है! मैं तुझे तेरे घर ले चलता हूं, तेरा अपना घर!"


     शरण्या बुरी तरह से चौक पड़ी! उसका कौन सा घर था जहां ले जाने के बाद रूद्र कर रहा था? शरण्या ने पूछा भी लेकिन रूद्र ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और वहां से बाहर चला गया। बाहर आकर रूद्र डॉक्टर के साथ उसके सारे पेपर्स तैयार करवा रहा था ताकि उसे जल्द से जल्द घर ले जा सके। सब कुछ जल्दी करते हुए भी शरण्या को डिस्चार्ज मिलने में दोपहर हो गई। 


     इस बीच शरण्या बुरी तरह से परेशान थी और रूद्र की बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी। सोचते सोचते उसके सर में बुरी तरह से दर्द हो गया। वह कुछ देर आराम करने के लिए लेटी और थोड़ी देर में ही उसकी आंख लग गई। उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था जो कि सपना बनकर हल्की धुंधली तस्वीर उसे नजर आ रही थी। जब उसने और रुद्र ने शादी की थी, वह पल किसी परछाई की तरह उसे सपने में नजर आ रहे थे और शरण्या उन दोनों को पहचानने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह धुंधली तस्वीरें साफ नहीं हो पा रही थी। 


    रूद्र जब सारे पेपर तैयार करके शरण्या को लेने आया, उस वक्त शरण्या सोई हुई थी। लेकिन उसके माथे पर पसीने की बूंदें देखकर रूद्र परेशान हो उठा और उसका सर सहलाते हुए बोला, "शरु! शरु!!"


    घबराकर शरण्या ने आंखें खोल दी। उसने अपने सामने रूद्र को पाया तो वह एकदम से रूद्र से लिपट गई। रूद्र ने बड़े प्यार से उसकी पीठ सहलाई और बोला, "सपना देख रही थी? कोई बात नहीं! अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत दे। धीरे-धीरे तुझे सब याद आ जाएगा। तेरे सर पर कोई चोट नहीं लगी है जो तेरी याददाश्त गुम हो गई। बस तु बहुत दिनों से सोई हुई थी ना, इसलिए तेरा दिमाग खाली हो गया है। अब इसमें कचरा भरने में थोड़ा टाइम तो लगेगा ना!"


    शरण्या ने सुना और एक मुक्का उसने रुद्र की पीठ पर जमा दिया। 




     रूद्र ने शरण्या का सारा सामान गाड़ी में डाला और उसे गोद में उठाते हुए बाहर तक लेकर आया। शरण्या उसकी गोद से उतरना चाहती थी लेकिन रूद्र ने जबरदस्ती उसे थामें रखा और उतरने नहीं दिया। शरण्या समझ गई कि रूद्र के आगे उसकी एक नहीं चलने वाली तो उसने रूद्र के कंधे पर अपना सर टिका दिया और आंखें मूंद ली। वह समझ नहीं पा रही थी अपने और रूद्र के बीच के रिश्ते को। रूद्र शादीशुदा था और उसकी एक बेटी थी, इसके बावजूद वह शरण्या का जिस तरह से ख्याल रख रहा था यह तो खुद शरण्या की समझ के बाहर था। 


    कई सारे सवाल थे उसके मन में जिनके जवाब जानना चाहती थी लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह रूद्र से कुछ भी पूछे। और जो सवाल उसने किए भी थे रूद्र ने बड़ी सफाई से उन सारे सवालों को टाल दिया था। शरण्या ने हिम्मत करके पूछा, "हम कहाँ जा रहे हैं? तु मुझे कहां ले कर जा रहा है?"


      रूद्र बोला, "तेरा अपना घर है और हम वहीं जा रहे हैं। जहाँ तुझे प्यार करने वाले बहुत सारे लोग हैं। तुझ पर कोई गुस्सा नहीं करेगा, कोई डांटेगा नहीं। तू जिस पर चाहे धौंस जमा सकती है। कहा ना मैंने तुझे; इतना परेशान मत हो और आराम से चल जहाँ भी मै लेकर जा रहा हूं। इतना भरोसा तो तु मुझ पर कर ही सकती है!"


     शरण्या बोली, "भरोसा और तुझ पर!! बिल्कुल भी नहीं। वैसे एक बात पूछूं?"


     रूद्र बोला, "हां बिल्कुल! एक नहीं सौ बात पूछ लेकिन जो जरूरी होगा मैं बस उसी का जवाब दूंगा। तेरे हर सवाल का जवाब दू यह जरूरी तो नहीं।"


     शरण्या ने फिर एक मुक्का उसकी पीठ पर जमाते हुए कहा, "कभी तो सीधे तरीके से जवाब दे दिया कर! अच्छा छोड ये सब और मुझे यह बता, तेरी बीवी के साथ मेरे रिश्ते कैसे हैं? मतलब हम दोस्त है या फिर जिस तरह तेरे साथ मेरी लड़ाई होती है, वैसे ही उसके साथ भी कुछ........! मेरा मतलब जिस तरह मैं तेरे साथ लड़ती हूं, हो सकता है उसे देखकर वो नाराज हो जाती हो और...........!"


     रूद्र समझ गया। उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और शरण्या को आराम से बिठाकर सीट बेल्ट लगा दिया। उसे मन ही मन हंसी आ रही थी फिर भी उसे शांत होकर कहा, "तेरा और मेरी बीवी का रिश्ता बहुत खास है। बहुत प्यार करते हो तुम दोनों एक दूसरे से। मेरी शादी के पीछे सबसे बड़ा हाथ तेरा है। तेरी जिद् की वजह से हमारी शादी हो गई। तूने तो सुसाइड की धमकी दे दी थी। डर के मारे आखिर मुझे शादी के लिए हां करना ही पड़ा था। यह तो तेरे दिमाग का फितूर था जो मेरी शादी हो गई वरना नहीं हुई होती। अभी तक मैं कुँवारा होता और सोच रहा होता कि मैं घर वालों को कैसे बताऊं? वैसे सारे घर वाले तैयार थे हमारे रिश्ते के लिए, इसके बावजूद हमने मंदिर में शादी कर ली। लेकिन अभी भी मुझे मेरी ग्रैंड वेडिंग का इंतजार है याद है मैंने तुझे बताया था?"


     शरण्या ने ना में सर हिला दिया। रूद्र ने जो भी उसे बताया था वह सब उसकी समझ से बाहर था। आखिर वह रूद्र के साथ ही जबरदस्ती क्यों करवाना चाहेगी, जबकि वह खुद रूद्र से प्यार करती है और यह ग्रैंड वेडिंग का क्या चक्कर है? और शरण्या तु जिस इंसान से प्यार करती है उसकी शादी किसी और से करवा दी? ऐसा कौन है जिसे तू इतना प्यार करती है? कहीं लावी दी या नेहा तो नहीं? इन दोनों के अलावा और कौन हो सकता मेरी लाइफ में जिन से मैं प्यार करती हूं? लेकिन मैं उन दोनों की शादी इस गधे से क्यों करवाना चाहूंगी? मैं खुद क्यों ना करूं! आ.....ह! मेरे कुछ समझ नहीं आ रहा।"


     रूद्र ने उसके चेहरे के भाव देखा और समझ गया कि इस वक्त उसके दिमाग में क्या चल रहा है! उसने अपनी उंगलियों से शरण्या की सिकुड़ी हुई भवों को ठीक करते हुए कहा, "कितना सोचती है तू! दिमाग पर एक ही बार इतना प्रेशर पड़ेगा ना तो तेरे घुटने फट जाएंगे। अपना कुशन पकड़ और आराम से बैठी रह।" कहते हुए रूद्र ने एक कुशन शरण्या के हाथ में पकड़ा दिया। 


      शरण्या को थोड़ा अजीब लगा। उस कुशन को देखकर उसे कुछ याद आ रहा था लेकिन क्या? ऐसे बच्चों वाली हरकतें तो वह कभी नहीं करती थी। हां यह कुशन उसे जाना पहचाना लग रहा था और प्यारा भी। लेकिन रूद्र इतना कुछ कैसे जानता है? क्या मैं उसके साथ इतनी ओपन थी जो उसे मेरे मन की बातें पता है?" 


    रूद्र गाड़ी चलाते हुए बोला, "तेरे लिए सारा खाना मैंने हॉस्पिटल से पैक करवाया है। तुझे अगर भूख लगे तो मैं गाड़ी नहीं रोकने वाला और बाहर का तो बिल्कुल भी नहीं खाना है तुझे। हम अगले एक घंटे में घर पहुंच जाएंगे।"


    शरण्या को यह बात और भी अजीब लगी। सफ़र करते समय शरण्या को बहुत ज्यादा भूख लगती थी। इसीलिए कभी अपने घर वालों के साथ सफर पर नहीं निकलती थी। वरना अपनी मां से उसे सिर्फ डांट ही मिलनी थी। रूद्र को उसकी हर छोटी-छोटी आदतों के बारे में पता था। वह सारी आदतें जो उसने कभी किसी के सामने जाहिर नहीं की थी। शरण्या सोचना तो चाहती थी लेकिन अपनी आंखें मूंद कर उसने अपने कुशन को बाहों में भरा और पीछे सीट पर सर टिका दिया।