Chapter 88

Chapter 88

humsafar 88

Chapter

88






     अवनि सारांश के सीने पर अपना सिर टिकाए उसकी गोद मे सो रही थी। सारांश की एक हाथ की उंगलियाँ कीबोर्ड पर तेजी से चलने के बाद वह भी वैसे ही अवनि को बाहों मे थामे सो गया। कार्तिक को कुछ देर के लिए ऑफिस के लिए निकलना था इसीलिए वह सारांश को भी साथ चलने को कहने आया था लेकिन जब उसने दोनों को गहरी नींद मे एक दूसरे के इतने करीब देखा तो मुस्कुरा कर बिना उन्हें डिस्टर्ब किए वापस चला गया। 

      जब तक अवनि की नींद खुली, काफी देर हो चुकी थी। सारांश पहले ही उठकर काम निपटाने में लगा था। अवनि को हरकत करता देख सारांश का ध्यान उस ओर गया, " नींद पूरी हुई? अब चलो, रज्जो मैडम खाना खाने के लिए कहने आई थी", कहकर सारांश अवनी को वैसे ही गोद मे लेकर खडा हो गया। अवनि ने कहा, "अरे पहले मुझे नीचे तो उतारिये! ऐसे किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा!"

    "कौन देखेगा? घर में कोई भी तो नहीं है और हम लोग अपने कमरे में जा रहे हैं। मैंने रज्जो से कह कर कमरे में ही खाना मंगवा लिया है। वैसे भी इस वक्त घर पर मॉम नहीं है तो अब तुम चुपचाप मेरे साथ चलो", और सारांश वैसे ही उसे उठाएं बाहर निकलने लगा तो अवनि नीचे उतरने के लिए छटपटाने लगी। उसे पिछली बार की बात याद आ आ गयी जब जानकी ने उसे ऐसे देख लिया था और सिर झुका कर बिना उन दोनों को देखे चली गयी थी। अवनि फिर से किसी के सामने इम्बैरेस् नहीं होना चाहती थी लेकिन सारांश उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं था। 

      अवनी को ऐसे घबराया हुआ देख सारांश को हँसी आ गई। उसने भी दरवाजे से जाने के बजाय स्टडी रूम के ही एक सीक्रेट दरवाजा जो की उसके कमरे से जुड़ता था उसे खोला और दूसरी ओर चला गया। अवनि ने जब उस दरवाजे को देखा तो हैरान रह गई। इतने दिनों से वह उस कमरे में रह रही थी लेकिन एक बार भी उसका ध्यान इस दरवाजे की ओर नहीं गया था। 

     अवनि को अपने ओर ऐसे घूरता देख सारांश ने कहा, "ऐसे क्या देख रही हो! तुम जानती हो मैं एक वर्कोहोलिक हु मतलब था....! देर रात काम करना मेरी आदत मे शुमार रहा है और इसीलिए मॉम गुस्सा हो जाती थी तो एक बार उनके ना होने का फायदा उठाया और अपने स्टडी रूम को अपने बेडरूम से अटैच करवा दिया था। पता नहीं था यह एक दिन ऐसे काम आएगा।" सारांश की बात सुन अवनी भी उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाई। सारांश ने उसे सोफे पर बिठाया और खाने की प्लेट लगाया। अवनि ने पहला निवाला उसे खिलाया और फिर खुद खाने लगी। 

     खाते हुए भी उसके दिमाग में पल्लवी के ही बातें घूम रही थी। उसे यूं खोया देख सारांश ने पूछा, "क्या हुआ अवनि! किस सोच में गुम हो! मैं तो तुम्हारे सामने बैठा हूं!!!"

    अवनि पहले तो मुस्कुराई और फिर थोड़ा हिचकीचाते हुए सारांश से पूछा, "सारांश एक बात पूछूं!!! डैड की डेथ कैसे हुई थी?"

      सारांश ने भी खाते हुए सीधे सपाट लहजे में कहा, " हार्ट अटैक......! मॉम ने यही बताया था।"

    "लेकिन उस वक्त आप लोग काफी छोटे थे। यानी की डैड की उम्र भी ज्यादा नहीं रही होगी तो फिर इतनी कम उम्र में हार्ट अटैक कुछ अजीब नहीं लगा आपको!!!" अवनी ने फिर से सवाल किया। 

      "मॉम ने ज्यादा कुछ नहीं बताया और ना ही कभी हमने कोई सवाल किया। हमसे उन्होंने जो कहा हमने वह मान लिया" सारांश ने बड़े ही शांत लहजे मे कहा। 

     " और अंकल!!! आई मीन जीजू के डैड, वह कैसे?" अवनि ने फिर सवाल किया तो सारांश के हाथ एकदम से जहां थे वहीं रुक गए। उसने एक बार सर उठा कर अवनि की ओर देखा। कुछ देर सोचने के बाद उसने पूछा,"तुम अभी चित्र के घर गई थी ना! वहां पल्लवी आंटी ने तुम्हें कुछ कहा?"

      सारांश की बात सुन अवनी ने सिर झुका लिया और बिना उससे कुछ भी छुपाए उसने सारांश से वह सारी बातें कह दी जो कुछ भी उसने चित्रा के घर पर उसकी मां से सुना था। "अवनि!!! मैं नहीं जानता की पूरी सच्चाई क्या है लेकिन एक सबसे बड़ा सच यह भी है कि डैड के जाने के बाद मॉम ने अकेले ही हमें, इस घर को और ऑफिस को संभाला है। उन्होंने जो कहा हमने वह मान लिया, उनकी कहीं हर एक बात पत्थर की लकीर बन गई हमारे लिए। हमें कभी उनसे कोई सवाल नहीं किया क्योंकि हम जानते थे की मॉम कितनी ज्यादा स्ट्रेस से गुजर रही थी और इतने सालों के बाद उन सब बातों को याद करने या कुरेदने का कोई फायदा नहीं।"

   " लेकिन पल्लवी आंटी जीजू से इतनी नफरत क्यों करती है?" अवनि ने पूछा। 

    " पल्लवी आंटी कार्तिक से नफरत नहीं करती, वह बस कार्तिक को अपने लेवल का नहीं समझती हैं। वो और मॉम काफी क्लोज रहे है। उन मुश्किल घड़ियों में भी उन्होंने मॉम का साथ दिया है, देखा है उन्होंने वो सब जो हमें पता भी नही है। ऐसे में उन्हें लगता है कि मॉम के आसपास जो भी लोग हैं वह सब उनका फायदा उठाने की कोशिश करते है। यहां तक कि उन्हें मासी पर भी यकीन नहीं होता, कार्तिक की तो बात ही छोड़ो। वह ऐसी ही है, जो उनके दिल में होता है वही उनकी जुबान पर होता है फिर चाहे वह किसी को कितनी कड़वी क्यों ना लगे।  सच कहूं अवनी तो मुझे हमेशा से यही लगा है कि अगर अपने अतीत को कुरेदने की कोशिश करेंगे तो हम अपना भविष्य संवार नहीं पाएंगे और रही बात शुभ की तो जैसा कि मैंने कहा है वह हमारा भाई है मतलब यही सच है हमारे लिए क्योकि मॉम ने कहा था। इससे ज्यादा कुछ नहीं" कहकर सारांश खाना खाने लगा। 

      अवनि ने भी उससे और कोई सवाल नहीं किया और वह चुपचाप खाना खाने लगी।  दिनभर अवनि सारांश के साथ ही रही और शुभ भी घर से बाहर ही रहा। रात को सिया जब ऑफिस से वापस आई तब वह काफी थकी हुई सी लग रही थी। वह बिना कुछ कहे अपने कमरे मे चली गयी। जानकी ने जब देखा तो पानी का ग्लास लेकर उसके पीछे कमरे मे गयी। उस वक़्त तक रज्जो डाइनिंग टेबल पर खाना लगा चुकी थी और तभी सारांश और अवनी भी खाना खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर आ गए। दोनों ने देखा सिया वहां नहीं थी तो अवनी ने कहा, "मैं जाकर मॉम को बुला कर लाती हूं, आप बैठीये।" कहकर अवनी सिया के कमरे की ओर चली गई। सिया के कमरे का दरवाजा हल्का का खुला हुआ था। नजदीक जाने पर उसे महसूस हुआ कि उस कमरे में सिया के साथ जानकी भी मौजूद थी। 

     इससे पहले की अवनि सिया के कमरे मे जाती उसे सिया की आवाज सुनाई दी, "मैं तुम्हें कह रही हूं जानकी! समझा दो उसे। इस बार मैं उसकी किसी भी तरह का कोई बेहूदा हरकत बर्दाश्त नहीं करूंगी। जो कुछ उसने पिछली बार किया है, अब आगे मैं बर्दाश्त नहीं करने वाली। अगर उसने फिर से कोई प्रॉब्लम खड़ी करने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं उसकी किस्मत बना सकती हूं तो मिटा भी सकती हूं।" सिया की आवाज़ मे गुस्सा था। 

     "वह आपका बेटा है जीजी! उसे आप ही इस दुनिया में लेकर आइ है। उसकी किस्मत बनाने का या मिटाने का हक भी आप ही को है। मैं पूरी कोशिश करूंगी उसे समझाने की वरना किसी भी गलती के लिए उसे सजा देने का हक आपको है। वह आपका बेटा है! आप चाहे जो सलूक कीजिए उसके साथ, आपको कोई कुछ नहीं कहेगा।"

      "यह मेरा घर मंदिर है, मेरा स्वर्ग है जानकी! अगर इस स्वर्ग को उसने नर्क बनाने की कोशिश की तो मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगी। मै यह नहीं कहती जानकी कि इस में पूरी तरह उसका दोष है। दोष उसके खून का है जिस पर हमारी परवरिश का अमृत भी कोई असर नहीं कर पाया। जब वो इस दुनिया में आया था तो सबसे ज्यादा खुश मै थी। लेकिन उसके बाप ने जो उसके मन में जहर भरा हमारे खिलाफ, उसका तोड़ अब तक हम नहीं ढूंढ पाए।"

     "बच्चा है वह जीजी! और बच्चों से गलतियां हो जाती है", जानकी ने कहा तो सिया ने उसकी बात काटते हुए कहा, "बच्चों से गलतियां हो जाती है जानकी लेकिन उसने जो किया है वह गुनाह है। वही गुनाह जो उसके बाप ने की थी और मैं उसे उस रास्ते पर जाते हुए नहीं देख सकती। जो भी है जैसा भी है आखिर को इस घर का बेटा है। कुछ समझ नहीं आ रहा जानकी क्या करूं क्या ना करूं! एक तो वह शख्स जबसे जेल से छूटा है तब से उसकी कोई खबर नहीं है। इतने घिनौने अपराध की सजा दिलवाने में भी हमें कई साल लग गए। इसके बावजूद उससे सिर्फ उम्र कैद की सजा हुई। मुझे डर है जानकी कि कहीं वो एक बार फिर शुभ के साथ मिलकर इस घर को बर्बाद ना कर दे!" सिया ने आंखों में आंसू भर कर कहा, "जानकी क्या तुम्हें पता है इस बारे में कुछ? कुछ भी ऐसा जो तुम मुझे बता सको!"

      जानकी ने सिर झुका लिया और बोली, " नही जीजी!!! मुझे कुछ नहीं पता इस बारे मे। आप देखना वह ऐसा कुछ नहीं कर पाएगा और हमारा शुभ भी सही रास्ते पर हमारे साथ चलेगा। अभी आप चल कर खाना खाइए खाने का टाइम हो गया है और आपको दवाई भी तो लेनी होगी वरना आपकी तबीयत बिगड़ सकती है। इतना स्ट्रेस  मत लीजिए, ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा आप सोच रही है। सब अच्छा होगा सब सही होगा आप देख लेना।" 

     अवनि को जब लगा कि वह दोनों बस बाहर आने वाली हैं तो वह चुपके से बिना किसी आवाज के वापस लौट आई। अवनि को देख सारांश ने पूछा, "क्या हुआ अवनि, मॉम ने क्या कहा? वो आ रही है न!" 

    "हाँ वो बस आ ही रही है। मासी भी उनके कमरे मे थी तो मै वापस चली आई।" अवनि ने कहा और सारांश के बगल में बैठ गई। कार्तिक और काव्या भी तबतक आ चुके थे। शुभ अब तक घर वापस नहीं आया था इसलिए अवनी भी थोड़ी रिलैक्स थी। सिया और जानकी भी कुछ देर मे खाने की टेबल के पास पहुँच गए। खाना खाते हुए सिया ने अवनि से कल शॉपिंग के कहा तो अवनि मना नही कर पाई क्योकि उसने चित्रा की मॉम को प्रॉमिस किया था। सब ने शांति से खाना खाया और अपने कमरे मे चले गए। एक ओर जहाँ सिया कल की प्लानिंग मे लगी थी वही काव्या को अभी भी पल्लवी की हरकते खल रही थी। 

    "कार्तिक!!! शायद तुम सही थे। चित्रा की मॉम को देख कर इतना तो समझ आ गया की वो तुम्हे हमेशा से नापसंद करती आई है। लेकिन सच कहू तो मुझे बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया। दिल किया उनसे पूछूँ कि आखिर क्या बुराई है तुम मे जो वो ऐसे बिहेव करती है तुम्हारे साथ!" काव्या ने दाँत पिसते हुए कहा तो कार्तिक को हँसी आ गयी। काव्या को समझ नही आया की आखिर कार्तिक को हँसी किस बात पर आ रही है। 

      "अब ऐसे गुस्सा करोगी तो हमारा बेबी भी ऐसे ही गुस्सैल होगा। जानती हो न, माँ जो सोचती है महसूस करती है बच्चा भी वही सब करता है। इसीलिए तुम ये सब मत सोचो और स्माइल करो। मुझे कोई फर्क नही पड़ता इन सब से। पहले पहले लगता था लेकिन धीरे धीरे आदत पद गयी।" कहकर कार्तिक ने लाइट ऑफ़ की और काव्या को बाहों मे समेट कर सो गया। 

     सारे काम निबटाने के बाद अवनि ने रज्जो को सोने के लिए भेज दिया और सारांश के लिए खुद जग मे पानी भरने लगी। उसी वक़्त उसे अपने कान पर किसी की गर्म साँसे महसूस हुई। वह घबराकर पलटी तक सामने शुभ को खड़ा पाया। अवनि बुरी तरह से डर गयी क्योकि इस वक़्त वहाँ कोई भी मौजूद नही था। पूरे दिन तो वह सारांश के साथ ही रही लेकिन इस वक़्त सारांश के मना करने के बाद भी अवनि अकेली किचन मे थी।