Chapter 74
humsafar 74
Chapter
74
काव्या कार्तिक के बताये समय से पहले ही तैयार हो चुकी थी और उसका इंतज़ार कर रही थी। रात के दस बजने वाले थे लेकिन उसे अवनि का अभी तक कॉल नही आया था। उसने एक बार अवनि को फोन लगाया और सिया के बारे मे पूछा लेकिन जरूरी मीटिंग होने के कारण सिया अभी तक घर नही आई थी और उसे और देर लगना था। काव्या जल्दी से जल्दी अपने काम को अंजाम देना चाहती थी ताकि कार्तिक को इस की भनक ना लगे और उसे उसकी लाइफ की खुशी मिल सके।
घर के बाहर कार्तिक की गाड़ी के रुकने की आवाज़ आई तो काव्या बिना देरी किए बाहर आ गयी। चित्रा के मन की बात जान कर वो वैसे ही बहुत खुश थी। उसने कार्तिक की पसंद की पिस्ता कलर की साडी पहनी थी। काव्या को खुश देख कार्तिक के चेहरे पर भी मुस्कान खिल गयी। "आज कुछ स्पेशल है क्या? ये अचानक से बाहर डिनर का प्लान कुछ समझ नही आया!" काव्या ने पूछा।
"बिलकुल.....! लेकिन उसके लिए तुम्हें मेरे साथ वहाँ जाना पड़ेगा।" कार्तिक ने प्यार से कहा और गाड़ी का दरवाजा खोल कर काव्या को बैठने का इशारा किया। काव्या भी अपना साडी संभाले अंदर बैठ गयी। कार्तिक ने गाड़ी स्टार्ट की और घर से निकल आया। ककरीब एक घंटे की ड्राईव् के बाद दोनो होटल के रूफ टॉप पर पहुँचे। वहाँ का डेकोरेशन देख काव्या को अजीब लगा और वो सोचने लगी की आज खास क्या है!!!"
कार्तिक ने काव्या के लिए कुर्सी खीची तो काव्या बैठ गयी। फिर कार्तिक ने शैंपेन् की बोतल खोली और दो ग्लास मे डाल कर सर्व किया। काव्या को ये सब थोड़ा अजीब लेकिन अच्छा लग रहा था। वहाँ उन दोनो के अलावा और कोई भी नही था और हल्का हल्का म्युजिक चल रहा था। कार्तिक ने काव्या का हाथ पकड़ा और डांस के लिए ले गया। कुछ देर बाद ही वेटर ने खाना लगा दिया जो की सारी काव्या की ही पसंद की थी।
"ना तो आज मेरा बर्थ डे है और ना ही मुझे ऐसा कुछ याद आ रहा है तो फिर.....?" काव्या ने पूछा।
"तुम्हें पसंद आया ये सब!!! तुम खुश हो!!!" कार्तिक ने जवाब देने की बजाय उल्टा सवाल किया।
"हाँ बहुत........! लेकिन आज खास क्या है?" काव्या से इंतज़ार नही हो रहा था।
"पहले खाना खाओ, फिर बताता हू।" कार्तिक ने कहा और दोनो खाने लगे। इस बीच कार्तिक की नज़र बार बार घडी की ओर चली जाती। खाना खाते ही उसने एक बार फिर घडी देखा और बारह बजते ही वेटर को कुछ इशारा किया। वेटर ने एक केक उन दोनो के बीच लाकर रख दिया। केक को देखते ही काव्या को याद आया की आज उन दोनो की शादी को एक महिना हो चुका था।
कार्तिक काव्या के साथ मिल कर उस दिन को सेलिब्रेट करना चाहता था। काव्या को खुशी तो बहुत हुई लेकिन जिस मोड़ पर उनका रिश्ता खडा था वहाँ ये सब उसे सही नही लग रहा था, फिर भी कार्तिक की खुशी के लिए उसने कुछ नही कहा। वैसे भी वो जो कुछ भी कर रही थी उसी की खुशी के लिए ही तो कर रही थी। दोनो ने मिल कर केक काटा और कार्तिक ने उन दोनो की कई सारी तस्वीरें ले कर इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दिया।
सारांश ऑफिस से आते ही मीटिंग के लिए स्टडी रूम मे चला गया। वहीं अवनि की नींद दिन मे ही पूरी हो गयी थी इसीलिए उसे नींद नही आरही थी और वो कमरे मे इधर उधर टहल रही थी। उसे फोन पर नोटिफिकेशन मिला, जब खोल कर देखा तो उसे अपने दिदु और जीजू को अपनी वन मन्थ एनीवर्सरि को सेलिब्रेट करते ही पाया। उसकी नजर घडी पर गयी तो उसमे बारह बज चुके थे और वो सारांश का पिछले दो घंटे से इंतज़ार कर रही थी। कार्तिक और काव्या को इंजॉय करता देख उससे रहा नही गया और उसी वक़्त फोन लगा दिया।
"हैलो जीजू....! बधाई हो आप दोनो को। ऐश है आप दोनो के। लेकिन प्लीज जो करना है कीजिए, ऐसे शो ऑफ मत कीजिये। मेरा दिल जल रहा है।" अवनि ने शिकायत करने के अंदाज़ मे कहा।
"आप दोनो को भी बधाई हो साली साहिबा!!! वैसे आप दोनो है कहाँ? और क्या हो रहा है!!! और ये दिल क्यो जल रहा है आपका। आप दोनो तो आज कल कुछ ज्यादा ही रोमांटिक हो रहे थे!!!" कार्तिक ने भी हँसते हुए उससे पूछा।
"पूछीए मत जीजू.....! ना जाने किस इंसान से पाला पड़ा है। रोमांस नाम की चीज ही नही है। उन्हे तो याद भी नही है की डेट क्या है!!! जब से आये है मीटिंग मे लगे है" अवनि ने कहा।
"कोई बात नही अवनि! सो सकता है सारांश ने कुछ प्लान किया हो तेरे लिए! और काम भी तो जरूरी है। सुबह भी नही हुई और अभी तो पूरा दिन बाकी है और तु है की अभी से उन से नाराज हो गयी।" काव्या ने समझाते हुए कहा और फोन कार्तिक को देकर वही एक कुर्सी पर बैठ गयी। कार्तिक ने अवनि से कुछ देर बात की और फोन रख दिया। जब वह काव्या की तरफ मुड़ा तो उसके होश उड़ गए।
काव्या अपना पेट पकड़े बैठी थी और दर्द बर्दास्त करने की कोशिश मे लगी थी। उसे यूँ दर्द मे देख कार्तिक घबरा गया और उसे गोद मे लेकर बाहर आया। कार्तिक को अपने लिए परेशान होता देख काव्या ने कहा, "मै ठीक हु कार्तिक! बस थोड़ा सा पेट मे दर्द है, शायद थोड़ा ज्यादा खा लिया मैने। बस कुछ ही देर मे मै ठीक ही जाऊँगी।"
"वो दिख रहा है! कल भी ऐसे ही दर्द उठा था तुम्हारे पेट मे और आज फिर से....! मै कोई रिस्क नही लेने वाला इसीलिए तुम एक भी शब्द नही बोलोगी।" कहते हुए कार्तिक ने काव्या को गाड़ी मे बैठाया और उसे लेकर पास के ही एक हॉस्पिटल मे गया। आधी रात से ज्यादा का वक़्त गुजर गया था इसीलिए सिर्फ इमर्जेन्सी ही खुली थी। डॉक्टर मे काव्या को चेक करने के लिए कार्तिक को बाहर भेज दिया। कुछ देर बाद जब कार्तिक अंदर पहुँचा तब डॉक्टर ने उन दोनो को बैठा कर कुछ सवाल किये।
"आप दोनो की शादी को कितना वक़्त ही गया है?" डॉक्टर ने पूछा।
"जी मैम! पूरे एक महिना। क्या हुआ कुछ प्रॉब्लम है क्या? कोई घबराने वाली बात तो नही है, काव्या ठीक तो है न?" कहते हुए कार्तिक ने काव्या का हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखों मे घबराहट साफ देखी जा सकती थी। डॉक्टर ने मुस्कुरा कर कहा, "घबराने वाली कोई बात नही है मिस्टर कार्तिक! वन मन्थ.....! एक्जेक्टली वन मन्थ हुआ है आपकी वाइफ की प्रेग्नेंसी को।"
डॉक्टर से प्रेग्नेंसी की बात सुन काव्या सन्न रह गयी वही कार्तिक के चेहरे पर कोई भाव नही थे। डॉक्टर ने उन दोनों को कुछ जरूरी सलाह दिया और बोली, "अभी इनिसियल स्टेज है इसीलिए इनका खास ख्याल रखना होगा। वैसे तो इस के लक्षण पाँच या छह हफ्ते बाद नज़र आती है लेकिन अभी पाँच हफ्ते पूरे नही हुए है और ऐसे समय पर पेट मे इस तरह का दर्द होना अच्छा नही होता है इसीलिए हो सके तो दो हफ्ते के लिए बेड रेस्ट सही होगा अगर आप मैनेज कर पाए तो"।
कार्तिक काव्या का हाथ पकड़कर बाहर आया और अचानक ही उसे अपने गले से लगा लिया। काव्या का दिमाग वैसे ही काम नही कर रहा था और कार्तिक के मन के भाव वह समझ नही पा रही थी। कुछ देर बाद जब कार्तिक उससे दूर हुआ तो काव्या ने देखा कार्तिक की आँखे नम थी। काव्या को कुछ समझ नही आया की वह क्या कहे। कार्तिक ने कुछ कहा नही और घुटने के बल बैठ कर काव्या के पेट पर हल्के से हाथ फेरा।
"कार्तिक.....!" काव्या ने कुछ कहना चाहा लेकिन कार्तिक ने उसके दोनो हाथ पकड़े और अपना सिर टिका दिया मानो काव्या कोई इंसान नही उसके लिए भगवान हो। काव्या अपने हाथ पर उसके गर्म आँसुओ को महसूस कर रही थी। उसने अपना एक हाथ छुड़ाया और कार्तिक का सिर सहलाने लगी। कार्तिक ने उसके कमर के चारों ओर अपने बाँह लपेट दिये।
"जानती हो काव्या! जो बच्चे सिंगल पैरेंट के साथ बड़े होते है, उनके मन मे ऐसी कई सारी बातें गाँठ बन कर रह जाती है जो उसे दूसरे बच्चे से अलग बना देती है। वो बच्चा जल्दी किसी से भी घुलता मिलता नही है। जब मै स्कूल मे दूसरे बच्चो को देखता था अपने माँ पापा का हाथ पकड़ कर आते हुए और मेरा एक हाथ खाली होता था, उस वक़्त बड़ी माँ मेरा दूसरा हाथ पकड़ लेती थी। तब सारांश किसी बड़े आदमी की तरह बोलता था, किट्टू! सब की एक ही माँ है और देख हमारी दो दो माँ है।
कुछ देर के लिए सब भूल जाता था लेकिन जब किसी को अपने पापा के कंधे पर बैठ कर जिद करते देखता तब अपना मुह फेर लेता था ताकि मुझे तकलीफ ना हो। ऐसे बच्चे अपनी उम्र से ज्यादा जल्दी मेच्योर हो जाते है। मै नही चाहता काव्या की जो मैने देखा है वो हमारा बच्चा भी देखे। और शायद भगवान भी यही चाहते है की हम साथ रहे। मैने हमेशा से यही एक ही चाहत थी काव्या की मेरा बच्चा कभी अधूरे परिवार के बीच ना बड़ा हो।"
कार्तिक की बातें सुन काव्या की आँखो मे आँसू आ गए। उसने प्यार से कार्तिक का माथा सहलाते हुए कहा, "कार्तिक......! घर चले!"
कार्तिक को होश आया और देखा की वो दोनो अभी भी हॉस्पिटल मे ही है और डॉक्टर ने काव्या को आराम के लिए कहा है। वह झटके से उठ खडा हुआ और काव्या को गोद मे उठा कर गाड़ी मे बैठाया "डॉक्टर ने बेड रेस्ट के लिए कहा है, तो अब से तुम्हारा कोई भी काम करना बन्द। सब मै करूँगा।" कार्तिक ने कहा फिर वहाँ से घर के लिए निकल गया। पूरे रास्ते काव्या सोच मे पड़ी रही की ये बात आज ही क्यों सामने आई जब उसने चित्रा को कार्तिक के पास लाने की कोशिश शुरू की थी। क्या सच मे भगवान भी यही चाहते है!!! कहीं चित्रा को शामिल कर मैंने कार्तिक को किसी मुश्किल मे तो नही डाल दिया!!!उसने कार्तिक की ओर देखा जिसके चेहरे खुशी और आँखो मे नमी थी।
क्रमश: