Chapter 24

Chapter 24

Episode 24

Chapter

एक बहुत ही खूबसूरत ब्लैक सुपरकार ब्लॉन्डी... आकर गेट पर रुकी और लगातार हॉर्न बजाने लगी। चौकीदार दौड़ते हुए कार के पास पहुंचा... और खिड़की के कांच को थपथपाते हुए पूछने लगा, "आप कौन हैं…? और आपको किससे मिलना है…? आप ऐसे बिना पूछे अंदर नहीं जा सकते…???" 

कार के अंदर से आवाज आई... "

तुम्हें जितना कहा जा रहा है... उतना करो.. और जाकर गेट खोलो…!!"

 चौकीदार ने मना किया तो कार के अंदर बैठे शख्स ने कहा, "यह तुम्हारी पहली भूल थी... इसलिए तुम्हें कुछ भी नहीं कहा... अगर 2 मिनट में यह गेट नहीं खुला तो… इसके बाद जो कुछ भी होगा... तुम उसके जिम्मेदार स्वयं होंगे।" 

चौकीदार नासमझी से इधर-उधर देख रहा था। गाड़ी में बैठे शख्स ने फिर से हॉर्न बजाना स्टार्ट कर दिया। इस बार डरते डरते  चौकीदार ने गेट खोल दिया। कार फर्राटे से उस बंगले के अंदर चली गई।

 वह बहुत ही खूबसूरत सुपर कार थी, कीमत भी लगभग लाखों में ही थी उसकी।  चौकीदार बस उस कार को फर्राटे से अंदर जाते हुए देख रहा था। उसने जल्दी से अपने केबिन में जाकर बंगले के अंदर फोन किया और कहा, "सर... एक बहुत ही महंगी कार जबरदस्ती बंगले के अंदर आ गई है।  उस गाड़ी के शीशे काले हैं... इसलिए पता नहीं चला के अंदर कौन बैठा है…?? प्लीज सर मुझे माफ कीजिएगा…!!"

 शायद फोन के दूसरी तरफ से उसे बहुत ज्यादा डांट पड़ रही थी... चौकीदार की शक्ल बहुत ही ज्यादा उतर गई थी... और वह बस सॉरीऽऽऽ सर... सॉरीऽऽऽ सर…!! ही बोल रहा था।

 कार अंदर जाकर रुकी... उस कार का दरवाजा ऊपर हवा में खुल गया। देखने पर ऐसा लग रहा था... जैसे कोई पक्षी अपने बड़े से पंखों को फैलाकर उड़ने का प्रयास कर रहा था। वह कार भी वैसे ही दिख रही थी। 

उस कार के अंदर से एक ब्लैक हील्स वाले शूज पहने कोई बाहर निकला... जो शख्स बाहर निकला था... उसने लेदर पैंट्स, ब्लैक टी शर्ट, उसके ऊपर ब्लैक लेदर जैकेट डाली हुई थी... ब्लैक कलर का चश्मा भी पहना हुआ था। उसके कपड़े और चश्मा ब्रांडेड लग रहा था… बहुत ही महंगा और क्लासिक। दाएं हाथ में रोलेक्स की घड़ी पहनी हुई थी।  बालों की एक पोनी बनाई हुई थी।  उसे देख कर बिल्कुल भी पता नहीं चल रहा था... कि गाड़ी से उतरने वाला शख्स कौन था…?? कोई पुरुष या फिर कोई स्त्री…??

 गाड़ी से उतरने वाले शख्स ने कार की चाभी के छल्ले पर कोई बटन प्रेस किया... जिससे गाड़ी के दरवाजे बंद हो गए। उस शख्स ने बंगले के अंदर एंट्री कर दी...  मेन डोर पर लगी बेल लगातार बज उठी थी... जिस शख्स ने बेल बजाई थी... शायद बेल से अपनी उंगली उठाना हटाना भूल गया था। बेल लगातार बजे जा रही थी... और अंदर से दरवाजा खोलने आने वाला व्यक्ति भुनभुनाते हुए दरवाजे की तरफ आया और दरवाजा खोला।

 उसने बाहर खड़े व्यक्ति से पूछा, "कौन है आप…?? और किससे मिलना है…??"

 बाहर खड़े व्यक्ति ने अपने हाथ से उसे एक तरफ कर दिया... और घर के अंदर घुस आया। दरवाजा खोलने वाले आदमी ने पीछे-पीछे आते हुए उसे रोकने की... और उससे बात करने की बहुत कोशिश की।

 पर वह शख्स रुका नहीं और सीधे जाकर ड्राइंग रूम में रखी, एक किंग साइज सिंगल सीटर सोफे पर बैठ गया। वहां बैठे हुए किसी रियासत के क्रूर महाराज जैसा दिख रहा था।  दरवाजा खोलने वाले आदमी ने जल्दी से जाकर राहुल और प्रीति को बाहर बुलाया।

 राहुल और प्रीति भी गुस्सा करते हुए बाहर निकले। राहुल ने हॉल में बैठे उस आदमी से पूछा, "कौन हो तुम... और ऐसे मेरे घर में कैसे घुसे चले आ रहे हो…?? तुम्हें बिल्कुल भी तमीज नहीं है... कि किसी के घर जाने पर उससे पूछा जाता है…??"

 प्रीति भी पीछे से बड़बड़ा रही थी। उसने भी गुस्से में राहुल से कहा, "राहुल... आप अभी के अभी पुलिस को फोन करो... और उन्हें बताओ की कोई जबरदस्ती हमारे घर में घुस आया है... और कुछ भी जवाब नहीं दे रहा के वो है कौन…?"

घर के अंदर आया शख्स अभी भी उन्हें क्रूर मुस्कान के साथ घूर रहा था।  राहुल और प्रीति का गुस्सा बढ़ते जा रहा था... घर में ऐसी चीख-पुकार सुनकर पीहू अपने कमरे से बाहर आ गई। उसने सबको चिल्लाते हुए देखा और फिर उस शख्स को कुर्सी पर बैठे हुए देखा तो दौड़ कर उसके पास चली गई और उस शख्स के गले लग गई।

पीहू झूठमूठ गुस्सा होकर शिकायत करने लगी, "आप बिना बोले कहां चले जाते हो... आपको मेरी बिल्कुल भी याद नहीं आती ना... इस बार मैं आपसे गुस्सा हूं। बिल्कुल भी नहीं मानने वाली... आप गंदी वाली बूई बनते जा रहे हो? मैं आपसे बिल्कुल बात नहीं करूंगी…!!" और मुंह फुला कर उसकी तरफ  पीठ करके खड़ी हो गई।

 राहुल और प्रीति पीहू को ऐसी बातें करते देख आश्चर्यचकित रह गए थे। वह कभी पीहू को तो कभी उस कुर्सी पर शख्स को देख रहे थे। 

 प्रीति ने जल्दी से आगे बढ़कर पीहू को अपनी तरफ खींच लिया। पीहू ने गुस्से में उन्हें देखा और रूठते हुए अपने आप को छुड़ा कर फिर उसी शख्स के पास जाकर खड़ी हो गई। 

उस शख्स ने अपने कान पकड़कर पीहू से कहा, "पीहू बेटा…! आई एम सॉरी ऽऽऽ नेक्स्ट टाइम से ऐसी कोई भी मिस्टेक नहीं होगी। बूई अपने सारे प्रॉमिस भी पूरे करेगी... और आपको ले जाकर बहुत सारे गेम्स और बहुत ही सुंदर ड्रेसेस भी दिलाएगी।"

 पीहू यह सब सुनकर बहुत खुश हो गई और उस शख्स के गले लग कर उसके गालों पर बहुत सी किसेज् भी कर दी। 

 उस शख्स ने कहा, "पीहू बेटा... अब आप अपने रूम में जाकर खेलो। जब तक बूई आपको आवाज ना दे... आप बाहर नहीं आओगे।"

 पीहू ने पूछा, "क्यों बूई…??"

 उस शख्स ने कहा, "बिट्टू... घर में बहुत सारे कीड़े आ गए हैं... उनकी क्लीनिंग भी तो करनी है ना।  इसलिए आप अंदर जाओ।"

 इतना सुनकर पीहू वापस अपने कमरे में चली गई।

राहुल और प्रीति दोनों लोग उस शख्स को घूर कर देखने लगे। उस शख्स ने अपना चश्मा उतारा... और राहुल और प्रीति के मुंह से निकला…

 "स्नेहा ऽऽऽऽ…!!" 

उनकी आंखें डर के कारण चौड़ी हो गई थी।  उन लोगों को सब की हत्या का शक स्नेहा पर ही था। पर कैसे बिना सबूत किसी पर इल्जाम लगा सकते थे। और अब वो उनके सामने आकर बैठी थी। दोनों मन ही मन डर रहे थे... कि जाने अब आगे क्या होने वाला था।

स्नेहा ने आवाज देकर सारे नौकरों को हॉल में इकट्ठा होने के लिए कहा तो प्रीति पूछने लगी, "

स्नेहा क्या मतलब है इन सब का... तुम सारे नौकरों को यहां इकट्टा क्यों कर रही हो…??" 

स्नेहा ने कहा, "घर मेरा है... मुझे अच्छे से पता है यहां किसको रहना चाहिए और किसे नहीं…?? जब इन लोगों को यह नहीं पता ये लोग काम किसके लिए करते है... तो इन लोगों के यहां रहने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी यह लोग मेरी मां के रखे हुए लोग नहीं है... इसलिए मेरी मां के घर में इन्हें रहने का भी कोई हक नहीं है। जो लोग भी पहले यहां थे... आगे भी वही लोग यहां रहेंगे।" ऐसा  कहते हुए स्नेहा ने बाहर बैठे चौकीदार को भी अंदर बुलवा लिया। 

चौकीदार स्नेहा को वहां कुर्सी पर बैठे देख... और राहुल और प्रीति को सामने खड़ा देखकर बहुत ही ज्यादा डर गया था।  वह भी स्नेहा के सामने हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहा था... ताकि स्नेहा उसे नौकरी से ना निकाले। स्नेहा ने वहां काम करने वाले सभी नौकरों को एक साथ इकट्ठा करके सबको कह दिया कि उसे अब इस घर में किसी भी नौकर की जरूरत नहीं थी। सभी लोग बहुत ही ज्यादा अचंभित थे। सभी लोग स्नेहा से उन्हें नौकरी से ना निकालने के लिए विनती कर रहे थे... पर स्नेहा ने किसी की एक ना सुनते हुए सबको नौकरी से हटा दिया।

 एक नौकरानी बहुत ही ज्यादा रो रही थी... उसने कहा, "दीदी… मेरी बेटी बहुत ही ज्यादा बीमार है... और हॉस्पिटल में भर्ती है। अगर मेरी नौकरी ना रही तो मेरी बेटी भी इलाज के अभाव में मर जाएगी।"

 उसकी बात सुनकर स्नेहा को बहुत ही ज्यादा दुख हुआ।  स्नेहा ने उस नौकरानी से कहकर सबको वापस बुला लिया और एक हफ्ते बाद वहां वापस आने के लिए कहा। 

 स्नेहा ने कहा,  "मेरे पास अभी किसी भी आदमी की जरूरत नहीं है... पर जल्दी ही मैं एक छोटा सा काम शुरू करना चाहती हूं। अगर आप चाहते हो तो… वहां मेरे साथ काम कर सकते हो।"

 उन सभी ने स्नेहा से हां कहा और एक हफ्ते बाद आने के लिए कहकर चले गए।  राहुल और प्रीति अभी भी स्नेहा के सामने ही खड़े थे।  उन लोगों की नजरों में स्नेहा के लिए घृणा और क्रोध के भाव थे।  स्नेहा ने भी उन्हें नजरअंदाज करते हुए उनसे कहा, "मन तो कर रहा है अभी के अभी तुम लोगों को घर से बाहर फेंक दूं। पर इन सब में पीहू की क्या गलती है... इसलिए मैं तुम लोगों को माफ करती हूं। आज से तुम्हें इन सारे नौकरों की जगह घर का सारा काम करना होगा... वह भी बिना किसी गड़बड़ के।"

 ऐसा कहकर स्नेहा अपने कमरे में जाने ही लगी थी कि पुलिस इंस्पेक्टर उनके घर पर आ गया। 

इंस्पेक्टर ने राहुल से कहा, "जी राहुल जी... आपके यहां से एक फोन आया था कि किसी ने आपके घर में जबरदस्ती घुस कर... आपके घर पर कब्जा करने की कोशिश की है।"

 राहुल बिना कुछ कहे स्नेहा की तरफ देखने लगा।  इंस्पेक्टर भी स्नेहा की तरफ मुड़ गया और स्नेहा से पूछने लगा,  "आप कौन हैं??क्या आप वही हैं जो मिस्टर राहुल के घर में जबरदस्ती घुस आऐ और उनके घर पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं??"

 स्नेहा ने जोर से इंस्पेक्टर से कहा, "सॉरी ऽऽऽ आप कहना क्या चाहते हैं। राहुल का घर... फॉर योर काइंड इनफार्मेशन... मैं आपको बता दूं कि यह घर कभी भी इन लोगों का नहीं था। यह घर मेरा और मेरी फैमिली का है। यह लोग जबरदस्ती मेरे घर में घुस आए हैं।"

 इंस्पेक्टर ने राहुल की तरफ देखा और स्नेहा से पूछने लगा, "तो फिर आप इतने दिनों से कहां थी और कोई आपको जानता क्यों नहीं है??"

 स्नेहा ने कहा,  "मेरे परिवार की हत्या के बाद... मेरा मानसिक संतुलन कुछ दिनों के लिए थोड़ा बिगड़ गया था। मैं हमारे दार्जिलिंग वाले घर रहने चली गई थी... और रही बात लोगों के जानने की... तो इन्होंने हमारे सारे पुराने नौकरों को हटाकर नए नौकर रख लिए। जो मुझे नहीं जानते हैं... फिर भी आपको विश्वास ना हो तो पीहू को बुलाकर पूछ सकते हैं कि मैं स्नेहा हूं... उसकी बुआ…!!"

 इंस्पेक्टर ने राहुल और प्रीति को घूर कर देखते हुए कहा, "नहीं... नहीं... उसकी कोई जरूरत नहीं है।" 

फिर उसने राहुल और प्रीति को घूरा और बाहर निकल गया।

 स्नेहा ने भी उनसे कहा, "अब टाइम वेस्ट करने से कोई मतलब नहीं है। फटाफट जाकर काम में लग जाओ... और हां डिनर में पीहू की पसंद का खाना बनेगा और अगर कोई गड़बड़ी करने की कोशिश की... तो मैं भूल जाऊंगी कि तुम लोग पीहू के पेरेंट्स हो…!!"

 यह कहकर स्नेहा पीहू के पास चली गई। 

रात में राहुल और प्रीति ने मिलकर स्नेहा को अपने रास्ते से हटाने का प्लान बनाया।  उन्होंने सोचा कि सुबह जब स्नेहा पीहू के साथ खेलने में बिजी होगी... तभी उसे रास्ते से हटा देंगे। ऐसा प्लान करके दोनों सो गए।

 सुबह-सुबह वह दोनों बहुत ही अच्छी तरीके से घर के काम करने में व्यस्त थे... ताकि उन पर किसी को शक ना हो। 

स्नेहा भी हॉल में बैठकर पीहू के साथ टीवी देख रही थी। दोनों थोड़ी थोड़ी देर में खिलखिला कर हंस रहे थे... तो कभी मुँह बनाकर बैठ जाते थे। थोड़ी देर बाद पीहू ने कहा, "बूई मुझे नींद आ रही हैं मैं थोड़ी देर सो जाऊँ…!!" ऐसा कहकर अपने कमरे में सोने चली गई। 

 स्नेहा वापस टीवी में कार्टून देखने में बिजी हो गई थी। राहुल ने पीछे से आकर एक प्लास्टिक की पॉलीथिन स्नेहा के सर पर डाली और स्नेहा को कस के पॉलिथीन में पकड़ लिया और उसी से मारने की कोशिश करने लगा।