Chapter 152

Chapter 152

YHAGK 151

Chapter

 151








 आज लोहड़ी की धूम थी और सभी उसकी तैयारियों में लगे हुए थे। शिखा जी ने इस बार बड़े शौक से लोहड़ी की पूजा अपने घर पर रखवाई थी और मिस्टर रॉय को भी पूरे परिवार के साथ वहीं पर आने को कहा। जब बात किसी एक परिवार की हो तो दूसरे परिवार का होना भी जाहिर सी बात थी। क्योंकि दोनों ही परिवार अब अलग नहीं थे। दोनों घरों के बच्चे आपस में इस कदर एक दूसरे से जुड़ चुके थे। 


    शिखा जी की जो चाहत थी वह तो पूरी हो चुकी थी। उनके दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी और वह भी उन्हीं दोनों लड़कियों से जिनसे वह चाहती थी। रॉय और सिंघानिया के बीच की दोस्ती अब पूरी तरह से रिश्तेदारी में बदल चुकी थी। मिस्टर रॉय के मन में रूद्र को लेकर जो भी शिकायतें थी वह सब किसी कोने में दब सी गई थी। शरण्या की खुशी के लिए मिस्टर रॉय ने उसका और रूद्र का रिश्ता अपना लिया था। लेकिन अभी भी उनके मन में कहीं न कहीं मौली का होना खटकता था। शरण्या के लिए रूद्र का प्यार जगजाहिर था। ऐसे में मौली को लेकर रूद्र से थोड़ी शिकायत तो हर उस शख्स के मन में थी जिन्हें मौली की असलियत नहीं पता थी। 


    शाम को रूद्र ने अपने लिए सुर्ख लाल रंग का कुर्ता और सफेद पजामा निकाला। वो बाथरूम से फ्रेश होकर आया, कपड़े बदले और आईने के सामने खड़ा होकर अपने बाल बनाने लगा। तभी उसका फोन बजा। देखा तो शरण्या का फोन था। उसका नंबर देखते ही रूद्र के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई लेकिन अपने चेहरे की खुशी छुपाते हुए नॉर्मल होकर उसनें फोन उठाया और बोला, "तुम तैयार हो गई? कब तक आ रही हो?"


    शरण्या बड़े रोमांटिक अंदाज में बोली, "तुम मेरा इंतजार कर रहे हो? अच्छा है! थोड़ा तैयार होने में मैं भी टाइम लूंगी!"


    रूद्र बिस्तर पर बैठते हुए बोला, "ज्यादा टाइम लेकर करना क्या है? कौन सा फर्क पड़ना है? जब मुझे ही देखना है तो फिर क्या जरूरत है ज्यादा तामझाम करने की? जैसे भी है, अच्छी लग रही है तू! अब जल्दी से आजा!"


     शरण्या मुंह बिचका कर बोली, "सिर्फ अकेला तू नहीं होगा वहां! बाकी सब भी होंगे। वह सब भी तो मुझे देखेंगे। मुझे उन लोगों के लिए भी तैयार होकर आना है।"


     रूद्र चिढ़कर बोला, "ओ हेलो!!!! किसे दिखाना है? कोई नहीं देखने वाला तुझे! और अगर किसी ने देखा ना तो उसके टोटे टोटे कर देना मैंने! तू आ जल्दी, फिर घरवालों से हमारे रिश्ते की बात करनी है। वैसे मैं क्या सोच रहा था, अब से 1 महीने बाद हमारी शादी की सालगिरह है तो क्यों ना उसी दिन फिर से शादी कर लिया जाए? साल में दो बार एनिवर्सरी मनाने से बच जाएंगे और खर्चा भी बच जाएगा।"


     शरण्या ने सर पर हाथ रखा और बोली, "कंजूस कहीं का....! तू कब से पैसों के बारे में सोचने लगा? पक्का बनिया लग रहा है तू! क्या हो जाएगा अगर हम साल में दो बार एनिवर्सरी मना लेंगे तो? एक महीने बाद हमारी एनिवर्सरी है और 1 महीने मैं तेरे बिना नहीं रह सकती! मुझे तेरे पास आना है, तेरे साथ रहना है। मैं कुछ नहीं जानती, तू कल के कल मुझे लेने आ रहा है बस! मुहूर्त हो या ना हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"


     रूद्र मुस्कुरा कर बोला, "फिलहाल तुझे यहां आना है, याद है ना? बातें करने के चक्कर में यह मत भूल जाना की शादी के बाद यह हमारी पहली लोहड़ी है और हमारा साथ में यह दूसरा। अब फोन रख और मुझे तैयार होने दे। मुझे भी तो कई सारी लड़कियां देखेंगे ना!"


     शरण्या गुस्से में बोली, "सबकी आंखें निकाल लूंगी मैं! और तू खबरदार जो ज्यादा बन ठन कर आया तो! ज्यादा स्मार्ट लगने की जरूरत नहीं है। मैं आ रही हूं!" कहकर शरण्या ने फोन काट दिया। रुद्र की हंसी छूट गई। उसने फोन जेब में रखा और तैयार होकर कमरे से निकल गया। 




    लावण्या ने पिस्ता कलर की साड़ी पहन रखी थी, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। रेहान ने जब उसे देखा तो बस देखता ही रह गया। वो लावण्या के करीब आया और पीछे से उसे बांहों में भरते हुए बोला, "आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो। इस वक्त मुझे तुम्हें बहुत सारा प्यार करने का दिल कर रहा है।"


   लावण्या रेहान के इतने करीब आने से थोड़ी असहज हो रही थी। लेकिन उसने अपने चेहरे पर दिखाया नहीं। रेहान का करीब आना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। उसे अच्छे से पता था रेहान को खुद से दूर कैसे करना है। उसने मुस्कुराकर कहा, "बिल्कुल उस रात की तरह?"


    अब असहज होने की बारी रेहान की थी। उस रात की बात सुनते ही रेहान को वो सब कुछ याद आ गया और वह लावण्या से दूर हट गया। लावण्या यही तो चाहती थी। वो पलटी और रेहान के गले में बाहें डाल कर बोली, "क्या हुआ? तुम थोड़े परेशान से लग रहे हो!"


      रेहान उसका हाथ अपने कंधे से हटाते हुए बोला, "कुछ नहीं! सब आने वाले होंगे और पूजा का भी मुहूर्त हो गया है। हमें नीचे चलना चाहिए। हम मेजबान है हमें मेहमानों का स्वागत करना है। उनसे पहले हमें वहां तैयार खड़ा होना होगा। तुम आ जाना, मैं चलता हूं।" कहकर रेहान वहां से तुरंत निकल गया। 


     लावण्या मुस्कुरा उठी और खुद से कहा, "तुम्हारे चेहरे पर ये दर्द देख कर अच्छा लग रहा है रेहान! तुम्हारे लिए मेरे दिल में जो प्यार था वह खत्म हो चुका है और अब वही प्यार तुम्हें बुरी तरह से तोड़ कर रख देगा।" उसी वक्त शिखा जी ने लावण्या को आवाज लगाई, "लावण्या बेटा!! जल्दी आ जाओ नीचे। सब लोग आते ही होंगे।"


     "आई मां!!!" कहकर लावण्या नीचे चली आई। 




   बाहर सब लोग जमा हो चुके थे। सबको बस शरण्या के आने का इंतजार था। ज्यादा वक्त नहीं लगा जब शरण्या अपने मम्मी-पापा के साथ वहां पहुंची। हल्के नीले रंग की साड़ी में शरण्या वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी। रूद्र की नजर उससे हट ही नहीं रही थी। शरण्या ने आते ही सबसे पहले शिखा जी और धनराज जी के पैर छुए। शिखा जी ने तो शरण्या का माथा चूम लिया। रूद्र ने भी आगे बढ़कर मिस्टर रॉय और अनन्या जी के पैर छुए तो रेहान को भी ऐसा ही करना पड़ा। 


    मौली तो अपनी मां को देखते ही उससे लिपट गई। शरण्या ने देखा तो उसके बाल को ठीक करते हुए बोली, "ये तुम्हारे बाल...... किसने बनाया?"


    मौली मुँह बिचका कर बोली, "और कौन करेगा.! डैड ने!! मैंने कहा था उनसे बाल खुले रखना है मुझे, लेकिन नहीं! देखो कैसे चोटी बना दी!"


    शरण्या ने रूद्र को घूर कर देखा तो रूद्र ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। शरण्या मौली का हाथ पकड़े घर के अंदर चली आई और कमरे में आकर आईने के सामने सबसे पहले उसके बाल खोल कर बनाएं। खुले बाल मौली पर वाकई बहुत अच्छे लग रहे थे। उसके बाल भी वैसे ही लंबे थे जैसे कभी शरण्या के हुआ करते थे। और जिस तरह शरण्या अपना बाल बनाती थी इस वक्त मौली बिल्कुल उसी की तरह लग रही थी। शरण्या ने काजल का एक छोटा सा काला टीका मौली के कान के पीछे लगा दिया। मौली भी खुद को आईने में देख कर खुश हो गई और बोली, "डैड हमेशा मुझे एक ही तरीके से तैयार करते हैं, फिर चाहे वह स्कूल के लिए हो जाए फिर फंक्शन के लिए। उन्हें दूसरा कोई हेयर स्टाइल आता ही नहीं है। मॉम! इस टाइम ना, मैं आपको बहुत ज्यादा मिस करती थी। हमेशा लगता था, अगर आप होती तो मुझे बहुत अच्छे से तैयार करती लेकिन कोई बात नहीं, अब आप आ गए हो ना, बस अब हमेशा मेरे पास रहना।"


    शरण्या उसे गले लगाते हुए बोली, "मैं हमेशा आपके साथ रहूंगी। हम हमेशा साथ होंगे और मैं किसी को भी हमें अलग करने नहीं दूंगी। अब नीचे चले! वर्ना तुम्हारे डैड हम दोनों का प्यार देखकर जलभून जाएंगे।"


     मौली और शरण्या दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े और कमरे से बाहर निकल गयी। मौली आगे भाग गई और शरण्या भी उसके पीछे दौड़ी। लेकिन कमरे से निकलते ही किसी ने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी तरफ खींच लिया और वापस कमरे के अंदर ले गया। 


    शरण्या को रूद्र के इस हरकत की उम्मीद थी इसलिए उसे ज्यादा हैरानी नहीं हुई। उसने प्यार से रूद्र के गले में बाहें डाल कर कहा, "क्या जरूरत थी तुझे इतना तैयार होने की? कहा था ना मैंने!"


    रूद्र उसे अपने करीब खींचते हुए बोला, "तुझे भी तो बोला था कि ज्यादा तैयार होने की जरूरत नहीं है फिर क्या जरूरत थी इतनी खूबसूरत लगने की?" कहते हुए उसने शरण्या को दीवार से लगा दिया और गर्दन पर हल्का सा काट लिया। शरण्या सिहर उठी। उसके पैर कांपने लगे तो रूद्र ने उसे कसकर पकड़ लिया। शरण्या उसके सीने से लग गई और बोली, "क्या जरूरत थी मुझे उस घर में भेजने की? इस तरह छुप छुप के मिलना अच्छा लगता है क्या?"


     रूद्र बोला, "अच्छा तो लगता है! बिल्कुल शादी से पहले वाली फीलिंग आ रही है और थोड़ी शादी के बाद वाली भी। तु खुद सोच, सबसे चुप कर........ हम दोनों........... चोरी चोरी चुपके चुपके रोमांस कर रहे हैं.........!"


     रूद्र ने शरण्या की पीठ पर उंगली फिराना शुरू किया। शरण्या ने और कसकर रूद्र को थाम लिया। तभी लावण्या की आवाज सुनाई दी, "अरे ओ प्यार के पंछियों!!! दाने बाद में चुग लेना, चोंच बाद में लड़ा लेना। अभी पूजा का मुहूर्त हो गया है, सब बाहुर तुम दोनों का इंतजार कर रहे हैं चलो अभी!"


     शरण्या रूद्र से दूर हुई और बिना लावण्या की तरफ देखें बाहर निकल गई। इस वक्त उसे इतनी शर्म आ रही थी कि वह रूद्र से भी नजर नहीं मिला पा रही थी तो लावण्या से क्या ही मिलाती। लावण्या हंस पड़ी तो रुद्र भी झेंप गया। लावण्या बाहर की तरफ निकली। पीछे-पीछे रूद्र भी निकलने को हुआ तभी उसका फोन बजा। लावण्या ने पलटकर कहा, "रुद्र! फोन बाद में, चलो पहले!"


     रूद्र ने चलते हुए फोन निकाल कर देखा तो उसमें उसे ईशिता का नंबर नजर आया। इशिता का नंबर देखते ही उसके पैर वहीं रुक गए। उसने फोन उठाया। उधर से इशिता की आवाज आई, "हेलो रूद्र! मैं एयरपोर्ट पहुंच गई हूं। क्या तुम मुझे लेने आ सकते हो? अगर नहीं आ सकते तो कोई बात नहीं, मैं यहीं से कैब कर के चली जाऊंगी।"


     रूद्र को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस वक्त उसे लेने जाए या ना जाए! बाहर से शिखा जी की भी आवाज आ रही थी जो कि उसे ही बुला रही थी। रुद्र हिचकीचाते हुए बोला, "सॉरी इशिता! इस वक्त सब लोहड़ी की पूजा करने में व्यस्त हैं और इस वक्त अगर मैं यहां से निकला तो कहीं कोई प्रॉब्लम ना हो जाए। बरसों बाद सब लोग एक साथ है। एक काम करो, मैं किसी को भेजता हूं। वह तुम्हें एयरपोर्ट से पिकअप कर लेगा और होटल पहुंचा देगा। तुम्हारे लिए रूम बुक कर रखा है मैंने। तुम यहां हो यह बात मैं नहीं चाहता कि शरण्या तक पहुंचे। अब तक जो हुआ सो हुआ, अब शरण्या बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। मैं भेजता हूं किसी को।"


     इशिता रूद्र की मजबूरी समझ रही थी। उसने कहा, "रुद्र! कोई बात नहीं। तुम्हारा फैमिली फंक्शन अटेंड करना ज्यादा जरूरी है। ऐसा मौका हर किसी को नहीं मिलता। तुम आराम से जाओ और मेरी फिक्र मत करो। तुम बस मुझे होटल का एड्रेस भेज दो, मैं यहां से कैब करके चली जाऊंगी।मेरी फिक्र मत करना। वहाँ पहुँचते ही मैं तुम्हें मैसेज कर दूंगी, ठीक है?"


      रूद्र ने फोन रखा और तुरंत ही उसे होटल का एड्रेस और रूम नंबर भेज दिया। रूद्र जब बाहर पहुंचा देखा सब सिर्फ उसी का इंतजार कर रहे थे। शिखा जी थोड़े गुस्से में रूद्र की तरफ देखा तो रूद्र ने अपने कान पकड़ लिए। शिखा जी ने धनराज जी के साथ पूजा की और फिर रूद्र और शरण्या से भी करने को कहा। शुभ मुहूर्त में लोहड़ी जलाई गई और हाथ में तिलगुड के दाने लेकर सभी फेरे लेने लगे। 


     रजत भी नेहा और उसकी फैमिली के साथ वहां पहुंचा। उन दोनों को एक साथ देख कर रूद्र और शरण्या बहुत ज्यादा खुश थे। रूद्र के लिए रजत अपने भाई की तरह था जो साए की तरह हमेशा उसके साथ रहा। रजत और नेहा ने भी लोहड़ी की आग के चारों तरफ फेरे लगा रहे थे। नेहा काफी धीरे चल रही थी और रजत भी उसका हाथ थामे उतनी ही धीमी चाल चल रहा था। ये देख शरण्या ने भी रूद्र का हाथ पकड़ लिया। रूद्र मुस्कुरा उठा और मन ही मन बोला, "बस यह खुशी कभी कम ना हो! हम कभी अलग ना हो! सारी जिंदगी यूं ही तुम्हारा हाथ थामे गुजरे। इन आंखों से तू कभी ओझल ना हो। हर सुबह मेरी तुझे देखकर शुरू हो, हर रात तेरी बाहों में गुजरे। बस जिंदगी से और कुछ नहीं चाहिए।"