Chapter 111

Chapter 111

YHAGK 110

Chapter

110






रूद्र बड़ी बेबाकी से शरण्या का सारा सामान लेकर और बदले में मिस्टर रॉय को उनके प्रोजेक्ट में इन्वेस्टमेंट के पेपर थमा कर वहां से आराम से निकल गया। रूद्र के पीछे पीछे मौली भी भागी। रूद्र के घरवाले उसके इस अंदाज से हैरान भी थे और परेशान भी। आखिर रूद्र के पास इतने पैसे कहां से आए जो वह उस प्रोजेक्ट में पैसे लगाने के लिए ऑफर दे गया था और साथ ही कॉन्ट्रैक्ट पेपर भी। यह सारी बातें हर किसी के सर के ऊपर से निकल रही थी। रूद्र कितना अमीर है यह बात अब सबके समझ में आ रही थी।


     चंद सालों में रूद्र ने अपना रुतबा काफी बड़ा कर लिया था। वही रेहान और बाकी सब के एक साथ होते हुए भी अच्छी खासी कंपनी धीरे-धीरे डूबने के कगार पर थी जो सिर्फ ईशान के सहारे बची हुई थी और अब यह सहारा भी उनसे छीनने वाला था। 


    रूद्र तेजी से वहां से निकल गया और जैसे ही अपनी गाड़ी की तरफ पहुंचा। पीछे से मौली आकर गाड़ी में बैठ गई। इससे पहले कि वह भी बैठ पाता, अनन्या जी ने आवाज लगाई, "रूद्र........!"


     रूद्र चौक गया और पलट कर देखा तो अनन्या जी उसके सामने खड़ी थी। अनन्या जी रूद्र के पास आई और बोली, "क्या तुम्हें सच में लगता है कि शरण्या जिंदा है?"


    रूद्र बोला, "मैं जानता हूं वह जिंदा है। क्योंकि सुसाइड करने का वो कभी सोच भी नहीं सकती थी। कोई इतना नहीं जानता, जितना मैं उसे जानता हूं। आखिर बीवी है वह मेरी।"


     अनन्या जी फीकी हंसी हंसते हुए बोली, "जब जिंदा थी तब तो तुम ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया था। और अब जब वह नहीं है तब उसके सामान के लिए तुमने इतनी बड़ी रकम दे दी।"


   रूद्र बोला, "मेरे लिए उससे ज्यादा कीमती और कुछ नहीं है। उसकी चीजें मैं इसलिए लेकर जा रहा हूं ताकि जब वो लौटे तब अपनी चीजों को ना पाकर वह परेशान ना हो। आप अच्छे से जानती हैं, अगर आपको याद होगा तो उसे अपनी हर एक चीज से काफी साथ लगाव था। वह अपनी चीजें किसी के साथ शेयर नहीं करती थी। ऐसे में मैं उसकी चीजों को यूं ही किसी के भी हाथ लगने कैसे दे सकता था!"


     अनन्या बोली, "मैं नहीं जानती क्या सच है क्या झूठ! मैं नहीं जानती तुमने जो किया वह क्यों किया! तुम्हारे और शरण्या के बीच के रिश्ते का सच भी मुझे नहीं पता लेकिन तुमने जो कहा उस बात से मुझे भी थोड़ी उम्मीद बंधती सी नजर आ रही है। तुमने बिल्कुल सही कहा था, सिंदूर की डिबिया को शरण्या ने अपने जीते जी किसी को छूने तक नहीं दिया। अगर उसे भागना हीं होता तो उसे छोड़कर कभी नहीं जाती। सिंदूर भले ही 2 रुपये का क्यों ना हो, लेकिन एक औरत के लिए, एक सुहागन के लिए उससे ज्यादा कीमती और कुछ हो ही नहीं सकता। सिंदूर और मंगलसूत्र यह दो चीजें एक सुहागन अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखती है। अगर किसी ने शरण्या को अगवा किया है तो मैं चाहूंगी कि उस इंसान को उसके किए की सजा मिले। शायद उसके चंगुल से छूटने की कोशिश में ही शरण्या की जान गई। इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते हैं रूद्र कि शरण्या अब इस दुनिया में नहीं है। ललित का डीएनए टेस्ट करवाया गया था, वो शरण्या ही थी। उसके गुनहगारों को सलाखों के पीछे देखना चाहती हूं।"


     रूद्र बोला, "उसका सबसे बड़ा गुनहगार आपके सामने खड़ा है। और मेरी सजा सिर्फ शरण्या ही तय कर सकती है कोई कानून नहीं। लेकिन उन लोगों को मैं नहीं छोड़ने वाला जिन्होंने उसे अपनी कैद में रखा है। शरण्या है! वो जिंदा है!! मैं किसी डीएनए टेस्ट या किसी भी सबूत को नहीं मानता। आप लोग अपने विश्वास पर कायम रहिए मैं अपने विश्वास पर कायम हूं। शरण्या जिंदा है और मैं उसे बहुत जल्द आप सबके सामने लाकर खड़ा कर दूंगा।"


    अनन्या बोली, "यह बात बिल्कुल सही कहा तुमने। उस के सबसे बड़े गुनहगार तुम हो। और वो तुमसे इतना प्यार करती थी कि शायद ही तुम्हें कोई सजा दे। नफरत करती हूं मैं तुमसे और उससे ज्यादा अपने आप से। लेकिन तुम वह पहले इंसान हो जिस ने यह कहा कि वह जिंदा है। वरना हर किसी ने मान लिया है कि अब वो नहीं है। अगर तुम्हारा यकीन सच्चा है तो ले आओ उसे। जो गलती मैंने की है उसका प्रायश्चित करना चाहती हूं मैं। मेरी बच्ची को मैं हर वो प्यार देना चाहती हूं, हर खुशी देना चाहती हूं जिसकी वह हकदार थी। बस एक बार मेरे सामने आ जाए। मुझे बस मेरी बच्ची लौटा दो।"


     रूद्र बोला, "ये एक मां के दिल की आवाज है। आज आप सही मायनों में उसकी मां लग रही है। आपकी बेटी आपके इसी प्यार के लिए तरसती रही। अब समझ में आ रहा है, भगवान जो करते हैं अच्छा ही करते हैं। इतने सालों में कम से कम आपको एहसास तो हुआ की शरण्या आपकी भी बेटी है। अब उसे उसके हिस्से का बहुत सारा प्यार मिल सकेगा जो उसे कभी नहीं मिला और मुझे मेरे हिस्से की सजा।" कहते हुए रूद्र गाड़ी में बैठ गया और निकल गया। 


     उसके जाने के बाद भी अनन्या वही खड़ी रह गई। आज पहली बार किसी ने उसे उम्मीद की एक किरण दिखाई थी। उसने हाथ जोड़कर मन ही मन भगवान से प्रार्थना किया और वापस घर चली आई।


    रात के वक्त शिखा जी सोने की तैयारी कर रही थी लेकिन धनराज जी बालकनी में अपने आराम कुर्सी पर बैठे गहरी सोच में डूबे हुए थे। उन्हें इतनी गहरी सोच में डूबा देख शिखा जी बोली, "क्या हुआ राज, क्या सोच रहे हैं? जानती हूँ आज जो कुछ हुआ उसे हम रुद्र का पागलपन ही तो कह सकते हैं। जिस वक्त यह सारे हादसे हुए वह तो यहां था भी नहीं फिर वह इतने यकीन से कैसे कह सकता है कि शरण या जिंदा है? जानती हूं कि ये उसका प्यार है जो से यह मानने से रोक रहा है लेकिन आखिर कब तक उसका यह पागलपन चलेगा? मुझे लगा था कुछ दिनों में रूद्र के मन से यह सारी बातें उतर जाएंगी लेकिन नहीं, ऐसा कुछ होता है मुझे नजर नहीं आ रहा।"


    धनराज जी बोले, "पिछले 8 सालों में हो शरण्या को नहीं भूला है तो तुम्हें सच में लगता है कि वह इतनी जल्दी उसे भूल जाएगा? शरण्या ना सिर्फ उसका प्यार है बल्कि उसकी जिंदगी है जो अब जिद बन चुकी है। हम सब यह बात जानते हैं, बहुत अच्छे से जानते हैं कि अब वह कभी वापस नहीं आएगी। डर मुझे इस बात का है कि रूद्र शरण्या को ढूंढने में अपनी पूरी जिंदगी ना बर्बाद कर दे! बेहतर है वह संभल जाए तो ठीक वरना.........! लेकिन अभी परेशानी वह नहीं है मेरी! रूद्र ने कहा था कि वह जॉब करता है। ठीक है मानते हैं। लेकिन ऐसी कौन सी पोस्ट पर वो जॉब करता है जो उसने इतनी बड़ी रकम उस प्रोजेक्ट में लगाने के लिए उसने ऑफर दिया है! पिछले 4 सालों में हम उस प्रोजेक्ट को पूरा करने में नाकाम रहे जिस वजह से खरीदारों ने हम पर केस कर दिया। उसे एहसास भी है इसमें कितना खर्चा आएगा? उस सब से भी बड़ी बात, उसने साफ साफ कहा कि वह सिर्फ पैसे लगा रहा है। उससे ना उसे कोई मुनाफा चाहिए ना नुकसान। इतने पैसे बस यूं ही दान में दे रहा है? इतने पैसे आए कहां से उसके पास? जिस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए हमारे पास पैसे नहीं है उस प्रोजेक्ट को वह हैंडल करना चाहता है, अपने दम पर!"


    शिखा जी बोली, "वह रूद्र है! जो भी करता है बहुत सोच समझकर करता है। अगर उसने इतना बड़ा ऑफर ललित भाई साहब को दिया है तो यूं ही उसने नहीं दिया होगा। वो जो भी करता है उसके पीछे कोई बहुत गहरी बात होती है। भले ही हम उसे कितना भी लापरवाह समझते हो रहे हो लेकिन उसका उठाया हर कदम सही रास्ते पर होता है। अपनी जिंदगी में बस एक ही गलती की उसने, शरण्या का साथ छोड़कर। लेकिन मुझे खुशी है कि उसे इस बात का अच्छे से एहसास है। आप चिंता मत कीजिए, अगर रूद्र ने कहा है तो यूं ही नहीं कहा होगा। अपने बेटे को अच्छे से जानती हूं मैं और अब तक तो आप भी उसे समझ गए होंगे।"




       ईशान हॉस्पिटल के टॉप फ्लोर पर बेचैनी से टहल रहा था। उसे बार-बार रूद्र की कही बातें याद आ रही थी। रूद्र की आंखों में जो गुस्सा और नफरत उसने देखी थी। इससे उसे इतना तो अंदाजा हो गया था कि अगर गलती से भी शरण्या रूद्र के हाथ लग गई या रूद्र को उस पर जरा सा भी शक हो गया तो उसका हाल बुरा होगा। कितना बुरा यह तो खुद शायद रूद्र भी नहीं जानता होगा। 


    ईशान ने अपने पॉकेट से फोन निकाला और एक नंबर डायल किया। थोड़ी ही देर में दूसरी तरफ से उस आदमी ने फोन उठाया तो ईशान बोला, "और कितनी देर? मैं कब से इंतजार कर रहा हूं यहां पर तुम्हें एहसास भी है! एक एक मिनट मेरे लिए कितना कीमती है! हर एक सेकेंड पर मेरी जान निकली जा रही है। मेरी बरसों की मेहनत मिट्टी में मिल सकती है। मुझे आज ही यहां से सब कुछ शिफ्ट करवाना है। इससे पहले कि किसी को कानों कान खबर हो यह सारे काम निपटाने है। जल्दी करो!!"


    दूसरी तरफ से उस आदमी ने कहा, "अरे ईशान साहब! मैंने आदमी भेज दी है! चार लोग है वो चारों मिलकर संभाल लेंगे वहां पर। बस पहुंचते ही होंगे!" कहकर उस आदमी ने फोन रख दिया। 


     ईशान ने भी जैसे ही अपना फोन अपने पपॉकेट में डाला उसी वक्त लिस्ट का दरवाजा खुला और हॉस्पिटल की ड्रेस में मास्क लगाएं चार लोग वहां से अंदर आते हुए उसे नजर आए। ईशान ने जब उन्हें देखा तब चैन की सांस ली और बोला, "जल्दी करो! यहां से इस पेशेंट को जल्द से जल्द शिफ्ट करना है। ध्यान रहे कोई भी इस पेशेंट का चेहरा ना देख पाए।"


     उन चारों ने हा में गर्दन हिला दी और सभी अपने काम में लग गए। ईशान अभी भी अपने दिल पर हाथ रखे हुए था। रूद्र इस हॉस्पिटल के टॉप फ्लोर तक पहुंच चुका था और बस कुछ कदम की दूरी थी उसकी और शरण्या के बीच। अगर शरण्या को यहां से हटा देता है तो फिर रूद्र के लिए यह जानना नामुमकिन हो जाएगा कि कभी शरण्या यहां पर थी भी। ईशान को रूद्र से ज्यादा उसकी बातें परेशान कर रही थी। उसने आवाज लगाई, "जल्दी करो इतना टाइम क्यों लग रहा है?"


     उन लोगों ने तेजी से अपना हाथ चलाया और शरण्या को वहां से लेकर लिफ्ट से होते हुए नीचे लॉबी में सबसे नजरें बचाते बचाते एंबुलेंस में डाला और वहां से ले गए। 


    नेहा उस टाइम अपनी ड्यूटी पर ही थी। ईशान जानता था अगर नेहा को पता चला तो वह शरण्या को यहां से कहीं दूर नहीं ले जाने देगी। उसने नेहा का ध्यान बटाना चाहा। ईशान को इतनी रात गए अपने हॉस्पिटल में देख नेहा काफी ज्यादा हैरान थी। उसने पूछा, "तुम यहां क्या कर रहे हो और वह भी इस वक्त? क्या मैं वजह जान सकती हूं?"


   ईशान बोला, "तुम्हारी बहुत याद आ रही थी इसीलिए चला आया। अब क्या मेरे हर काम के पीछे कोई वजह होना जरूरी है? पति हूं तुम्हारा तुमसे प्यार करता हूं तो तुमसे मिलने चला आया। जब मैं घर पर होता हूं तुम हॉस्पिटल में होती हो, जब मैं ऑफिस होता हूं तब तुम घर होती हो। हमारा मिलना नहीं होता है डार्लिंग इसीलिए तुमसे मिलने चला आया, कौन सी बड़ी बात हो गई!"


      नेहा बोली, "प्यार.....! वह भी तुम.....!! वह भी मुझसे? तुम्हें प्यार का मतलब भी पता है ईशान? ये प्यार की बातें तुम ना ही करो तो बेहतर होगा। तुम्हारे मुंह से गाली लगती है यह। तुम जैसा कमीना इंसान यूं ही बेवजह कोई काम नहीं करता। जरूर इसके पीछे कोई बहुत बड़ी वजह होगी। तुम शरण्या के लिए यहां आए हो ना? क्या किया तुमने उसके साथ?" नेहा को अचानक से ध्यान आया और वो ईशान को वहीं छोड़कर शरण्या के फ़्लोर पर पहुंची। 


    ईशान उसके पीछे भागा लेकिन तब तक नेहा फुर्ती से लिफ्ट के अंदर जा चुकी थी। ईशान सीढ़ियों से ऊपर की तरफ भागा तो उस फ्लोर पर पहुंचते ही नेहा सीधे शरण्या के कमरे में गई लेकिन शरण्या वहां नहीं थी। नेहा को सारी बातें समझते देर न लगी। ईशान भागता हुआ ऊपर पहुंचा तो नेहा बोली, "तुम शरण्या को यहां से क्यों लेकर गए? उसकी कंडीशन ऐसी नहीं है कि उसे इधर-उधर सिफ्ट किया जा सके और तुमने बिना मुझसे पूछे, बिना मेरे परमिशन के उसे यहां से दूर भेज दिया? रूद्र से डर गए हो ना तुम? बोलो, रूद्र के आने से तुम पूरी तरह से डर गए हो। आज उसने जो कुछ भी कहा उसके बाद तुम्हारा दर्ना लाजमी है। डरो....... तुम्हें डरना चाहिए। जो तुमने किया है उसके बाद अपने अंजाम से तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। क्योंकि रूद्र अब वापस आ गया है।"


   ईशान ने सुना तो उसे गुस्सा आ गया और उसने नेहा के बाल कसकर पकड़ लिया।