Chapter 54
humsafar 54
Chapter
54
श्रेया का ऑफिस मे आज पहला दिन था। उसने सारे पेपर वर्क पूरे किए और काम शुरू करने से पहले अपने लिए कॉफी लेने चली गयी। रास्ते मे उसकी नज़र मानव पर गयी जो खुद भी वहाँ अपने लिए कॉफी लेने जा रहा था। श्रेया ने उसे पीछे से आवाज़ लगाई लेकिन उसने सुनी नही। श्रेया भागते हुए उसके पीछे लगी और उसके बराबर चलते हुए बोली, "ओए मानव के बच्चे!!! सुनाई नही देता है क्या, कब से आवाज़ दे रही हु?"
श्रेया की बात सुन मानव ने कुछ कहने की बजाय उसे इग्नोर कर आगे बढ़ गया। तब जाकर श्रेया को समझ आया की मानव उसे इग्नोर कर रहा है, लेकिन क्यों? श्रेया अपना सिर खुजाते हुए फिर से मानव के पीछे भागी। मानव अपने लिए कॉफी निकाल रहा था। श्रेया उसके सामने कॉफी मशीन पर कोहनी टिका कर बोली, "ओए आदिमानव! थैंक यू......कल रात मुझे घर छोड़ने के लिए और सॉर्री! मुझे होश ही नही रहा शायद कुछ ज्यादा हो गया था।"
"ये अपना सॉर्री और थैंक यू अपने पास ही रख और अगर तुझे इतनी ही पड़ी है न मेरी तो मेरे चार हजार निकाल और चलती बन!" मानव ने गुस्से मे कहा। श्रेया मानव को यू गुस्सा करते देख सहम गयी। इससे पहले भी दोनों हमेशा लड़ते झगड़ते रहते थे लेकिन कभी मानव ने गुस्सा नही किया था और वो भी इतनी बुरी तरह से की श्रेया की आँखों से आँसू आ गए। उसकी आँखों मे आँसू देख मानव ने कुछ कहने की बजाय मुह फेर कर चला गया।
श्रेया को कुछ भी समझ नही आया की आखिर हुआ क्या था। उसे भी गुस्सा आया और मानव के डेस्क की ओर बढ़ी। अपने पर्स से पैसे निकाल कर मानव के टेबल पर पटक कर रखा और अपने पैर पटकते हुए वहाँ से बिना कुछ कहे निकल गयी। मानव बस उसे जाते हुए देखता रहा। ना कुछ कहा और ना ही उसे रोकने की कोशिश की। बस एक दर्द था उसके चेहरे पर।
सारांश अवनि के साथ घर पहुँचा। गाड़ी से उतरते ही सारांश ने अवनि को गोद मे उठा लिया और अंदर चला आया। अवनि का शर्म से बुरा हाल था , "सारांश! प्लीज मुझे नीचे उतारिये, इस वक़्त घर मे मासी होंगी बाकी और भी लोग होंगे। किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा।"
सारांश ने बिना कुछ कहे छोड़ने की बजाय अवनि को और ज्यादा मजबूती से पकड़ लिया। अवनि बस उससे मनुहार करती रही लेकिन सारांश पर उसका कोई असर नही हुआ। घर मे इस वक़्त शांति छाई हुई थी। सिया ऑफिस के लिए पहले ही निकल चुकी थी और बाकी सब लोग अपने अपने काम मे लगे थे। पीछे से जानकी हाथ मे कुछ समान लेकर आई और बिना देखे ही सारांश को बोली, "सारांश...! बेटा, जीजी ने कहा है की आज की मीटिंग के बारे मे मै तुम्हे याद दिला दु।" कहकर चली गयी।
"थैंक्स मासी...!" सारांश ने कहा। जानकी को देख अवनि शर्म से पानी पानी हो गयी। उसने सारांश को गुस्से से देखा लेकिन सारांश भी उसको इग्नोर कर उसे वैसे ही कमरे मे ले गया और दरवाजा बन्द कर दिया।
"अब तो कोई नही देखेगा न हमें। ना तो हम हॉल मे है और ना ही बीच सड़क पर...... अब जो चाहें कर सकती हो तुम, जो भी तुम्हारा दिल करे।" सारांश ने शरारत से कहा तो अवनि समझ गयी की वह क्या कहना चाह रहा है। अवनि ने कहा, "उसके लिए मुझे नीचे तो उतारिये!" लेकिन सारांश ने जैसे आज उसकी बात सुनना ही नही था। अवनि ने फिर कहा, "सारांश...! आपको ऑफिस जाना है न! मॉम ने कहा था की कोई जरूरी मीटिंग है, मासी ने याद दिलाया था अभी।"
"अम्म्......!ऑफिस.........! मीटिंग..........! लेकिन मुझे तो कुछ भी याद नही! तुम किस बारे मे बात कर रही हो!" सारांश ने सोचने का नाटक किया। अवनि ने अपना सिर पिट लिया। जब उसे कोई और रास्ता नज़र नही आया तो उसने पेट पकड़ लिया, "आह! मेरा पेट!! आह दर्द हो रहा है। शायद कुछ ज्यादा ही खा लिया मैंने आज।" अवनि को दर्द से कराहता देख सारांश ने तुरंत उसे बेड पर बैठाया और उसे चेक करने लगा। अवनि को बस इसी एक मौके की तलाश थी, इससे पहले सारांश कुछ समझता अवनि भाग कर बाथरूम मे छुप गयी।
"अवनि क्या है ये! दरवाजा खोलो और मुझे देखने दो, कही कोई घबराने वाली बात तो नही!" सारांश ने चिंता जताते हुए कहा।
"आप भी न...! बहुत भोले है। कोई पेट दर्द नही हो रहा है मुझे। आप ऑफिस जाइये तभी बाहर आऊँगी मै।" अवनि ने दरवाजे के उस पार से कहा।
"अरे यार नही जाना मुझे ऑफिस! वो मीटिंग नितिन संभाल लेगा। मुझे आज सिर्फ तुम्हारे साथ रहना है, तुम्हारे साथ वक़्त बिताना है प्लीज अवनि खोलो दरवाजा...!" सारांश ने बच्चों की तरह जिद की लेकिन अवनि नही मानी और दरवाजा नही खोला।
"अभी आप जाइये....! शाम को मै आपका यही इंतज़ार करती हुई मिलूँगी और वो भी एक सरप्राइज के साथ.....! अभी आप जाइये मुझे बहुत सारा काम करना है। वादा करती हु आज की रात बहुत खास होगी हमारे लिए।" अवनि ने शरमाते हुए दरवाजे की ओर देखकर कहा। तभी किसी ने उसके कमर पर हाथ रख अपनी और खीच लिया। सारांश को सामने देख अवनि हैरान रह गयी। उसकी नज़र चेंजिंग राम के तरफ के दरवाजे पर गयी जो खुला था। उसे ख्याल ही नही रहा की बाथरूम का दरवाजा चेंजिंग रूम की तरफ भी खुलता है।
"ठीक है! अब जब आप इतना कह रही है तो फिर जाना तो पड़ेगा ही। लेकिन जाने से पहले कुछ हिंट तो दे ही सकती है आप, आज रात के सरप्राइज का.....!" सारांश ने शरारत भरे लहजे मे कहा और आँखे बन्द कर अपना गाल आगे कर दिया। सारांश का इशारा समझ अवनि ने भी शर्म किये बिना उसका चेहरा अपने हाथों मे थामा और अपने होंठो से उसके होंठो को छु लिया। सारांश और अवनि दोनों के लिए ही वो वक़्त वही थम सा गया।
दोपहर होने को थी और निक्षय ऑफिस मे बैठा कुछ काम कर रहा था की तभी चित्रा लंच बॉक्स लेकर वहाँ आ धमकी। उसके हाथ मे एक लंच बॉक्स देख निक्षय को हैरानी हुई। "तुम यहाँ खाना खाओगी? या फिर मुझे देखे बिना रहा नही गया तुम से!" निक्षय ने पीठ कुर्सी से लगा कर आराम से कहा तो चित्रा चिढ़ गयी। "तुम्हारे लिए लाई हू, खा लो। पेट गड़बड़ थी न तुम्हारी, और सुबह नाश्ता भी नही किया था इसीलिए वेणु दा से बोलकर तुम्हारे लिए खिचड़ी बनवा दी। अब खा लो वरना तुम्हारी तबियत बिगड़ी तो मेरी मॉम मुझे खा जायेगी।" चित्रा ने बेफिक्री से कहा।
"हाये.....! इतनी फिक्र! कहीं मुझ से प्यार तो नही तो गया? अगर नही भी हुआ तो कोई बात नही, इस स्पीड से तो लगता है जल्दी ही हो जायेगा।" निक्षय ने भी मुस्कुरा कर कहा तो चित्रा गुस्से मे लंच बॉक्स उठाकर जाने लगी। निक्षय ने झट से आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खीचा। चित्रा ने पहले तो गुस्से मे उसे घूरा और फिर खुद ही उसके लिए प्लेट मे खिचड़ी परोस दी।
निक्षय ने जैसे ही एक चम्मच खाया उसकी आँखे इधर उधर घूमने लगी। "ये खिचड़ी किसने बनाई?" निक्षय ने सवाल किया। "बोला तो था की वेणु दा ने बनाई है।" चित्रा ने कहा। "तो फिर इसमें तुम्हारे हाथों का स्वाद क्यों आ रहा है?" निक्षय ने कहा तो चित्रा थोड़ा सकपका सी गयी। वह किसी भी हाल मे निक्षय को पता नही चलने देना चाहती थी की ये खिचड़ी खुद उसी ने बनाई थी क्योंकि निक्षय को उसने परेशान करने के लिए बाहर का खाना खिलाया था और जिस वजह से आज वह नाश्ता भी नही कर पाया था।
"नही! बिलकुल भी नही! ऐसा कैसे हो सकता है? वेणुदा एक बहुत अच्छे कुक है और मुझे तो खाना बनाना ही नही आता।" चित्रा ने अपनी सफाई देते हुए कहा। निक्षय भी कहा कम था, उसने एक चम्मच खिचड़ी उठाई और चित्रा के मुह मे डाल दी। चित्रा को समझ मे आया की उसने गलती से खिचड़ी मे नमक की जगह शक्कर डाल दी थी और अंजाने मे निक्षय को ये बता भी दिया की खाना उसीने बनाई है। हमेशा दुसरो को चुप कराने वाली चित्रा आज निक्षय के सामने खामोश बैठी थी और निक्षय मुस्कुरा रहा था।
क्रमश: